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रूस ने सिखाया यूरोप को गैस व्यापार का ककहरा

हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या यूक्रेन के साथ जर्मनी की एकजुटता ठंड के मौसम को बर्दाश्त कर पाएगी या नहीं।
gas pipeline

पांच महीने में यह दूसरी बार हो रहा है जो सोच से परे है, जब रूसी गैस की दिग्गज कंपनी गज़प्रोम ने जर्मन गैस कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट को पूरा होने से रोकने के अप्रत्याशित स्थितियों के बारे में लिखा है जो 14 जून से प्रभावी है।  तब से किसी भी तरह के घाटे के मुआवजे से इसे मुक्त कर दिया है।

इस साल जर्मन-रूसी संबंधों में पहली बार उस समय सदमा और भय दिखाई दिया, जब चांसलर ओलाफ श्लोज़ ने नव-निर्मित नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन के लिए अनुमोदन प्रक्रिया को फ्रीज करके राजनीतिक पर्यवेक्षकों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। बाल्टिक सागर के नीचे 11 बिलियन डॉलर की पाइपलाइन जिसने रूस से सीधे जर्मनी भेजी जाने वाली गैस की मात्रा को दोगुना कर दिया है लेकिन स्कोल्ज़ ने इसके चालू होने को रोक दिया।

स्कोल्ज़ का ये कदम 21 फरवरी को यूक्रेन के दो अलग-अलग क्षेत्रों को स्वतंत्र गणराज्यों के रूप में मान्यता देने के मास्को के फैसले की प्रतिक्रिया में था। जर्मनी में रूस के युद्ध के समर्थकों ने उनके फैसले की सराहना की। प्रशंसा होने लगी। बर्लिन में विदेशी संबंधों के यूरोपीय परिषद के प्रमुख जना पुग्लिरिन ने स्कोल्ज़ की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह "अन्य सभी यूरोपीय संघ के देशों के लिए उच्च मानक तैयार कर रहे थे... यह एक महत्वपूर्ण क्षण में वास्तविक नेतृत्व है।"

हालांकि, मॉस्को में, जिसे जर्मन ऊर्जा बाजार की पूरी समझ है, ऐसे में स्कोल्ज़ के इस कदम को जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने वाले काम के रूप में देखा गया था। मॉस्को ने व्यंग्यात्मक तरीके से प्रतिक्रिया दी। पूर्व राष्ट्रपति और रूस की सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख दिमित्री मेदवेदेव ने ट्वीट किया, "साहसी नई दुनिया में आपका स्वागत है जहां यूरोप के लोग जल्द ही 2,000 यूरो प्रति 1,000 क्यूबिक मीटर गैस का भुगतान करेंगे!"

वह डरावनी वास्तविकता की ओर इशारा कर रहे थे कि जर्मनी के ऊर्जा क्षेत्र का एक चौथाई हिस्सा गैस का है और इसमें से आधे से अधिक रूस से आता है। वास्तव में, यह स्पष्ट था कि जापान में 2011 की फुकुशिमा आपदा के बाद परमाणु ऊर्जा को बंद करने का निर्णय लेने और 2030 तक कोयले से चलने वाली बिजली को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध होने के बाद ही जर्मनी की गैस पर निर्भरता बढ़ सकती है।

लेकिन स्कोल्ज़ ने जोर देकर कहा कि जर्मनी सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का विस्तार करेगा "ताकि हम जीवाश्म ईंधन का उपयोग किए बिना स्टील, सीमेंट और रसायनों का उत्पादन कर सकें।" उनका विश्वास वास्तव में इस तथ्य से उपजा था कि जर्मनी का रूस के साथ नॉर्ड स्ट्रीम 1 के माध्यम से एक उचित कीमत पर गैस की आपूर्ति के लिए एक दीर्घकालिक अनुबंध था।

पहला संकेत यह था कि उस समय बहुत कुछ बड़े पैमाने पर गलत हो रहा था जब प्रभावशाली रूसी दैनिक अखबार इज़वेस्टिया ने 11 जुलाई को मास्को में उद्योग के विशेषज्ञों के हवाले से लिखा था कि 11-21 जुलाई से वार्षिक मरम्मत के लिए NS1 का निर्धारित नियमित ठहराव, रूस के खिलाफ प्रतिबंधों के तहत, कनाडा के पीछे हटने के कारण जारी रह सकता है। इस टर्बाइन का मरम्मत कार्य चल रहा था।

इस अखबार ने पूर्वानुमान लगाया कि गज़प्रोम पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण कन्ट्रैक्ट को पूरा करने की अप्रत्याशित स्थिति की घोषणा कर सकता है, क्योंकि सीमेंस (Siemens) कनाडा में मरम्मत के बाद दो बार पहले ही गज़प्रोम को उपकरण वापस करने में विफल रहा जिसके परिणामस्वरूप योजनाबद्ध 167 मिलियन क्यूबिक मीटर.एम गैस के प्रवाह में कमी आई और 67 मिलियन क्यूबिक मीटर.एम प्रति दिन हो गई।

इज़वेस्टिया ने लिखा कि इस स्थिति से एलएनजी के मौजूदा बाजार मूल्य 2,000 डॉलर प्रति 1,000 क्यूबिक मीटर में वृद्धि होगी। शायद, "और भी अधिक यानी 3,500 डॉलर तक हो सकती है"। 8 जुलाई की कीमत 1800 डॉलर थी।

बर्लिन से तत्काल अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए और प्रतिबंधों की छूट के लिए वाशिंगटन की सिफारिश पर, कनाडा सहमत हो गया, लेकिन, इज़वेस्टिया के अनुसार, सीमेंस द्वारा टर्बाइनों को गज़प्रोम को वापस करने के बाद भी, "यह पता लगाने के लिए टर्बाइनों के परीक्षण की एक लंबी अवधि होगी कि कैसे सही ढंग से उनकी मरम्मत की गई। कोई भी ऐसे टर्बाइनों को स्थापित नहीं करना चाहता जो बिना भरोसा वाले एक देश में मरम्मत के बाद विफलता के जोखिम में हों। इसलिए टर्बाइनों को लॉन्च करने और एसपी-1 (एनसी 1) को इसकी डिजाइन क्षमता में वापस करने का वास्तविक समय दो से तीन महीने है।

यानी सितंबर/अक्टूबर तक जल्द से जल्द NS1 से गैस प्रवाहित हो सकती है। फिर भी, गज़प्रोम अपनी क्षमता के 60% से अधिक का उपयोग करने में सक्षम नहीं हो सकता है क्योंकि दो और टर्बाइनों की पूरी जांच और मरम्मत बाकी है।

इसलिए, विशेषज्ञों ने इज़वेस्टिया को बताया कि यूरोपीय संघ में गैस की कमी की समस्या अगले कुछ सालों तक बनी रहेगी और अधिकारियों को "गर्म पानी की सप्लाई, मंद स्ट्रीट लाइट को सीमित करना पड़ सकता है, स्विमिंग पूल और ऊर्जा की खपत करने वाले उपकरणों को बंद करना" पड़ सकता है और इसके अलावा, हरित ऊर्जा की बजाय कोयले की ओर रुख हो सकता है।

कोमर्सेंट अख़बार ने बुधवार को रिपोर्ट किया कि पुरानी कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने से रोकने की अप्रत्याशित घटनाएं प्राकृतिक आपदाएं हो सकती हैं। गज़प्रोम के मामले में "हम उपकरण की तकनीकी खराबी के बारे में बात कर रहे हैं" जिससे मुकदमा हो सकता है - और, "जो निर्णायक होगा वह यह कि क्या गैस आपूर्ति में कटौती के लिए गज़प्रोम की कार्रवाइयां तकनीकी समस्याओं के वास्तविक पैमाने के अनुपात में थीं या नहीं।”

जाहिर है, गज़प्रोम अच्छी तरह से तैयार है। जर्मनी को संदेह है कि कनाडा और अन्य देशों से गैस टर्बाइनों की डिलीवरी न करने का गज़प्रोम का बयान फर्जी है। और कोमर्सेंट एक "लंबे ट्रायल" की उम्मीद करता है। अब, दोष यह है कि लंबे समय में, हम सब मर चुके हैं।

हालांकि जर्मनी के लिए यह एक गंभीर स्थिति है क्योंकि कई उद्योगों को बंद करना पड़ सकता है, और गंभीर सामाजिक अशांति हो सकती है। जर्मन आश्वस्त हैं कि मास्को "परमाणु विकल्प" का सहारा ले रहा है। बड़ा सवाल यह है कि क्या यूक्रेन के साथ जर्मनी की एकजुटता ठंड को बर्दाश्त कर पाएगी या नहीं।

स्कोल्ज़ का विश्वास इस भरोसे पर था कि रूस को गैस निर्यात से होने वाली आय की सख्त जरूरत थी। लेकिन फिर, मॉस्को आज कम निर्यात से अधिक आय अर्जित कर रहा है। तर्कसंगत रूप से, रूस की सबसे अच्छी रणनीति आज गैस वितरण को पूरी तरह समाप्त किए बिना कम करना होगा, भले ही रूस पहले बेची गई गैस का केवल एक तिहाई बेचता है, इसका राजस्व प्रभावित नहीं होता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर एलएनजी की कमी ने बाजार की कीमत में तेजी से वृद्धि की है। यह एक उचित शर्त है कि गज़प्रोम क्या करेगा।

पुतिन ने एक बार खुलासा किया था कि लंबी अवधि के अनुबंधों के तहत रूस ने जर्मनी को कम कीमत पर गैस बेची- 280 डॉलर प्रति हजार क्यूबिक मीटर- और जर्मनी अन्य ग्राहकों को रूसी गैस को एक अच्छे लाभ के लिए पुनः बेच रहा था!

जहां जर्मनी को सबसे ज्यादा नुकसान होता है वह यह है कि यह केवल ठंडे घरों के बारे में नहीं है बल्कि रूस से सस्ते जीवाश्म ईंधन के आयात के कारण औद्योगिक निर्यात पर निर्भर इसके पूरे आर्थिक मॉडल का प्रभाव है। जर्मन उद्योग इसके 36% गैस का उपयोग करता है।

यूक्रेन संकट के सभी पहलुओं पर जर्मनी ने सिद्धांतहीन तरीके से व्यवहार किया। इसने ज़ेलेंस्की का समर्थन करने का नाटक किया, लेकिन सैन्य समर्थन देने से कतराया, जिससे कीव और बर्लिन के बीच एक बुरा राजनयिक विवाद शुरू हो गया। दूसरी ओर, जब मास्को ने गैस निर्यात के लिए नई भुगतान योजना शुरू की, जिससे रूबल में भुगतान करना अनिवार्य हो गया, तो जर्मनी पहला देश था जिसने अनुपालन किया, जो अच्छी तरह से जानता था कि नया शासन यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को कमजोर करता है।

इस प्रकार, मास्को जोर देकर कहता है कि जर्मन गैस खरीदार गज़प्रोमबैंक (जो यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के अधीन नहीं है) में यूरो और डॉलर अकाउंट रखते हैं और मुद्राओं को रूबल में बदलते हैं, क्योंकि रूसी केंद्रीय बैंक पश्चिमी प्रतिबंधों के अधीन है और अब विदेशी मुद्रा बाजारों में लेनदेन नहीं कर सकता है!

रूसियों ने यूरोपियनों को मूर्ख बनाया है। स्पष्ट रूप से, मूल्यवान वस्तुओं पर बैठे देश को मंजूरी देना असंभव है। रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक, गैस का सबसे बड़ा निर्यातक और गेहूं और उर्वरकों का सबसे बड़ा निर्यातक है- साथ ही इसके पास पैलेडियम जैसी दुर्लभ धातुओं का बड़ा भंडार है।

बोइंग और एयरबस दोनों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला में जोखिम की शिकायत की है। एयरबस बड़ी मात्रा में टाइटेनियम का आयात करता है जहां धातु की आपूर्ति का लगभग 65% रूस से आता है। इसने सार्वजनिक रूप से यूरोपीय संघ से उस सामग्री पर प्रतिबंध नहीं लगाने का अनुरोध किया है जिसका उपयोग विमान के महत्वपूर्ण पुर्जों के निर्माण के लिए किया जाता है।

इस तरह यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की गति को धीमा कर रहा है। ब्रुसेल्स में नौकरशाहों ने प्रतिबंधों को बढ़ाने की क्षमता पर चर्चा की और राजनीतिक अभिजात वर्ग स्वीकार करते हैं कि ये प्रतिबंध एक गलती थी।

यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए परिणाम पहले से ही बेहद गंभीर हैं। ऊर्जा की बढ़ती कीमतें यूरोपीय संघ के सभी देशों में मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे रही हैं। पूर्वानुमान के अनुसार, फ्रांस में इस साल मुद्रास्फीति 7% तक पहुंच जाएगी; जर्मनी में 8.5-9%; और इटली में 10% पहुंच जाएगी। और यह सिर्फ शुरुआत है। अधिकांश देशों को भी अगले साल सकल घरेलू उत्पाद में 2 से 4% की गंभीर गिरावट का सामना करना पड़ेगा।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वह उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थें। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Russia Teaches Europe ABC of Gas Trade

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