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मराठा आरक्षण: उच्चतम न्यायालय ने अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर सभी राज्यों को नोटिस जारी किए

मराठा आरक्षण के मामले में उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण पर 50% की सीमा को बढ़ाया जा सकता है।
Supreme Court

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के बरसों पुराने मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग पर सुनवाई शुरू कर दी है। उछ न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने सभी सभी राज्यों से नोटिस भेज कर इस ‘अति महत्वपूर्ण’ मुद्दे पर जवाब मांगा कि क्या संविधान का 102वां संशोधन राज्य विधायिकाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने को लेकर कानून बनाने और अपने शक्तियों के तहत उन्हें लाभ प्रदान करने से वंचित करता है। 18 मार्च तक इस मुद्दे से जुड़े सभी संवैधानिक प्रश्नों पर सुनवाई पूरी हो जाएगी

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष 102वें संशोधन की व्याख्या का मुद्दा उठा। पीठ शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने के 2018 महाराष्ट्र कानून से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आरक्षण के मामले पर पर सभी राज्यों की राय जरूरी है क्योंकि इस मामले पर किसी भी फ़ैसले का असर राज्यों पर पड़ेगा।

संविधान में 2018 में किये गए 102 वां संशोधन अधिनियम के जरिये अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन, उसके कार्यों और शक्तियों से संबंधित है जबकि अनुच्छेद 342 ए राष्ट्रपति को किसी खास जाति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

पीठ ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है, उस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।

उच्चतम न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।

पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति आर रवीन्द्र भट्ट शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि वह 15 मार्च से सुनवाई शुरू करेगी। पीठ ने राज्यों से इस मुद्दे पर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा। उसने यह स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत महाराष्ट्र के लिए पेश होने वाले वकीलों को सुनने के बाद राज्यों को सुनेगी।

उसने कहा, ‘‘हम उन व्यापक मुद्दों को भी इंगित करते हैं जिन्हें इस संविधान पीठ ने विचार करने का प्रस्ताव दिया है। हम इन व्यापक मुद्दों का संकेत दे रहे हैं ताकि राज्यों सहित सभी संबंधित पक्ष अपने जवाब तैयार कर सकें।’’

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और पी एस पटवालिया की उस दलील पर पीठ ने गौर किया कि 102 वें संशोधन की व्याख्या के सवाल पर फैसला राज्यों के संघीय ढांचे को प्रभावित कर सकता है और इसलिए उन्हें सुनने की जरूरत है।

केन्द्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि 102 वें संशोधन की व्याख्या पर अदालत के फैसले से राज्य प्रभावित हो सकते हैं और यह बेहतर होगा कि सभी राज्यों को नोटिस जारी किए जाए।

उच्चतम न्यायालय ने पांच फरवरी को कहा था कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दाखिल याचिकाओं पर वह आठ मार्च से अदालत कक्ष के साथ ही ऑनलाइन सुनवाई शुरू करेगा।

पिछले साल नौ दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि महाराष्ट्र के 2018 के कानून से जुड़े मुद्दों पर ‘‘अविलंब सुनवाई’’ की जरूरत है क्योंकि कानून स्थगित है और लोगों तक इसका ‘फायदा’ नहीं पहुंच पा रहा है।

नौकरियों और दाखिले में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) कानून, 2018 को लागू किया गया था।

((समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ))

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