Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तमिलनाडु के धान किसानों को रद्द किए गए कृषि क़ानूनों के 'कार्यान्वयन' पर संदेह

सीधे किसानों से धान की ख़रीद का ज़िम्मा सरकार के बजाय निजी कंपनियों को सौंपने पर लगातार ज़ोर देने से वापस लिए गए कृषि क़ानूनों को अलग-अलग रूपों में लागू करने पर संदेह पैदा हो गया है।
peddy
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : पीटीआई

तमिलनाडु के किसान हर साल बुवाई, कटाई और ख़रीद के मुद्दों को लेकर बेमौसम बारिश का ख़ामियाज़ा भुगतते हैं। प्रत्यक्ष ख़रीद केंद्र (डीपीसी) पर उचित भंडारण की सुविधा के अभाव में धान की बोरियां भींग जाती हैं।

प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के माध्यम से फ़सल क्षति के लिए अपर्याप्त और लंबित मुआवज़े ने किसानों को और अधिक क़र्ज़ में धकेल दिया है।

बीमा की राशि के बावजूद बीमा प्रीमियम के अधिकतम हिस्से के रूप में 12.5 प्रतिशत तय करने का केंद्र का निर्णय किसानों के लिए एक और झटका है।

सीधे किसानों से धान की ख़रीद का ज़िम्मा सरकार के बजाय निजी कंपनियों को सौंपने पर लगातार ज़ोर देने से वापस लिए गए कृषि क़ानूनों को अलग-अलग रूपों में लागू करने पर संदेह पैदा हो गया है।

ख़रीद से जुड़े मुद्दे

धान ख़रीद किसानों की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव और धान की ख़रीद और उसे गोदामों में स्थानांतरित करने में अधिक देरी के कारण वे तनाव में हैं।

अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में तंजावुर ज़िले के किसान अचानक हुई बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुए जिससे डीपीसी में ख़रीद के लिए रखा गया धान भींग गया। मानसून की शुरुआत के साथ, किसानों को धान को सुखाने में मुश्किल हो रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि नमी की मात्रा परमिटेड लेवल के भीतर है।

किसानों ने नमी की मात्रा 17 फ़ीसदी से बढ़ाकर 22 फ़ीसदी करने की मांग की है, लेकिन केंद्र ने इसकी ऊपरी सीमा बढ़ाकर 19 फ़ीसदी कर दी है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 18% नमी पर उन्हें सामान्य किस्म के धान के लिए 20.40 रुपये और अच्छी किस्म के लिए 20.60 रुपये का नुक़सान होगा और वहीं 19% पर दोगुनी राशि का नुक़सान होगा।

कम मुआवज़ा और देरी

किसानों को फ़सल के नुक़सान और नुकसान की भरपाई करने के उद्देश्य से बहुप्रतीक्षित पीएमएफबीवाई देरी होने के मामलों से जूझ रहा है। जिन किसानों की फ़सल सांबा फ़सल कटाई सीजन 2020-21 के दौरान ख़राब हुई थी, उन्हें अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला है।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के तंजावुर ज़िला अध्यक्ष सेंथिल कुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मुआवज़े का वितरण 11 अक्टूबर, 2021 को शुरू हुआ। लेकिन एक साल बाद भी यह पूरा नहीं हुआ है। किसान इस तरह की देरी से कैसे बचेंगे?”

एआईकेएस की 25,000 रुपये की मांग के विपरीत क्षतिग्रस्त धान के पौधे के लिए लागत के लिए केवल 6,038 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी की घोषणा की गई थी।

कुमार ने आगे कहा, “इनपुट और श्रम लागत में वृद्धि को देखते हुए हमने सब्सिडी की मांग की। लेकिन सरकार ने मांग की गई राशि का केवल 25% सब्सिडी देने की घोषणा की- यहां तक कि उस राशि का भुगतान भी नहीं किया गया है। नुक़सान के आकलन के लिए केंद्र सरकार की टीम द्वारा दौरा किए गए क्षेत्रों में मुआवज़ा भी नहीं पहुंचा है।”

एआईकेएस ने निजी बीमा कंपनियों पर किसानों द्वारा भुगतान किए गए प्रीमियम को छीनने का आरोप लगाया है। कई फ़सलों के प्रीमियम के हिसाब-किताब में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए एआईकेएस ने एक बयान में कहा, "ऐसी आपदाओं से प्रभावित सभी किसानों को पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाना चाहिए।"

कुमार ने आरोप लगाया कि “856 राजस्व गांवों से 1.33 लाख किसानों को लगभग 17.94 करोड़ रुपये प्रीमियम का भुगतान किया, वहीं अकेले तंजावुर ज़िले के सात गांवों में केवल 36 लाख रुपये का भुगतान किया गया। यदि सभी ज़िलों के लिए राशि का हिसाब-किताब किया जाता है, तो निजी बीमा कंपनियों द्वारा किए गए लाभ का अनुमान लगाया जा सकता है।"

सरकार वापस ले रही है?

केंद्र और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के हालिया बयानों ने किसानों को चिंतित कर दिया है। वे एमएसपी के साथ धान ख़रीद के लिए केंद्र और राज्य सरकार पर निर्भर हैं, हालांकि क़ीमत उनकी मांग से काफ़ी कम है।

कुमार ने दावा किया, “हाल ही में एक सम्मेलन में, एफसीआई के सचिव ने सवाल किया कि सरकार को सीधे धान की ख़रीद क्यों करनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि निजी कंपनियां इसे उचित रूप से ख़रीद लेंगी और केंद्र सरकार इस प्रक्रिया के लिए केवल 2% अतिरिक्त देगी।”

एआईकेएस ने आरोप लगाया है कि 1,22,22,463 टन धान में से केवल 42,55,135 टन की ही ख़रीद की गई है। सरकारी बयान में कहा गया कि, “70 लाख धान के किसानों में से केवल 6,72,791 ने ही डीपीसी पर धान बेचा है। अधिकांश किसान अभी भी सरकारी ख़रीद प्रक्रिया से बाहर हैं।"

संगठन ने दावा किया है कि सरकारी ख़रीद को कम करने के लिए इस तरह के क़दम कृषि क्षेत्र से हटने और परोक्ष रूप से कृषि क़ानूनों को लागू करने की एक सुनियोजित साजिश है।

बयान में आगे कहा गया, “हालांकि सरकार गोदामों में अतिरिक्त स्टॉक का दावा करती है, कई किसान एमएसपी से कम क़ीमत पर धान बेच रहे हैं और देश वैश्विक भूखमरी सूचकांक में बहुत ख़राब प्रदर्शन कर रहा है। यह विरोधाभास मौजूदा समस्याओं की व्याख्या करता है, जिन्हें किसानों और जनता के लाभ के लिए निपटाने की आवश्यकता है।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Tamil Nadu Paddy Farmers Suspect ‘Implementation’ of Abolished Farm Laws

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest