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मदरसे से मेडिकल शिक्षा में आये छात्र, सस्ते इलाज का है संकल्प

इन छात्रों का कहना है कि सरकारी चिकित्सा सेवाओं में भ्रष्टाचार, प्राइवेट डॉक्टरों की लम्बी फीस और महंगी दवाओं और जांचो के खर्चे ने ग़रीब नागरिकों के लिए चिकित्सा को कठिन बना दिया है। अब इनका उपदेश लोगों को  “वहनयोग्य” (अफॉर्डबल) चिकित्सा सेवा का उपलब्ध कराने का होगा।  
madarsa

जहाँ मदरसों को लेकर हर रोज़ देश में एक नया विवाद जन्म ले रहा है। मदरसा शिक्षा को "पिछड़ेपन" और "कट्टरता" से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं इस सब के बीच मदरसे के छात्र नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) में सफल हो रहे हैं। 

मदरसे से निकलकर मेडिकल शिक्षा में जा रहे छात्र मानते हैं कि सरकार और मुख्य धारा का मीडिया मदरसों के ख़िलाफ़ “नैरेटिव” बना रहे हैं, जिससे से देशभर में मदरसों को लेकर भ्रम पैदा रहा है।

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 चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए यूजी स्तर पर आयोजित की जाने वाली देश की एकल प्रवेश परीक्षा नीट में सफल होने वाले यह छात्र हाफिज़ ए कुरान भी हैं। इनका कहना है कि इन्होंने ने जो कुछ मदरसे में पढ़ा है, वह अब उसको “व्यावसायिक” जीवन में “वास्तव” में कर के दिखायेंगे।  यह छात्र कहते हैं, इनको पढ़ाया गया है कि, “जिसने एक इंसान की जिंदगी बचाई, उसने सारी इंसानियत (मानवता) को बचाया”।

इन छात्रों का कहना है कि सरकारी चिकित्सा सेवाओं में भ्रष्टाचार, प्राइवेट डॉक्टरों की लम्बी फीस और महंगी दवाओं और जांचो के खर्चे ने ग़रीब नागरिकों के लिए चिकित्सा को कठिन बना दिया है।  मदरसे से निकल  चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने जा रहे यह छात्र बताते हैं कि इनका उपदेश लोगों को  “वहनयोग्य” (अफॉर्डबल) चिकित्सा सेवा का उपलब्ध कराना है।  

ऐसे ही कुछ छात्रों से न्यूज़क्लिक ने बात करी और जाना कि वह मदरसा एजुकेशन से मेडिकल एजुकेशन की तरफ क्यों आये और वह भविष्य में समाज के लिए क्या करना चाहते हैं।  मोहम्मद अली इक़बाल बताते हैं कि वे चार साल, बेंगलूरु, में रहे।  जहाँ उन्होंने मदरसा “ज़ियाउल क़ुरान” में  क़ुरान हिफ्ज़  किया। अब उनको नीट की परीक्षा में 680 अंक प्राप्त हुए हैं। 

वह कहते हैं कि राजनीति के चलते मदरसों के ख़िलाफ़ माहौल बनाया जा रहा है।  वरना उनकी माँ जो एक गृहिणी हैं, हमेशा उनको “दीनी तालिम” (धर्मशास्र) और आधुनिक शिक्षा के बीच में संतुलन बनाने को कहती हैं।  इक़बाल ने बताया कि उनके पांच में से चार भाई हाफिज़ हैं। जिसमें से एक इंजिनियर भी है।

वह कहते हैं मदरसे के छात्र न सिर्फ मस्जिद में नमाज़ पढ़ा रहे हैं बल्कि “प्रतिस्पर्धात्मक” (कंपीटिटिव) परीक्षाओं को भी उत्तीर्ण कर रहे हैं। मदरसे की शिक्षा कभी ही आधुनिक शिक्षा हासिल करने में रुकावट नहीं बनती है।

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गुलमन अहमद ज़र्दी की प्रथिमिक शिक्षा मदरसे में हुई, जहाँ उन्होंने क़ुरान हिफ्ज़ किया।  लेकिन इसके बाद वह आधुनिक शिक्षा की तरफ बढे और कक्षा 10 में उन्होंने 96 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए।  जिसके बाद उन्होंने शाहीन अकादमी में प्रवेश लिया और कक्षा 12 के साथ मेडिकल शिक्षा की तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने नीट में 646 अंक प्राप्त किये।

ज़र्दी कहते हैं कि मीडिया मदरसों को "पिछड़ेपन" और "कट्टरता" के नाम पर  बदनाम कर रहा है।  जबकि मदरसे के छात्र भी कंपीटिटिव परीक्षाओं में हिस्सा लेते हैं और सफल भी हो रहे हैं। मदरसे की शिक्षा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमने क़ुरान में  “नैतिकता” का पाठ पढ़ा है।

वह मानते हैं कि अच्छा इलाज हर इंसान का बुनियादी हक़ है। लेकिन अमीर पैसा ख़र्च कर के इलाज निजी अस्पतालों में करा लेता है और ग़रीब इस से वंचित रहा जाता है।  ज़र्दी कहते हैं कि वह चाहते हैं कि वह समाज के हर वर्ग को उपचार के लिए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा दे सकें।

कक्षा 7 वीं से दीनी तालिम हासिल कर रहे हुज़ैफ़ा मंज़ूर मिर्ज़ा को नीट में  602 अंक प्राप्त हुए हैं। दीनी तालिम के साथ आधुनिक की तरफ उनका झुकाव उनके पता पिता की प्रेरणा से हुआ। मिर्ज़ा कहते हैं कि यह मुश्किल था कि मदरसे के साथ मेडिकल की तैयारी कर सके लेकिन असंभव नहीं था। 

उनका कहना है कि उनका मकसद है कि पढाई पूरी होने के बाद चिकित्सा क्षेत्र से भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जाये।  वह कहते हैं कि “मुझको अपनी अपनी बहन की बीमारी के दौरान 2020 में अंदाज़ा हुआ, अस्पतालों में कैसा लूट का माहौल बन गया है।

मदरसे के बारे में बात करते हुए मिर्ज़ा कहते हैं कि मीडिया मदरसों की नकारात्मक छवि बना रहा है जबकि जो कुछ दिखाया जा रहा वैसा कुछ भी नहीं होता है।  वह कहते हैं कि मदरसे में क़ुरान पढाया जाता है जिसमें लिखा है “एक इन्सान का क़त्ल सारी इंसानियत का  क़त्ल है।

मोहम्मद सफीउल्लाह के पिता एक मस्जिद में नमाज़ पढ़ाते हैं और उनके भाई भी डॉक्टर हैं। वे कक्षा 04 के बाद से मदरसे से जुड़ गए। फिर क़ुरान हिफ्ज़ करने के बाद शाहीन अकादमी गए, जहाँ उन्होंने आधुनिक पढाई दोबारा शुरू करी, और कक्षा 10 में 91 और कक्षा 12 में 93 प्रतिशत नम्बर आये।  इसी के साथ उन्होंने नीट में 577 अंक प्राप्त किये।

सफीउल्लाह का कहना है मदरसों के बारे में जो टीवी पर दिखाया जाता है उसका हकीक़त से कुछ नलेना-देना हीं है।  वह कहते हैं कि मदरसे की शिक्षा में मानवता, नैतिकता और अनुशासन  सिखाया जाता है।

बता दें कि देश के कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकारें मदरसों पर शिकंजा कस रही हैं। असाम सरकार ने आतंकवाद से जुड़े होने के आरोप में चार मदरसों को ध्वस्त कर दिया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करा रही है।

यह सर्वे शुरू हो गया है।  जबकि सरकार के पास ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का कोई आकड़ा नहीं है।  इस सर्वे पर सियासत भी हो रही है। सरकार की तरफ से डॉ इफ़्तेख़ार अहमद जावेद का कहना है कि सर्वे का मक़सद मदरसा शिक्षा में गुणवत्ता लाना है।  

जबकि विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सर्वे का मकसद मुस्लिम समाज को परेशान करना है।  

बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने कहा कि 'यूपी में मदरसों पर बीजेपी सरकार की टेढ़ी नजर है। सर्वे के नाम पर कौम के चंदे से चलने वाले निजी मदरसों में सरकार हस्तक्षेप की कोशिश कर रही है। 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया कि “मदरसे संविधान के अनुच्छेद 30 में आते हैं, तो यूपी सरकार ने सर्वे का आदेश क्यों दिया? ये मुसलमानों को परेशान करने के लिए मिनी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (एनआरसी) है।” मुस्लिम समुदाय की तरफ से आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी भी इसका विरोध किया है। 

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