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सईद शेख़: फ़िनलैंड और हिंदुस्तान की संस्कृतियों का मिलनबिंदु

उम्दा कवि, उम्दा चित्रकार सईद। उपेक्षित, अलक्षित प्रतिभा वाला सईद...
Saeed Shaikh
प्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल के कविता संग्रह ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ के कवर पर सईद शेख़ की पेंटिंग। फ़िनिश लेखक आलेक्सिस किवी के उपन्यास ‘सात भाई’ का हिंदी अनुवाद

सईद शेख़ (15 अगस्त 1941-16 फ़रवरी 2023) को मैं किस रूप में याद करूं?

मेरा पुराना, प्यारा दोस्त सईद। चित्रकार-कवि-अनुवादक सईद। शोभा की और मेरी अदालती शादी का एक गवाह सईद। आमने-सामने मिलने पर या टेलीफ़ोन पर ‘लाल सलाम अजय!’ बोल कर आवाज़ लगाने वाला सईद। भावुक, प्रेमी, स्नेहिल हृदय सईद। कम्युनिस्ट सईद। उम्दा कवि, उम्दा चित्रकार सईद। उपेक्षित, अलक्षित प्रतिभा वाला सईद...

सईद के मरने की ख़बर जब मुझे मिली, तो उसकी कई छवियां, कई रूप-रंग मेरी आंखों के आगे घूम गये। 1966-67 से उसके साथ शुरू हुआ मेरा निजी, पारिवारिक, साहित्यिक और वैचारिक रिश्ता फ़रवरी 2023 में अचानक एक झटके से ख़त्म हो गया। लेकिन दिल में बसी दोस्ती कभी ख़त्म नहीं होती, कभी टूटती नहीं। सईद के साथ मेरी दोस्ती ऐसी ही रही है।

अब इसे विडंबना कहिये या कुछ और। सईद पैदा हुआ भवाली (नैनीताल, उत्तराखंड) में, और मरा सात समंदर पार यूरोपीय देश फ़िनलैंड के शहर तुर्कू में, जहां वह 1977 से रह रहा था। उसने हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़ दी थी और वह फ़िनलैंड का नागरिक बन गया था।

लेकिन दिल उसका इस कदर भवाली-मय था—आह भवाली-वाह भवाली वाले अंदाज़ में—कि वह जब भी हिंदुस्तान आता, भवाली में जम जाता था। वह वहां से हिलने-डुलने, कहीं जाने-आने का नाम भी नहीं लेता था। इसके लिए वह बहुत मुश्किल से तैयार होता था। लेकिन उसे दो गज़ ज़मीन भवाली में नहीं, तुर्कू में मिली—सईद के लिए तुर्कू अपनाया हुआ प्यार (adopted love) था, जिससे उसे बहुत लगाव, बहुत मुहब्बत थी।

फ़िनलैंड ने सईद को अपना लिया था, सईद ने फ़िनलैंड को अपना लिया था। वह फ़िनलैंड और हिंदुस्तान की संस्कृतियों का मिलनबिंदु बन गया था। हालांकि हिंदुस्तान छोड़ने की कसक और कचोट बराबर उसके दिल में बनी रही।

फ़िनलैंड में सईद को प्यार मिला, घर-परिवार बना, एक बच्चा हुआ। आगे चलकर सईद और उसकी पार्टनर में अलगाव और तलाक़ हो गया। बच्चा बड़ा होकर बाप से अलग रहने लगा। सईद अपनी ज़िंदगी चलाता रहा। वह तुर्कू के नगर निगम (म्यूनिसिपल कारपोरेशन) मैं नौकरी करता था, जहां से रिटायर होने के बाद उसे पेंशन मिलती थी। वह कविताएं लिखने, अनुवाद करने, चित्र (पेंटिंग) बनाने के काम में लगा रहा, उसने फ़िनिश भाषा (फ़िनलैंड की भाषा) पर महारत हासिल कर ली, और फ़िनिश कवियों व लेखकों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद करने लगा। ये अनुवाद हिंदी पत्रिकाओं, ख़ासकर ‘तनाव’, में प्रमुखता से छपते रहे।

सईद के बनाये चित्र (पेंटिंग) हिंदी पत्रिकाओं और किताबों के कवर पर मौजूद हैं। ‘पहल’ और ‘आधारशिला’ पत्रिकाओं के कुछ अंकों के कवर सईद के बनाये हुए हैं। कुछ हिंदी कवियों के कविता संग्रहों के कवर सईद के बनाये हुए हैं। वीरेन डंगवाल के दूसरे कविता संग्रह ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ (2002: राजकमल प्रकाशन) के कवर पर सईद की पेंटिंग मौजूद है। शोभा सिंह के पहले कविता संग्रह ‘अर्द्ध विधवा’ (2014: गुलमोहर किताब) और ओमप्रकाश नदीम के कविता संग्रह ‘सामना सूरज से है’ (2015: गुलमोहर किताब) के कवर के लिए सईद की बनायी गयी पेंटिंग इस्तेमाल की गयीं। लेखक वाचस्पति (बनारस)  ने बताया कि धूमिल के पहले कविता संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ (1972: राजकमल प्रकाशन) के कवर पर सईद की बनायी पेंटिंग इस्तेमाल की गयी है।

सईद का कोई कविता संग्रह तो नहीं है, लेकिन उसकी कविताएं ‘कल्पना’, ‘पहल’, ‘आधारशिला’, ‘तनाव’ और अन्य पत्रिकाओं में छपती रहीं। नियमित रूप से नहीं, बीच-बीच में, लंबा अंतराल देते हुए। उसकी काव्य प्रतिभा अलक्षित, उपेक्षित रही। किताब की शक्ल में अगर कोई चीज़ सईद की है, तो वह है, उसका किया हुआ अनुवाद—फ़िनिश लेखक आलेक्सिस किवी (1834-1872) का 1870 में लिखा उपन्यास ‘सात भाई’। इसे आधारशिला प्रकाशन (हल्द्वानी, उत्तराखंड) ने 2014 में छापा। फ़िनलैंड के सामी आदिवासियों के जीवन और साहित्य पर सईद का लंबा लेख शेखर पाठक द्वारा संपादित ‘पहाड़ पोथी’ (2016) में छपा था।

सईद का बहुत-सारा काम अभी सामने आना बाक़ी है। उसकी कविताएं, फ़िनिश भाषा से हिंदी में किये गये साहित्यिक अनुवाद, उसकी पेंटिंग—इन सबको उजाले का इंतज़ार है।

सईद की पहली, एकल चित्र प्रदर्शनी 1967 के आसपास इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लगी थी। तब इस चित्र प्रदर्शनी के बारे में लेखक-समीक्षक लक्ष्मीकांत वर्मा ने साप्ताहिक ‘दिनमान’ में लिखा था। चित्र प्रदर्शनी का इंतज़ाम करने और उसे क़ामयाब बनाने में हम सब लोग लगे थेः वीरेन डंगवाल, जयकिशन ढौंढियाल, बटरोही, प्रणव कुमार बंधोपाध्याय, अमर गोस्वामी, आलोक पंत, मैं। शैलेश मटियानी ने भी मदद की थी। नीलाभ भी साथ में था। बाद में उसकी कोई चित्र प्रदर्शनी भारत में लगी या नहीं, मुझे याद नहीं आता।

1970 के दौर में सईद के जीवन में कुछ ऐसी उथल-पुथल हुई, कुछ ऐसे आंधी-तूफ़ान आये कि वह इनसे बचने के लिए—या तंग आकर—पानी के जहाज से यूरोप की तरफ़ निकल गया। जगह-जगह भटकती, ख़ानाबदोश-जैसी ज़िंदगी जीते, गुज़र-बसर के लिए छोटा-मोटा काम करते, इसी दौरान एक जर्मन लड़की से कम अवधि वाला प्रेम करते (इसी बहाने सईद ने जर्मन भाषा सीख ली!) वह 1977 में फ़िनलैंड पहुंचा और उसके शहर तुर्कू में बस गया।

पिछली बार सईद जब भारत आया था—2021 के उत्तरार्द्ध में—तब उसने कहा था कि अब मैं यहां नहीं आऊंगा। उसकी उम्र बढ़ चली थी, कुछ बीमारियों की चपेट में वह था। देह भारी-भरकम—थुलथुल हो गयी थी, चलने-फिरने और सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में उसे काफ़ी दिक़्क़त होने लगी थी। उसके लिए यात्रा किसी यातना से कम न थी।

मेरे लिए सईद का गुज़र जाना एक निजी, पारिवारिक आघात से कम नहीं है। 1970 के दशक में जब शोभा ने मुझसे दिल्ली की तीसहज़ारी अदालत में अदालती शादी की, तो उसके तीन गवाहों में एक गवाह सईद था। (बाक़ी दो गवाह हमारे दोस्त मंगलेश डबराल और त्रिनेत्र जोशी थे।) गहरी तकलीफ़ महसूस होती है कि ये तीनों दोस्त—हमारी ज़िंदगी के बहुत ख़ास पल के गवाह—दुनिया से कूच कर चुके हैं- पहले मंगलेश गया, फिर त्रिनेत्र, और अब सईद!

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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