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तिरछी नज़र: अथ श्री महालक्ष्मी आधुनिकतम कथा

'वह तो ठीक है वत्स, पर यह क्या हो रहा है। तेरे राज में लोग भूख से तड़प रहे हैं। बच्चे दूध तक के लिए बिलख रहे हैं। यह तो ठीक नहीं है ना वत्स', देवी ने कहा।
laxmi ji
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार: हिन्दुस्तान

दीपावली आ गई है। दीपावली प्रकाश के पर्व के अतिरिक्त लक्ष्मी पूजन का भी दिन है। और किसी भी देवी-देवता की पूजा किसी कहानी के बिना तो पूरी होती ही नहीं है। तो हम आपको लक्ष्मी पूजन की नवीनतम कथा सुनाते हैं।

बात इक्कीसवीं शताब्दी के बाईसवें वर्ष की है। महाराजा सरकार जी के समय की। उस समय महंगाई बहुत बढ़ गई थी और आय कम से कम होती जा रही थी। अमीर लोग हमेशा की तरह ऐश्वर्य का जीवन जी रहे थे पर आम जनता को खाने तक के लाले पड़े हुए थे। चहूं ओर भुखमरी फैली हुई थी। उस काल के आंकड़े बताते हैं कि भुखमरी में भारत वर्ष एक ही वर्ष में एक सौ एकवें पायदान से बढ़कर एक सौ सातवें आसमान पर पहुंच गया था। सरकार जी इस उन्नति से बहुत ही ख़ुश हुए कि अभी भी पंद्रह देश उनसे पीछे ही हैं।

देश की मुद्रा, रुपए की कीमत गिरती ही जा रही थी। विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा था। व्यापार घाटा बढ़ रहा था। मतलब मंदी की पूरी संभावना थी। दूध जैसे सर्वसुलभ पेय के दाम भी वर्ष में चार चार बार बढ़ गए थे। ऐसे कठिन समय में एक रात भगवान शिव पार्वती जी के साथ आकाश में विचरण कर रहे थे। एक दूध के लिए बिलखते शिशु को देख पार्वती जी से रहा न गया। वे शिव जी से बोलीं, 'देखो तो, यह बच्चा दूध न मिलने से कितना बिलख बिलख कर रो रहा है'।

परन्तु भगवान शिव का ध्यान कहीं और ही था। वे शायद सरकार जी की केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा के दृश्यों में ही मग्न थे। पार्वती जी की बात पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। पार्वती जी ने शिव जी को फिर से टोका। अब भी ध्यान न दिये जाने पर पार्वती जी ने शिव को झकझोर कर कहा, 'जब से काशी विश्वनाथ में और अब उज्जैन में आपके भव्यतम महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ है, तब से आपका ध्यान कहीं और ही रहता है। आप तो वनवासियों के, आदिवासियों के भगवान माने जाते हैं। गरीबों के भगवान माने जाते हैं। अब आपको क्या हो गया है'। 

'हां, बताओ तुम क्या कह रही हो'। भगवान शिव ने पार्वती जी के झकझोरने पर जैसे नींद से जागते हुए कहा। तब पार्वती जी ने दूध के लिए बिलखते बच्चे की ओर शिव जी का ध्यान दिलाया।

'अच्छा देश की ऐसी स्थिति है। मुझे तो पता ही नहीं था। मैं तो सोचता था कि जब मेरे भव्य मंदिरों का निर्माण हो रहा है, उन पर इतना अधिक पैसा खर्च किया जा रहा है, तो देश की स्थिति बहुत ही अच्छी चल रही होगी। बच्चों को भूखा रख कर मंदिरों का निर्माण करवाना तो मूर्खता है, मूर्खता', शिव ने कहा। 

'तो अपने भक्त को समझाओ ना। महाराजा सरकार जी से कहो ना कि जनता को भूखा न मरने दें। मंदिर तो बाद में भी बनते रहेंगे'। पार्वती जी ने कहा।

'यह जो राजा सरकार जी है ना, भक्त वह न तो मेरा है और न ही भगवान राम का। और वह गांधी, पटेल या अंबेडकर का भक्त भी नहीं है। हम सबका भक्त तो वह बस वोटों के लिए है। असलियत में तो वह लक्ष्मी जी का भक्त है। वही उसे समझा सकती हैं'। कह कर भगवान शिव ने पार्वती जी को ओर देखा।

तब पार्वती जी ने लक्ष्मी देवी से प्रार्थना की कि वे स्वयं जाएं और महाराज सरकार जी को समझाएं कि वे राजधर्म निभाएं और जनता को भुखमरी से बचाएं। पार्वती जी के सुझाव पर देवी लक्ष्मी महाराज सरकार जी के सपनों में प्रकट हुईं। देवी ने सरकार जी से पूछा, 'भक्त, कैसा है? सोता है या जागता है'। 

महाराजा सरकार जी ने जवाब दिया, 'देवि, मैं आपकी कृपा से पूरी तरह स्वस्थ हूं। स्वस्थ जीवन के लिए भरपूर नींद लेता हूं। परन्तु प्रजा को धोखे में रखे हुए हूं कि मैं उसकी भलाई के लिए दिन रात काम करता हूं और बस दो तीन घंटे ही सोता हूं'। 

देवी ने आगे पूछा, 'तू मेरा कैसा भक्त है रे! शेष सभी का वृहद और भव्य मंदिर बनवा रहा है, ऊंची ऊंची मूर्तियां बनवा रहा है, परन्तु मेरा कहीं कोई मंदिर नहीं, कहीं कोई विशाल मूर्ति नहीं। यह कैसी भक्ति है रे तेरी'! 

सरकार जी ने उत्तर दिया, 'देवि, आप तो अंतर्यामी हैं। आप तो जानती ही हैं कि ये सब मंदिर और मूर्तियां तो लोगों को दिखाने के लिए हैं, वोट के लिए हैं। आप तो मेरे दिल में रहती हैं, दिमाग में रची बसी हैं। आपके मंदिर तो मैंने हर जिला मुख्यालय में, हर राज्य की राजधानी में और सबसे बड़ा मंदिर तो देश की राजधानी में बनवाया हुआ है'। 

यूं तो देवी सब जानती थीं परन्तु आज सरकार जी के मुंह से ही सुनना चाहती थीं। अतः बोलीं, 'पुत्र, वह कैसे। मुझे तो अपने मंदिर कहीं दिखाई नहीं देते'।

लक्ष्मी भक्त सरकार जी ने उत्तर दिया, 'देवि, आपको तो सब कुछ ज्ञात ही है। आपसे भला क्या छुपा है। परन्तु आप मेरे मुंह से ही सुनना चाहती हैं तो सुनिए। ये जो मेरी पार्टी के जो भी ऑफिस हैं ना, चाहे कहीं भी हों, जिला मुख्यालय में, राज्यों की राजधानियों में या फिर देश की राजधानी में, आपके मंदिर ही तो हैं देवी। वहां जितना लक्ष्मी का आदान-प्रदान होता है, शायद ही उतना किसी बैंक, स्टॉक एक्सचेंज या फिर कॉरपोरेट घराने में होता हो। देवि, वहां तो हम आदमियों तक को खरीद लेते हैं, विधायकों सांसदों को, किसी को भी, किसी भी कीमत में खरीद लेते हैं। देवि, आपकी कृपा से उन मंदिरों में प्रवेश करते ही सभी पापियों के पाप धुल जाते हैं। और देवि, मैं आपके अनन्य भक्तों, अडानी, अंबानी और अन्य की उन्नति में भी निरंतर लगा ही रहता हूं। देवि, फिर भी भक्त से आपकी आराधना में कोई कमी रह गई हो तो बताईए'।

'वह तो ठीक है वत्स, पर यह क्या हो रहा है। तेरे राज में लोग भूख से तड़प रहे हैं। बच्चे दूध तक के लिए बिलख रहे हैं। यह तो ठीक नहीं है ना वत्स', देवी ने कहा।

'देवि, आप तो महलों, भव्य भवनों, ऊंची अट्टालिकाओं में रहती हैं। वहां तो कोई भुखमरी नहीं है। आपसे किसी ने यह ग़लत शिकायत की है। आप उसका नाम तो बताईए। उस पर ईडी का छापा पड़वा, यूएपीए लगा, उसे जेल में न सड़ा

दिया तो मैं आपका असली भक्त नहीं'।

'तू यह छोड़, और बता, यह ठीक है या नहीं'। देवी लक्ष्मी ने कहा।

'आप कह रहीं हैं तो ठीक नहीं ही होगा माते', महाराजा सरकार जी ने उत्तर दिया। 'पर मां! वे आपके भक्त नहीं हैं। आपकी उन पर कृपा नहीं है। वे तो आपकी कृपा के पात्र भी नहीं हैं। मां, उनकी चिंता आप मत कीजिए। मैंने उन्हें समझा दिया है यह भुखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई असली मुद्दा नहीं है। असली मुद्दा है तुम्हारा धर्म और दूसरे का धर्म। पर मां, जो आपके भक्त हैं, जिन पर आपकी कृपा है, उन की सेवा में तो मैं दिन रात तत्पर रहता हूं ना। उनकी सेवा में, आपकी भक्ति में, कोई कमी रह गई हो तो बताईए मां।

देवी मुस्कुराईं। प्रसन्न हो बोलीं, 'मैं तेरी भक्ति से तो बहुत ही प्रसन्न हूं भक्त। तेरे मन में कोई शंका हो तो पूछ'। 

'देवि, मेरे मन में एक नहीं, दो शंकाएं हैं। एक तो इतने अथक परिश्रम और प्रयासों के बावजूद मैं आपके भक्त अडानी जी को विश्व में सबसे अमीर क्यों नहीं बना पा रहा हूं'? सरकार जी ने पूछा।

'तू स्वयं समझदार है भक्त। परन्तु तेरे प्रयासों में ही कहीं कमी है। तूने अभी भी पूरा देश उसे नहीं बेचा है भक्त। तू प्रयास करता रह। एक दिन अवश्य सफलता तेरे कदम चूमेगी। जब तू सारा देश उसे औने-पौने दाम बेच देगा, वह अडानी अवश्य ही दुनिया का सबसे अमीर आदमी होगा। जब तू उसके सारे ऋण माफ कर देगा, वह दुनिया का सबसे अमीर आदमी होगा। और दूसरी शंका'?

'और दूसरी शंका मां', सरकार जी ने कहा, 'मां दूसरी शंका यह है कि यह रुपया जो गिर रहा है'।

'तो तू इतनी सी बात से परेशान है। यह तो कोई परेशानी की बात नहीं है। तूने तो अपनी सारी जमा-पूंजी डॉलर में रखी हुई है ना? मेरे सारे भक्तों के, तेरे सारे मित्रों के अकाउंट तो स्विस बैंक में हैं ना? तो फिर रुपए के गिरने की इतनी चिंता क्यों'? देवी ने प्रश्न किया। 

'नहीं देवी, नहीं। मैं रुपया गिरने से तनिक भी परेशान नहीं हूं'। राजा सरकार जी ने कहा, 'मुझे कोई परवाह नहीं, रुपया कहीं तक भी गिरे। पर देवि, ये विपक्षी, ये जनता कभी पूछने लगे तो? वैसे तो मैं उनको और चीजों में उलझाए रखता हूं। पर फिर भी। कोई उत्तर, कोई बहाना तो आना चाहिए'।

देवी मुस्कुराईं, 'मैं तो तुझे बहुत बुद्धिमान समझे बैठी थी पर तू तो घना बेवकूफ है। अरे जनता को बता कि रुपया नहीं गिरा है, डॉलर उठा है। रुपया वीक नहीं हुआ है, डॉलर स्ट्रोंग हुआ है। रुपया लो नहीं, डॉलर हाई है। तेरी जनता बहुत अधिक बेवकूफ है। वह कुछ भी मान लेगी। और मैं भी अब अमरीका में ही रहती हूं। वहां का डॉलर स्ट्रोंग है ना'। यह कह कर देवी लक्ष्मी अदृश्य हो गईं।

तो भक्तगणों, यह जो निर्मला सीतारमन कह रही हैं ना, यह स्वयं देवी महालक्ष्मी द्वारा बताई गई बात है। और जो भक्त शुभ मुहूर्त में इस कथा को पढ़ेगा, बांचेगा, सुनेगा, सुनाएगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे। उसे ईडी, आईटी, सीबीआई जैसे भूत प्रेत भी नहीं सताएंगे।

अथ श्री महालक्ष्मी आधुनिकतम कथा समाप्तम् भवति।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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