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यूपी: पुलिस मौजूदगी में एक और हत्या, क़ानून-व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल!

राजधानी लखनऊ में बुधवार को पेशी पर लाए गए अपराधी संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद से प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
UP Police

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बुधवार को दिनदहाड़े कोर्ट रूम के बाहर पेशी पर लाए गए अपराधी  संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा (48) की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अदालत परिसर में हुए इस सनसनीखेज़ हत्याकांड ने प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जीवा का हमलावर वकील की ड्रेस में यानी काले रंग के कोट में आया था। हमलावर ने दोपहर 3:50 बजे अपनी पिस्टल से पुलिस की मौजूदगी में 5-6 राउंड फायरिंग की जिसमें जीवा की मौके पर ही मौत हो गई जबकि एक बच्ची व दो पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल हो गए।

मुख्तार गैंग का शूटर?

ख़बरों के मुताबिक़ जीवा, अपराध से राजनीति में आए माफिया मुख्तार अंसारी गैंग का शूटर था और बीजेपी के बड़े नेता ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या का आरोपी था। हमलावर को वहां मौजूद वकीलों ने पकड़ कर पुलिस को दिया। वकीलों द्वारा हमलावर की पिटाई भी की गई लेकिन वहां मौजूद पुलिस ने किसी तरह उसे छुड़ा लिया।

पुलिस के अनुसार हमलावर का नाम विजय उर्फ आनंद यादव (19) है। वह जौनपुर का रहने वाला है। उसका आपराधिक इतिहास भी रहा है। आजमगढ़ और जौनपुर में उस पर मुकदमे दर्ज हैं।

हत्या के कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है। लखनऊ के कैसरबाग स्थित कोर्ट परिसर के अंदर और बाहर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात है। वारदात के बाद वकीलों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की भी हुई। विरोध प्रदर्शन के दौरान वज़ीरगंज पुलिस की जीप के शीशे भी टूट गए।

क़ानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए विपक्ष हमलावर

जीवा हत्याकांड ने राजनीतिक रंग ले लिया है। प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी समेत कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी प्रदेश में बिगड़ती क़ानून-व्यवस्था को लेकर योगी सरकार पर हमलावर है।

मीडिया में जब इस घटना की ख़बर आई, उस वक़्त सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ संयुक्त प्रेसवार्ता कर रहे थे। जब उनसे इस हत्या पर प्रश्न किया गया तो वह यह कहकर टाल गए कि “अगर सपा कुछ कह देगी तो कहेंगे कि सपा ने मरवा दिया।”

“कार्यवाहक डीजीपी क्यों?”

लेकिन केजरीवाल के जाने के बाद अखिलेश ने मीडिया को दोबारा बुलाया और प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी को जमकर निशाना बनाया। पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि आखिरकार लगातार कार्यवाहक डीजीपी क्यों? क्या दिल्ली और लखनऊ में इंजन टकरा रहे हैं? बता दें कि प्रदेश में लगातार तीसरी बार कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है।

अखिलेश ने कहा, “हमें लगता है कि प्रदेश का इंजन और केंद्र के इंजन में सामंजस्य नहीं है। प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था बिगड़ चुकी है। प्रदेश में सबसे ज़्यादा महिलाएं राजधानी लखनऊ में असुरक्षित हैं।

“क्या ऐसे क़ानून चलेगा?”

सपा प्रमुख ने कहा, “रोज़ ऐसी ख़बरें मिलती हैं...क्या इन्हें लॉ एंड आर्डर की घटनाएं नहीं दिख रहीं? क्या ऐसे क़ानून चलेगा? सवाल ये है कि किस स्थान पर हत्या हो रही हैं। जो सबसे सुरक्षित जगहें मानी जाती हैं, पुलिस सुरक्षा, पुलिस हिरासत और पुलिस की मौजूदगी वहां हत्या हो रही हैं।”

सरकार के लिए चुनौती

बसपा प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ कोर्ट परिसर में हुई संजीव जीवा की हत्या के मामले में ट्वीट के ज़रिए कहा कि "लखनऊ कोर्ट परिसर में सनसनीखेज़ गोलीकांड हुआ है। खुलेआम हुई हत्या यूपी में क़ानून-व्यवस्था व अपराध नियंत्रण के मामले में सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसी घटनाओं से आम जनता में काफी दहशत है। सरकार सख्त कदम उठाए, बसपा की यही मांग है।"

"प्रदेश में जंगलराज" : कांग्रेस

कांग्रेस के संयोजक अंशू अवस्थी ने कहा कि प्रदेश में अपराध का जंगलराज है। बीजेपी की योगी सरकार क़ानून-व्यवस्था को संभाल पाने में असफल है। अवस्थी कहते हैं कि बीजेपी सरकार में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, योगी न्याय व्यवस्था को स्थापित कर पाने में बुरी तरह फेल हैं। इसलिए कांग्रेस का अनुरोध है कि देश की महामहिम राष्ट्रपति उत्तर प्रदेश में दखल दें क्योंकि उत्तर प्रदेश के लोग भय के माहौल में जी रहे हैं, न्याय परिसर भी सुरक्षित नही, सार्वजनिक स्थानों की बात छोड़िए।

मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित

वहीं, देर शाम स्पेशल डीजी प्रशांत कुमार ने कचहरी पहुंचकर मामले की जानकारी ली है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की जांच के लिए एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाई है और 7 दिन में रिपोर्ट मांगी है। इस टीम में अपर पुलिस महानिदेशक (टेक्निकल) मोहित अग्रवाल, नीलब्जा चौधरी और अयोध्या आईजी प्रवीण कुमार को शामिल किया गया है।

पुलिस मौजूदगी में बढ़ रहीं हत्याएं

उल्लेखनीय है कि फरवरी 2023 से लेकर अब तक ,पुलिस की मौजूदगी में यह चौथी हत्या है। प्रयागराज में 24 फरवरी को दिनदहाड़े पुलिस सुरक्षा में राजू पाल हत्याकांड (2005) के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या कर दी गई जिसके बाद इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी माफ़िया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में 15 अप्रैल की रात हत्या हो गई।

कैसे हुई हत्या?

जॉइंट सीपी उपेंद्र अग्रवाल ने बताया, "पुलिस संजीव जीवा को हिरासत में लेकर एससी-एसटी कोर्ट पहुंची थी जहां वह अपनी पेशी का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही वह कोर्ट रूम की तरफ़ जाने लगा, तभी पीछे से गोलियां चलने लगी और हमलावर ने जीवा को निशाना बनाते हुए फायरिंग की। गोली चलने से भगदड़ मच गई। जीवा कोर्ट में ज़मीन पर गिर गया।

हालांकि कोर्ट रूम के बाहर दीवार पर भी खून के निशान हैं और कोर्ट रूम की ज़मीन पर भी खून के धब्बे हैं। इससे लगता है कि कोर्ट रूम के ठीक बाहर जीवा को गोली मारी गई और वह खुद को बचाने के लिए कोर्ट रूम के अंदर भगा, जहां वह गिर गया। हालांकि हक़ीक़त क्या है यह तो फॉरेंसिक रिपोर्ट के बाद ही मालूम होगा। बताया जा रहा है कि पुलिस को अभी तक जीवा और हमलावर का सीधा कनेक्शन नहीं मिला है।

जीवा का इतिहास

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ साल 2005 में हुई भाजपा नेता कृष्णानंद राय की हत्या में भी जीवा का नाम सामने आया था। हालांकि इस मामले में जीवा को बरी कर दिया गया था।

ख़बरों की मानें तो मुन्ना बजरंगी के ज़रिए जीवा साल 2000 में मुख्तार अंसारी के संपर्क में आया था। तब से मुख्तार का खास शूटर बन गया था। उत्तराखंड के हरिद्वार में 2017 में कारोबारी अमित दीक्षित उर्फ गोल्डी हत्याकांड में जीवा दोषी साबित हुआ था। कोर्ट ने जीवा समेत 4 दोषियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी।

अधिवक्ताओं में भय एवं आक्रोष

उधर लखनऊ बार एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भेजकर कहा है कि 07 जून को कोर्ट परिसर में घुसकर कोर्ट के अंदर गोली मारकर हत्या जैसा जघन्य अपराध किया गया जिससे मृतक के साथ अन्य कई निर्दोष लोगों को भी गंभीर चोट आई है। इस घटना के बाद से लखनऊ जनपद के अधिवक्ताओं में भय एवं आक्रोष है।

बार एसोसिएशन की एक मीटिंग लखनऊ एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनुराग त्रिवेदी एवं महामंत्री कुलदीप नारायण मिश्र की मौजूदगी में हुई जिसमें अधिवक्ताओं ने कहा, "स्पष्ट है कि कोर्ट परिसर के अंदर भी कोई सुरक्षित नहीं है। कोर्ट परिसर में किसी भी समय किसी के साथ कोई भी अप्रिय घटना हो सकती है। न्यायालय परिसर में विगत कई वर्षों से लगातार सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने के लिए पुलिस एवं शासन के उच्चाधिकारियों से बराबर मांग की जाती रही है। इसके बावजूद भी पुलिस एवं प्रशासन द्वारा न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई है।

"मेटल डिटेक्टर सुचारू नहीं"

अधिवक्ताओं का कहना है कि कोर्ट परिसर में पूर्व में लगाए गए मेटल डिटेक्टर काफी समय से सुचारू रूप से कार्य नही कर रहे हैं, जिससे पहले भी सिविल कोर्ट परिसर के अंदर अवांछित तत्वों द्वारा हथियार लेकर प्रवेश कर अधिवक्ताओं एवं वादकारियों पर हमले किए जा चुके हैं तथा उपरोक्त घटना से यह भी प्रतीत होता है कि लखनऊ में क़ानून-व्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त हो चुकी है।

एसोसिएशन का कहना है, "जब भी कोर्ट परिसर में इस प्रकार की कोई घटना घटित होती है तो कुछ समय के लिए शासन एवं प्रशासन द्वारा न्यायालय परिसर की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी जाती है लेकिन कुछ समय बाद सुरक्षा व्यवस्था एवं सतर्कता समाप्त हो जाती है। अधिवक्ताओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर पुलिस प्रशासन पूर्णतयः मूक दर्शक बना हुआ है, इससे जनपद का अधिवक्ता अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है।"

लखनऊ बार एसोसिएशन ने कहा है "यदि 24 घंटे के अंदर पुलिस प्रशासन ने सार्थक सुरक्षा व्यवस्था के संबंध में कोई ठोस रणनीति बनाकर लखनऊ बार एसोसिएशन, के समक्ष प्रस्तुत न की तो लखनऊ के अधिवक्तागण चरणबद्ध तरीके से आंदोलन के लिए बाध्य होगें।"

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