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पश्चिम एशिया में अमेरिकी कूटनीति को मिली गति 

तेहरान को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने हालात को पहले से ही समझ लिया था, क्योंकि वाशिंगटन और तेल अवीव के बीच शुरुआती मतभेद उभरने लगे थे।
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13 अप्रैल, 2024 को ईरान द्वारा इज़राइल की ओर ड्रोन और लॉन्च की गई मिसाइलें यरूशलेम के ऊपर आकाश को रोशन कर रही थीं।

छह महीने पहले इज़राइल के गज़ा युद्ध के बढ़ने के साथ, भू-राजनीति की निचली, नरम दलदली भूमि के दलदल में एक कहानी पनपी कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक दलदल में फंस गया है जो यूरेशिया में उसे पीछे हटने पर मजबूर कर देगा और बाइडेन प्रशासन की रणनीति को एशिया-प्रशांत में गंभीर रूप से कमजोर कर देगा।

अमेरिकी विदेश नीति रणनीतियों के मामले में पिछले अनुभव से पैदा हुए उनके संदेह को देखते हुए, मॉस्को और बीजिंग ने किस हद तक उस नेरेटिव को माना है, यह बहस का मुदा है। जो भी हो, अब जो उभर कर सामने आया है वह यह है कि नाटो का पूर्व की ओर विस्तार, पश्चिम एशिया में पश्चिमी आधिपत्य का अंत और चीन के खिलाफ अमेरिका की रोकथाम की रणनीति एक दूसरे से संबंधित हैं। बाइडेन प्रशासन की चुनौती अब एक नई उभरी स्थिति को अपनाने की है।

बेशक, हालात में चीज़ें परिवर्तनशील हैं - मुख्य रूप से, अमेरिकी हस्तक्षेप के भविष्य के बारे में अनिश्चितताएं हैं। अमेरिका के भीतर, दुनिया में देश की भूमिका और सहयोगियों के साथ उसके संबंधों के बारे में मौलिक रूप से भिन्न दृष्टिकोण हैं। विदेश में, अमेरिकी अलगाववाद और विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं हैं, भले ही नवंबर में चुनाव कोई भी उम्मीदवार जीते। 

अकेले पिछले सप्ताह में ही, हालाँकि पश्चिम एशिया में तनाव खतरनाक रूप से बढ़ रहा था, लेकिन इसने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की वास्तव में ऐतिहासिक राजकीय यात्रा की मेजबानी करने से नहीं रोका। जैसा कि अनुमान था, सबटेक्स्ट ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव था। अमेरिका और जापान ने 70 से अधिक रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए और सम्झौता पत्र को ऑकस (AUKUS) और फाइव आइज़ में शामिल करने के बारे में बहुत चर्चा है। बाइडेन और किशिदा ने फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर के साथ पहली बार त्रिपक्षीय नेताओं के शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लिया, जहां चीन पर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया था। 

फिर से, वाशिंगटन ने रूसी मूल के एल्यूमीनियम, तांबे और निकल के आयात के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा की और वैश्विक एक्सचेंजों पर इन धातुओं के व्यापार पर नकेल कसने के लिए यूके के साथ समन्वय किया, ताकि "उस राजस्व को लक्षित किया जा सके जो रूस कमा सकता है" जिसका कमाई का इस्तेमाल रूस यूक्रेन में सैन्य अभियान में कर सकता है। 

दरअसल, 3-4 अप्रैल को ब्रुसेल्स में गठबंधन की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर नाटो के विदेश मंत्रियों की बैठक के एजेंडे में इस बात पर चर्चा शामिल थी कि "कैसे नाटो एक मजबूत रूपरेखा बनाने में यूक्रेन के लिए सैन्य उपकरणों और प्रशिक्षण के समन्वय के लिए अधिक जिम्मेदारी ले सकता है।" यह यूरेशिया से अमेरिकी पीछे हटाने जैसा नहीं दिखता है।

वास्तव में, नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने रेखांकित किया कि "यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाएगा। सवाल यह उठता है कि कब, अगर अब नहीं।'' उन्होंने ताइवान पर बढ़ते तनाव के साथ यूक्रेन युद्ध को भी जोड़ा। उनके शब्दों में, “एशिया में रूस के मित्र उसके आक्रामक युद्ध को जारी रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। चीन, रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है। बदले में, मास्को अपना भविष्य बीजिंग को गिरवी रख रहा है।” स्टोल्टेनबर्ग यहां अमेरिका के दृष्टिकोण को स्पष्ट कर रहे थे।

बाइडेन ने 2 अप्रैल को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान वाशिंगटन की "रूस के रक्षा औद्योगिक आधार के लिए पीआरसी के समर्थन और यूरोपीय और ट्रान्साटलांटिक सुरक्षा पर इसके प्रभाव पर चिंताएं" जताईं!

स्पष्ट है कि, हालाँकि अमेरिका और नाटो यूरोप में रूस के साथ औद्योगिक युद्ध छेड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अमेरिका पीछे हट रहा है। जुलाई में नाटो के आगामी वाशिंगटन शिखर सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध और रूस और चीन की दोहरी रोकथाम का मुद्दा निश्चित रूप से हावी रहेगा।

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, नाटो देशों - फ्रांस, ब्रिटेन और पोलैंड - के बीच पहले से ही कुछ चर्चा चल रही है कि यदि रूसी आक्रमण नीपर तक पहुंचता है और यूक्रेनी सेना थक कर गिर जाती है, तो उन्हें सामने आकार इसका मुक़ाबला करना होगा। 

बाइडेन ने अप्रैल में कांग्रेस को संबोधित किया था जिसमें कार्यकारी आदेश 14024 (दिनांक 15 अप्रैल, 2021) में "रूसी संघ की सरकार की निर्दिष्ट हानिकारक विदेशी गतिविधियों के संबंध में घोषित राष्ट्रीय आपातकाल के एक और वर्ष के विस्तार की सिफारिश की गई थी।" अमेरिका के आकलन के अनुसार, यूक्रेन में युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और रूस के लिए पूरे देश पर नियंत्रण हासिल करना एक लंबी चुनौती होगी।

इतना कहना काफी होगा कि पश्चिम एशियाई संकट एक "अकेली" घटना के अलावा और कुछ नहीं है। इसमें कोई गलती न हो कि चार पश्चिम एशियाई देशों की ब्रिक्स सदस्यता, जो अमेरिका के सहयोगी थे, पेट्रोडॉलर के ग्रहण का प्रतीक है। यह निर्णय "डी-डॉलराइजेशन" और अमेरिकी आधिपत्य को वापस लेने की रूसी परियोजना से मेल खाता है।

ब्रिक्स में शामिल होने वाले चार क्षेत्रीय देशों में से एक ईरान है, जो "डी-डॉलराइजेशन" का प्रबल समर्थक है, जिसके साथ बाइडेन प्रशासन पश्चिम एशियाई स्थिति पर संपर्क रखता है। इज़राइल के दमिश्क हमले के बाद नवीनतम घटनाक्रम के कारण किसी भी गलतफहमी से बचने के उद्देश्य से संपर्कों में तीव्रता आई है।

ये संपर्क हाल ही में गुणात्मक रूप से नए स्तर पर पहुंच गए हैं। अब कुछ हद तक समन्वय संभव है, जैसा कि शनिवार रात को इज़राइल पर ईरान के कैलिब्रेटेड ड्रोन और मिसाइल हमलों से पता चलता है।

ईरानी समाचार एजेंसी आईआरएनए की एक टिप्पणी में ईरान के प्रतिशोध के सात "आयाम" बताए गए हैं। अब, निस्संदेह अमेरिका का इज़राइल पर मध्यम प्रभाव है। डीसी की रिपोर्टों के अनुसार, बाइडेन ने लाल रेखा खींच दी है कि अमेरिका शनिवार रात ईरान के अभूतपूर्व प्रत्यक्ष हमले के खिलाफ भविष्य में किसी भी इजराइली जवाबी कार्रवाई में भाग लेने से इनकार करता है।

क्षेत्र में सत्ता की गतिशीलता में इतना नाटकीय बदलाव अब तक अकल्पनीय था। आईआरएनए ने कहा कि यह "ज़ायोनी शासन के मुख्य समर्थक द्वारा इस मामले की समझ" का संकेत देता है। अब बड़ा सवाल यह है कि यह सब क्या गुल खिलाएगा।

निश्चित रूप से, अमेरिकी कूटनीति गति पकड़ रही है और फ़िलिस्तीन समस्या से संबंधित डाउनस्ट्रीम घटनाओं पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पिछले छह महीने के दौरान, वाशिंगटन की अपने पारंपरिक सहयोगी - कतर, सऊदी अरब, मिस्र और विशेष रूप से फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण - के साथ नेटवर्किंग तेज हो गई है।

जैसे-जैसे यह गज़ा को युद्ध और रक्तपात की अंधेरी सुरंग से बाहर निकालने के लिए व्यावहारिक सहयोग के रूप में तेजी से परिपक्व हो रहा है, यह शांतिदूत के रूप में अमेरिका की पूरी की पूरी रणनीति को गंभीरता मोड़ देगा और यहां तक कि इसे पहले से हासिल नेतृत्व की भूमिका को एक नए रूप में फिर से हासिल करने में सक्षम करेगा।

अमेरिका-ईरान संपर्कों का भविष्य अभी भी देखा जाना बाकी है। क्या नवजात हलचलें अचानक मर जाएंगी? या, क्या इससे आपसी विश्वास का एक महत्वपूर्ण मोड शुरू होगा ताकि गहरे संकटग्रस्त संबंध कामकाजी रिश्ते में बदल जाएं? हाल के समय में अमेरिका-ईरान की आपसी कोरी बयानबाजी काफी कम हो गई है।

तेहरान को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने हालात को पहले ही समझ लिया था, क्योंकि वाशिंगटन और तेल अवीव के बीच शुरुआती मतभेद उभरने लगे थे। तेहरान को इस बात का सही अंदाज़ा था कि ये मतभेद कलह में बदल सकते हैं।

इस बीच, अमेरिका यह समझने के मामले में काफी यथार्थवादी है कि ईरान के खिलाफ रोकथाम की रणनीति की उपयोगिता समाप्त हो गई है और जब क्षेत्रीय देश सुलह को प्राथमिकता दे रहे हैं तो इसे आगे बढ़ाना निरर्थक हो जाता है।

वास्तव में, ईरान बहुत अधिक रणनीतिक गहराई में शामिल है और उसने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत किया है - रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और सऊदी अरब के साथ मेलजोल के कारण ऐसा हुआ है। इजराइल के खिलाफ ईरान के सीधे मिसाइल हमले का गहरा अर्थ किसी से भी नहीं पूछा जा सकता।

आईआरएनए टिप्पणी कहती है: “ईरानी हमला इस्लामिक गणराज्य और नकली ज़ायोनी शासन के बीच पहला सीधा टकराव था। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। कब्जे वाले इलाकों के अंदर प्रभावी हमले 1967 से इस्लामी देशों का एक अधूरा सपना रहा है, जो अब इलाके में प्रतिरोध के प्रयासों के कारण सच हो गया है। पहली बार, ईरानी विमानों ने इस पवित्र स्थल के आसमान में अल-अक्सा मस्जिद के दुश्मनों पर हमला किया है।

अमेरिका जानता है कि ईरान एक सख्त वार्ताकार है जो अपने हितों से समझौता नहीं करेगा। वाशिंगटन रूसी-ईरानी संबंधों के मद्देनजर उस बात की खोज करेगा, जिसमें प्रतिबंधों के तहत मॉस्को को अलग-थलग करने की आकर्षक संभावनाएं मौजूद हैं।

ईरान यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के मामले में रूस की जगह एक आदर्श ऊर्जा का भागीदार बन गया है। इतना कहना काफी है, संभावना यह है कि यूक्रेन युद्ध और इज़राइल-अरब संघर्ष में अंतिम खेल, क्योंकि वे समानांतर ट्रैक पर चल रहे हैं, आगे चलकर तालमेल पैदा कर सकते हैं।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

 

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