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समय-स्‍वर : नफ़रत के दौर को मुहब्‍बत का मौसम बना लीजिए

सरकारों की किसानों से नफ़रत, इंसानों की इंसानों से नफ़रत। यह नफ़रतों का दौर है। ऐसे में जरूरी है - प्‍यार का पर्व। एक ऐसा प्रेमोत्‍सव जो नफ़रत को मुहब्‍बत में बदल दे।
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फ़ोटो: iStock

चौदह फरवरी को युवा प्रेमी भले ही प्रेम के इजहार का दिन मानते हों, जिससे प्रेम करते हैं उसे प्रपोज करने का दिन मानते हों, पर प्रेम इतना भर नहीं है। बात सिर्फ वैलेंटाइन डे की नहीं है।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होय

याद दिला दूं कि शहीद भगत सिंह की जयंती के मौके पर यानी 27 सितंबर 2023 से महात्मा गांधी की पुण्‍यतिथि तक यानी 30 जनवरी 2024 तक नेशनल कल्‍चरल जत्‍था द्वारा ''ढाई आखर प्रेम'' यात्रा निकाली गई थी। इस यात्रा का उद्देश्‍य था ऐसे देश और समाज का निर्माण जो समानता और प्रेम पर आधारित हो। यात्रा मानो कह रही थी कि इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा।

इंसान का आपसी प्रेम तभी हो सकता है जब हम एक दूसरे से नफ़रत न करें, किसी का शोषण न करें, किसी के प्रति ईर्ष्‍या-द्वेष न रखें, एक दूसरे की मानवीय गरिमा समझें, स्‍त्री पुरुष को समान समझें, सबको जीने की स्‍वतंत्रता दें, किसी के साथ अन्‍याय न करें न सहें, आपस में बंधुता की भावना हो, जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के काम आएं। मानवता की मिसाल कायम करें। यही ज्ञान कबीर वर्षों पहले दे गए हैं कि-

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

व्यक्ति पढ़ा लिखा हो या न हो लेकिन जिसने ये ढाई आखर यानी प्रेम को समझ लिया वह ज्ञानी हो गया।

धर्म के नाम पर दंगे-फसाद, बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद

ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू पूजा कर रहे हैं। मथुरा में भी मस्जिद को हिंदू अपना मंदिर बता रहे हैं। इतिहास चाहे जो भी हो, जाहिर है इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। और इससे आपस में नफ़रत बढ़ेगी। शायद इसी वजह से कवि हरिवंश राय 'बच्‍चन' ने अपनी 'मधुशाला' में लिखा- 'बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद...।' हिंदू मुसलमानों में दंगे धार्मिक उन्‍माद के कारण ही होते हैं। वैसे इसमें राजनीति भी होती है यानी दंगे होते नहीं, कराए जाते हैं। पर एक कटु सच्‍चाई है कि चाहे बाबरी मस्जिद का ढहाना हो, गोधरा कांड हो, दिल्‍ली दंगे हों या हरियाणा के नूह के दंगे, ये न केवल धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाते हैं बल्कि इन दंगो में बेगुनाह लोग मारे जाते हैं।

काश कि लोग संविधान की प्रस्‍तावना को ही ढंग से पढ़ लें जिसमें पंथनिरपेक्ष या धर्म निरपेक्ष शब्‍द दिया गया है। इससे स्‍पष्‍ट हो जाता है कि इस देश का कोई धर्म नहीं है। सबको अपना-अपना धर्म अपनाने की स्‍वतंत्रता है। देश का हर नागरिक अपनी मर्जी का धर्म अपना सकता है।

क्‍या यही प्‍यार है?

प्रेम कोई गुनाह नहीं, यह हर किसी से हो यानी एक शख्स दूसरे शख्स से करे, एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से करें, समाज में सदभाव का माहौल हो न कि नफरत का। बात युवा अवस्‍था में प्रेम का करें तो यह विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण तो स्‍वाभाविक है। प्रकृति प्रदत्त है। पर आजकल जो प्‍यार देखने को मिल रहा है - क्‍या उसे प्‍यार कहा जा सकता है? अधिकांश युवा अपने विपरीत लिंगी के प्रति एक दूसरे के शारीरिक आकर्षण के कारण या कहिए एक दूसरे से शारीरिक सुख पाने के लिए आकर्षित होते हैं। कुछ ही दिनों में उनमें वैचारिक मतभेद होते हैं और वे एक दूसरे से दूर होने लगते हैं। उनके कथित प्‍यार में दरार आने लगती है। फिर वे किसी और के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। रिश्‍तों में खटास आने लगती है।

जिनमें किसी तरह प्‍यार टिका रहता है वे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगते हैं। हमारे देश में, ऐसे में अक्‍सर देखा जाता है कि लड़की कुछ समय के लिए ही लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है फिर लड़के पर शादी का दबाव बनाने लगती है। लड़का शादी के चक्‍कर में पड़ना नहीं चाहता या पहले से ही शादीशुदा होता है। वह शादी की बात को टालने लगता है। परिणाम यह होता है कि उनमें लड़ाई-झगड़ा होने लगता है। कई बार तो यह इतना बढ़ जाता है कि‍ नौबत मार-पीट और हत्‍या तक आ जाती है। आफताब-श्रृद्धा कांड लोग भूले नहीं होंगे। आखिर प्रेमी को इतना गुस्‍सा क्‍यों आता है कि वह प्रेमिका के शव के भी निर्ममता से टुकड़े-टुकड़े कर देता है।

वैसे लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में उत्तराखंड सरकार ने जो नियम-कानून बनाया है वह अलग बहस का विषय है।

चेहरा क्‍या देखते हो दिल में उतर कर देखिए

प्‍यार का आजकल एक और ट्रेंड देखने को मिल रहा है वह है - एक तरफा प्‍यार। इसमें अक्सर लड़के को लड़की से प्‍यार हो जाता है। पर लड़की उस से प्‍यार नहीं करती। इससे लड़के का ईगो हर्ट होता है। और वह बदला लेने पर उतारू हो जाता है। इसके गंभीर परिणाम होते हैं। कई बार तो लड़की की जान पर बन आती है। हम ऐसी खबरें अखबार में पढ़ते हैं या टीवी पर समाचार चैनलों में देखते हैं कि एकतरफा प्‍यार में लड़के ने लड़की की बेरहमी से हत्‍या कर दी। इसे प्‍यार तो कदापि नहीं कहा जा सकता।

असल में जो किसी से दिल और दिमाग से सच्‍चा प्‍यार करते हैं वह उसे मिले या न मिले लेकिन वे अपने लवर की हमेशा खुशियां चाहते हैं। तब यह प्‍यार शरीर से आगे बढ़कर दिल में उतर जाता है। वैसे भी प्‍यार को दिल का सौदा कहा जाता है। किसी शायर ने कहा है -

हुआ लैला पे मजनू कोहकन शीरी पे सैदाई।

मुहब्‍बत दिल का सौदा है कि जिसकी जिससे बन आई।।

लड़की से ही क्‍या डियर सबसे करिए प्‍यार

हम आज प्‍यार को व्‍यापक रूप में देखने की अपील करते हैं। यह सही है कि युवा लड़का- लड़की या स्‍त्री पुरुष के प्रेम और शारीरिक मिलन से ही यह स़‍ृष्टि है। पर इतना ही काफी नहीं है। हर लड़का लड़की एक परिवार का हिस्‍सा होता है। परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि सभी होते हैं। इससे भी आगे बढ़कर पड़ोसी, समाज, देश और दुनिया के लोग होते हैं। सभी इंसान हैं। सभी के प्रति प्‍यार की भावना होनी चाहिए। तभी आपको दुनिया खूबसूरत लगेगी। जीन योग्‍य लगेगी। वैसे और भी गम होते हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा। इसलिए सकारात्‍मक दृष्टिकोण रखिए और लड़की से ही नहीं सबसे प्‍यार कीजिए। किसी शायर ने कहा भी है -

कभी मरहम कभी उपचार बनकर

मिलो सबसे हमेशा प्‍यार बनकर

हमेशा रास्‍ता बनकर ही जीना

कभी जीना नहीं दीवार बनकर

नफ़रतों का दौर है आ प्‍यार की बातें करें

आज विभिन्‍न कारणों से नफ़रतों का दौर चल रहा है। नफ़रत का कारोबार चल रहा है। इसलिए बकौल राहुल गांधी नफ़रत के इस बाजार में मुहब्‍बत की दुकान खोलने की सख्‍त ज़रूरत है।

किसी से किसी कारणवश जलन-ईर्ष्‍या-द्वेष-घृणा आदि स्‍वाभाविक मानवीय भावनाएं हैं। पर ये नकारात्‍मक भाव हैं अत: हानिकारक हैं। परोपकार की भावना सकारात्‍मक है। किसी को दुख-कष्‍ट में देखकर, किसी ज़रूरतमंद की मदद करना मानवीय सकारात्‍मक गुण है। मानवीयता है। प्रेम है। खुद को कष्‍ट या ख़तरे में डाल कर भी दूसरों की मदद करना प्रेम की पराकाष्‍ठा है। इसलिए प्रेम को त्‍याग भी कहा गया है।

आज जाति-धर्म-संप्रदाय आदि के नाम पर भी नफ़रत की आग फैलाई जा रही है। ऐसे में प्रेम से इस आग को बुझाना और प्रेम की ज्‍योति जलाना आज की परमावश्‍यकता है। प्रेम दिवस के इस अवसर पर अगर हम ईर्ष्‍या-द्वेष आदि भुलाकर प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम से भी ऊपर उठकर मानव मात्र से प्रेम का संकल्‍प लें तो नफ़रत के इस दौर को मुहब्‍बत के मौसम में बदला जा सकता है बस अपने नजरिये को बदलने की जरूरत है। शायर कह भी गया है -

मेरा खून तेरे खून से कैसे जुदा है

ईश्‍क को तूने अदावत कर दिया है।

गंगा-जमुनी है यहां तहजीब अपनी

हमने नफ़रत को मुहब्‍बत कर दिया है।

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