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अमेरिका में पेगासस पर कड़ा फ़ैसला और भारत में…?

अब समय आ गया है कि इस मामले की अटकी हुई जांच को पुनर्जीवित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद पड़ी रिपोर्ट को उजागर किया जाना चाहिए और मुकम्मल जांच शुरू करायी जानी चाहिए।
Pegasus america

अमेरिका की एक अदालत ने इस्राइली स्पाईवेयर निर्माता, एनएसओ ग्रुप को वाट्सएप के रास्ते, हजारों व्यक्तियों के फोनों में अपने पेगासस साफ्टवेयर से, जो कि एक मिलिट्री ग्रेड का स्पाईवेयर है, अवैध रूप से घुसपैठ करने का दोषी ठहराया है। 

एक मील का पत्थर स्थापित करने वाले फैसले में उत्तरी कैलीफोर्निया में यूएस जिला अदालत ने एनएसओ ग्रुप को, अमेरिका के राज्य तथा संघीय हैकिंग-विरोधी कानूनों, जैसे यूएस कंप्यूटर फ्रॉड एंड एब्यूज़ एक्ट का उल्लंघन करने का दोषी करार दिया है।

व्यापक पैमाने पर जासूसी

अदालत का यह फैसला, व्हाट्सएप की पेरेंट कंपनी, मेटा द्वारा मुकद्दमा दर्ज कराए जाने के पांच साल बाद आया है। इस केस में मेटा ने एनएसओ ग्रुप पर इसका आरोप लगाया था कि उसने मेटा के मैसेजिंग प्लेटफार्म की एक ऑडियो कॉलिंग वेध्यता का दुरुपयोग कर, इस मामले से बिल्कुल अनजान मोबाइल फोन उपयोक्ताओं के उपकरणों में पेगासस स्पाईवेयर रोप दिया था। व्हाट्सएप के अनुसार इस मेलवेयर के जरिए हजारों की संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों तथा अन्य सामाजिक कार्यकताओं को और सरकारी अधिकारियों व कूटनीतिज्ञों को भी निशाना बनाया गया था। 

अपने फैसले में न्यायाधीश ने यह दर्ज किया था कि एनएसओ ग्रुप ने इन आरोपों का खंडन नहीं किया था कि उसने ‘व्हाट्सएप के सॉफ्टवेयर को रिवर्स इंजीनियर और/या डीकंपाइल किया था, ताकि इससे प्रभावित हुए उपकरणों में अपना पेगाससर स्पाईवेयर डाल सके।’

मोबाइल फोन को हैक करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किए जाने की सचाई पहले पहल 2019 में सामने आयी थी, जब यह खबर आयी थी कि इस स्पाईवेयर ने व्हाट्सएप के साफ्टवेयर की वेध्यताओं का इस्तेमाल कर, दुनिया भर में 1400 लोगों को निशाना बनाया था और इनमें 140 भारतीय भी थे। 2021 में दुनिया भर के 17 समाचार संगठनों ने, जिनमें भारत से द वायर भी शामिल था और दो एनजीओ--एमनेस्टी इंटरनेशनल तथा फॉरबिडन स्टोरीज़--ने यह खबर दी थी कि महीनों की मेहनत से उन्होंने पैगासस द्वारा संभावित रूप से हैक किए जा सकने वाले, करीब 50 देशों के 50,000 फोन नंबरों की सूची की छानबीन की थी, जिसमें भारत से 1000 नंबर शामिल थे। इसके बाद उन्होंने, इस संबंध में अपने फोनों की जांच कराने के लिए तैयार कुछ लोगों के फोनों की अपराध वैज्ञानिक यानी फोरेंसिंक जांच भी करायी थी। इन जांचों में पता चला था कि जिन फोनों का परीक्षण किया गया था उनमें से 85 फीसद को पेगासस स्पाईवेयर द्वारा हैक किया गया था।

इस जासूसी के संभावित निशानों में दुनिया भर से पत्रकार, कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी अधिकारी व कूटनीतिज्ञ शामिल थे। इनमें 14 शासन तथा सरकारों के प्रमुख शामिल थे। इनमें तीन राष्ट्रपति थे--फ्रांस के इमेनुअल मैक्रां, इराक के बरहाम सलीह तथा दक्षिण अफ्रीका के सिरिल रामफोसा। इसके अलावा तीन सेवारत तथा सात पूर्व प्रधानमंत्री थे और एक बादशाह था, मोरक्को का मोहम्मद-छठा। तीन सेवारत प्रधानमंत्री थे– पाकिस्तान के इमरान खान, मिस्र के मुस्तफा मेडबाउली और मोरक्को के साद-उद्दीन अल ओथमानी। सात पूर्व-प्रधानमंत्रियों में लेबनान के साद हरीरी, फ्रांस के एडुअर्ड फिलिप्पे, अल्जीरिया के नूरुद्दीन बेदुई और बेल्जियम के चाल्र्स मिशेल शामिल थे।

छानबीन में यह पता चला था कि भारत में करीब 300 मोबाइल फोनों को हैक किया गया था। इनमें राहुल गांधी तथा तृणमूल कांग्रेस की नेता अभिषेक बैनर्जी, कर्नाटक के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री जी परमेश्वर तथा सिद्धरमैया एवं कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के निजी सचिवों, केंद्रीय मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों, 40 पत्रकारों, चुनाव आयोग के एक सदस्य-अशोक लवासा-और विभिन्न मानवाधिकार व छात्र कार्यकर्ताओं, एक रेलवे ट्रेड यूनियन नेता, आदि के नाम शामिल थे।

पेगासस का खेल

पेगासस क्या है और यह इतना खतरनाक क्यों है? पेगासस महज एक स्पाईवेयर नहीं है, जो संचार की जासूसी का काम करता हो। यह तो मूलत: अपने से संक्रमित फोन का नियंत्रण ही अपने हाथ में ले लेता है। एक बार जब कोई स्मार्टफोन पेगासस से संक्रमित हो जाता है, वह इस उपकरण के साफ्टवेयर में ही ऐसी तब्दीली कर देता है कि उसके बाद उसे फोन की सभी गतिविधियों पर नियंत्रण हासिल हो जाता है और व्यावहारिक मानों में फोन उसका ही हो जाता है।

पेगासस को खासतौर पर खतरनाक बनाने वाली चीज यह है कि यह, संबंधित उपकरणों के उपयोक्ताओं के कुछ भी किए बिना ही, ऐसे उपकरणों को संक्रमित कर सकता है। सामान्यत: किसी भी मालवेयर के सक्रिय होने के लिए, इसकी जरूरत होती है कि उपयोक्ता द्वारा संबंधित नुकसानदेह लिंक पर क्लिक किया जाए या किसी प्रभावित साइट पर जाया जाए। लेकिन, पेगासस उपयोक्ता के कुछ भी किए बिना ही, उसके सेलफोन आदि उपकरणों की वेध्यताओं का इस्तेमाल कर सकता है। मिसाल के तौर पर उसने सिर्फ एक मिस्ड कॉल के जरिए, निशाना बनाए जाने वाले फोनों को संक्रमित करने के लिए व्हाट्सएप की वेध्यता का इस्तेमाल किया था। इस स्पाईवेयर ने आइमैसेज, फेसटाइम, व्हाट्सएप, टेलीग्राम तथा अन्य एपों के मामले में, जीरो-क्लिक का फायदा उठाने की क्षमता विकसित की थी।

पेगासस जब एक बार किसी उपकरण में डाल दिया जाता है, यह संबंधित उपकरण के मैसेज, ईमेल तथा कॉल लॉग पढ़ सकता है, स्क्रीन की तस्वीरें खींच सकता है, ब्राउजर हिस्ट्री को ट्रैक कर सकता है, की स्ट्रोकों को लॉग कर सकता है और कांटैक्टों तक पहुंच हासिल कर सकता है। यह डाटा को एक्सफिल्ट्रेट भी कर सकता है यानी फाइलें पलट कर अपने सर्वरों को भेज सकता है। यहां तक कि यह व्हाट्सएप तथा सिग्नल जैसी मैसेजिंग सेवाओं के एन्क्रिप्शन को भी धता बता सकता है क्योंकि संबंधित एप्प के एन्क्रिप्शन करने से पहले ही यह सीधे फोन से डाटा को लपक सकता है। इस साफ्टवेयर का इस्तेमाल कर के संक्रमित फोनों में दोषी बनाने वाले डॉक्यूमेंट भी डाले जा सकते हैं।

यहां तक कि आइफोन तक, जिन्हें अक्सर कहीं ज्यादा सुरक्षित माना जाता है, पेगासस के संक्रमण के लिए वेध्य साबित हुए। फिर भी, आइफोन उपकरण की गतिविधियों को लॉग करते हैं, जिससे संक्रमण होने की सूरत में उसे पकड़ने में मदद मिल सकती है। एंड्राइड उपकरणों में चूंकि ऐसा चौतरफा लॉग नहीं रखा जाता है, इन उपकरणों के मामले में पेगासस के लिए अपने संक्रमण को छुपाना आसान हो जाता है। उपकरण का ऑपरेटिंग सिस्टम कुछ भी हो, पेगासस लक्षित उपकरण के डिजिटल तथा भौतिक जीवन के हरेक पहलू में घुसपैठ कर सकता है और यह उसे जासूसी का एक ताकतवर उपकरण बना देता है। यह साधारण मेलवेयर या स्पाईवेयर के मुकाबले कहीं ज्यादा उन्नत है और इसीलिए इसे एक सैन्य ग्रेड के स्पाईवेयर की श्रेणी में रखा गया है। एनएसओ जोकि एक इस्राइली कंपनी है, अमेरिकी एनएसए की इस्राइली समकक्ष, यूनिट 8200 के साथ घनिष्ठ रिश्तों में बंधी रही थी। वास्तव में यूनिट 8200 के पूर्व-खुफिया अधिकारियों द्वारा ही एनएसओ की स्थापना की गयी थी और उसे चलाया जा रहा था।

भारत में जांच का क्या?

अमेरिकी अदालत के फैसले की रौशनी में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह हो जाता है कि यहां पेगासस की जांच और अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ कमेटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट को 2022 में दी गयी रिपोर्टों की क्या स्थिति है? एनएसओ हमेशा से यह दावा करता आया है कि वह पेगासस सिर्फ प्रमाणित सरकारों या वैटेड गवर्नमेंट्स को ही देता है। इससे हमारे देश में लोगों के मोबाइल फोनों की अवैध हैकिंग में भारत सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े हो जाते हैं। इन गंभीर आरोपों के जवाब के नाम पर सरकार चुप्पी, इंकार तथा धुंध फैलाने का ही सहारा लेती आयी है। सरकार ने इसके दावों की जांच कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है कि पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों और यहां तक कि संवैधानिक अधिकारियों तक को, इस स्पाईवेयर द्वारा निशाना बनाया गया था। उसने बस इसका दावा करना काफी समझा कि भारत का कानूनी ढांचा इसके लिए काफी चुस्त-दुरुस्त है कि अवैध जासूसी को रोक दे और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं की दुहाई देकर, इसकी पुष्टि करने से इंकार कर दिया कि क्या उसके पास संबंधित स्पाईवेयर था? सरकार का यह रुख संसद में उसके यह कबूल करने के बावजूद बना रहा कि उसको जानकारी थी कि पेगासस द्वारा व्हाट्सएप के जरिए उपयोक्ताओं को निशाना बनाया जा रहा था। इसकी भरोसेमंद रिपोर्टों पर भी चुप्पी साधे रखी गयी कि सरकार के विरोधियों के उपकरणों में साक्ष्य रोपने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया गया हो सकता है। 

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, एनवी रमना ने खुली अदालत में यह दर्ज किया था कि सरकार ने, इस मामले की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गयी कमेटी के साथ सहयोग करने से इंकार कर दिया था। इस कमेटी के निष्कर्ष अब तक अप्रकाशित ही बने हुए हैं।

अमेरिकी अदालत के इस न्यायिक निर्णय की रौशनी में, जिसमें एनएसओ ग्रुप को उसके ग्राहकों द्वारा जो कि ‘‘वैटेड’’ सरकारी प्राधिकार हैं, इस स्पाईवेयर के इस्तेमाल के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, अब समय आ गया है कि इस मामले की अटकी हुई जांच को पुनर्जीवित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद पड़ी रिपोर्ट को उजागर किया जाना चाहिए और मुकम्मल जांच शुरू करायी जानी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह कह चुका है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की चिंता के नाम पर, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का और खासतौर पर निजता के अधिकार का, अंधाधुंध अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। जनतांत्रिक व्यवस्था को बचाए रखने के लिए और नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत करने के लिए यह जरूरी है कि जिन्होंने भी कानूनों का अतिक्रमण किया है और सभी कानूनी सीमाओं को तोड़ा है, उनकी जवाबदेही तय की जाए। चूंकि मोदी सरकार इंकार की मुद्रा में है और दोषियों को बचाने में ही लगी हुई है, एक उच्च स्तरीय जांच करायी जानी चाहिए, ताकि सरकार की जिम्मेदारी तय की जा सके। सुप्रीम कोर्ट को ऐसी जांच शुरू करानी चाहिए और उसकी निगरानी करनी चाहिए। 

(लेखक तकनीकी मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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