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उत्तराखंड: गढ़वाल मंडल विकास निगम को राज्य सरकार से मदद की आस

“गढ़वाल मंडल विकास निगम का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड राज्य में पर्यटन की सम्भावनाएँ तलाशना, रोजगार के अवसर तलाशना और पलायन को रोकना है ना कि मुनाफा कमाना”
Uttrakhand
औली में गढ़वाल मंडल विकास निगम का बंगला (फोटो-जीएमवीएन)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ आगमन हो या राष्ट्रपति का उत्तराखंड आगमन इस प्रकार के सभी वीआईपी की आवभगत की जिम्मेदारी गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN) और कुमाऊँ मंडल विकास निगम (KMVN) को ही दी जाती है, इस जिम्मेदारी को जीएमवीएन और केएमवीएन के द्वारा भली भांति निभाया भी जाता है लेकिन जब 2013 में आयी केदारनाथ आपदा के कारण जीएमवीएन को होने वाले नुकसान की बात आती है तो सरकार की ओर से किसी प्रकार की सहायता जीएमवीएन और केएमवीएन को नहीं दी जाती है। 

जीएमवीएन का अनुमान है कि निगम को इस आपदा के कारण 68 करोड़ का नुकसान हुआ, इसके अतिरिक्त उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही जीएमवीएन के लगभग 60 कर्मचारी राज्य सचिवालय, विधानसभा और मुख्यमंत्री आवास के लिये कार्य करते हैं लेकिन इन कर्मचारियों का वेतन भी जीएमवीएन के द्वारा दिया जाता रहा है। हाल ही में कोरोना महामारी के कारण लगने वाले लॉकडाउन में जीएमवीएन के इन बंगलो को एक अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल किया गया और अब सरकार चाहती है कि जीएमवीएन और केएमवीएन सरकार को मुनाफा कमाकर दे। अपने इसी उद्देश्य के लिए प्रशासन द्वारा पिछले कुछ वर्षो से कोशिश रही है कि सरकार के इस उपक्रम में निजी कंपनियां भी भागीदारी कर पाये, इसी को देखते हुए प्रशासन के द्वारा 7 पर्यटक विश्राम गृह और एक पर्यटक सूचना केंद्र को सरकारी निजी कंपनी भागीदारी(PPP) के लिए नोटिस जारी कर दिया है। इसके अतिरिक्त होटल ली रॉय फ्लोटिंग हट और ईको रूम को पहले ही पीपीपी मोड़ पर दे दिया गया है। जीएमवीएन और केएमवीएन के कर्मचारी इसी प्रकार की तमाम समस्याओ से जूझ रहे हैं। अपनी इन्ही समस्याओं से अवगत कराने के लिए संयुक्त कर्मचारी महासंघ के बैनर तले कई बार सरकार को ज्ञापन सौंपे गये। लेकिन सरकार की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया ना आते देख 23 नवंबर 2021 को देहरादून स्थित गढ़वाल विकास निगम के मुख्यालय पर धरना भी दिया गया। हालाँकि राज्य के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा माँगों पर जल्द ही कार्यवाही किये जाने के आश्वासन पर धरना समाप्त कर दिया गया लेकिन अभी तक सरकार की ओर से संयुक्त कर्मचारी महासंघ की मांगो को लेकर कोई आदेश अभी तक जारी नहीं हुआ है।

संयुक्त कर्मचारी महासंघ की मुख्य माँगें:

  1. निगम में पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से कार्यरत संविदा कर्मियों को स्थाई नियुक्ति दी जाए।

  2. निगम के तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों को राज्य कर्मचारियों की भांति 2400 ग्रेड पेय दिया जाये।

  3. निगम को 100 करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाये ताकि निगम की आर्थिक स्थति में सुधार हो सके।

  4. 31 मार्च 2021 को निगम के स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री के द्वारा जो 2 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गयी थी उसको तुरंत निगम को दिया जाये।

  5. निगम के कर्मचारी जो राज्य गठन के समय से दूसरे सरकारी विभागों में कार्यरत हैं जिनका खर्चा अभी तक निगम के द्वारा वहन किया जाता रहा है, तुरंत इसकी पूर्ति की जाए।

देहरादून में गढ़वाल मंडल विकास निगम मुख्यालय पर धरना देते संयुक्त कर्मचारी महासंघ के लोग (फोटो -सत्यम कुमार)

गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल विकास निगम

देव भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं, यहाँ गर्मियों के मौसम में चार धाम यात्रा (केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री), कावड़ यात्रा (हरिद्वार और ऋषिकेश) के लिए यात्री आते हैं तो सर्दियों के मौसम में ओली, चोपता और चकरोता जैसे बर्फ से ढके पहाड़ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राज्य में अधिकांश हिस्सा पहाड़ी होने के कारण यहाँ पर खेती करना भी बहुत कठिन कार्य है। इसी कारण उत्तराखंड के अधिकतर निवासी रोजगार के लिए पर्यटन पर ही निर्भर रहते हैं इसी कारण उत्तराखंड में यात्रा और पर्यटन को और अधिक लोकप्रिय और आकर्षक बनाने, देश विदेश में उत्तराखंड राज्य के पर्यटक स्थलों का प्रचार करने और अतिथि देवो भव: को ध्यान में रखते हुए 31 मार्च 1976 को गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल विकास निगम की स्थापना की गयी। जीएमवीएन की बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार आज के समय में निगम के पास 90 बंगले और 1200 कर्मचारी हैं। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार, पर्यटन में निवेश किया गया प्रत्येक एक करोड़ विनिर्माण क्षेत्र से 126 नौकरियों की तुलना में 475 नौकरियां पैदा करता है, जो इस क्षेत्र की क्षमता को साबित करता है। पहाड़ी क्षेत्र से लगातार काम की तलाश में लोग मैदानी इलाको की ओर पलायन करते हैं, इस पलायन को रोकना और पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाले उत्पाद जैसे माल्टा, बुरांश सेब आदि की पैदावार के लिए स्थानीय लोगों को उत्साहित करना भी गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल निगम का एक उद्देश्य रहा है।

निगम के बंगलो को पीपीपी मोड़ पर देने के बजाय सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे कि पर्यटकों की पहुंच उन बंगलो तक भी हो सके जहां पर अभी कम पर्यटक पहुंच पाते हैं। क्योकि यदि एक गैरसरकारी व्यक्ति इन बंगलो को किराये पर लेने के बाद मुनाफा कमा सकता है तो फिर सभी जरुरी सामान होने के बाद भी सरकारी तंत्र क्यों घाटे में जाता है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविधालय के टूरिज्म डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफसर के पद पर कार्यरत डॉ. राकेश ढोड़ी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में असीम सम्भावनाये हैं, गढ़वाल मंडल में केवल यात्रा के समय ही पर्यटक नहीं आते बल्कि गढ़वाल मंडल के पहाड़ो मे इतनी क्षमताएँ हैं कि वह सालभर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती रहे। लेकिन इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह इन स्थानों को विकसित करे जैसे कि निगम के पास अपनी बसे हैं यदि वह यात्रियों को ऋषिकेश के रास्ते केदारनाथ लाती है तो वापसी में कोटद्वार के रास्ते का इस्तेमाल करे, जिससे कि उन जगहों को भी विकसित किया जा सके जो अभी पर्यटकों की जानकारी में नहीं हैं, ऐसा करने से राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में और विस्तार होगा और ऐसे इलाको तक भी रोजगार पहुंच पायेगा जहां पर अभी पर्यटकों की आवाजाही कम है और यदि सरकार कुछ बंगलो को किराये पर देना भी चाहती है तो सुनिश्चित करें कि इन बंगलो को केवल स्थानीय लोग ही किराये पर ले सकें। डॉ. राकेश ढोड़ी सरकार को अपनी राय बताते हुए कहते हैं कि पर्यटन के क्षेत्र में कोई नीति बनाते समय राज्य स्थित शोध केंद्रों की सिफारिशों को ध्यान में रखें ताकि राज्य में पर्यटन को और भी बेहतर बनाया जा सके।

कर्मचारी संगठन गढ़वाल मंडल विकास निगम उत्तराखंड के महामंत्री और निगम में कार्यरत आशीष उन्याल बताते हैं कि यात्रा के समय पर्यटकों की कोई समस्या नहीं होती है लेकिन ऑफ सीज़न में पर्यटकों की कमी के कारण निगम को प्राइवेट होटलों की अपेक्षा कम पर्यटक मिल पाते हैं। क्योंकि ऑफ सीज़न में प्राइवेट होटल अपना किराया बहुत ही कम कर देते हैं जबकि निगम एक निश्चित सीमा तक ही किराया कम कर सकता है। वर्तमान में गढ़वाल मंडल विकास निगम और कुमाऊँ मंडल निगम अलग अलग कार्य करते हैं। जबकि सरकार को इन दोनों निगमों को एक ही कर देना चाहिए क्योंकि गढ़वाल मंडल में अधिकांश धार्मिक स्थल हैं और कुमाऊँ मंडल में पिकनिक स्पॉट अधिक होने के कारण वहां सालभर पर्यटक आते रहते हैं। यदि इन दोनों निगमों को एक कर पर्यटन विभाग में शामिल कर दिया जाये तो इन निगमों की समस्या का समाधान काफी हद तक हो सकता है। आशीष उन्याल आगे बताते हैं कि निगम की समस्याओं को लेकर हमारे द्वारा निगम के उच्च अधिकारियों को काफी समय से बताया जा रहा था लेकिन कोई समाधान प्रशासन की ओर से नहीं किया जा रहा था। हालाँकि 25 नवम्बर के धरने के बाद हमारी मांगो पर कार्य किया जा रहा है। हमारी सरकार से उम्मीद है कि वह जल्द से जल्द हमारी मांगो को पूर्ण करे।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी उत्तराखंड के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि राज्य के गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल में पलायन पहले से ही बड़ी समस्या रही है, जनता को उम्मीद थी कि नया राज्य बनने के बाद इस समस्या का समाधान होगा लेकिन पलायन की समस्या आज ओर बढ़ गई है, राज्य में पलायन का बड़ा कारण रोजगार है, उत्तराखंड गठन के बाद राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में पूंजीवादी ताकतों का दबदबा लगातार बढ़ा है। हम देखते हैं सरकार ने चारधाम यात्रा के लिए हेलीकाप्टर सेवा शुरू की पर्यटकों के लिए, पूंजीपतियों के द्वारा बड़े-बड़े होटल इन क्षेत्रो मे बने लेकिन सवाल यह है कि क्या सच में स्थानीय लोगो को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मिल पाया? नहीं।

आज सरकार की नीति है कि सरकार के अधीन सभी उपक्रमों को प्राइवेट हाथो में दे दे। गढ़वाल मंडल विकास निगम के साथ भी सरकार की यही नीति है, आज उत्तराखंड सरकार जीएमवीन के इन 7 बंगलो को प्राइवेट हाथो में देने की बात कर रही। लेकिन यह केवल स्थानीय लोगो को मिले ऐसा तय नहीं है और वर्तमान में इन बंगलों में जो कर्मचारी कार्यरत हैं, बंगलों को प्राइवेट हाथो में दिए जाने के बाद इन कर्मचारियों का क्या होगा, सीधी बात है जो मालिक होगा वह अपने अनुसार कर्मचारी नियुक्त करेगा। राजेंद्र सिंह नेगी आगे कहते हैं कि सरकारी उपक्रम का कार्य केवल मुनाफा कमाना नहीं होता बल्कि सार्वजानिक कल्याण भी होता है गढ़वाल मंडल विकास निगम का कार्य भी उत्तराखंड पर्यटन, उत्पाद संस्कृति अदि को देश विदेश में विख्यात करना है। इसलिए समय समय पर सरकार के द्वारा जीएनवीएन के बंगलों को पीपीपी मोड पर देने के स्थान पर जीएनवीएन को 2013 की आपदा में हुए करोड़ों के नुकसान की भरपाई करने के लिए अनुदान देना चाहिए।

इस मामले पर सरकार का पक्ष जानने के लिए हमारे द्वारा प्रबंध संचालक स्वाति भदौरिया को फ़ोन से संपर्क करने की कोशिश की गयी लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया। इसके लिए हमारे द्वारा सम्बंधित विभाग को मेल कर दिया गया है। किसी भी प्रकार की जानकारी मिलने पर आप को अवगत करा दिया जायेगा।

(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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