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उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

“किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।
kedarnath
6 मई को केदारनाथ के कपाट खुलने के अवसर पर मुख्यमंत्री धामी समेत 20 हजार से अधिक श्रद्धालु रहे मौजूद

तापमान बढ़ने के साथ ही देशभर के पर्यटक ठंडी और ख़ूबसूरत वादियों का लुत्फ लेने उत्तराखंड में उमड़े हुए हैं। मसूरी, कैंपटीफॉल, धनौल्टी, टिहरी, चंबा समेत सभी पर्यटन स्थल पर्यटकों से भरे हुए हैं। इन पर्यटन स्थलों की सड़कों पर 5-5 किलोमीटर से भी लंबा ट्रैफिक जाम लग रहा है। जिसे खुलवाने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। होटल, गेस्ट हाउस, होम स्टे सभी फुल हो गए हैं। जल संकट बढ़ गया है। स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। कचरे का निस्तारण भी एक बड़ी समस्या है। 

मसूरी और आसपास एक समय में एक साथ तकरीबन 25 हजार लोगों के ठहरने की व्यवस्था है। जबकि पर्यटकों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। 

चार धामों की स्थिति इससे भी ज्यादा गंभीर है। केदारनाथ में 6 मई से 15 मई  तक 1,81,120 यात्रियों ने दर्शन किए। बदरीनाथ में 8 मई से 15 मई शाम तक 1,36,972 यात्री आ चुके हैं। दोनों धामों में 15 मई की शाम तक कुल 3,18,092 तीर्थ यात्री।  

शुरुआती हफ्ते की बेतहाशा भीड़ के बाद चारों धाम- केदारनाथ में 13,000, बदरीनाथ में 16,000, गंगोत्री में 8,000 और यमुनोत्री में 5,000 संख्या निर्धारित की गई है। हालांकि तय संख्या से अधिक श्रद्धालु धाम पहुंच रहे हैं।  

बद्रीनाथ में दर्शन के लिए लग रही है 5 किलोमीटर लंबी कतार

बद्रीनाथ में बंपर पर्यटक!

बद्रीनाथ यात्रा को लेकर जोशीमठ से सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती बताते हैं- “अप्रैल में ही बद्रीनाथ धाम के आसपास के सभी होटल, गेस्ट हाउस और सामान्य छोटे होटल बुक हो गए थे। हमें अंदाजा हो गया था कि इस बार बंपर पर्यटक यहां पहुंचने वाले हैं। यात्रा शुरू होने से पहले इसकी व्यवस्था और यातायात को लेकर प्रशासन के साथ सामाजिक संगठनों की भी 2-3 बैठकें हुईं। ताकि यात्रियों के पहुंचने पर जाम की स्थिति न बने। लेकिन पर्यटकों की संख्या के लिहाज से कोई तैयारी दिखाई नहीं दे रही”।

पर्यटकों को बदरीनाथ में घंटों ट्रैफिक जाम से जूझना पड़ रहा है। अतुल बताते हैं “जोशीमठ से हेलंग के बीच में यात्री 2-2 घंटे ट्रैफिक जाम में फंस रहे हैं। कर्णप्रयाग समेत कई संकरी जगहों पर ट्रैफिक आधा-आधा घंटा रुककर आगे बढ़ रहा है। यात्री ऐसी जगह फंसते हैं जहां चाय-पानी तक नहीं मिलता”।  

बद्रीनाथ को आधुनिक बनाने के लिए मास्टरप्लान के तहत निर्माण कार्य भी चल रहा है। जिसमें पंडे-पुजारियों के रहने के घर तोड़ दिए गए हैं। पानी की बरसों पुरानी पाइप लाइनें तोड़ दी गई हैं। अतुल कहते हैं “ये मुश्किल तक शासन ने खुद खड़ी की है। बद्रीनाथ मंदिर समिति की धर्मशालाएं पंडे-पुजारियों के लिए अधिग्रहित कर ली गई हैं। जिसमें एक साथ 500 से ज्यादा तीर्थ यात्री ठहर सकते थे। यात्रा से ठीक पहले पेयजल लाइनों के टूटने से पानी की भारी किल्लत हो रही है। होटलवाले तक परेशान हैं कि यात्रियों को पानी कैसे दें। अलकनंदा जैसी नदी के उदगम में यात्री पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे हैं”।

मुख्य सचिव एसएस संधू ने खुद बद्रीनाथ-केदारनाथ की तैयारियों का निरीक्षण किया था। इसके बावजूद दोनों धाम में हालात बेहद अस्तव्यस्त हैं।

14 मई तक चार धाम यात्रा में 31 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है। राज्य की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ शैलजा भट्ट के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तीसरी सबसे बड़ी चुनौती है। चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग में ह्रदयरोग विशेषज्ञ नहीं हैं जबकि हार्ट अटैक से मौतें हो रही हैं। इससे निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने यात्रा के प्रवेश और रजिस्ट्रेशन स्थल पर यात्रियों की स्वास्थ्य जांच भी शुरू की।

केदारनाथ में मंदाकिनी नदी किनारे बनाया गया पार्किंग स्थल, तस्वीर सोशल मीडिया से साभार 

उत्तरकाशी में गाड़ियां खड़ी करने की जगह नहीं!

गंगोत्री क्षेत्र के स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता माधवेंद्र सिंह रावत बताते हैं “यात्रा में बहुत ज्यादा अव्यवस्थाएं हैं। उत्तरकाशी में पार्किंग के लिए आजाद मैदान सबसे बड़ा क्षेत्र था। ठीक यात्रा के समय नगरपालिका ने वहां घास बिछा दी। अब पार्किंग सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। ट्रैफिक जाम लग रहा है। जगह-जगह बॉटलनेक रास्ते हैं। उन्हें खोलने का काम नहीं किया गया। इस समय यात्रा से जुड़ी कोई तैयारी धरातल पर दिखाई नहीं दे रही। इन्हें अंदाजा ही नहीं था कि कितनी भीड़ लगेगी। यात्रा से ठीक 15 दिन पहले यहां दो साल से तैनात ज़िलाधिकारी का तबादला कर दिया गया। प्रशासन के लिहाज से ये भी सही फैसला नहीं था”।

एक यात्री की आपबीती!

लखनऊ से रजिस्ट्रेशन कराने के बाद केदारनाथ-बद्रीनाथ दर्शन के लिए आए एक यात्री बताते हैं “केदारनाथ में बिना दर्शन किए लौटना पड़ा। एक पालकी के लिए 3 दिन का इंतज़ार करना पड़ रहा था। परिवार के बुजुर्ग बिना पालकी के यात्रा नहीं कर सकते थे। ट्रैफिक जाम के चलते वहां गुप्तकाशी से केदारनाथ के बीच 35 किलोमीटर का सफ़र तय करने में 7 घंटे लगे। बदरीनाथ में सुबह 9 बजे कतार में लगे तो दोपहर साढ़े 3 बजे दर्शन किए। दर्शन की कतार 5 किलोमीटर तक लंबी है”।

मिजोरम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. वीपी सती ने हिमालयी क्षेत्र में पर्यटन के लिहाज से वहनीय क्षमता के आकलन पर शोध पत्र लिखा।

हिमालयी क्षेत्र में पर्यटन की वहनीय क्षमता का आंकलन जरूरी

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन के साथ आधुनिक पर्यटन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। जिसमें बड़ी संख्या में पर्यटक यहां के प्रसिद्ध स्थलों को देखने के लिए आते हैं। इससे यहां की इकॉलजी और इकोसिस्टम से जुड़ी सेवाओं पर गंभीर असर पड़ रहा है। साथ ही स्थानीय सामाजिक ढांचों पर भी। इस तरह के पर्यटन से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव पड़ रहा है। समय के साथ ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और प्रकृति आधारित पर्यटन में इजाफा होगा। इसलिए इनका प्रचार भी ज़िम्मेदारी के साथ करना होगा। 

चारधाम में पर्यटकों के सैलाब पर पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा कहते हैं “ये तीर्थाटन नहीं है। ये सीधा पर्यटन है। तीर्थयात्री बहुत सादगी से यात्रा करते हैं। एक समय था जब गंगोत्री जैसी जगहों पर कांवड़ियों की संख्या को सीमित किया गया था। केदारनाथ-बद्रीनाथ में यात्रियों की इतनी बड़ी संख्या को मॉनीटर करना चाहिए और इसे सीमित करना चाहिए”।

डॉ. चोपड़ा कहते हैं कि जब सरकार खुद चारधाम का प्रचार कर रही है तो इतनी बड़ी संख्या में लोग आएंगे ही। उत्तराखंड में प्राकृतिक नज़ारों को देखने के लिए हजारों स्थान हैं। आप यात्रियों को उन जगहों के बारे में बताइये तब लोग वहां भी जाएंगे। “किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ भू-विज्ञानी डॉ. सुशील कुमार कहते हैं “बद्रीनाथ-केदारनाथ जैसे संवेदनशील जगहों पर हिमालयी भू-विज्ञान के लिहाज से ऐसे संवेदनशील स्थल पर बेहद सीमित लोगों को लाना चाहिए। एक साथ इतने लोग हिमालयी क्षेत्र में आ रहे हैं। तो इनके वाहनों से तापमान में भी अचानक इजाफा होता है। जिसका असर ग्लेशियर की सेहत पर भी पड़ता है। साथ ही ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्य के चलते हिमालयी पहाड़ियां बहुत अधिक संवेदनशील हो गई हैं। इनमें बहुत से भूस्खलन ज़ोन सक्रिय हैं”। 

हिमालयी क्षेत्र में बद्रीनाथ-केदारनाथ जैसे संवेदनशील पर्यटन स्थलों की वहनीय क्षमता के सवाल पर डॉ सुशील कहते हैं कि इस बारे में भू-विज्ञान की दृष्टि से भी अधिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है”।

टूरिज्म कैरिंग कैपेसिटी पर शोधपत्र लिखने वाले वैज्ञानिक एसपी सती ने अपने इस शोध पत्र में लिखा है कि हिमालयी क्षेत्र में पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां यहां के पारिस्थितकीय संतुलन के लिहाज से संचालित की जानी चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते पर्यटन का दबाव यहां के बुनियादी ढांचे पर पड़ रहा है। हिमालयी क्षेत्र में गिरावट के साथ यहां रहने की जगह और भोजन व्यवस्था पर प्रभावित हो रही है।

उत्तराखंड की पर्यटन नीति के मुताबिक वर्ष 2025 तक राज्य में 65 मिलियन पर्यटकों के आने का अनुमान है।

नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है “हिमालयी क्षेत्र की वहनीय क्षमता को देखते हुए बड़ी संख्या में उमड़ रहे पर्यटक (mass tourism) नीति निर्माताओं और स्थानीय लोगों के लिए गंभीर चिंता का विषय है”। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2025 तक हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में 240 मिलियन पर्यटकों की मौजूदगी का आकलन किया गया है। पर्यटन से जुड़ी श्रेष्ठ नीतियां भी इतने भारी पर्यटन को संभालने में चुनौतीपूर्ण होंगी। उत्तराखंड में पर्यटन से जुड़े मास्टर प्लान में 2025 तक 65 मिलियन पर्यटकों (2018 में 27 मिलियन) के पहुंचने का अनुमान लगाया गया है।

त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई वाली उत्तराखंड की पिछली भाजपा सरकार 13 जिले 13 नए डेस्टिनेशन योजना लेकर आई थी। लेकिन भाजपा के शासन के पिछले 5 वर्षों में ये योजना धरातल पर नहीं आ सकी। राज्य के ज्यादातर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पर्यटन सीजन में पर्यटकों के भारी दबाव में आ जाते हैं। 

पर्यटन उत्तराखंड में आजीविका का एक बड़ा ज़रिया है। कोविड के बीते दो वर्षों ने राज्य में पर्यटन को बहुत नुकसान पहुंचाया। इसका असर पर्यटन स्थलों से जुड़े छोटे-छोटे उद्मियों, दुकानदारों, घोड़े-खच्चर वालों पर पड़ा। वे चारधाम में पर्यटकों की संख्या सीमित करने का विरोध करते हैं।

देहरादून में एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं कि वहनीय क्षमता के आधार पर ही पर्यटन होना चाहिए। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य के लिए ये बेहद जरूरी है। चाहे चारधाम हों, मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल हों या देहरादून जैसे गैर-पर्यटन स्थल। वहनीय क्षमता के बारे में लोगों को समझाने, इस आधार पर नीतियां बनाने और उसे लागू करने की सख्त आवश्यकता है।

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

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