Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सफ़दर हाशमी : थिएटर की दुनिया का वो ध्रुव तारा जिसके नाटकों में सत्ता हिलाने का दम था!

सफ़दर हाशमी पर 1989 में साल के पहले दिन बीच सड़क हमला कर दिया गया। इस दिन वो अपने नुक्कड़ नाटक ‘हल्ला बोल’ का प्रदर्शन कर रहे थे, जो उनके जीवन का आख़िरी नाटक भी साबित हुआ।
Safdar Hashmi

"पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक़ दिलवाना है,
पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है।"

ये पंक्तियां बाग़ी थिएटर आर्टिस्ट सफदर हाशमी की हैं, जिनके नुक्कड़ नाटक सिंहासन हिला देते थे। थिएटर की दुनिया का ध्रुव तारा कहे जाने वाले, सफदर हाशमी पर 1989 में नए साल के दिन बीच सड़क हमला कर दिया गया। इस दिन वो अपने नुक्कड़ नाटक ‘हल्ला बोल’ का प्रदर्शन कर रहे थे, जो उनके जीवन का आखिरी नाटक भी साबित हुआ। सफदर का ये नाटक गाजियाबाद के झंडापुर में हो रहा था, जो अधूरा रह गया। हालांकि 2 जनवरी को उनके इस दुनिया को अलविदा कहने के बाद उनकी पत्नी मौल्यश्री और अन्य साथियों ने महज 48 घंटे बाद 4 जनवरी को उसी जगह पर हल्ला बोल नाटक का फिर से मंचन किया।

ये सफदर हाशमी की लोकप्रियता ही है कि आज भी झंडापुर में हर साल जनवरी की पहली तारीख को जन नाट्य मंच (जनम) इस महान रंगकर्मी योद्धा की याद में नाटक का मंचन करता है और सैकड़ों की संख्या में लोगों का हुजूम इसे देखने आता है। इस साल भी सोमवार, 1 जनवरी को झंडापुर में नाटक का मंचन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक धावले थे। इसके अलावा सीपीआई (एम) की पोलित ब्यूरो मेंबर वृंदा करात और सेंट्रल इंडस्ट्रियल ट्रेड यूनियन के तमाम लोग पदाधिकारियों ने भी कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान गजा में हो रहे नरसंहार पर भी कविताओं के माध्यम से चिंता व्यक्त किया गया।

सफदर इतने खास क्यों थे?

सफदर हाशमी का जन्म साल 1954 में 12 अप्रैल को हुआ था और उनकी पैदाइश दिल्ली में ही हुई। शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री और दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री हासिल की थी। इस दौरान वे स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से भी जुड़े। 1973 के दौरान महज़ 19 साल की उम्र में सफदर हाशमी ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर जन नाट्य मंच की स्थापना की, जिसका लक्ष्य थिएटर को जन-जन तक पहुंचाना था।

सफदर ने 1970 के दशक में दिल्ली, गढ़वाल और कश्मीर सहित कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का काम भी किया। वे कुछ समय तक दिल्ली स्थित पश्चिम बंगाल सूचना केंद्र में प्रेस सूचना अफसर के पद पर भी तैनात रहे। हालांकि कोई भी सरकारी नौकरी उन्हें रास नहीं आई। और उन्होंने आपातकाल खत्म होने के बाद अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी। वे 1976 में सीपीआई (एम) के भी सदस्य बन गए। उन्होंने अपने नाटकों के जरिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश की।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सफदर की कोई एक पहचान नहीं है। वे बेशक असल पहचान 'रंगकर्मी' के रूप में रखते हों, लेकिन वह साथ में निर्देशक, गीतकार और एक सफल लेखक भी थे। हालांकि सफदर हाशमी को उनके बागी रवैये के लिए याद किया जाता है। वे मज़दूरों, मजलुमों की सशक्त आवाज़ थे। उनके नाटकों में हमेशा बगावत नजर आई, उन्होंने अपने काम के जरिए सत्ता में बैठे लोगों को निशाने पर लिया। उन्होंने अपना सफर किसी बड़े स्टेज से नहीं बल्कि गलियों और नुक्कड़ों से शुरू किया और हमेशा सत्ता द्वारा किए गए दमन के खिलाफ उनकी आवाज गूंजी। ये सफदर की लोकप्रियता का ही आलम था कि उनके जनाजे में 15,000 से ज्यादा लोग जुटे थे। यह इस बात का सबूत भी है कि सफदर सीधे लोगों के दिलों में बस गए थे।

सफदर के नाटक और मेहनकशों का संघर्ष

ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही कोई जनविरोधी फैसला सामने आता, उसके तीन चार घंटों के अंदर सफदर प्ले लिख कर उसका मंचन भी कर डालते थे। सफदर हाशमी ने अपनी जिंदगी में 24 नुक्कड़ नाटकों का 4000 से भी ज्यादा बार मंचन किया। उन्हें मजदूरों की बस्तियों और फैक्ट्रियों के आसपास नुक्कड़ नाटक दिखाए। उनका नाटक कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी’ ने उस समय की इंदिरा सरकार पर तगड़े तंज कसे थे। आपातकाल में जब ट्रेड-यूनियंस बुरी तरह टूट गए थे, तब सफ़दर ने नुक्कड़ नाटक ‘मशीन’ के जरिए उनमें जोशो-खरोश भरने का काम किया। इसे दिल्‍ली में डेढ़ लाख लोगों ने एक साथ देखा था और ये देशभर में हजारों बार खेला गया था।

सफदर ने महज 34 साल की छोटी सी उम्र में रंगकर्म के मार्फ़त एक ऐसा राजनीतिक-सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा कर दिया था कि जिससे हुकमरान तक डरने लगे थे। वे बहुत कम समय में ही एक इंक़लाबी आवाज बन गए थे। उनके करीबी बताते हैं कि समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए उनकी संवेदनाएं उन्हें बागी बनाती थीं। उन्होंने नाटक के अलावा मजदूरों, बच्चों और औरतों पर गीत और कविताएं भी लिखीं। सफदर को हर ज़ोर-जुल्म के खिलाफ एक संघर्ष की आवाज़ माना जाता है। उनकी कविताएं अंधेरे में रोशनी का प्रतीक कही जाती हैं। उनके शहादत दिवस पर उनकी कुछ पंक्तियां...

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो

पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

क ख ग घ को पहचानो

अलिफ़ को पढ़ना सीखो

अ आ इ ई को हथियार

बनाकर लड़ना सीखो.

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest