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तिरछी नज़र: परीक्षा पे चर्चा

हमारे देश में अजीब विडंबना है। जिसने जो काम खुद नहीं किया, वह उस काम का विशेषज्ञ बन बैठा है।
Pariksha Pe Charcha

बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं। कुछ राज्यों में तो शुरू भी हो गई हैं। सरकार जी बोर्ड की परीक्षा पर ढेर सारी बातें करते हैं। हर वर्ष बोर्ड की परीक्षा से पहले सरकार जी बोर्ड की परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को, कुछ फर्स्ट टाइम वोटर्स को और कुछ भविष्य के वोटर्स को, कुछ गूढ़ मंत्र अवश्य देते हैं। हर बार उनके दिए गए मंत्रों की चर्चा होती है। इस बार तो याद नहीं कि क्या मंत्र दिया पर इससे पहले एक बार दिए गए एक मंत्र की बहुत चर्चा हुई थी कि कठिन प्रश्नों को पहले हल करें। 

हमारे देश में अजीब विडंबना है। जिसने जो काम खुद नहीं किया, वह उस काम का विशेषज्ञ बन बैठा है। जिसके पास चिकित्सा शास्त्र की कोई डिग्री नहीं है वह पीलिया झाड़ रहा है। जिसके पास हड्डी रोग विज्ञान का कोई अनुभव वह गली कूचे में लोगों की हड्डियां जोड़ रहा है। अनपढ़ बाबाओं की भी हमारे यहां कमी नहीं है और जिन्होंने विवाह ही नहीं किया वे ज्यादा बच्चे पैदा करने के उपदेश दे रहे हैं। ऐसे ही जिसने कभी बोर्ड का इम्तिहान नहीं दिया, वह छात्रों को बोर्ड की परीक्षा पास करने के गुर समझा रहा है।

सरकार जी ने अपने जीवन में कम ही परीक्षाएं दी हैं। छात्र जीवन में तो बताया जाता है कि केवल सातवीं तक ही पढ़े थे, उसी कक्षा तक नियमित परीक्षाएं दीं थीं। बोर्ड की परीक्षा तो ही दी नहीं। उसके बाद यदि कुछ पढ़ा भी है, तो अनियमित ही पढ़ा है। वैसे भले ही स्वयं परीक्षा देने का कोई विशेष अनुभव नहीं हो, पर सरकार जी ने इन नौ वर्षों में परीक्षा पे चर्चा करने का लम्बा अनुभव जरूर अर्जित कर लिया है।

परीक्षा से सरकार जी दूर ही भागते रहे हैं। चुनावी परीक्षा भले ही पार करते रहे हों, पर बाकी परीक्षाओं से भागते ही रहे हैं। रट रटा कर, वैसे आज कल टेलीप्रोम्पटर के जमाने में रटने की भी जरूरत नहीं है, टेलीप्रोम्पटर पर देख कर बोलना अलग बात है और मौखिक परीक्षा अर्थात साक्षात्कार देना अलग बात। इंटरव्यू यानी साक्षात्कार नाम की परीक्षा का तो सामना तक करने से डरते हैं। साक्षात्कार दिया भी है तो कभी अपनी फकीरी पर दिया, कभी आम खाने के तरीके पर दिया तो कभी बटुआ नहीं रखने पर दिया। परन्तु असली बात, देश की बात, देश की समस्याओं पर कभी भी साक्षात्कार नहीं दिया।

वैसे असली बात यह है कि देश में अब कोई समस्या बची ही नहीं है जिस पर सरकार जी बात करें, इंटरव्यू दें। जो समस्या थोड़ी बहुत बची है वह एक तो मंदिरों की है जिन पर सरकार जी काम कर ही रहे हैं। और दूसरी समस्या अल्पसंख्यकों की है, जिसके बारे में तो सरकार जी कानून बना ही रहे हैं। बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और गिरता रुपया, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर बढ़ते हुए अपराध, कुछ भी तो ऐसा नहीं है जिस पर सरकार जी कुछ कहें, कुछ बोलें, या फिर कुछ करें। वैसे भी ये समस्याएं सरकार जी की या उनके मित्रों की तो हैं नहीं कि सरकार जी कुछ करें। ये समस्याएं तो गरीबों की हैं, दलितों की हैं, आदिवासियों की हैं, अल्पसंख्यकों की हैं, महिलाओं की हैं। उन्हें ही तंग करती हैं। अब सरकार जी इन समस्याओं के बारे में बोलें तो क्या बोलें? और क्यों बोलें? 

सच्चाई तो यह भी है कि देश का कोई गरीब, कोई महिला, कोई दलित, कोई अल्पसंख्यक, कोई आदिवासी यह कह ही नहीं सकता है कि मेरे ऊपर हमला देश पर हमला है। और न ही सरकार जी और उनकी पार्टी भी यह बोलेंगी। लेकिन एक अमीर, सिर्फ अमीर ही बोल सकता है कि उस पर हमला देश पर हमला है। अमीर ही अपने को देश बता सकता है।

लेकिन बात तो हम परीक्षा की कर रहे थे। परीक्षा पे चर्चा की कर रहे थे। संसद में भाषण देना भी एक तरह की परीक्षा ही है। संसद में भाषण चुनाव सभा में भाषण से अलग होता है। संसद में भाषण तो एक परीक्षा है, जिसमें उत्तीर्ण होने के लिए सरकार जी ने जो किया वह तो एक नया ही प्रयोग है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए एक नया प्रयोग। जो कुछ पूछा जाए, उसे ही आउट ऑफ सिलेबस बता दो। उसे पेपर से ही निकलवा दो। उसका उत्तर ही मत दो। बेकार की बातें कर समय जाया करते रहो। बेकार की कहानियां सुना उत्तर पुस्तिका भरते रहो।

अगली बार सरकार जी परीक्षा पे चर्चा में छात्रों को अपने अनुभव से ही मिली सीख ही बताएंगे। छात्रों को बताएंगे कि जरूरी नहीं है कि जो प्रश्न पूछा जाए उसका उत्तर ही दो। उत्तर नहीं पता है, या फिर पता है लेकिन देना नहीं चाहते हो तो टेंशन मत लो। कह दो, लिख दो कि यह प्रश्न तो आउट ऑफ सिलेबस है। उस प्रश्न को ही प्रश्न पत्र में से कटवा दो। बेकार की कहानियां सुनाते रहो। उत्तर पुस्तिका में बेकार की बातें ही लिख आओ। बस उत्तर पुस्तिका भर आओ चाहे फिल्मी कहानियों से ही भर आओ। जगह कम पड़े तो एक्स्ट्रा शीट मांग लो। छात्रों को अब यही सिखाया जाएगा। परीक्षा पे चर्चा में भी अब यही बताया जाएगा।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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