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कश्मीर में भयावह रहा है कोविड-19 का सफ़र

मुस्लिम आस्था के अनुसार, एक शव क़ब्र में उसे दफ़नाने वालों से मदद के लिए गुहार लगाता है। लेकिन किसी भी मदद के न मिलने पर, वह उम्मीद और जन्नत के बीच अटक जाता है। यह वह डरावना तजुरबा है जिसकी तुलना कोविड-19 से ठीक हुए कश्मीर के लोग उस लापरवाह दुनिया से करते हैं जिसने जिन्हें उनके सहारे मरने  के लिए अकेला छोड़ दिया था।
कश्मीर
फाइल फोटो

35 दिनों के क्वारंटाइन के बाद, जब 42 वर्षीय नज़ीर अहमद उत्तरी कश्मीर के तंगमर्ग में अपने परिवार के पास लौटे, तो उनका इंतज़ार एक 'भुतहा घर' कर रहा था। उनका एक भी रिश्तेदार या दोस्त उनसे भावनात्मक रूप से मिलने नहीं आया। अपने घर के गेट पर, उन्होंने एक आधिकारिक अधिसूचना पढ़ी। इसमें कहा गया था कि:  कोई भी व्यक्ति इस परिवार का तब तक दौरा नहीं करेगा, जब तक वे घर में क्वारंटाइन का समय पूरा नहीं कर लेते हैं।'

नज़ीर ने अपने बीमार पिता को उस दिन श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल (SMHS) में स्थानांतरित कर दिया था, जिस दिन उन्हें कोविड-19 की जांच में पॉज़िटिव पाया गया था। वे कश्मीर में नोवेल कोरोना वायरस के दूसरे शिकार थे जिनकी मृत्यु हो गई थी। शीघ्र ही, सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार, उन्हें जल्दी ही अंतिम विदाई दे दी गई।

"मैंने अपने जीवन में इस तरह का अंतिम संस्कार नहीं देखा।" नज़ीर ने घुटी हुई आवाज में कहा, "जहां शोक जताने के लिए सिर्फ तीन बेटे मौजूद थे।"

घर में, नज़ीर का विस्तारित परिवार अपने ही घर में महामारी का कैदी बन गया था। ऐसा  वायरस को नियंत्रण में करने के लिए किया गया था। लेकिन उसकी गमगीन मां रो रही थी और अपने घर के कोने में खड़ी थी, क्योंकि वह अपने जीवन-साथी को आखिरी बार देख नहीं पाई थी।

इससे पहले, अपने पिता के शव को श्रीनगर के चेस्ट डिजीज हॉस्पिटल की एम्बुलेंस में तंगमर्ग   के उनके पैतृक कब्रिस्तान ले जाते समय, नज़ीर अपने पिता के दुखभरे अंत के बारे में सोचते रहे, और उस खाई के बारे में जिसे वे अपने पीछे अचानक से छोड़ चले गए।

नज़ीर ने अपने जीवन के उस सबसे भयावह घंटे को याद करते हुए कहा, "उसी समय मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाला: 'मुझे पता है कि सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को यह जान कर काफी बुरा लगा होगा और आप सब सांत्वना देना चाह रहे होंगे, लेकिन कृपया हमारे घर पर न आएँ। यदि आप ठीक रहे, तो हम फिर मिलेंगे।’ ''

अपने पिता के अंतिम संस्कार के बाद, नज़ीर और उनके दो भाइयों को क्वारंटाइन और जांच के लिए बारामुला जिला अस्पताल ले जाया गया। उनके नमूने 31 मार्च को लिए गए थे। एक दिन बाद ही नज़ीर की रिपोर्ट पॉज़िटिव पाई गई। इस खबर ने उसे हिला कर रख दिया।

क्योंकि उनके भीतर कोविड-19 के कोई लक्षण नहीं थे इसलिए उन्होंने खुद को भ्रम की उम्मीद में रखा। उन्होंने कहा, "मुझे मजबूत रहना था क्योंकि मेरा परिवार अब भी शोक में है और मेरे जांच के परिणाम ने जैसे उन्हें एक तरह से तबाह कर दिया था,"। उन्होंने कहा, "खुद से ज्यादा, मैं अपनी चार बेटियों के लिए चिंतित था।"

उसने सोचा कि अपने पिता की तरह, वह भी अपने परिवार को छोड़ कर चला जाएगा।

"लेकिन यद्द्पि मेरे पिता के अंतिम संस्कार में उनके तीन बेटों ने भाग लिया था, तो मेरी बेटियाँ तो ऐसा भी ऐसा नहीं कर पाएंगी," नज़ीर ने अपनी पीड़ा में अकेले ही रोते हुए कहा। एक मरे हुए जानवर की तरह गड्ढे में फेंके जाने के विचार ने उसे बेचैन कर दिया था।

और इस बीच, अधिक संक्रमण के डर से, नज़ीर के परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को 2 अप्रैल को सामूहिक जांच के लिए अस्पताल में रखा। जैसा कि उन सभी को एक ही अस्पताल में रखा गया था, लेकिन उन्हे अलग-अलग परिसरों में क्वारंटाईन के लिए भेजा गया था। वे इतने पास थे, कि लगता जैसे बहुत दूर हों। "उसी अस्पताल में, नज़ीर ने कहा," हम फोन कॉल के माध्यम से एक दूसरे को सांत्वना देने की कोशिश करते थे।"

एक दिन के बाद, हालांकि, जब वह सो रहा था, उसके वार्ड में कुछ आगंतुक आए। उसकी नींद खुली तो उसने अपने सामने अपनी पत्नी और सात साल की बेटी को खड़ा पाया।

"मैंने उठकर अपनी पत्नी से पूछा, आप यहां क्या कर रही हैं?" उन्होंने कहा, हम भी कोविड-19 के लिए पॉज़िटिव पाए गए हैं। 

इस खबर को सुन नज़ीर को चक्कर आने लगे, और जब वे होश में आए तो उसने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ते हुए उसके चेहरे को देखा और उसकी बेटी उसके चेहरे की तरफ बिना कुछ कहे देख रही थी। 

“मैंने अपनी पत्नी से पूछा, मैंने आज मगरिब की अज़ान नहीं सुनी। क्या तुमने?' उसने जवाब दिया,' अब 10:30 बज चुके है। 'मैंने उस विनाशकारी खबर को सुनने के बाद लंबे समय तक अपने होश खो दिए थे।' '

नज़ीर ने उस रात को याद किया जब उसकी पत्नी ने उसे सांत्वना दी थी और उनका समर्थन किया था। "उसने मुझसे कहा, 'यह अच्छा है कि मैं भी पॉज़िटिव हूं। कम से कम, हम इसमें एक साथ हैं', नज़ीर ने बताया।

लेकिन नज़ीर जानता था कि वह अंदर ही अंदर टूट चुका है। 

उनकी दो बड़ी बेटियाँ उनके भाई के घर पर रह रही थीं, जबकि उनकी छोटी बेटी, जो अभी दो साल की ही थी, अपनी दादी के साथ रह रही थी। वे दिन में दस बार अपनी माँ को पुकारते हैं, और पुछते हैं, 'मम्मी, आप घर वापस कब आएंगी?'

बारामुला जिला अस्पताल में, दोनों पति-पत्नी को रात के खाने और नाश्ते के दौरान,  एज़िथ्रोमाइसिन दवा का पांच दिन का कोर्स दिया गया है। उनकी युवा बेटी को गोलियों पर नहीं रखा गया है, क्योंकि वह बिना लक्षण की मरीज़ है।

लेकिन अस्पताल के अंदर, नज़ीर ने बहुत ही स्पष्ट रूप से देखा कि कैसे वह और उसकी जमात के लोग "अछूत" बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि "सुरक्षात्मक गियर्स पहनने के बावजूद" "डॉक्टर लोग कम से कम 20 फीट की दूरी से हमारी जांच करते हैं और अक्सर पूछते हैं, क्या आप लोग ठीक हैं? अगर कोई भी  लक्षण है तो हमें बताएं'।

अस्पताल में उनके लिए कोई साफ-सफाई या उचित भोजन का इंतज़ाम नहीं है, उन्होंने कहा। दवा और भोजन को भूतल पर एक मेज पर रख दिया जाता है, जिसे वे खुद लेते हैं। उन्होंने कहा, "जब हमारी बेटी रोजाना दाल और चावल नहीं खा पा रही थी, तो मैंने अस्पताल के एक कर्मचारी को उसके लिए कुछ फल लाने के लिए पैसे दिए।"

लेकिन कुछ समय बाद, फल की आपूर्ति भी बंद हो गई। उस कर्मचारी को किसी ने कह दिया कि पैसा भी संक्रमित हो सकता है, नज़ीर ने बताया।

नज़ीर ने कहा, "यह हमारी बेटी के साथ बहुत ज्यादती थी, जो दिन में कई बार रोती थी कि किसी तरह उसकी मां उसे घर ले जाए।" "और खिड़की से बाहर देखते हुए, वह हमेशा पूछती, मैं अस्पताल के लॉन में क्यों नहीं खेल सकती हूँ? यहां तक कि यह हमारे लिए भी कठिन हो रहा था, फिर भी हम उसका ध्यान वीडियो गेम खेलने और मोबाइल फोन पर कार्टून देखने पर केंद्रित करने में कामयाब रहे, ”उन्होंने कहा।

12 अप्रैल को, नज़ीर और उनके परिवार को श्रीनगर के झेलम वैली मेडिकल कॉलेज (जेवीसी) में स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्हें लेबर रूम में रखा गया जिसे तीन छोटे वार्डों में विभाजित किया गया था। वहाँ कुल आठ मरीज़ रखे गए थे।

बारामूला जिला अस्पताल में पहले से ही दवाओं के पांच दिन के कोर्स को पूरा करने के बाद, जेवीसी में डॉक्टरों ने युगल को लिमसी और थाइमिन दी ताकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मज़बूत हो सके। 

जेवीसी में हमारा एक अलग ही अनुभव था," नज़ीर ने कहा। “सुरक्षात्मक गियर में डॉक्टरों ने हमारी काफी बारीकी से जाँच की और हमारी बेटी के साथ खेले भी। हमें अपनी बेटी के लिए फल खरीदने की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि उन्होंने हमें दिन में दो बार फल दिए थे। ”जल्द ही, परिवार को बहुत राहत मिली।

16 अप्रैल और 18 अप्रैल को जांच के लिए हमारे नमूने लिए गए और वे कोविड-19 के मामले में नेगेटिव निकले। और 20 अप्रैल को, हमें जेवीसी से छुट्टी दे दी गई, और नौ दिनों के प्रशासनिक क्वारंटाईन के लिए कुन्ज़र में धोबीवन गांव भेज दिया गया।

क्वारंटाईन समाप्त होने के बाद, इस जोड़े की खुशहाल घर वापसी हो रही थी।

नज़ीर ने कहा, "यह एक ऐसा क्षण था जब हमने आखिरकार कोरोनोवायरस को हरा दिया था।" "सर्वशक्तिमान की इच्छा के बिना और वापस लड़ने का हमारा संकल्प सब कुछ असंभव था," उन्होंने कहा। उन्होंने जल्द ही अपना प्लाज्मा दान करने का फैसला किया।

हालाँकि, 35 दिनों के बाद घर वापसी की पहली रात नज़ीर को काफी अंधेरा महसूस हुआ, क्योंकि वह अब भी अपनी उस भीतर से तोड़ देने वाली यात्रा के बारे में सोच रहा था।

“कोविड-19 एक व्यक्ति को मृत शरीर बना देता है, जो उन लोगों से मदद की गुहार लगता है जो उसे कब्र में छोड़ जाते हैं। लेकिन कोई भी मदद न मिलने के बाद वह उम्मीद और जन्नत के बीच अटक जाता है,”उन्होंने कहा।

आज तक के, आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जम्मू और कश्मीर में 1,921 कोविड-19 के मामले रिपोर्ट हुए हैं। केंद्र प्रशाषित अधिकारियों ने कहा है कि 1,535 कश्मीर से हैं जबकि 386 जम्मू क्षेत्र से हैं। जम्मू-कश्मीर में अब तक महामारी के कारण 27 मौतें हो चुकी हैं।

एक माँ की त्रासदी 

नज़ीर की तरह, ठीक होने से पहले, ताज बानू का भी कोविड-19 को लेकर अति पीड़ा देने वाला तजुर्बा रहा है। 

बुजुर्ग महिला और उनके पति ने "विवादास्पद" तब्लीगी जमात कार्यक्रम में भाग लिया था, पहले वे बांग्लादेश में जनवरी से मध्य मार्च तक रहे, और फिर 17 मार्च को नई दिल्ली के निजामुद्दीन में आ गए थे।

बांग्लादेश के लिए रवाना होते समय, ताज ने नई दिल्ली हवाई अड्डे पर कुछ कश्मीरी यात्रियों को चीन के लोगों को प्रभावित कर रही बीमारी के बारे में सुना था। "वे वास्तव में बीमारी का नाम नहीं जानती थी, लेकिन जोर देकर कहा कि हम चीन के लोगों के साथ किसी भी तरह संपर्क से बचेंगे। मैंने तब इसे गंभीरता से नहीं लिया था।

जब उसने कश्मीर के एक युगल को निजामुद्दीन से कश्मीर वापस जाने के लिए फुर्ती में जाते देखा तो वह भी चौकन्ना हो गई। उनके चिंतित चेहरों ने उन्हें चिंतित कर दिया। "तो मैंने महिला से पूछा, क्या बात है?" उसने कहा कि कोविड-19 नामक एक बीमारी है, जो पहले चीन में पाई गई थी, और अब भारत में भी पहुंच गई है।"

यह सुनकर, ताज ने जोर देकर कहा कि हालात बिगड़ने से पहले उन्हें तुरंत घर वापस चले जाना चाहिए। वृद्ध दंपति 20 मार्च को ट्रेन के माध्यम से जम्मू के लिए रवाना हो गई। श्रीनगर के लिए हवाई टिकट मिलने से पहले वे दो दिनों तक जम्मू में फंसे हुए थे।

श्रीनगर हवाई अड्डे पर, आने वाले यात्रियों के यात्रा इतिहास की जांच के लिए पहले से ही अधिकारियों को तैनात किया गया था। जैसा कि दंपति बांग्लादेश से आए थे, उन्हें बस में बैठाया गया और बारामुला जिला अस्पताल में उतार दिया गया था।

"अस्पताल के अधिकारी हमें वहां नहीं रखना चाहते थे," उसने कहा। कुछ घंटों के बाद, जोड़े को हंदवाड़ा डिग्री कॉलेज ले जाया गया। उन्होंने उसके परिसर में एक रात बिताई, जहां विभिन्न देशों के छात्रों को क्वारंटाईन किया जा रहा था।

अगले दिन, दंपति को आई॰टी॰आई॰ हंदवाड़ा में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्हे दो अन्य जोड़ों के साथ एक कमरा साझा करना पड़ा, वे भी निजामुद्दीन से आए थे।

क्वारंटाईन के अगले तेरह दिन ताज और अन्य लोगों के लिए "नरक की तरह" थे।

"किसी ने भी हमारे कमरे का दौरा नहीं किया," उसने कहा। न ही “कोई चेक-अप किया गया। वॉशरूम की सफाई नहीं थी और बहुत गंदे थे। गर्म पानी नहीं था; ठंडी रातें बिताने के लिए कोई उचित बिस्तर नहीं था।”

उसने बताया कि हमें पीपीई में डॉक्टर लॉन से बुलाते, और कहते कि, "हम सिर्फ इस बात की जांच कर रहे थे कि आप जीवित हैं या नहीं या आप के भीतर बुखार, सर्दी या खांसी जैसे कोई लक्षण तो विकसित नहीं हुए हैं।"

और फिर, उसके पति के सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हे बारामूला जिला अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था। "उन्होंने उसे क्वारंटाईन सेंटर में रखा, और कोविड-19 की जांच के लिए उनका नमूना लिया," ताज ने बताया।

अगले दिन, उसके पति की जांच का नतीजा नेगेटिव आया। आईटीआई हंदवाड़ा में अपने चार रूममेट्स के साथ, ताज को जांच के लिए बारामूला जिला अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था। "हम खुश थे कि आखिरकार हमारी जांच की जा रही है और अंतत हमें घर जाने की अनुमति मिल जाएगी," उसने कहा। हालांकि, बिना कोई लक्षण होने के बावजूद, ताज और उसके कमरे में मौजूद साथी इस बात से पूरी तरह से अनजान थे कि वायरस के साथ उनका खेल शुरू हो गया था।

"अगले दिन, मेरे रिश्तेदारों ने मुझे हंदवाड़ा से यह कहकर बुलाया कि मेरी जांच पॉज़िटिव है,"  ताज ने याद कर बताया। “मैंने उनसे कहा,‘ क्या बकवास है! मैं ठीक हूं। 'लेकिन उन्होंने कहा कि उन्होंने सूची में मेरा नाम इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया है,'। 

चूंकि ताज फोन पर थी, इसलिए एक स्वास्थ्य अधिकारी ने इस खबर की पुष्टि की। "मैंने एक ही बार में घंटी बजाकर फोन बंद कर दिया," उसने याद किया। "ऐसा लगा जैसे मेरे सिर पर कुछ गिर गया है।" उसने कहा।

तजा को अस्पताल की पहली मंजिल पर एक छोटा कमरा दे दिया गया था जहाँ उसने अपनी कोविड-19 की यात्रा शुरू की थी। जल्द ही, उसके पांच बच्चे उसे फोन कर सांत्वना देने लगे।

"मैं उस भयानक रात को कभी नहीं भूलूँगी," ताज ने अफसोस जताया। "वह रात अभी भी मुझे परेशान करती है और जब तक मैं जीवित हूं, तब तक मुझे परेशान करती रहेगी। मैं एक पल के लिए भी नहीं सो सकी थी और पूरी रात इबादत करती रही।”

लंबी और अंधेरी रात के बाद जैसे-जैसे सुबह का आगाज़ हुआ, ताज इससे लड़ने के लिए तैयार हो चुकी थी। 

एक सुरक्षाकर्मी एक बैग की खबर लेकर आया जो मेरे लिए था। "मेरी छोटी बेटी ने फोन पर बताया कि उसने कपड़े, साबुन, सफाई के लिए तौलिया और कुछ खाने की चीजें भेजी हैं।"

उनके सभी पाँच बच्चे- दो बेटे कश्मीर से बाहर रहते हैं और तीन बेटियाँ हैं – जो शादीशुदा हैं। वे अपने पति के साथ अकेली रहती है।

ताज ने कहा, "मेरी बेटी 20 दिनों तक अपनी ससुराल से मेरे लिए खाना, फल और अन्य सामान भेजती रही।" उनकी चिंता और समर्थन के बावजूद, वे बहुत अकेला महसूस करती थी।

केवल एक चीज, उसने कहा, जो किसी व्यक्ति को कोविड-19 से पहले मार देती है, वह उसका अकेलापन है।

“कोई भी तुम्हारे पास नहीं आ सकता है। आपका परिवार, दोस्त आपको नहीं देख सकते हैं। यहां तक कि डॉक्टर भी दूर से ही जांच करते हैं। आपको लगता है जैसे आप गंदगी फैलाने वाले हैं, ”ताज ने कहा। "और आप किसी एक जानवर की तरह मर जाते हैं जिसका कोई अंतिम संस्कार नहीं होता है। आपका परिवार भी इस दुनिया में आपके अंतिम क्षणों के दौरान आपको नहीं देख सकता है।

आंसुओं के साथ उसके गाल सहलाते हुए, ताज़ ने कहा कि उसके पति को बिना बताए अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। "वे तब चले गए थे, जब मुझे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी," उसने कहा। "वह बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान करती है!"

उस दिन के बाद से उसने तय किया कि वह अस्पताल में अन्य रोगियों का साहस बढ़ाएगी। 

“इसलिए, मैं चाय बनाती और अन्य कोविड-19 रोगियों को परोसती। हम सभी एक साथ रहते, और इबादत करते थे और एक-दूसरे का समर्थन करते थे, ”उसने कहा।

यहां तक कि मधुमेह की वजह से मुश्किल हो रही थी, तब भी वह दृढ़ता से खड़ी रही, "अल्लाह में विश्वास है और उम्मीद पर कायम रहना ही इसे पार करवाएगा।"

यह ताज की मुखर प्रकृति के कारण था कि अस्पताल ने कोविड-19 रोगियों के लिए उनकी सुविधाओं में सुधार किया था।

जिस दिन ताज़ को अस्पताल से छुट्टी मिली, वह अपने बड़े बेटे को इंतजार करते देख हैरान थी। वह पटना से पूरा रास्ता तय कर आया था, जहां वह भारतीय स्टेट बैंक में काम करता हैं।

"उसे श्रीनगर तक यात्रा के लिए कोई वाहन नहीं मिल रहा था," ताज ने कहा। "उन्होंने तब दिल्ली से 50,000 रुपये में एक बाइक खरीदी थी।"

ताज अपने को अब किचन गार्डनिंग में व्यस्त रखती है। "कभी-कभी मैं रात के दौरान उठ जाती हूं और रोना शुरू कर देती हूं जब तब अतीत आँखों में घूमता है," उसने कहा। "वह सताता है, डराता है, और मुझे पसीने-पसीने कर देता है।"

दो बच्चों की कहानी 

26 मार्च को, श्रीनगर के जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल (JLNM) अस्पताल में दोनो बहने कोविड-19 के लिए पॉज़िटिव पाई गई और यह खबर सुन वह असहाय महसूस कर रही थी और उसकी आँखों में आँसू थे – उनकी उम्र चार और आठ साल थी। 

श्रीनगर के नटिपोरा के अलीजा और सेहरिश अपने दादा के संपर्क में तब आए थे, जब वे उमराह करने के बाद सऊदी अरब से लौटे थे, और बाद में कोविड-19 के लिए पॉज़िटिव पाए गए थे। वे उसी उड़ान पर सवार थे जिसमें कश्मीर का पहला कोविड-19 मरीज़ सवार था, जो श्रीनगर के खनियार इलाके की 67 वर्षीय महिला थी।

उनकी जांच के नतीजों ने अस्पताल में सभी को चौंका दिया, और दोनों लड़कियों ने रोना शुरू कर दिया कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। "वे अपनी मां, विशेष रूप से छोटी लड़की माँ के साथ रहना चाहती थी," डॉ॰ बिल्विस शाह, नोडल अधिकारी, जेएलएनएम अस्पताल, श्रीनगर ने बताया। डॉक्टर ने कहा, "चूंकि घाटी में कोविड-19 के मामलों की शुरूआत थी, इसलिए अस्पताल में बहुत घबराहट थी।"

यहां तक कि जब लड़कियां रो रही थीं, तो वायरस के डर से कोई भी उनके करीब नहीं आ सकता था और उन्हें न ही सांत्वना दे सकता था।

उनकी माँ मसर्रत, जो जांच में नेगेटिव थी अपने बच्चों के लिए आगे बढ़ी। उसे पीपीई गियर दिया गया ताकि वह अपनी बेटियों के करीब जा सके और उन्हें शांत कर सके।

कोविड-19 मामलों से भरे वार्ड में उनकी मां के स्वास्थ्य के गिरने के डर से, अस्पताल प्रशासन ने उन्हें और उनकी बेटियों को एक अलग कमरे में रखा।

लेकिन उस कमरे के अंदर, बिना किसी लक्षण वाली दो लड़कियां अपनी मां के समय को कठिन बना रही थीं जो एक पीपीई और एक मुखौटा पहने उनके सामने खड़ी थीं।

"वे मुझे छूना और गले लगाना चाहते थे," माँ ने कहा। "लेकिन मैं उन्हें बताती कि उन्हें मुझसे दूर रहना चाहिए, क्योंकि मैं संक्रमित हूं और इसलिए उन्हें भी संक्रमित कर सकती हूँ,"। 

अपनी बेटियों की बीमारी के कारण उन्हें सांत्वना देने के साथ अपनी रातों की नींद हराम करना था। कभी-कभी तो इलाज़ और सुविधाओं को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ उनकी गर्म बहस हो जाती थी।

चिंता उसको सुन्न किए दे रही थी, मास्क और दस्ताने के निरंतर उपयोग से उसकी त्वचा को नुकसान हो रहा था।

"मेरे लिए तो यह एक करो या मरो की लड़ाई थी," मसर्रत ने कहा। उन्होंने कहा, "मैंने किसी भी अंजाम के लिए खुद को तैयार कर लिया था, बस यह सुनिश्चित करना था कि मेरी बेटियां सलामत रहे," उसने कहा।

कमरे में डरावना समय बिताने के बाद, मसर्रत को 11 अप्रैल को कुछ राहत मिली, जब उनकी बेटियों की तीसरी जांच नेगेटिव आई।

"और उसके बाद," उन्होंने कहा, "मैंने अपने अल्लाह का शुक्रिया अदा किया और खूब रोई। यह भावनाओं के ज़ंग को जीतने जैसा था।”

13 अप्रैल को, जेएलएमएन अस्पताल में डॉक्टरों ने मां और उनकी दो बेटियों को हर्षओल्लास और फूलों के साथ विदा किया।

मसर्रत जिसकी आँखों में नींद नहीं थी वह केवल आँखों से आंसू बहा सकती, मुस्कुरा सकती थी। उसके 18 दिन के लंबे डरावने ख्वाब का एहसास वास्तव में समाप्त हो गया था लेकिन अभी वे डरावने पल अभी उसकी आखों से औझल नहीं हो पाए थे।

अंग्रेज़ी में लिखा लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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