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किसान आंदोलन पार्ट-2 : चुनौतियां और संभावनाएं

क्या किसान-आंदोलन एक बार फिर पहले की तरह उठ खड़ा होगा?
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फ़ोटो साभार: PTI

दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 20 मार्च को किसानों ने अपने आंदोलन के अगले चरण का आगाज़ कर दिया। ज्ञातव्य है कि जब किसानों ने सीधे संसद के द्वार तक ( Parliament Street ) पहुंचने की चेतावनी दी, तब बाध्य होकर सरकार ने उस रामलीला मैदान को आबंटित किया जहां पिछले आंदोलन के दौरान भी उन्हें पहुंचने नहीं दिया गया था, वरना इस बार भी रामलीला कमेटी का बहाना बनाकर उन्हें रोकने की योजना थी।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसान नेताओं से जो physical संवाद जनवरी 2021 से बंद कर दिया था उसे 2 वर्ष बाद फिर शुरू करते हुए SKM के 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से उन्होंने स्वयं वार्ता की और उनका ज्ञापन लिया। साफ है कि चुनावी साल में किसानों के फिर किसी बड़े आंदोलन का उभार वह आखिरी चीज है जो चौतरफा संकट में घिरती मोदी सरकार नहीं चाहेगी।

इस महापंचायत के माध्यम से SKM ने किसान-आंदोलन पार्ट-2 का आगाज़ कर दिया। कृषि मंत्री से मिलकर लौटने के बाद डॉ. दर्शन पाल ने रामलीला मैदान के मंच से ऐलान किया कि सरकार ने हमारी मांगे नहीं मानीं तो आने वाले दिनों में हम पहले से भी बड़ा आंदोलन करेंगे, जिसकी ठोस योजना 30 अप्रैल को दिल्ली में होने वाली देश भर के किसान संगठनों की बैठक में बनाई जाएगी। राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को चुनौती दी, "हमने मुजफ्फरनगर में भाजपा को 8 सीट से 1 पर ला दिया है। सरकार नहीं मानी तो 2024 में पूरे देश में उसका यही हश्र होगा। "

भारत के किसानों से खेती पर कॉर्पोरेट नियंत्रण के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का आह्वान करते हुए SKM ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है, " कर्ज में डूबी मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र, कृषि भूमि, वन और प्राकृतिक संसाधनों को कारपोरेट मुनाफाखोरों के हाथों बेचने की हम भर्त्सना करते हैं। SKM देश भर में बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट लूट के खिलाफ सम्मेलनों का आयोजन करेगा, अखिल भारतीय यात्राएं निकलेगा और किसानों को लामबंद करेगा। "

दरअसल, मोदी सरकार ने इस बार भी किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने में शायद ही कोई कसर छोड़ी।

ठीक उस समय जब पूरे देश के, विशेषकर आंदोलन के सबसे मजबूत गढ़ पंजाब के किसान दिल्ली महापंचायत की तैयारियों में लगे हुए थे, ऐन उसी वक्त पंजाब में इंटरनेट बंद हो गया और अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के लिए पूरे पंजाब में केंद्र व राज्य के बलों का अभियान शुरू हो गया, जगह जगह बैरिकेडिंग और धर-पकड़ शुरू हो गयी, पूरे पंजाब में दहशत और सनसनी का एक अलग ही माहौल बन गया। कहना न होगा कि यह पूरा प्रकरण गम्भीर साम्प्रदायिक विभाजनकारी संभावनाएं ( divisive potential ) लिए हुए है जो सभी समुदायों के किसानों, मेहनतकशों की लोकतान्त्रिक एकता पर आधारित किसान-आन्दोलन के लिए बेहद घातक और नुकसानदेह है।

जाहिर है यह महज संयोग नहीं हो सकता क्योंकि यह कोई अचानक हुई स्वतःस्फूर्त कार्रवाई नहीं थी, बल्कि मीडिया की खबरों के अनुसार गृहमंत्री अमित शाह और उनसे मिलने दिल्ली पहुंचे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की मुलाकात में इसकी योजना बनी थी। क्या यह किसानों के इतने बड़े अभियान के आगे या पीछे नहीं हो सकता था? क्या यह संयोग नहीं, एक सचेतन प्रयोग था जिसका एक अहम उद्देश्य किसानों के दिल्ली मार्च को प्रभावित करना था ?

जाहिर है हिन्दूराष्ट्रवाद के हाथों सारी सत्ता का चरम केंद्रीकरण भारत जैसे अति विविधता पूर्ण समाज के राष्ट्रीय विखंडन और लोकतन्त्र के खात्मे का सबसे पक्का नुस्खा ( surest recipe ) है। पंजाब में फिर से अमृतपाल जैसी प्रवृत्ति को ताकत कहाँ से मिल रही है, इसे वहां फैलाये जा रहे इसे तर्क से समझा जा सकता है कि अगर सत्ताशीर्ष पर बैठे लोगों द्वारा हिन्दू राष्ट्र का उद्घोष जायज है तो सिख राष्ट्र क्यों नहीं ?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे दौर में जब पंजाब के अंदर अलगाववादी, कट्टरपंथी ताकतें फिर से सर उठा रही हैं, बलबीर सिंह राजेवाल जैसे वरिष्ठ नेता के लिए भी, जिन्होंने एक समय ऐतिहासिक किसान आंदोलन को कुशल नेतृत्व दिया, आज किसान आंदोलन की एकता का लक्ष्य गौण हो गया है। पिछले दिनों उन्होंने कहा "सतलज, ब्यास और रावी अंतरराज्यीय नदियाँ नहीं हैं। पंजाब के अलावा अन्य कोई राज्य इनका नदी तट वाला राज्य ( riparian ) नहीं है। पानी राज्य का विषय है और केंद्र सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हम पहले अपनी जरूरत पूरी करेंगे और राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली को पानी तभी distribute करेंगे जब वह बचेगा। हम दूसरे राज्यों को पानी मुफ्त में नहीं देंगे। "

जाहिर है ऐसे बयान किसानों की एकता के cause को serve नहीं करते, जबकि आज किसानों को तथा देश और लोकतन्त्र को बचाने के लिए जनता की विराट एकता की जरूरत है। बेहतर होगा राजेवाल साहब और उनके साथ की अन्य जत्थेबन्दियाँ एक बार फिर SKM के साथ commonly agreed मुद्दों पर एक साथ मार्च करें।

मानव निर्मित आपदा/साजिश के साथ प्रकृति ने भी किसान आंदोलन की खूब परीक्षा ली। पूरे उत्तर भारत विशेषकर पश्चिमोत्तर भारत में एक दिन पहले से बिगड़े मौसम, लगातार हो रही बारिश ने भी किसानों की गोलबंदी को बाधित किया।

बहरहाल, किसान-आन्दोलन शुरू से ही आँधी-तूफान के बीच लड़ते हुए ही इस्पाती हौसले से लैस हुआ है।

आज की किसान-गोलबंदी में जो gap रहा, उससे यह साफ है कि किसान-आंदोलन को पंजाब चुनाव के समय चली अनर्गल बहसों तथा अन्य कारकों से पैदा हुए सांगठनिक बिखराव की कीमत चुकानी पड़ी है। हालांकि संतोष की बात यह है कि संयुक्त किसान मोर्चा और किसान-आंदोलन अपनी मूल वैचारिक धुरी और दिशा पर कायम है और नेतृत्व का केन्द्रक- जिसमें वामपंथी किसान संगठन, डॉ. दर्शन पाल, जोगिंदर सिंह उगराहा तथा राकेश टिकैत जैसे नेता और उनके संगठन शामिल हैं-मजबूती से डटा हुआ है।

आज किसान-आंदोलन की असली चुनौती अपनी एकता को सुदृढ़ करना तथा सही लोकतान्त्रिक दिशा पर मजबूती से डटे रहते हुए हर तरह की विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करना है। उन्हें अपने आंदोलन के मुद्दों को पूरे देश के किसानों में लोकप्रिय बनाना होगा तथा विपक्षी राजनीतिक दलों की घेरेबंदी कर उन्हें अपने आंदोलन के समर्थन में उतरने के लिये मजबूर करना होगा।

इस वर्ष 23 मार्च, शहीदे-आज़म भगत सिंह का शहादत दिवस, हर देशभक्त हिंदुस्तानी, हर किसान का संकल्प बने कि हर हाल में फासीवाद तथा हर तरह के कट्टरपंथ साम्प्रदायिकता, अलगाववाद को शिकस्त देना है, तभी किसान आंदोलन बचेगा-लोकतन्त्र बचेगा, तभी पंजाब बचेगा- देश बचेगा।

आज जब फासीवाद के विरुद्ध लोकतन्त्र की लड़ाई एक निर्णायक दौर में प्रवेश कर गयी है, किसान-आंदोलन पार्ट-2 की ओर देश की जनता उम्मीद भरी निगाहों से देख रही है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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