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युवाओं ने दिल्ली सरकार पर बोला हल्ला, पूछा- 'कहां है हमारा रोज़गार?'

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज के पास एकत्रित होकर राजधानी के युवाओं ने वहां से "दिल्ली सरकार जबाव दो, कहां है हमारा स्वास्थ्य? कहां है हमारा रोजगार?" के नारों के साथ मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च किया। 
 युवाओं ने दिल्ली सरकार पर बोला हल्ला, पूछा- 'कहां है हमारा रोज़गार?'

भारत की जनवादी नौजवान सभा (डीवाईएफआई) दिल्ली राज्य कमेटी के बैनर तले आज रविवार को दिल्ली के छात्र-युवा अपनी मांगो को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास के पास विकास भवन पर प्रदर्शन किया।

दिल्ली के अलग अलग इलाकों से सैकडों की संख्या में नौजवान ने मुख्यमंत्री आवास से कुछ सौ मीटर दूर इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज के पास एकत्रित हुए। वहां से इन्होंने "दिल्ली सरकार जबाव  दो, कहां है हमारा स्वास्थ्य? कहां है हमारा रोजगार?" के नारों के साथ युवाओं ने मुख्यमंत्री आवास की तरफ मार्च किया। हालांकि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को मुख्यमंत्री आवास से पहले ही बैरिकैडिंग लगाकर रोक लिया। फिर युवाओं को विकास भवन लाया गया और वहीं पर प्रदर्शनकारियों ने अपनी सभा शुरू कर दी।

इस प्रदर्शन में युवाओं के साथ ही बाक़ी अन्य वर्ग के लोग भी शामिल हुए और उन्होंने अपनी मांगे उठाईं। दक्षिणी दिल्ली के किशन गढ़  से आए लगभग 45 वर्षीय लालचंद ने न्यूज़क्लिक से कहा कि वो नेहरू प्लेस  में मोदी ग्रुप में ड्राईवर थे। परंतु कोरोना काल में उनकी नौकरी छूट गई तब से बेरोजगार हैं। 

उन्होंने बताया कि उनके परिवार में छह लोग हैं। लेकिन बिना काम के दिल्ली में परिवार का गुज़ारा मुश्किल हो गया था इसलिए परिवार को गांव भेज दिया है।

इसी तरह महरौली से एक दंपति मंजू और आनंद आया। वो अपने हाथ में बेरोजगार लोगों को 5000 हजार भत्ता देने की मांग का पोस्टर लेकर आए थे।

उन्होंने बताया दोनों पहले बेलदारी करते थे। परंतु कोरोना के बाद से उन्हें काम नहीं मिल रहा है । दूसरा, आनंद को काम के दौरान चोट लग गई तब से वो काम करने में असमर्थ हैं। ऐसे में परिवार चलाने के लिए उनके नवकिशोर बच्चों को कोठियों में साफ सफाई करने जाना पड़ रहा है। 

जब हमने उनसे निर्माण मजदूरों को मिलने वाले लाभ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया उनका कार्ड बना तो है परंतु जब से ऑनलाइन हुआ है तब से वो रिन्यूअल यानी नवीनीकरण नहीं करा पाए हैं इसलिए उन्हें कोई लाभ नहीं मिला है।  

डीवाईएफआई के राज्य सचिव अमन सैनी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मोदी सरकार हो या केजरीवाल सरकार दोनों सरकारों ने युवाओं के साथ धोखा किया है। देश का प्रधानमंत्री सेलर है, वे मौद्रिकरण के नाम पर सरकारी कम्पनियों और उद्यमों को अडानी अबानी को बेच रही है। केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा खाली पड़े लाखों पदों की भर्ती पर रोक लगाने, ठेके या अनुबन्ध आधार की भर्ती होने, सरकारी विभागों के निजीकरण और बढ़ती हुई महंगाई से युवाओं की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई है।

अमन ने केजरीवाल सरकार के 2015 के वादे को याद दिलाते हुए कहा कि केजरीवाल ने हर साल 2 लाख रोजगार देने का और कच्चा कर्मचारियों को पक्का करने का वायदा किया था, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली का हर तीसरा युवा बेरोजगार है। दिल्ली में हजारों की संख्या में सफाई कर्मी, डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य विभागों में ठेके, अनुबंध के आधार पर कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है। चारों तरफ ठेकेदारों के भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

डीवाइएफआई ने हाल ही में एक आरटीआई लगाई थी जो न्यूज़क्लिक ने प्राप्त की है। इसके मुताबिक़ कई खुलासे हुए हैं। इससे एक नी बात जो पता चली है, वो यह है कि दिल्ली में विभिन्न सरकारी विभागों में लगभग 50 प्रतिशत पद खाली हैं। दास (dasa) ग्रेड सेकंड में 2378 पोस्ट हैं, जिसमें से 1029 पोस्ट भरी हुई हैं और 1349 पोस्ट खाली हैं। इसी तरह  ग्रेड 3 में 4240 पोस्ट हैं जिसमें से 1833 पोस्ट भरी हुई हैं, 2407 पोस्ट खाली हैं। शिक्षा विभाग में ग्रुप ए 1660 पोस्ट हैं, 1050 पोस्ट खाली हैं। ग्रुप बी में 25 पोस्ट हैं 23 पोस्ट खाली हैं। इसके 17452 पोस्ट गेस्ट टीचरों की हैं। गेस्ट टीचर के अलावा भी हर विषय के 50% से ज्यादा अध्यापकों की कमी है जिसके बारे में आरटीआई लगी हुई है।

वहीं कोरोना महामारी में इन युवाओं ने दिल्ली की जनता की सेवा की है। सिविल डिफेन्स में भर्ती हजारों नौजवानों का वेतन अनियमित है। न तो उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया जा रहा है न ही स्थायी वेतन।

ऐसे ही एक युवा प्रदर्शन में शामिल थे उन्होंने कहा कि वो अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते हैं। लेकिन हमें पूरा वेतन तक नहीं मिलता है।

युवाओं के साथ ही छात्र भी इस प्रदर्शन का हिस्सा बने और बताया कि एक ओर  जहाँ  महंगाई और बेरोजगारी उनके परिवार की कमर तोड़ रही है वहीं सी.बी.एस.. द्वारा दिल्ली के स्कूलों में 10वीं और 12वीं के परीक्षा की फीस के नाम पर हजारों रुपए लिये जा रहे हैं। हालाँकि जब यह फीस लागू की गई थी तब उन्होंने इसे माफ़ किया था, लेकिन चुनाव के बाद उसने बच्चों से लूट की छूट दे दी है।

इस प्रदर्शन में लाजपत नगर से ढोल लेकर प्रदर्शन में शामिल होने आए दो युवक सोनू और अरुण ने कहा कि पिछले डेढ़ साल से कोरोना की वजह से उन्हें काम नहीं मिलता है। इसकी वजह से उनके सामने भुखमरी का संकट आ गया था। इस वजह से अब वो हाथी-घोड़ा खिलौना बनाकर बेचना शुरू कर दिया । लेकिन उससे भी परिवार चलाने में मुश्किल है । उन्होंने बताया कि उनका राशन कार्ड तक नही है।

वही मोदी सरकार ने भी बेरोजगारों को ठगने का ही काम किया। इस प्रदर्शन में शामिल युवाओं ने केंद्र की मोदी सरकार के नीतियों को लेकर भी निराशा जाहिर की। उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों को लेकर भी रोष प्रकट किया। खासकर वो युवा जो नौकरियों की तैयारियां कर रहे हैं लेकिन भर्ती के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है। इसकी गवाही आकड़ेभी दे रहे है।

ये मोदी दौर ही है जिसमें देश रिकॉर्ड बेरोज़गारी दर का गवाह बना। इसी दौर में हज़ारों-लाखों लोगों ने अपने रोज़गार को छिनते देखा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2019 में देश मे बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी रही। CMIE ने जनवरी 2019 में एक आंकड़ा जारी किया जिसके अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के चलते 2018 में 110 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर 2017-18 में 45 वर्ष के उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गई थी। CMIE के अनुसार 2020-21 में वैतनिक नौकरियों में 98 लाख की गिरावट हुई। 2019-20 में 8 करोड़ 59 लाख वैतनिक नौकरियों से ये आंकड़ा घटकर मार्च 2021 में 7.62 करोड़ पर आ गया। CMIE की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैल-मई के महीने में 2.27 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारी दर 12% पहुँच गयी।

मोदी सरकार की मार सरकारी सेक्टर पर भी पड़ी है। और वहां रोज़गार के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। हमारे देश मे एसएससी, आईबीपीएस(बैंक), और आरआरबी(रेलवे) ये मुख्यतौर पर विशेष रिक्रूटमेंट बोर्ड्स हैं जिनका काम विभिन्न सरकारी विभागों में अलग-अलग पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन करना हैं। एक नज़र डालते हैं आंकड़ों पर :

इस प्रदर्शन में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे प्रेम, अभिषेक और रोहित भी आए थे। ये सभी 2017 में ग्रेजुएट हुए थे, तभी से यह तीनों सरकारी नौकरी की तैयारियां कर रहे हैं। 

प्रेम ने बताया कि उनके परिवार में वो सबसे बड़े हैं। उनके पिता मात्र दस हजार की तनख्वाह पर नौकरी करते हैं । ऐसे में सरकारी नौकरियों के फार्म के फीस इतनी होती है कि उसे भरना मुश्किल हो जाता है।

इसके साथ ही भर्तियां इतनी कम निकल रही है और जो निकल भी रही है, उसकी प्रक्रिया इतनी लंबी है की मत पूछिए। उन्होंने कहा लगता है इन सरकारों के रहते तो हम लोगो का सरकारी नौकरी पाने का सपना कही सपना ही न रह जाए।

एसएससी सीजीएल की साल 2013 में कुल 16114 वेकैंसी थी जो साल 2020 में गिरकर 7035 हो गयी। यानी साल 2020 की तुलना साल 2013 से करें तो लगभग 56 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है।

इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र की बात करें तो साल 2013 में आईबीपीएस (PO) की 21680 वेकैंसी थीं, जो साल 2020 में महज़ 1167 रह गईं। यहां 2020 की तुलना 2013 से करें तो करीब 95 फीसदी की भारी गिरावट देखने को मिलती है। ये बैंकिंग क्षेत्र में रोज़गार का सूरत--हाल बयां करता है।

वहीं सिविल सेवा परीक्षा यानी यूपीएससी की बात करें तो साल 2013 में इसकी 1000 वेकैंसी थीं। यह संख्या भी साल 2020 में सिमट कर 796 रह गई।

अरविन्द उत्तरी दिल्ली के मुकुंदपुर से आए थे ,वो आईटीआई में इलेक्ट्रीशियन का डिप्लोमा कर रहे है। उन्होंने कहा हमारे परिवार ने ये सोचकर हमे यहाँ भेजा था कि ये कोर्स करने के बाद हमारी पक्की नौकरी लग ही जाएगी लेकिन अभी के हालात और सरकारों की नीतियों को देखकर लगता नहीं नौकरी मिल पाएगी। क्योंकि हमारे जो सीनियर थे वो भी रोजगार की तलाश में भटक ही रहे है।

युवाओ में ये निराशा दिखाने के लिए काफी है की सरकारों ने इनके लिए कुछ सकारात्मक नहीं किया है। उन में गुस्सा भी दिख रहा था। लेकिन शायद उन्हें कोई दिशा नहीं मिल रही है। इसलिए उन्होने इन सरकारों से उम्मीद ही छोड़ दी है।

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