दूसरा पहलू: “टिक-टॉक हमारी प्रतिभा साबित करने और आज़ादी मुहैया कराने वाला एक मंच था”
पसीने से लथपथ बाल लिए लक्खी प्रमाणिक (34) अपने साबुन लगे गीले हाथों को लगभग भीग चुके कुर्ते से पोंछकर अपने नए स्मार्टफोन को कानों से लगा देती है। स्क्रीन पर लग रहे पसीने को पोंछते हुए चिढ़ते हुए ऊँची आवाज में उसने जवाब देते हुए कहा “हाँ, हाँ, आज के लिए यह मेरा आखिरी घर है। यहाँ का काम निपटाते ही मैं फिर सीधे तुम लोगों से टिक-टॉक वीडियो शूट करने के लिए छत पर आ रही हूँ।”
फोन रख वह जल्दी से रसोई के बेसिन में पड़े झूठे बर्तनों को धोने के लिए जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगी, क्योंकि 4 बजने को थे और टिक-टॉक का समय हो रहा था।
लक्खी को इस हड़बड़ी में देख गृहस्वामिनी पूछ बैठती हैं कि क्या घर पर उसके परिवार में चारों बच्चे और बीमार माँ सकुशल हैं या कोई तकलीफ तो नहीं। लेकिन लक्खी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया था “हाँ, हाँ, सब कुशल से हैं। मेरे टिक-टॉक बनाने का समय हो रहा है। क्या आप मेरे कपड़ों के कलेक्शन को देखना चाहेंगी? ”
फिर अपने चमकदार काले बैग को खोलकर उसमें बेहद सावधानी के साथ उसने अपने नये स्मार्टफोन को रख दिया, जिसे उसने सिर्फ टिक-टॉक के वास्ते ही साल भर के भीतर कई अतिरिक्त शिफ्ट में काम करने के बाद खरीदा था। फिर उसने जाने से पहले एक जोड़ी जीन्स और एक चमकीले रंग के टॉप के साथ झुमके भी निकाल लिए थे।
“मुझे पाश्चात्य पहनावा पहनना पसंद है, लेकिन जहाँ पर मैं रहती हूँ, वहाँ पर महिलाओं को ऐसा करने की इजाजत नहीं है। ऊपर से मैं तो एक विधवा ठहरी” वह बोल पड़ी।
11.9 करोड़ से अधिक की तादाद में लोगों द्वारा इस ऐप के इस्तेमाल किये जाने के साथ ही टिक-टॉक आज के दिन कामगार वर्ग की आबादी के एक बड़े हिस्से के बीच में सबसे लोकप्रिय वीडियो ऐप के तौर पर अपनी पैठ बना चुका था। वहीं लक्खी जैसे कुछ लोगों ने तो अपने टिक-टॉक वीडियो बनाने की खातिर ही नए एंड्रॉइड फोन और सहायक उपकरण खरीदे थे, जिसके चलते इनकी बिक्री में भारी इजाफा देखने को मिला है।
लक्खी के लिए टिक-टॉक मात्र अपने अभिनय कला के प्रदर्शन का ही मंच नहीं रह गया था, जिसमें कुछ लोग आपके फॉलोवर बन जाते हैं, बल्कि ऐसा करके उसे एहसास होता था जैसे वह पूरी तरह से मुक्त हो चुकी है। “टिक-टॉक पर कोई भी मुझको या मेरे कपड़ों के आधार पर मेरे बारे में पूर्व धारणा नहीं बनाता है। उल्टा, मुझे अपने बारे में अच्छी-अच्छी टिप्पणियां पढने को मिलती हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे सारा तनाव इसके इस्तेमाल से गायब हो गया हो।” वह बोल पड़ती है।
उसके पास इस चीनी ऐप टिक-टॉक के माध्यम से कम से कम 2,000 प्रशंसक बन चुके थे, जिसे हाल ही में ग्लवान घाटी में पड़ोसी देश के साथ बढ़ते तनाव के बीच 20 भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद से भारत सरकार द्वारा जिन 59 ऐप को प्रतिबंधित कर दिया गया था, उनमें से एक यह भी था। सरकार और कई समाचार मीडिया से जुड़े संगठनों के अनुसार यह एक डिजिटल प्रतिशोध था।
मोबाइल में छोटे-छोटे वीडियो अपलोड करने के मामले में सबसे बेहतरीन विकल्प के तौर पर टिक-टॉक ऐप का स्वामित्व बीजिंग स्थित एक इंटरनेट कंपनी, बाइटडांस लिमिटेड के अधीन है, जिसने भारत में अपनी सेवाएं 2017 से आरंभ कर दी थीं। इन वर्षों के दौरान इसके उपभोक्ताओं का आधार भारत में बढ़कर 11.9 करोड़ हो चुका था।
उपयोग में बेहद आसान और व्यापक स्तर पर लोकप्रियता की वजह से इन सक्रिय उपयोगकर्ताओं की टीम के साथ कई लोग जुड़ चुके थे। एक टिक-टॉक करने वाली और कोलकाता की एक नृत्यांगना रतुल चटर्जी (उम्र 22) के अनुसार "इसमें सबसे रोचक बात यह थी कि अधिकांश दर्शक ही इसके वीडियो बनाने वाले लोग भी थे। इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि यू-ट्यूब और इन्स्टाग्राम के विपरीत इसमें सभी आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोग समान रूप से हिस्सा ले रहे थे। हाशिये पे खड़े परिवारों के लोगों को यहाँ वाहवाही लूटते देखा गया, यहाँ तक कि महिलाओं को भी।”
टिक-टॉक से पहले लक्खी की बहन नमिता रॉय (उम्र-30) स्मूले ऐप पर अपने गाने के शौक को परवान चढाने की कोशिश में लगी थी। वे बताती हैं “उस ऐप में दिक्कत ये थी कि मैं अपने चेहरे या हाव-भाव को नहीं देख सकती थी। टिक-टॉक पर बेहतर फीचर और लोगों के बीच में बेहतर पैठ के चलते मैंने खुद को इस ऐप से अलग कर लिया था।”
शुरू-शुरू में लखी को वीडियो को रिकॉर्ड करने के साथ-साथ अतिरिक्त फीचर्स और इफ़ेक्ट को लेकर थोड़ी-बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे वह इसकी आदी होती चली गई थी। “मैंने फेसबुक पर आजतक अपना एक भी वीडियो अपलोड नहीं किया है, क्योंकि मेरी मित्रता सूची में मेरे ससुराल वाले और परिचित लोग शामिल हैं। जहाँ तक यू-ट्यूब का सवाल है तो वह काफी जटिल और खास फायदेमंद नहीं लगा। इंस्टाग्राम क्या है इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानती?" वह बोल पड़ती है।
29 वर्ष की उम्र में वह अपने पति को खो चुकी थी, जिसके बाद उसने अपने दोनों बच्चों के साथ वापस अपनी माँ के घर चांदपुर में रहने का फैसला किया था। इसके कुछ दिनों के बाद ही उसकी बड़ी बहन भी इस संसार से विदा हो चुकी थीं। लगातार आर्थिक तंगी के बावजूद उसने फैसला लिया कि अपने छोटे से बांस के घर को वह अपने भांजे और भांजी के साथ साझा करेगी। अब वह इन चार बच्चों और अपनी बीमार मां के लिए एकमात्र सहारा है।
लक्खी आगे कहती हैं, “शुरू-शुरू में मुझे हमेशा इस सबसे घबराहट होती थी, यहाँ तक की टिक-टॉक पर भी आने में घबराती थी। क्या होगा यदि मेरे ससुराल वाले मेरे वीडियो को देख लेंगे, और इसको लेकर हंगामा करने लगेंगे। लेकिन नमिता और रूपा मेरे साथ लगातार एक मजबूत दीवार की तरह खड़ी रहीं और इन्होंने घबराहट को काफी हद तक शांत करने में मेरी मदद की।”
हर दिन शाम 4 बजे के बाद रूपा, लक्खी और नमिता आपस में मिला करते और अपने काम से लौटकर आये हुए कपड़ों को बदलते, सजते संवरते और फिर वीडियो बनाना शुरू कर देते थे। लक्खी के विपरीत नमिता और रूपा अपने घर पर भी रहकर वीडियो बना लिया करती थीं। रूपा ने बताया कि "मेरे पति को मेरा वीडियो बनाना पसंद नहीं है, इसलिए उसके घर वापस आ जाने से पहले ही मैं कुछ वीडियो बना लिया करती थी।"
नमिता रॉय (30) और रूपा (34) भी उसी इलाके में घरेलू कामगार के तौर पर कार्यरत हैं।
लेकिन 29 जून के दिन लक्खी के पास नमिता का बेहद जरूरी फोन आया, जिसमें उसने बेहद दुःखभरे शब्दों में घोषणा की कि टिक-टॉक सहित 58 अन्य चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
दूसरे ऐप्स पर लगे प्रतिबंधों से अप्रभावित लक्खी ने जब इस सूची में टिक-टॉक का नाम सुना तो वह हक्की-बक्की रह गई। उसने तुरंत अपना फोन निकालकर इस खबर की सत्यता जानने के लिए ऐप खोलकर देखा। "मेरे सारे वीडियो नजर नहीं आ रहे हैं" वो चीख पड़ी और इसकी सूचना रूपा को देने के लिए उसे फोन करने लगी।
लक्खी के अनुसार टिक-टॉक के मामले में एक एक्सपर्ट के तौर पर रूपा के एक साल में 3,000 प्रशंसक बन चुके थे। लेकिन इस खबर को सुनने के बाद रूपा की तत्काल प्रतिक्रिया बस इतनी सी ही थी कि "यदि ऐप एक बार फिर से चलने लगे तो क्या मैं अपने उन वीडियो को फिर से देख पाऊँगी?"
लक्खी याद करते हुए बोल पड़ती हैं “रूपा हम सबमें मज़ाकिया स्वाभाव की है। इसलिए जब उसने हँसाने वाले वीडियो बनाने शुरू किये तो कभी-कभार उसे हजारों में भी लाइक्स मिल जाया करते थे।”
रूपा का 14 साल का एक बेटा है और जल्द ही वे दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली है। अपने वीडियोज और मजाकिया स्वभाव के चलते अपने नियोक्ताओं के बीच में वह ‘मिस फनी बोंस’ के नाम से लोकप्रिय है। “ यह देखते हुए कि जिन्दगी में मैं कहां पर हूं, और मैं कहाँ से सम्बद्ध हूँ, मुझे नहीं लगता कि मैं शायद ही कभी धारावाहिक टीवी सीरियल के लिए चुनी जाऊं और अभिनय कर पाऊं। इसलिए हम इसी बात से काफी खुश और संतुष्ट थे कि हमारा चेहरा स्क्रीन पर देखने को मिल जाया करता था। हमारे वीडियोज के लाइक की संख्या बढ़ रही थी और लोग हमारे काम की प्रशंसा कर रहे थे” रूपा बोल पड़ती हैं “टिक-टॉक हमारी प्रतिभा और हमारी आकांक्षाओं के लिए एक मंच के तौर पर था।"
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार द्वारा टिक-टॉक पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सही था, के जवाब में रूपा का कहना था “यदि टिक-टॉक की वजह से भारत को नुकसान पहुँच रहा है, तो उस पर प्रतिबन्ध लगा दें। लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्यों? ”
वहीं नमिता का कहना था “सिर्फ टिक-टॉक और 58 अन्य ऐप पर ही प्रतिबन्ध क्यों, और इसे कैसे न्यायोचित ठहरा सकते हैं? ऐसी ढेर सारी चीजें हैं जो हम चीन से लेते हैं, उनके बारे में क्या फैसला लिया जा रहा है? मेरे पास जो फोन है वह भी चीन का बना हुआ है, जिस टेलीविजन पर मैंने यह खबर देखी है वह भी चायनीज है, और मेरी बेटी जिन खिलौनों से खेलती हैं, उनमें से भी कई चायनीज हैं। ऐसे में केवल टिक-टॉक पर प्रतिबन्ध लगा देने से हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? और मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि सरकार सिर्फ ऐप के बारे में ही क्यों हाथ धोकर पड़ी हुई है।” नमिता आगे कहती हैं “इसके साथ ही एक सवाल यह भी पैदा होता है कि यदि उन्हें चायनीज उत्पादों पर प्रतिबन्ध ही लगाना है तो इसका स्वागत है, लेकिन क्या विकल्प के तौर पर हमारे पास भारतीय उत्पाद मौजूद हैं?"
लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
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