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मणिपुर में इंटरनेट बंद होने से मरीज़ों की बढ़ रही परेशानी: डॉक्टर

राज्य का दौरा करने वाले IDPD सदस्यों ने कहा कि शटडाउन के कारण वे टेलीमेडिसिन के माध्यम से मरीज़ों की मदद नहीं कर सकते और न ही डॉक्टरों को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
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मणिपुर का दौरा करने वाले इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट (IDPD) से जुड़े डॉक्टरों का मानना है कि जातीय संघर्ष के बीच राज्य में इंटरनेट बंद होने से मरीज़ों को काफ़ी नुक़सान हो रहा है।

सोमवार को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, IDPD के महासचिव शकील उर रहमान ने कहा कि पहाड़ी मरीज़ इलाज के लिए नागालैंड के कोहिमा और दीमापुर और असम के नजदीकी शहरों तक 150 किलोमीटर की यात्रा करते हैं क्योंकि घाटी और पहाड़ियों के बीच माल और लोगों की आवाजाही गंभीर रूप से प्रभावित होती है।

उन्होंने कहा, “हमारी टीम ने पहाड़ी क्षेत्रों में खुमान लमकपाक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हॉस्टल (इंफाल जिला) और सपोरमीना पीएचसी (कांगपोकपी जिला) के तहत आईटी राहत शिविरों में राहत शिविरों का दौरा किया। हम दवाईयां नहीं ले जा सके क्योंकि हमारे स्थानीय संपर्कों ने हमें बताया कि इस वक़्त समुदायों के बीच अविश्वास की भावना है जो इस यात्रा को कठिन बना देगा।”

पेशे से बाल रोग विशेषज्ञ रहमान बताते हैं कि इंटरनेट बंद होने से मरीज़ों की परेशानी बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा, "हम टेलीमेडिसिन के माध्यम से मरीज़ों की मदद कर सकते हैं और डॉक्टरों को पेरिटोनियल डायलिसिस ( रीनल फेल्यर के लिए) और अन्य कौशल में प्रशिक्षित कर सकते हैं, जैसे बच्चों में श्वसन संकट सिंड्रोम के मामलों में एएमबीयू बैग का उपयोग करना, और स्तनपान पर माताओं को परामर्श देना। शटडाउन ने ऐसी सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया है।"

उन्होंने आगे कहा, "हमने पहाड़ी इलाकों में राहत शिविरों में गंभीर रोगियों के लिए रेफरल सिस्टम को भी असंतोषजनक पाया। यह जानकर हैरानी हुई कि कांगपोकपी जिला अस्पताल में न तो कोई ऑपरेशन थिएटर है और न ही ब्लड स्टोरेज की सुविधा है।"

इसके अलावा, राज्य में "स्पेशलिस्ट, अन्य डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है। अधिकांश स्पेशलिस्ट डॉक्टर और सभी मेडिकल कॉलेज इंफाल जिले (तीन मेडिकल कॉलेज) और चुराचांदपुर जिले (एक मेडिकल कॉलेज) में हैं।"

बच्चों में टीकाकरण की कमी का ज़िक्र करते हुए रहमान ने कहा कि खसरे के ख़िलाफ़ कोई विशेष टीकाकरण अभियान नहीं है। "संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के स्फीयर प्रोजेक्ट के अनुसार, राहत शिविरों के लिए विटामिन ए ओरल सस्पेंशन के साथ-साथ नौ महीने से ऊपर के बच्चों में खसरे का टीकाकरण अभियान अनिवार्य है।

IDPD की अध्यक्ष अरुण मित्रा, जो एक ईएनटी डॉक्टर हैं, ने कहा कि राहत शिविरों के नोडल अधिकारियों ने भी उन रिपोर्टों की पुष्टि की है कि लोगों को कभी भी हरी पत्तेदार सब्जियां/अंडे/मांस/मछली की आपूर्ति नहीं की गई है। केवल स्थानीय समुदाय, नागरिक समाज संगठन और कुछ व्यक्ति ही कभी-कभी सब्जियां उपलब्ध कराते हैं।

उन्होंने कहा, “एक नोडल अधिकारी ने बताया कि शिविरों में लोगों को हर 13 दिन पर एक अंडा मिलता है। हरी सब्जियों की आपूर्ति कभी नहीं की जाती है। राशन के एक बड़े हिस्से में चावल, दाल, आलू और खाना पकाने का तेल है। पिछले चार महीनों में बच्चों के आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों और पशु प्रोटीन की अनुपस्थिति से रतौंधी हो सकती है, जो विटामिन-ए की कमी के कारण होता है।"

मित्रा ने कहा कि रीनल फेल्यर और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों की हालत खराब है। "किडनी फेल्यर वाले दो मरीज़ों ने हमसे डायलिसिस मशीनों के लिए अनुरोध किया।"

उन्होंने कहा, “इसके अलावा बच्चों को बार-बार बुरे सपने आते हैं। बहुत से लोग अपने माता-पिता से घर लौटने का अनुरोध करते हैं। बुज़ुर्ग अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं।”

मित्रा ने "मणिपुर और पड़ोसी राज्यों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर उच्च राहत केंद्रों तक जल्द से जल्द परीक्षण के बाद मजबूत रेफरल सिस्टम" की मांग की।

इसके अलावा उन्होंने मांग की, "इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए इंटरनेट को बहाल करना ज़रूरी है। इसी प्रकार, जिला एवं उपजिला स्तर पर फैब्रिकेटेड ऑपरेशन थिएटरों को तुरंत चालू किया जाना चाहिए। क्लस्टर बनने के बाद राहत शिविरों के आसपास ब्लड स्टोरेज यूनिट स्थापित की जानी चाहिए।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Manipur Internet Shutdown Hurting Patients: Doctors

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