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अंतरिक्ष: हमारी पृथ्वी जितने बड़े टेलीस्कोप से खींची गई आकाशगंगा के ब्लैक होल की पहली तस्वीर

दुनिया भर की: ब्लैक होल हमारे अंतरिक्ष के प्रमुख रहस्यों में से एक है। इन्हें समझना भी अंतरिक्ष के बड़े रोमांच में से एक है। इस अध्ययन के जरिये अंतरिक्ष की कई अबूझ पहेलियों को समझने में मदद
Milkyway
हमारी आकाशगंगा के मध्य में स्थित ब्लैक होल की पहली तस्वीर। देखिए कहां स्थित है ये ब्लैक होल। फोटोः साभार ईएसओ

हम भले ही विज्ञान के सहारे हमारी धरती व सौरमंडल की उत्पत्ति के कई सारे रहस्यों को समझने में कामयाब हो गए हों लेकिन अंतरिक्ष और उसका विराट स्वरूप अब भी हमारे लिए एक बहुत बड़ी पहेली है। इसे उस एक छोटे से तथ्य से समझा जा सकता है जिसे विज्ञान में बड़े शुरुआती दौर में समझाया जाता है।

इस अंतरिक्ष में—जिसे अंग्रेजी में यूनिवर्स कहा जाता है—हमारी पृथ्वी की हैसियत कितनी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए- हम एक सौरमंडल का हिस्सा हैं। हमारा सूरज एक सितारा है और हमारी आकाशगंगा यानी मिल्कीवे गैलेक्सी में हमारे सूरज जैसे कम से कम सौ अरब सितारे यानी सूरज हैं। हर सितारे का चक्कर काटने वाला हमारी पृथ्वी जैसा कम से कम एक ग्रह तो है ही। यह तो केवल एक गैलेक्सी की बात हुई, लेकिन यूनिवर्स में हमारी आकाशगंगा जैसी कम से कम दो सौ अरब गैलेक्सी हैं। दो सौ अरब गैलेक्सी, हर गैलेक्सी में सौ अरब सितारे, हर सितारे के पृथ्वी सरीखे एक या ज्यादा ग्रह, फिर ग्रह के चक्कर काटने वाले हमारे चांद जैसे उपग्रह।

यह सारा हिसाब लगातार बढ़ रहा है क्योंकि हमारा विज्ञान, उसके वैज्ञानिक अनुमान लगाने की ताकत, टेलीस्कोपों की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान को दिशा देने वाला तो अल्बर्ट आइंसटीन का वही सापेक्षता का सिद्धांत है (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी), लेकिन टेलीस्कोप बड़े व ताकतवर होने से अब हम अंतरिक्ष के उन हिस्सों पर भी नजर गड़ा सकते हैं, जहां पहले हमें सिर्फ गहरा अंधेरा दिखता था। इसिलए कुछ साल पहले तक गैलेक्सियों की संख्या का हमारा अनुमान सौ अरब का था। लेकिन अब हम दो सौ अरब गैलेक्सी होने का अमुमान लगा रहे हैं।

इस टेलीस्कोप विज्ञान के निरंतर मजबूत होने का ही नतीजा है कि आज हमारे पास हमारी आकाशगंगा (जी हां, दो सौ अरब गैलेक्सियों में से एक गैलेक्सी) के ब्लैक होल की तस्वीर है। बृहस्पतिवार को दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने एक साथ प्रेस कांफ्रेंस करके इस तस्वीर को दुनिया के सामने पेश किया।

ब्लैक होल हमारे अंतरिक्ष के प्रमुख रहस्यों में से एक है। इन्हें समझना भी अंतरिक्ष के बड़े रोमांच में से एक है। विज्ञानी मानते हैं कि इस तरह के ब्लैक होल अंतरिक्ष की करीब हर गैलेक्सी में मौजूद हैं। सापेक्षता के सिद्धांत के केंद्र में था ब्लैक होल। लेकिन उसके होने का पहला प्रत्यक्ष विजुअल साक्ष्य मिलना यकीनन दुनियाभर के खगोल-विज्ञानियों के लिए बड़ा रोमांचकारी मौका है। इससे इस बारे में और जानकारी जुटाई जा सकेगी कि आखिर यह ब्लैक होल काम कैसे करते हैं। हमारे गैलेक्सियों के मध्य में आखिर क्या-क्या घटता रहता है और ये विशालकाय ब्लैक होल अपने आसपास की चीजों से किस तरह का बरताव करते हैं।

इस तस्वीर से जो जानकारी मिलेगी, उसका रोमांच तो है ही, इस जानकारी को हासिल करने के लिए जो तकनीक इस्तेमाल की गई वह भी कम रोमांचकारी नहीं है। इस तस्वीर को तैयार करने के लिए इवेंट हॉरिजन टेलीस्कोप (ईएचटी) कॉलेबोरेशन नाम से अंतरराष्ट्रीय टीम तैयार की गई जिसमें रेडियो टेलीस्कोपों के एक विश्वव्यापी नेटवर्क से एकत्र सिग्नलों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दुनिया के 80 संस्थानों के 300 से ज्यादा विज्ञानी मिलकर काम करते हैं। यह गैलेलियो के समय से चल रहे अंतरिक्ष के अन्वेषण और रेडियो खगोलशास्त्र के निरंतर बढ़ते दायरे का भी संकेतक है।

विज्ञानियों ने पहले भी हमारी आकाशगंगा में किसी अदृश्य चीज के आसपास चक्कर काटते सितारों को देखा था। उन्हें अंदाजा तो था कि यह ब्लैक होल होगा, लेकिन वह कैसा दिखता होगा, इसका सबूत पहली बार मिला है। यह ब्लैक होल आकाशगंगा में धनुराशि (सैजिटैरियस) के नक्षत्रमंडल में स्थित है, इसलिए इसे सैजिटैरियस ए या सैज-ए-स्टार नाम दिया गया।

वैसे हम ब्लैक होल तो नहीं देख सकते क्योंकि वह पूरी तरह से अंधेरा होता है, लेकिन हम देख सकते हैं कि एक अंधेरे गोले के चारों तरफ चमकती-घूमती गैस का गोला है जो रिंग जैसी आकृति बना रहा है। चित्र से यह भी दिख रहा है कि गैस की रोशनी भी ब्लैक होल के गुरत्वाकर्षण बल के कारण टेढ़ी हो रही है। आकार में यह ब्लैक होल हमारे सूरज से भी चालीस लाख गुना बड़ा है। इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिक यह देखकर हैरान थे कि कैसे गैस की रिंग का आकार आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत से बिलकुल मेल खाता है।

हमारी आकाशगंगा के मध्य में स्थित ब्लैक होल की पहली तस्वीर। फोटोः साभार ईएसओ

आकार के बाद दूरी का अंदाजा लगाइए। यह ब्लैक होल हमारी पृथ्वी से करीब 27,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। समूचे यूनिवर्स में इस ब्लैक होल के आकार का अनुपात करीब-करीब वैसा ही है जैसे चांद की तुलना में हमारी किसी एक पूड़ी का। लिहाजा इतनी दूरी पर स्थित किसी ब्लैक होल की तस्वीर खींचने के लिए दुनिया में अलग-अलग जगहों पर पहले से मौजूद आठ रेडियो वेधशालाओं (ऑब्जर्वेटरी) को एक साथ जोड़ा गया जिसकी बदौलत हमारी पृथ्वी के आकार का एक वर्चुअल टेलीस्कोप तैयार हुआ। साल 2017 में कई रातों तक लगातार कई-कई घंटे इस ईएचटी ने आंकड़े जुटाए। यह कुछ-कुछ एक कैमरे में लंबे एक्सपोजर टाइम को इस्तेमाल करने सरीखा जैसा ही था।

उस समय एकत्र आंकड़ों को जर्मनी में रेडियो एस्ट्रोनॉमी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के सुपर कंप्यूटर में जोड़ा गया, जिनकी बदौलत यह तस्वीर सामने निकल कर आई। इससे पहले 2019 में ईएचटी ने किसी ब्लैक होल की पहली तस्वीर तैयार की थी। वह काफी दूर स्थित मैसियर 87 गैलेक्सी में स्थित ब्लैक होल था जिसे एम87 स्टार कहा गया था। वह गैलेक्सी पृथ्वी से 5.5 करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। एम87 ब्लैक होल हमारी आकाशगंगा के ब्लैक होल से हजार गुना बड़ा है। लेकिन उसकी दूरी बहुत ज्यादा होने के कारण वह आसमान में दिखता बराबर सा ही है। रोचक बात यह भी है कि इतनी दूरी पर स्थित दो अलग-अलग आकारों के ब्लैक होल दिखने में बिलकुल एक जैसे लगते हैं। इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन अंतरिक्ष के बारे में कई चीजें समझने में मदद देगा।

मजेदार बात यह भी है कि इससे विज्ञानियों में ईएचटी नेटवर्क को और बड़ा करने का भी उत्साह है। यह होगा तो वर्चुअल टेलीस्कोप का आकार बढ़ता जाएगा और हमें अंतरिक्ष की इससे भी ज्यादा साफ तस्वीरें देखने को मिलेंगी। फिर हमारे निशाने पर बाकी गैलेक्सियों के ब्लैक होल भी रहेंगे।

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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