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बनारस: बाढ़ पीड़ितों से मिलने पहुंचे योगी के ''रेड कारपेट वेलकम'' से डबल इंजन सरकार की छीछालेदर

''संकट के दौर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रेड कारपेट पर चलकर हालात का जायजा लेना बाढ़ पीड़ितों के जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है। लोगों को उम्मीद थी कि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ आपदा की स्थिति में राहत की घोषणाएं करेंगे,  लेकिन इसके उलट वो आए, बाढ़ का जायजा लिया, हाथ हिलाया और लोगों को खाली हाथ छोड़कर चले गए।"
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बाढ़ प्रभावित इलाकों का जायजा लेने पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वागत के लिए लाल कारपेट बिछाए जाने से डबल इंजन की सरकार की छीछालेदर हो रही है। साथ ही नौरकशाही भी सवालों के घेरे में आ गई है। यूपी के  मुख्यमंत्री बीते 31 अगस्त को बाढ़ पीड़ितों से मिलने पहंचे थे। बनारस के अस्सी घाट से लगायत बाढ़ पीड़ितों के राहत शिविरों में भी लाल कारपेट बिछाया गया था। मुख्यमंत्री के ''रेड कारपेट वेलकम'' पर देश भर से तीखी प्रतिक्रिया आ रही है। इस मुद्दे को लेकर काशी के प्रबुद्ध नागरिकों और विपक्षी दलों ने योगी पर निशाना साधा है।

पूर्वांचल में गंगा के उफान के चलते बनारस शहर के सभी तटवर्ती इलाके और कई गांव बाढ़ में घिर गए हैं। गंगा में उफान के चलते चंदौली, गाजीपुर और बलिया जिलों में त्राहिमाम की स्थिति है। जिन लोगों के घर बाढ़ में घिर गए हैं, वे काफी मुश्किल में हैं। बनारस शहर में बड़ी संख्या में लोग सड़कों के किनारे पालीथिन डालकर किसी तरह से जीवन-यापन कर रहे हैं। बाढ़ का जायजा लेने बुधवार को पूर्वांचल के दौरे पर आए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने पहले गाजीपुर और चंदौली का हवाई सर्वे किया। इसके बाद हालात का जायजा लेने के बाद वाराणसी पहुंचे। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के हेलीपैड पर उतरने के बाद वह एनडीआरएफ के अफसरों के रेस्क्यू बोट पर सवार होकर गंगा में बाढ़ का जायजा लेने के लिए पहुंचे। इस दौरान वह अस्सी घाट पर बनाए गए स्पेशल रैंप से गंगा किनारे तक गए थे और वहां एनडीआरएफ की रेस्क्यू बोट के जरिए आगे बढ़े थे। पानी ज्यादा होने की वजह से प्रशासनिक स्तर पर यहां एक रैंप तैयार किया गया था, जिस पर रेड कारपेट बिछाया गया था। बाढ़ पीड़ितों के कैंप में भी रेड कारपेट की व्यवस्था की गई थी।

वायरल हुआ ''रेड कारपेट वेलकम''

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ सूबे के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और कई विधायक भी मौजूद थे। बनारस में बाढ़ पीड़ितों से मिलने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाव से उतरने तो अस्सी घाट तक पहुंचाने के लिए नौकरशाही ने रेड कारपेट बिछा रखा था। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुरक्षा बलों के घेरे में लाल कारपेट से जाते दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री के वेलकम के लिए करीब 50 फीट लंबा रेड कारपेट बिछाया गया था। इस बात पर सिर्फ बनारस ही नहीं, देश भर में हंगामा बरप रहा है।

मुख्यमंत्री के लिए रेड कारपेट वेलकम पर काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ने त्वरित टिप्पणी करते हुए कहा, ''संकट के दौर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रेड कारपेट पर चलकर हालात का जायजा लेना बाढ़ पीड़ितों के जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है। लोगों को उम्मीद थी कि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ आपदा की स्थिति में राहत की घोषणाएं करेंगे,  लेकिन इसके उलट वो आए, बाढ़ का जायजा लिया, हाथ हिलाया और लोगों को खाली हाथ छोड़कर चले गए। पूर्वांचल का किसान सूखा और बाढ़ की दोहरी मार झेल रहा है। इसके बावजूद डबल इंजन की सरकार पीड़ितों की तकलीफों को कम करने की जगह सिर्फ रस्म अदायगी और अपने दौरों की नुमाइश कर रही है। सूखे के चलते खेतों में बोई गई खरीफ की हजारों एकड़ फसल ठूंठ हो गई थी। जो बची थी वो बाढ़ में बह गई। डबल इंजन की सरकार ने बाढ़ पीड़ितों को न राहत दिया और न ही किसी इलाके को सूखाग्रस्त घोषित किया।''

भाजपा सरकार की जन-कल्याणकारी नीतियों की आलोचना करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप यह भी कहते हैं, ''बाढ़ और सूखे के संकटकाल में दिखावटी दौरे पर लाखों खर्च करने की जगह योगी अगर लोगों को राहत पहुंचाते तो शायद पीड़ितों की मुश्किलें थोड़ी कम हो जातीं। हकीकत तो यह है कि यूपी सरकार पीड़ित जनता को राहत पहुंचाने पर कम और दिखावे पर ज्यादा जोर देती है। इस सरकार का चरित्र ही ऐसा है जिसका जोर नुमाइश पर ज्यादा रहता है। विश्वनाथ कारिडोर के लोकार्पण के समय पीएम नरेंद्र मोदी ने भी रेड कारपेट पर चलकर दर्शन-पूजन किया था और इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दुख-दर्द की घड़ी में रेड कारपेट पर चलकर अपने बाढ़ दौरे की नुमाइश कर रहे हैं। लगता है कि इस सरकार के एजेंडे में न गरीब हैं, न किसान हैं, न मजदूर हैं और न ही खेती-किसानी है। डबल इंजन सरकार की प्राथमिकताएं सिर्फ पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों का हित साधने के लिए हैं।''

विपक्षी दलों ने किया योगी पर वार

बाढ़ राहत के नाम पर वीआईपी कल्चर को लेकर विपक्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरने की कोशिश कर रहा है। तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी (टीआरएस) के सोशल मीडिया कन्विनर वाई. सतीश रेड्डी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के इस कदम को बाढ़ पीड़ित इलाकों में डूबी जनता के साथ मजाक करार दिया है। ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा है, " बाढ़ निरीक्षण के लिए आए योगी सीएम का रेड कारपेट पर स्वागत ! यही है डबल इंजन वाली सोच।'' इस मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी भी भाजपा सरकार पर हमलावर हो गई है। सपा के ट्वीटर हैंडल पर लिखा गया है, ''रेड कार्पेट प्लेटफार्म बनवाकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का सीएम योगी निरीक्षण कर रहे हैं। ये बाढ़ प्रभावितों से मिलने और उन्हें राहत देने जा रहे हैं या फोटोबाजी और पर्यटन का प्रदर्शन किया जा रहा। यह बाढ़ प्रभावितों का मजाक है।''

एनएसयूआई की बीएचयू इकाई के अध्यक्ष राणा ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो को लेकर भाजपा सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है, ''बाढ़ प्रभावित इलाकों के निरीक्षण के लिए भी जब आपको मखमली रेड करपेट की जरूरत है। यह बाढ़ पीड़ितों के साथ मजाक है। बाढ़ पीड़ित हजारों लोग किसी तरह जिंदा रहने की जद्दोजहद कर रहे हैं।''

बाढ़ पीड़ितों का दुखड़ा सुनने आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रेड कारपेट वेलकम पर प्रशासन ने प्रवक्ता ने सफाई दी है। कहा है,  "अस्सी घाट के जिस इलाके में रेड कारपेट बिछाई गई थी, वहां पानी इतना कम था कि बोट नहीं आ सकती थी। लिहाजा, मुख्यमंत्री को थोड़ा आगे यानी कि जहां से पानी ज्यादा था, वहां से बोट में सवार होना पड़ा। एहतियातन, यह कदम उठाया गया था।" बाढ़ राहत शिविरों में रेड कारपेट बिछाए जाने पर प्रशासन की ओर से कोई सफाई पेश नहीं की गई है।

पहले इस कल्चर के विरोधी थे योगी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले रेड कारपेट कल्चर के सख्त विरोधी रहे हैं। 13 जुलाई 2017 को गोरखपुर में एक शहीद के घर जाने पर योगी के लिए रेड कारपेट, एसी और सोफे जैसे इंतजाम किये गए। उस समय उन्होंने कड़ी नाराजगी जताई थी और फिजूलखर्ची पर अफसरों के पेच कसे थे। उस समय मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल ने बाकायदा अफसरों को लिखित निर्देश जारी किया था और कहा था, ''भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति होगी तो अफसरों पर कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री की ओर से जारी निर्देश में यह भी कहा गया था कि अब इस तरह के इंतजाम करने के वाले अफसरों को कतई बख्शा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री के कहीं भी जाने पर सादगीपूर्ण व्यवस्था ही होनी चाहिए।''

मजदूर किसान मंच के राज्य कार्य समिति के सदस्य अजय राय कहते हैं, ''पहले सिनेमा की दुनिया में सेलिब्रिटीज रेड कार्पेट पर चला करते थे और शोज में एंट्री लेते थे। इससे पहले राजाओं और राजशाही परिवारों के लिए रेड कारपेट बिछाने का रिवाज रहा है। अब के सामंतों और नेताओं के लिए रेड कारपेट वेलकम किया जाने लगा है। बनारस में रेड कारपेट बिछाने का चलन तब से बढ़ा है जब  13 दिसंबर 2021 को पीएम नरेंद्र मोदी काशी विश्वनाथ कारिडोर का उद्घाटन करने आए थे। उस समय गंगा घाट से लगायत काशी विश्वनाथ मंदिर तक उनके वेलकम के लिए लाल कारपेट बिछाया गया था। साथ ही उनके दर्शन-पूजन के सीन को एक बड़े इवेंट की तरह फिल्माया गया था। तभी से यहां हर मौके पर लाल कारपेट बिछाया जाने लगा है, चाहे बाढ़ हो, सूखा हो या फिर कोई इवेंट।''

सुर्खियां बटोरने के लिए कुछ भी संभव

भगत सिंह यूथ फ्रंट के अध्यक्ष हरीश मिश्र कहते हैं कि बाढ़ राहत के लिए सीएम का दौरा सिर्फ दिखावा था। बनारस में बाढ़ पीड़ितों की हालत बेहद चिंताजनक है। उन्हें न तो भोजन मयस्सर हो रहा है और न ही दवाएं। ''न्यूजक्लिक'' से बातचीत में उन्होंने कहा, ''बाढ़ पीड़ितों के बीच मुख्यमंत्री का स्वागत लाल कारपेट पर किया जाना शाही और सामंती परंपरा का द्योतक है। साल 1821 में अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मनरो, जब कैलिफ़ोर्निया के जॉर्जटाउन शहर पहुंचे थे, तो उनके स्वागत में रेड कारपेट बिछाया गया था। साल 1970 में भी ऐसा ही एक रेड कारपेट क़िस्सा हुआ। ब्रितानी अभिनेत्री एलिज़ाबेथ टेलर, बेहद ग्लैमरस, भड़काऊ ड्रेस और हीरे का जड़ाऊ हार पहनकर रेड कारपेट पर चलीं, तो अवॉर्ड समारोह की सारी चर्चा टेलर तक सिमट गई।''

''साल 1997 में अभिनेत्री निकोल ने डायोर की डिज़ाइनर ड्रेस में रेड कारपेट पर चहलक़दमी करके इस चलन को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। तभी से बड़े राजनीतिक समारोहों और नेताओं के स्वागत के लिए रेड कारपेट बिछाने का चलन शुरू हुआ। लेकिन अचरज की बात यह है कि बाढ़ पीड़ितों का दुखड़ा सुनने आए किसी भी मुख्यमंत्री के लिए लाल कारपेट बिछाए जाने की घटना पहली और अनूठी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि डबल इंजन की सरकार का बाढ़ पीड़ितों और किसानों के प्रति रुख कैसा है? सुर्ख़ गलीचे पर सु्र्ख़ियां बटोरने के लिए नेता-अभिनेता कुछ भी कर सकते हैं।''

(विजय विनीत वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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