‘हे राम’ से लेकर ‘जय श्रीराम’ तक का सफ़र
आज गांधी जी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को आज़ादी के इन 75-76 सालों के सफ़र को याद करने की ज़रूरत है। भारतीय गणतंत्र की उस राजनीति को परखने की ज़रूरत है जिसकी वजह से आज लोकतंत्र, इंसाफ़, बराबरी का विमर्श ‘जय श्रीराम’ के नारे में समाहित हो गया है। संविधान और जनता के राज की बजाय एक ऐसा ‘रामराज’ स्थापित करने की मुहिम है जिसमें न सीता जैसी स्त्री के लिए जगह है, न शंबूक जैसे दलित स्कॉलर की।
इन सत्तर-पिछत्तर सालों में भारतीय लोकतंत्र का सफ़र, लोकतंत्र का विमर्श ‘हे राम’ से लेकर ‘जय श्रीराम’ तक पहुंच गया है। महात्मा गांधी के भारत से लेकर नाथूराम गोडसे के भारत तक पहुंच गया है। 22 जनवरी (2024), 26 जनवरी (1950) और 30 जनवरी (1948) पर हावी हो गई है।
बात कड़वी है मगर आज यही हमारे विकास का सार है। नये भारत की तस्वीर है।
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