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तिरछी नज़र: डर अवाम का... जीत बादशाह की

“अवाम को अवाम के खिलाफ रखो तो बादशाह को कोई ख़तरा नहीं होता है। मतलब अगर हर कोई किसी दूसरे के ख़िलाफ़ हो तो बादशाह सलामत है”।
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फोटो साभार : सतीश आचार्य, 'एक्स'

बादशाह अपने राजमहल‌ में चैन फरमा रहे थे। आज दिन भर अवाम के सामने बार-बार कपड़े बदल, माउथ आर्गन बजाते बजाते थक गए थे अतः आज इस समय माउथ आर्गन बजाने का मन नहीं था। बस ऐसे ही सिंहासन पर बैठे बैठे ऊंघ रहे थे। सो सकते नहीं थे क्योंकि नींद आ ही नहीं रही थी। सभी मानते हैं कि सठियाने के बाद नींद मुश्किल से ही आती है और कम से कम इस मामले में बादशाह भी आम आदमी जैसे ही थे। तो बादशाह की भी नींद कम हो चली थी। वैसे अवाम को उन्होंने विश्वास दिलाया हुआ था कि वे मात्र तीन घंटे ही सोते हैं और बाकी समय अवाम की भलाई में ही लगे रहते हैं। तो हम कह सकते हैं कि उस समय बादशाह अवाम की भलाई के लिए ऊंघ रहे थे। 

और बादशाह जब ऊंघते ऊंघते बोर हो गए और नींद पास फटकी तक नहीं, तो बादशाह ने अपने सबसे प्रमुख रत्न अलिफ को बुला भेजा। अलिफ ने अपने महल से राजमहल पहुंचने में दो घड़ी से अधिक समय नहीं लगाया। पर बादशाह को वे दो घड़ी दो सदी के बराबर लगे। अलिफ के आते ही बोले, "बड़ी देर लगा दी आने में अलिफ। क्या बेगम के साथ थे"! 

"नहीं जहांपनाह। मैं तो हमेशा की तरह जल्दी ही आ गया हूं। दो घड़ी से अधिक तो हरगिज ही नहीं लगाई होगी। वैसे भी बेगम तो अलग कमरे में सोती हैं"। सबसे बड़े रत्न अलिफ ने जवाब दिया। बादशाह की हुकूमत में बेगम के साथ सोना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी। यह बादशाही का नया फरमान था कि अच्छे लोग बेगम को अपने साथ नहीं रखते हैं।

"अलिफ, हम तुम्हारे काम से बहुत खुश हैं। तुमने किसानों को दिल्ली में आने से बखूबी रोका। बैरिकेट लगा दिए। कीलें ठोंक दीं। सड़कें खोद दीं। ड्रोन से निगरानी की। ड्रोन से ही अश्रुगैस के गोले दगवाए। यह ड्रोन भी न, बड़े ही काम की चीज है। इस बार पिछली बार से अधिक मुस्तैदी से काम किया। पर एक बात बताओ अलिफ, सड़कें हमने रोकीं। ट्रैफिक जाम हमने किया। पर अवाम ने सड़कें रोकने के लिए भी किसानों को ही जिम्मेवार ठहराया। ट्रैफिक जाम के लिए भी उन्हीं को गाली दी। यह तुमने कैसे मैनेज किया"? बादशाह ने अपने सबसे बड़े रत्न अलिफ से जानना चाहा।

"जहांपनाह,  सब बस आपकी ही इनायत है। सब आपसे ही सीखा है वरना यह नाचीज़ किस काम का है। हजूर, खबरिया चैनलों से, अखबारनवीसों से यह काम करवाया गया कि अवाम को ही अवाम के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। अवाम को समझा दिया गया कि अगर बादशाह किसानों की मांग मान लेंगे तो महंगाई कितनी बढ़ जाएगी। जो अवाम आपकी हुकूमत में कभी महंगाई के खिलाफ खड़ी नहीं हुई उसी अवाम को महंगाई का डर दिखा किसानों के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। बस उसे लगने लगा कि गलती बादशाह की नहीं, किसानों की ही है। और यह रोड जाम भी किसानों की वजह से ही हुआ है"। अलिफ ने जवाब दिया।

"यह तो तुमने बहुत ही अच्छी बात कही। अवाम को अवाम के खिलाफ रखो तो बादशाह को कोई खतरा नहीं होता है। एक मजहब के लोगों को दूसरे मजहब के लोगों के खिलाफ रखो, एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ रखो, एक धंधा करने वालों को दूसरा धंधा करने वालों के खिलाफ रखो। मतलब अगर हर कोई किसी दूसरे के खिलाफ हो तो बादशाह सलामत है", बादशाह ने कहा। "अवाम एक दूसरे से भी डरे और बादशाह से भी डरे तो फिर कहना ही क्या है"।

"लेकिन हजूर, कहते तो यह हैं कि डर के आगे जीत है", अलिफ ने शंका जताई।

"हां! लोग सच ही कहते हैं कि डर के आगे जीत है। लेकिन डर अवाम को है और जीत बादशाह की है", बादशाह यह कहते हुए सिंहासन से उठ गए।

बादशाह के सबसे बड़े रत्न, अलिफ समझदार थे। वे समझ चुके थे कि बादशाह अब ब्रह्म वाक्य बोल‌ चुके हैं। अब बादशाह सोने जाएंगे। बादशाह अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ गए और अलिफ अपने महल के लिए बाहर निकल‌ गए।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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