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नर्मदा के पानी से कैंसर का ख़तरा, लिवर और किडनी पर गंभीर दुष्प्रभाव: रिपोर्ट

नर्मदा का पानी पीने से कैंसर का खतरा, घरेलू कार्यों के लिए भी अयोग्य, जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, मेधा पाटकर बोलीं- नर्मदा का शुद्धिकरण करोड़ो के फंड से नहीं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट रोकने से होगा
Narmada pollution
Image courtesy : Hindustan Times

मध्य प्रदेश के 25 जिलों से गुजारने वाली नर्मदा नदी को जीवनदायनी माना जाता है लेकिन एक हालिया जारी की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है की इस नदी का जल प्राणघातक साबित हो सकता है। मुंबई की कल्पिन वाटरटेक नाम की एक प्रयोगशाला में अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के साथ हुए वैज्ञानिक परिक्षण के दौरान पता चला कि नर्मदा का पानी पीने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। नर्मदा जल को घरेलू कार्यों के लिए भी अयोग्य बताया गया है। 

पश्चिम निमाड़ के बड़वानी, धार जैसे जिलों के लोग काफी वर्षों से ये कहते रहे हैं कि नर्मदा नदी के पानी का स्वाद और रंग पहले से बदला है, साथ ही मैलापन मैलापन में भी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन जब मुंबई की कल्पिन वाटरटेक नाम की एक प्रयोगशाला में इसका वैज्ञानिक परिक्षण किया गया तो वो बात सच साबित हुईं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा ज़ारी इस रिर्पोट को सोशल एक्टिविस्ट कमला यादव ने राजघाट/कुकरा गाँव के पानी का नमूना लेकर लैब में जांच के लिए भेजी थी। IS-10500 के अंतर्राष्ट्रीय निष्कर्षों के तहत जाँच कराई गई तब यह निष्कर्ष निकला कि यह पानी न तो पीने लायक है, और न हीं घरेलू कार्यों के लिए उपयुक्त है। इतना ही नहीं सिंचाई भी, कुछ ही प्रकार की फसलों की हो सकती है। सभी प्रकार की खेती के लिए भी नर्मदा का पानी उपयुक्त नहीं है।

बातचीत के दौरान कमला यादव ने बताया कि प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों द्वारा चार प्रकार के परिणामों की जाँच की गयी थी। इसमें रंग, मैलापन, गंध, स्वाद सही न होना बताया गया है। रिपोर्ट में पाया गया कि नर्मदा के पानी में कैल्शियम की मात्रा अधिक है और यह Hard Water यानी ‘कठिन पानी’ बताया गया है। कैल्शियम की मात्रा अधिकतम 200 होनी चाहिए, वह 306 यूनिट्स पायी है। इससे पथरी की बीमारी, किडनी पर असर आदि होता है। 

नर्मदा जल में नायट्रेट की मात्रा भी उच्च स्तर तक पहुंची है, जिसके कई सारे असर हैं। पानी में शैवाल छाकर उससे जल शुध्दी का कार्य करने वाले अन्य जलजीव खत्म हो रहे हैं। यादव के मुताबिक इसका पानी पीने से स्वास्थ्य पर कई प्रकार का असर होता है, जिसमें खून की ऑक्सीजन रखने की क्षमता कम होना, ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ यानी नन्हें मुन्हें बच्चों पर असर, आदि शामिल है। उन्होंने बताया कि पानी में नाइट्रेट की मात्रा 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होने पर थायराइड (गलगंड), सतत श्वसन रोग, गर्भपात तथा पेट या मूत्रपिंड के कैंसर जैसी बिमारियों का खतरा रहता है। लेकिन जांच में पता चला कि नर्मदा के पानी में नायट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर है।       

नर्मदा जल में अमोनिया की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुँच गयी है। इससे इंसानों पर तथा मछली पर गंभीर असर होता है। यह औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थों से तथा मानवीय मलमूत्र से भी बढ़ती है। STP का निर्माण दीर्घ कालतक पूरा न करने से ही यह हुआ है, और बढ़कर 1ppm से अधिक होने पर गंभीर असर हो सकता है।

जाँच रिपोर्ट के अनुसार ‘कोलिफार्म बेक्टेरिया’ या रोग जीवाणु नर्मदा के पानी में पाये गये हैं। इसके साथ ‘इ-कोली बेक्टेरिया’ भी पाये गए हैं। यह सब स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदेह माने जाते हैं। इससे हैजा, टायफाईड, टीबी, पेट एवं आंतड़ियों की बीमारी, मेनिन्जायटिस (मगज की बीमारी) आदि होने की आशंका बनी रहती है। 

रिपोर्ट का स्पष्ट निष्कर्ष है कि नर्मदा का राजघाट तीर्थ क्षेत्र का पानी, जहाँ हजारों तीर्थ यात्री, नर्मदा भक्त आते हैं और पानी पीते हैं, बड़वानी शहर (जो राजघाट-नमूना के स्त्रोत से मात्र 5 किमी दूरी पर स्थित है) के निवासी भी पी रहे हैं, वह पीनेलायक तथा घरेलू काम (नहाना, धोना आदि) के लायक भी नहीं है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटकर कहती हैं कि नर्मदा का शुध्दीकरण करोड़ो के फंड से नहीं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और औद्योगिक अवशिष्ट रोकने से, खेती में जैविकता लाने से ही होगा।

भोपाल के पर्यावरणविद सुभाष पांडेय बताते हैं कि नर्मदा के साफ़ पानी में पाई जाने वाली Mahseer मछली जिसे 1956 में मध्य प्रदेश की राज्य मछली का दर्जा दिया गया था और जिसकी मात्रा नर्मदा में 60% थी आज वो 2% रह गई है।

मेधा पाटकर के मुताबिक इस गंभीर समस्या पर शासन की भूमिका एवं गैर जिम्मेदाराना रवैये को समझना जरूरी है। नर्मदा शुद्धिकरण के नाम से करोड़ों रुपये आंतरराष्ट्रीय एवं द्विराष्ट्रीय साहूकारी संस्थाओं से (विश्व बैंक, एशिया विकास बैंक, KFW-जर्मनी की बैंक आदि) म.प्र. शासन ने कमाए हैं। लेकिन बड़वानी का ही उदाहरण ले तो पता चलता है कि इस पूंजी का कैसे दुरूपयोग हुआ है। बड़वानी के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए 105 करोड़ रु पाकर भी, नगर पालिका की सतत मांग के बावजूद, इजराइल की ‘तहल’ कंपनी को ठेका दिया गया, जिसने 5 वर्षों में मात्र 40% तक कार्य किया। 

पाटकर आगे कहती हैं कि, 'आज नर्मदा घाटी के नागरिकों को ही जागृत होकर शासन से जवाब लेना होगा। बड़वानी जैसे शहर में बड़े-बड़े अस्पतालों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन नर्मदा पानी की स्थिति सुधारने के लिए अवशिष्टों से, मलमूत्र से, खेती की अजैविकता से हो रहे प्रदूषण को रोकने की पहल, करोड़ों का धन पाकर भी राज्य शासन एवं प्रदूषण नियंत्रण मंडल से क्यों नहीं हो रही है? यह सोचने की और तत्काल कार्रवाई की बात है, न केवल घोषणाबाजी और आश्वासनों की।'

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