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दिल्ली में यमुना की सफाई से संबंधित परियोजाएं समय से पीछे: सरकार की रिपोर्ट

डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कई खंडों में विभाजित यमुना के डूब क्षेत्रों को पूर्व की स्थिति में लाने संबंधी डीडीए के कार्य में छह से 12 महीने की देरी हुई है।
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फ़ोटो : PTI

नयी दिल्ली: दिल्ली में यमुना नदी की सफाई के उद्देश्य से कई प्रमुख परियोजनाएं तय समय से पीछे हैं। यह बात दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट से सामने आयी है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट, नदी में प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं में विलंब पर प्रकाश डालती है।

परियोजनाओं में नये मलजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) का निर्माण, मौजूदा संयंत्रों की मरम्मत, अनधिकृत कॉलोनियों में सीवर लाइन बिछाना, सीवर से गाद निकालना और शोधित अपशिष्ट जल का उपयोग शामिल है। ये पहल ‘‘यमुना निर्मलीकरण कार्ययोजना" का हिस्सा है।

डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कई खंडों में विभाजित यमुना के डूब क्षेत्रों को पूर्व की स्थिति में लाने संबंधी डीडीए के कार्य में छह से 12 महीने की देरी हुई है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि ओखला में 12.4 करोड़ गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) की क्षमता के नए एसटीपी के निर्माण में नौ महीने की देरी हो चुकी है और अब इसके अगले साल मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके अनुसार, सोनिया विहार में सात एमजीडी क्षमता वाले एसटीपी के निर्माण में चार महीने की देरी हो गई है, जिसे 2023 के अंत तक पूरा करने का नया लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना का 22 किलोमीटर का विस्तार नदी की कुल लंबाई का दो प्रतिशत से भी कम है, लेकिन यह नदी के लगभग 75 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। नदी में प्रदूषण के उच्च स्तर का कारण अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी-झोपड़ियों से बिना शोधित अपशिष्ट जल के साथ-साथ एसटीपी और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से निकलने वाले शोधित अपशिष्ट जल की खराब गुणवत्ता है।

दिल्ली सरकार ने यमुना को फरवरी 2025 तक स्नान मानकों के अनुरूप साफ करने की प्रतिबद्धता जताई है। इन मानकों को पूरा करने के लिए, जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए और विघटित ऑक्सीजन (डीओ) पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होनी चाहिए।

वर्तमान में, दिल्ली में 792 एमजीडी मलजल निकलता है और पूरी दिल्ली में स्थित 35 एसटीपी अपनी क्षमता का लगभग 70 प्रतिशत (550 एमजीडी) का उपयोग करके 667 एमजीडी मलजल का शोधन कर सकते हैं। लगभग 242 एमजीडी मलजल सीधे नदी में गिरता है।

सरकारी आंकड़े से पता चलता है कि राजधानी दिल्ली में 35 परिचालित एसटीपी में से केवल 10 अपशिष्ट जल के लिए निर्धारित मानकों को पूरा करते हैं, जिनकी क्षमता प्रतिदिन 15 करोड़ गैलन अपशिष्ट जल शोधन की है।

डीजेबी निर्धारित मानदंडों को पूरा करने और यमुना में प्रदूषण भार को कम करने के लिए मौजूदा एसटीपी के उन्नयन और मरम्मत करने की प्रक्रिया में है। एनजीटी को सौंपी गई डीपीसीसी रिपोर्ट से पता चला है कि डीजेबी ने शुरुआत में इस साल दिसंबर तक मलजल शोधन क्षमता को 814 एमजीडी तक बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन समय सीमा जून 2024 तक बढ़ा दी गई है।

इसी तरह, जून 2024 तक 964 एमजीडी की मलजल शोधन क्षमता हासिल करने की समय सीमा बदलकर दिसंबर 2024 कर दी गई है।

रिपोर्ट बताती है कि रिठाला, कोंडली और यमुना विहार में मौजूदा एसटीपी की मरम्मत और उन्नयन में तीन से नौ महीने की देरी हुई है।

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