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उत्तराखंड UCC विधेयक: ज़्यादातर युवाओं ने इसे ‘बेहद प्रतिगामी’ बताया

राज्य की राजधानी देहरादून में युवा जोड़ों को डर है कि लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने से, ख़ासकर लड़कियों के साथ अनुचित हस्तक्षेप, उत्पीड़न और ब्लैकमेल की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
Uttarakhand

पूरे उत्तराखंड में युवा, आपसी सहमति से रहने वाले वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप के लिए जबरन पंजीकरण का प्रावधान लागू करने से स्तब्ध हैं। यह उत्तराखंड विधानसभा में हाल ही में पारित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक 2024 की प्रमुख धाराओं में से एक है।

जबकि इस विवादास्पद विधेयक का पूरा का पूरा उद्देश्य स्पष्ट रूप से राजनीतिक है, क्योंकि यह अल्पसंख्यकों को उनके व्यक्तिगत कानूनों से वंचित करता है और विवाह, तलाक और उत्तराधिकार को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक सामान्य सेट से बदल देता है, जिस खंड ने युवाओं को सबसे अधिक चिंतित किया है उनमें से लिव-इन रिलेशनशिप एक है।

विधेयक में कहा गया है कि राज्य के सभी निवासियों, चाहे वे उत्तराखंड के भीतर रह रहे हों या बाहर, उन्हे राज्य द्वारा नियुक्त किए जाने वाले रजिस्ट्रार के दफ्तर में अपने रिश्ते को पंजीकृत करना होगा। रजिस्ट्रार से अपेक्षा यह की जाती है कि वह लिव-इन जोड़े के पहले के रिश्ते को सत्यापित करके यह सुनिश्चित करे कि कोई भी साथी पहले से शादीशुदा नहीं है या पहले लिव-इन रिलेशनशिप में रहा है या नाबालिग है। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पार्टनर्स का आपस में कोई खून का रिश्ता या विवाहित नहीं है।

एक बार जब ये विवरण स्पष्ट हो जाएंगे, तो उन्हें पंजीकरण करके एक प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा जिसे उस पुलिस स्टेशन को भेजा जा सकता है जिसके अधिकार क्षेत्र में वे रह रहे हैं।

इस संवाददाता ने यूसीसी विधेयक पर उनके विचार जानने के लिए उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रह रहे कई युवाओं से बात की। अनुमानतः, उनमें से कोई भी अपनी पहचान उजागर करने को तैयार नहीं था, लेकिन इस विषय पर उनके विचार निश्चित रूप से काफी मजबूत थे।

लगभग 25 साल का एक युवा एक्जिक्यूटिव, जो देहरादून के एक कॉलेज में साथ पढ़ने के समय से ही अपनी प्रेमिका के साथ रह रहा है, इन प्रावधानों का मखौल उड़ाता है।

उनके मुताबिक, “इस पंजीकरण की प्रक्रिया से केवल तीन तरह के लोगों को लाभ मिलेगा। पहला रजिस्ट्रार का रिश्तेदार होगा जो फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने वाली कंपनी का प्रमुख होगा। दूसरा पुलिसकर्मी, जो जोड़ों से मोटी रकम वसूल करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका नाम सार्वजनिक डोमेन में न आए। तीसरा मकान मालिक होगा जो हमारे जैसे युवा जोड़ों से जो एक साथ रहना चाहते हैं, उनसे बढ़ा-चढ़ा कर किराया वसूल करेगा।''

कई युवाओं का लिव-इन रिलेशन में रहने का कारण यह है कि वे विवाह के बंधन के औपचारिक रिश्ते में प्रवेश नहीं करना चाहते हैं, जहां उन्हें कई जिम्मेदारियों का बोझ उठाना पड़ता है, जिसके लिए वे अभी तैयार नहीं हैं। ऐसे जोड़ों को एक-दूसरे के परिवारों के साथ खुद के संबंधों पर बातचीत करने में कठिनाई होती है, तब तक जब तक कि वे सुनिश्चित न हो जाएं कि उनका भविष्य एक साथ रहने में सुरक्षित है।

करीब 30 वर्षीय एक अन्य युवक, जो एक युवा शिक्षक के साथ लिव-इन में है, ने बताया कि: "एक साथ रहना एक-दूसरे की वास्तविकता स्थिति को जानने जैसा है क्योंकि हम यह पता लगाना चाहते हैं कि क्या हम अपने रिश्ते में आगे बढ़ पाएंगे या नहीं।" चार साल साथ रहने के बाद, उन्होंने फैसला किया है कि वे अब शादी करना चाहेंगे और इस साल के अंत तक ऐसा करने की योजना बना रहे हैं।

एक महिला जो लगभग 30 साल की हैं, ने आगे बढ़कर स्वीकार किया कि वह लिव-इन रिलेशनशिप में थी, लेकिन एक साल बाद वह उससे बाहर हो गई, क्योंकि उसे लगा कि यह काम नहीं करने वाला है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि पंजीकरण से महिलाओं में अधिक सुरक्षा मिलने संभावना पैदा हो सकती है, लेकिन उन्हें लगा कि लिव-इन रिलेशनशिप जैसे जटिल विषय को जनता के सामने अधिक बड़ी बहस के लिए खोला जाना चाहिए और इसमें युवा लोगों के विचारों को शामिल किया जाना चाहिए।

यूसीसी विधेयक यह बताने में विफल रहा है कि जब वे लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में बात करते हैं तो वे किस समय सीमा को देख रहे हैं। “एक साल तक साथ रहने के बाद किसी पुरुष से महिला को गुजारा भत्ता देने की उम्मीद करना पूरी तरह से अवास्तविक है। उनके मुताबिक, भरण-पोषण के लिए कोई भी दावा करने से पहले एक जोड़े को कम से कम तीन साल की अवधि तक एक साथ रहना जरूरी है।”

हालांकि, विधेयक में ऐसा कोई विवरण नहीं दिया गया है। यहां तक कि पश्चिम में भी दीर्घकालिक संबंधों के लिए ही गुजारा-भत्ता दिया जाता है।

बिल में यह भी कहा गया है कि अगर पार्टनर रिश्ता खत्म करने का फैसला करते हैं तो उन्हें रजिस्ट्रार के पास वापस जाना होगा और उन्हें इसकी जानकारी देनी होगी।

उत्तराखंड के बड़े शहरों में काम की तलाश में पलायन करने वाली युवा ग्रामीण महिलाओं के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कोई असामान्य बात नहीं है। ऐसे रिश्ते उनकी यौन इच्छाओं और आर्थिक जरूरतों को भी पूरा करते हैं, क्योंकि कमरा और खर्च साझा करने से रहना किफायती हो जाता है। रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आने के कारण, वे ऐसे रिश्तों को अपने परिवार से छुपाते हैं।

अपने निजी जीवन को सार्वजनिक करना, राज्य के अधिकांश युवाओं को एक "बेहद प्रतिगामी" कदम लगता है। युवा महिलाओं का मानना है कि यदि वे पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करती हैं, तो इससे उन्हें पड़ोसियों या उन पर नज़र रखने वालों की तरफ से ब्लैकमेल किए जाने का खतरा पैदा हो सकता है।

यूसीसी विधेयक की सबसे खराब धाराओं में से एक ऐसे रिश्तों का अपराधीकरण है। जो जोड़े 30 दिन की अवधि के भीतर पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करते हैं तो उन्हें तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा। आवेदन दाखिल करते समय रजिस्ट्रार को गलत जानकारी देने के मामले में दंपत्ति को तीन महीने तक की कैद और 25,000 रुपये तक का जुर्माना, दोनों का सामना कर पड़ सकता है।

राजधानी शहर के एक प्रमुख कॉलेज में पढ़ने वाले 22 वर्षीय एक छात्र ने कहा कि वह अपने 21 वर्षीय साथी, जो उसके साथ उसी कोर्स में पढ़ती है के साथ रहने की योजना बना रहा है। वे दोनों इन घटनाक्रमों से निराश हैं और ऐसा कदम उठाने से पहले कुछ महीने इंतजार करने की योजना बना रहे हैं।

छात्र ने कहा कि युवा लोग इतने परिपक्व नहीं हैं और इसलिए उन्हें खुद के रिश्तों के साथ प्रयोग करने और गलतियाँ करने की भी अनुमति दी जानी चाहिए। वह इस बात से हैरान है कि राज्य सरकार उनके व्यवहार या रिश्तों को नियंत्रित करने के लिए ऐसा "घुसपैठिया कानून" क्यों लेकर आया है।

देहरादून में एक वकालत कर रहे एक वकील का मानना है कि लिव-इन जोड़ों के पंजीकरण को अनिवार्य करना किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन है। उन्होंने बताया कि कैसे इस विषय पर एक जनहित याचिका (जनहित याचिका) मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट के सामने लाई गई थी। इसे तुरंत खारिज कर दिया गया था, उच्चतम न्यायालय ने इसे 'बेवकूफकाना योजना' के रूप में वर्णित किया था। उन्होंने यह भी ओबजर्व किया था कि यह 'अजीब' कानून है जो केवल विषमलैंगिक जोड़ों को संबोधित करता था और इसमें समान लिंग वाले जोड़ों या ट्रांसजेंडरों का कोई उल्लेख नहीं था।

ऐसा लगता है कि जोड़ों के अनिवार्य पंजीकरण का जिक्र करने वाला खंड अंतर-धार्मिक जोड़ों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। उत्तराखंड में ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जहां युवा मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू महिलाओं को "जबरन धर्म परिवर्तन" कराने के लिए उन्हें लुभाने का आरोप लगाया गया है। ऐसा ही एक मामला 2023 में उत्तरकाशी में सामने आया था। इसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया और मुस्लिम व्यापारियों को दक्षिणपंथी समूहों द्वारा दुकानें बंद करने और जिले से बाहर खदेड़ने का ज़ोर दिया गया था। बाद की जांच में आरोप झूठा साबित हुआ लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। भारत में अदालतें दक्षिणपंथी समूहों द्वारा प्रचारित किए जा रहे 'लव जिहाद' को मान्यता नहीं दे रही हैं।

लिव-इन जोड़ों का अनिवार्य पंजीकरण पितृसत्तात्मक और शुद्धतावादी मानसिकता को दर्शाता है, जिसमें नैतिक पुलिसिंग केवल इस राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के बाहर रहने वाले सभी राज्य नागरिकों के लिए भी है।

जोड़ों के पंजीकरण का एक और अधिक खतरनाक पहलू है। इसमें उनका विवरण सार्वजनिक डोमेन में डालना शामिल है, जो सभी की नज़रों में चढ़ जाएंगे। ऐसे राज्य में जहां होनर-किलिंग (सम्मान के लिए हत्याएं) अनसुनी नहीं हैं, वहां कई युवा लड़कियों को डर है कि साथ रहने का इरादा जताना मतलब मौत के वारंट पर हस्ताक्षर करने जैसा होगा।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Uttarakhand UCC Bill: ‘Extremely Regressive’ say Most Young People

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