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WHO की कोविड-19 मृत्यु दर पर भारत की आपत्तियां, कितनी तार्किक हैं? 

भारत ने डब्ल्यूएचओ के द्वारा अधिक मौतों का अनुमान लगाने पर आपत्ति जताई है, जिसके चलते इसके प्रकाशन में विलंब हो रहा है।
covid

दिनांक 16 अप्रैल को द न्यूयॉर्क टाइम्स  ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा एक रिपोर्ट को जारी करने में, जिसमें कोविड-19 से वैश्विक एवं देश-वार अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया था, को भारत की आपत्तियों की वजह से कई महीनों से नहीं जारी किया जा सका है।   

अतिरिक्त मृत्यु दर एक संकट के दौरान सभी कारणों से होने वाली मौतों की संख्या को संदर्भित करती है जो कि ‘सामान्य’ परिस्थितियों के तहत देखी जाने वाली मौतों की अपेक्षा से ऊपर और परे होती है।  

कथित तौर पर, भारत में कोविड-19 के मरने वालों का आंकड़ा लगभग 40 लाख के आसपास या 5.2 लाख के मौजूदा आधिकारिक आंकड़े से करीब आठ गुना अधिक होने का अनुमान है। 40 लाख मौतों का अनुमान उन कई अध्ययनों के अनुरूप है, जिसमें कोविड-19 (जैसे कि आनंद, संदेफुर और सुब्रमण्यम, क्रिस्टोफर जेड. गुइल्मोटो, मुराद बानाजी और आशीष गुप्ता, प्रभात झा एवं अन्य, लांसेट अध्ययन, तुषार गोरे एवं विरल वी आचार्य सहित कई अन्य) के कारण अधिक मौतों को अनुमानित किया गया है।

फरवरी 2021 में, डब्ल्यूएचओ ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) के साथ मिलकर महामारी के आकार एवं पैमाने को जानने के लिए और विभिन्न देशों की प्रतिक्रिया और इसमें सुधार के प्रयासों को मूर्त रूप देने के लिए कोविड-19 मृत्यु दर आकलन पर एक तकनीकी सलाहकार समूह (टैग) का निर्माण किया था। टैग में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के लगभग 33 लब्धप्रतिष्ठ वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं।  संगठन के साथ जुड़ने के लिए प्रत्येक सदस्य राज्य से लगभग 40 पर्यवेक्षक और नामांकित व्यक्ति को इसमें शामिल किया गया है।  

डेवेक्स की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि, जिसमें नाम न छापने की शर्त पर एक टैग सदस्य ने जिक्र किया था कि भारतीय सरकार ने इन अनुमानों को “10 साल बाद” प्रकाशित करने के लिए कहा है।    

कार्यप्रणाली को लेकर भारत की आपत्तियां 

द न्यूयॉर्क टाइम्स  की रिपोर्ट के जवाब में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उसी दिन एक बयान जारी किया था।  इसमें कहा गया था, “भारत की मूल आपत्ति नतीजे को लेकर नहीं है (भले ही वो कुछ भी रहा हो), बल्कि इसके लिए जो कार्यप्रणाली अपनाई गई, उसको लेकर है।”

भारत का आरोप है कि यह मॉडल सभी देशों को ‘एक आकार में सभी को फिट करने’ जैसे मॉडल के रूप में व्यवहार करता है।  इसका तर्क है कि भारत एक बड़ा देश है, और इसकी विशाल जनसंख्या और भौगौलिक क्षेत्र होने के कारण इसका अध्ययन छोटे देशों से भिन्न तरीके से किया जाना चाहिए। भारत को डब्ल्यूएचओ अध्ययन में शामिल कुछ परिवर्तनीय चीजों को लेकर भी आपत्तियां हैं, जैसे कि तापमान और औसत मौतों के बीच में विपरीत संबंध को लेकर। इसमें कहा गया है कि भारत की परीक्षण सकारात्मकता अनुपात में उच्च परिवर्तनशीलता को मॉडल में नहीं लिया गया है, और भारत के लिए आयु-लिंग वितरण अन्य देशों के वितरण पर आधारित एक वाह्य गणन है।   

बयान में उल्लिखित विशिष्ट आपत्तियां शामिल हैं -

● सांख्यकीय मॉडल वाली परियोजनाएं भारत के भौगौलिक आकार और जनसंख्या सहित छोटी आबादी वाले अन्य देशों के साथ भी अनुमानित करने के लिए फिट बैठती हैं। इस प्रकार की ‘सभी के लिए एक आकार ही फिट’ वाला दृष्टिकोण और मॉडल, जो कि ट्यूनीशिया जैसे छोटे देशों के संदर्भ में सही हो सकता है, को भारत पर लागू नहीं किया जा सकता है।  

● भारत में अनुमानित मौतों का आयु-लिंग वितरण चार देशों (कोस्टारिका, इजराइल, पैराग्वे और ट्यूनीशिया) द्वारा रिपोर्ट की गई मौतों के आधार पर तैयार किया गया था। 

● मॉडल मासिक तापमान और मासिक औसत मौतों के बीच में एक विपरीत संबंध को अनुमानित करता है, जिसका इस तरह के विशिष्ट अनुभवजन्य संबंध से किसी प्रकार का वैज्ञानिक समर्थन  नहीं है।  

● भारत में कोविड-19 के लिए परीक्षण सकारात्मकता दर किसी भी समय में पूरे देश में एक समान कभी भी नहीं रही है। लेकिन भारत के भीतर कोविड-19 पाजिटिविटी की दर में इस भिन्नता को मॉडलिंग के उद्देश्यों के लिए नहीं माना गया।

● ऐसा लगता है कि मौजूदा मॉडलिंग कवायद देश के पास उपलब्ध आंकड़ों की अवहेलना करते हुए ऐतिहासिक अनुमानों के एक अन्य सेट के आधार पर अपना सेट मुहैया करा रहा है। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि जीएचई 2019 का उपयोग भारत के लिए अपेक्षित मौतों के आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए क्यों किया गया है, जबकि टियर 1 देशों के लिए, उनके अपने ऐतिहासिक डेटासेट का इस्तेमाल किया गया था।

● विश्लेषण के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले सह-संयोजकों में से आय के लिए एक द्विधारी उपाय का उपयोग कहीं अधिक यथार्थपरक क्रमिक परिवर्तनीय को इस्तेमाल करने के बजाय इस्तेमाल में लिया गया है. इस प्रकार के एक महत्वपूर्ण उपाय के लिए एक द्विधारी परिवर्तनीय का उपयोग करना किसी परिवर्तनीय के परिमाण को बढ़ाने के लिए खुद को उधार दे सकता है। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थिति

हालाँकि डब्ल्यूएचओ या अन्य विशेषज्ञों ने भारत की आपत्तियों को ब्योरेवार खंडन नहीं किया है, लेकिन लंबित अंतिम रिपोर्ट के जारी होने तक एक सामान्य व्याख्या में डब्ल्यूएचओ ने इस बात को निर्दिष्ट किया है कि अतिरिक्त मौतों का अनुमान लगाने के लिए अपनाए गए मॉडल में ‘सभी के लिए एक आकारफिट’ वाले दृष्टिकोण को नहीं अपनाया गया है। इसमें उल्लेख किया गया है कि इस प्रकिया में वैश्विक तुलनात्मकता को सुनिश्चित करते हुए देशों की विशिष्टताओं (उदाहरण के लिए, जैसे आय के स्तर, कोविड-19 मौतों की रिपोर्ट की गई दर, परीक्षण सकारात्मकता, रोकथाम सूचकांक) पर विचार किया गया है।   

भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, संयुक्त राज्य अमेरिका के सार्वजनिक स्वास्थ्य स्कूल संकाय के प्रोफेसर जॉन वेकफील्ड, जो डब्ल्यूएचओ के टैग के सदस्य भी हैं, ने 18 अप्रैल को एक ट्वीट पोस्ट करते हुए कहा, “एनवाईटी के लेख पर इसके जवाब में, भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय  ने अपने बयान में हमारे द्वारा भारत के लिए उपयोग में की गई अतिरिक्त मृत्यु पद्धति को गलत बताया है।” 

वेकफील्ड डब्ल्यूएचओ के लिए अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए विकसित किये गए मॉडल का विवरण बताने वाले एक कागज पर एक सार को साझा करते हैं, जो भारत द्वारा उठाए गए कई 

यह बताता है कि कुछ ऐसे जिनके लिए राष्ट्रीय सर्व-कारण से होने वाली मृत्यु दर (एसीएम) का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, जिनमें भारत भी शामिल है, वहां के लिए उप-क्षेत्रों से एसीएम आंकड़ा लिया जाता है।  भारत के लिए, लगभग 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इकट्ठा किये गए आंकड़ों को महामारी की अवधि के दौरान लिया गया था, लेकिन यह संख्या महीने के हिसाब से बदलती रहती है।  

इसके अलावा, भारत के लिए राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश के स्तर पर दर्ज की गई मौतों की पंजीकृत संख्या के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले स्रोतों में या तो राज्यों द्वारा या तो आधिकारिक रिपोर्ट और स्वचालित महत्वपूर्ण पंजीकरण  के माध्यम से सीधे रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है या फिर पत्रकारों के द्वारा सूचना का अधिकार अनुरोधों के जरिये मृत्यु पंजीकरण के माध्यम से जानकारी हासिल की जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि "भारत के लिए, वैश्विक भविष्यवाणी करने वाला सहसंयोजक मॉडल का उपयोग नहीं किया जाता है, और इसलिए अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान केवल भारत से आने वाले आंकड़ों पर निर्भर है।"

सरकार के द्वारा कोविड-19 मौतों की बड़े पैमाने पर कम रिपोर्टिंग 

2020 के बाद, पिछले दो सालों से जबकि महामारी ने पूरी दुनिया को तबाह कर दिया है, ऐसे में आधिकारिक तौर पर मौतों की संख्या की रिपोर्टिंग को लेकर विवाद बना हुआ है।  भारत में, 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान लोगों ने गंगा में तैरती लाशों, श्मशानों के बाहर लंबी कतारों, एक साथ जलती हुई कई चिताओं और नदी के किनारे कई अचिह्नित शवों को प्रवाहित होते, शवदाह गृहों के बाहर लंबी लाइन, एक साथ कई छितराई हुई अचिह्नित कब्रों के दर्दनाक दृश्य देखे थे।   

लेकिन आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट की गई मौतों की संख्या इस त्रासदी को पर्याप्त रूप से कवर नहीं करते थे। 

इस विसंगति की भयावहता को समझने के लिए, कई विशेषज्ञों, महामारीरोग विज्ञानियों, प्रतिरूप तैयार करने वालों, और पत्रकारों ने कोविड-19 मौतों के लिए निकटतम संभावित आंकड़ों को मापने और उस तक पहुँच बनाने के लिए प्रयास किये। इसके लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन नतीजा वही निकला। इनमें से लगभग सभी अध्ययन, जिनमें से कुछ को पिछले साल न्यूज़क्लिक के द्वारा कवर किया गया था, ने दर्शाया था कि सरकार के द्वारा बड़े पैमाने पर मौतों की कम रिपोर्टिंग की गई थी।  

1. आनंद, संदेफुर और सुब्रमण्यम (सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट) के एक अध्ययन ने तीन अलग-अलग पद्धतियों को इस्तेमाल में लाकर मौतों की अधिक संख्या के तीन अलग-अलग अनुमानों पर पहुंचे, जो मौत की संख्या को जून 2021 तक क्रमशः 34 लाख, 40 लाख और 49 लाख बताते हैं।  यह आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में करीब आठ से 12 गुना अधिक था। 

2. क्रिस्टोफर जेड. गुइल्मोटो के द्वारा एक महत्वपूर्ण अध्ययन में, जिसमें अतिरिक्त मृत्यु दर का उपयोग नहीं किया गया था, ने अनुमान लगाया है कि भारत की मृत्यु दर मई 2021 के अंत तक करीब 22 लाख थी- आधिकारिक संख्या से लगभग पांच गुना अधिक।  

3. मुराद बानाजी और आशीष गुप्ता के अनुमान के मुताबिक, अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच अधिक मौतें लगभग 38 लाख होंगी, जिसमें अधिक आशाजनक और निराशाजनक सीमा 28 लाख से लेकर 52 लाख की रेंज में होनी चाहिए- अतिरिक्त मौतें यहाँ पर सात से लेकर 13 गुना अधिक हैं।  

4. प्रभात झा और अन्य ने अनुमानित किया है कि सितंबर तक भारत की कुल कोविड मौतें आधिकारिक रूप से जारी की गई रिपोर्ट की तुलना में छह से सात गुना अधिक थीं।  

5. एक और हालिया लांसेट अध्ययन में, 1 जनवरी, 2020 से लेकर 31 दिसंबर, 2021 के बीच में कोविड-19 से होने वाली मौतों के बारे में कहा गया है कि देश के स्तर पर, कोविड-19 की वजह से कुल अतिरिक्त मौतें भारत में करीब 40.70 लाख अनुमानित की गई थी- जो कि आधिकारिक आंकड़ों से करीब आठ गुना अधिक है।

6. आठ जिलों में रोगी प्रवाह मॉडल को इस्तेमाल में लाते हुए तुषार गोरे और विरल वी आचार्य के द्वारा किये गए एक अध्ययन ने तीन से नौ गुना के बीच कोविड-19 मौतों को मापने के लिए कम रिपोर्टिंग वाल पूर्वाग्रह दिखाया है। 

7. द हिन्दू समाचार पत्र ने नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) आंकड़े का उपयोग करते हुए चुनिंदा प्रदेशों में अतिरिक्त मौतों को पकड़ने वाली रिपोर्ट की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी। अतिरिक्त मौतों की संख्या यहाँ पर आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट की गई मौतों से 1.5 गुना से लेकर करीब सात गुना अधिक पाई गई।

8. इंडियास्पेंड में रिपोर्टिंग करते हुए रुक्मिणी एस ने मार्च 2020 से मई 2021 तक पांच राज्यों, आंध्रप्रदेश, बिहार, केरल, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु के लिए सीआरएस आंकड़े का विश्लेषण किया और उसमें पाया कि केरल को छोड़कर अधिकांश राज्यों ने महामारी के दौरान 1 से लेकर 2 लाख अतिरिक्त मौतों की रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। 2021 में ये राज्य-स्तरीय अतिरिक्त मौतें मध्यप्रदेश में लगभग 40 गुना, आन्ध्र प्रदेश में 33 गुना और केरल में सिर्फ 1.7 गुना तक पाई गई।    
डब्ल्यूएचओ का अध्ययन सार्थक प्रतीत होता है: विशेषज्ञ 

इस बात को समझने के लिए कि क्या भारत की आपत्तियों में कोई दम है, इसे जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने कुछ विशेषज्ञों से संपर्क साधा, जिनमें से कुछ ने काफी मेहनत से अध्ययन किया है और कोविड-19 मौतों के बारे में अनुमान लगाया है।

प्रोफेसर क्रिस्टोफर जेड गुइल्मोटो, द सेंटर डे साइंसेज ह्युमेंस (सीएसएच), दिल्ली के सीनियर फेलो के मुताबिक, “विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली मुझे ज्यादा तार्किक लगती है, क्योंकि यह कमोबेश एक बुनियादी नियम पर आधारित है। इसका बायेसियन खांचा  गणना के लिए अधिक ठोस आधार और अनुमानों के लिए विश्वास प्रदान करता है। यह अतिरिक्त मृत्यु दर अनुमान पर आधारित है, एक  मानक प्रक्रिया, जिसका उपयोग भारत में लंबे अर्से से किया जाता रहा है। उदाहरण के लिए, औपनिवेशिक काल के दौरान महामारियों के लिए।” 

किये जा चुके विभिन्न अध्ययनों की ओर इंगित करते हुए गुइल्मोटो तर्क पेश करते हैं, “पहले से ही हमारे पास कुछ अलग अनुमान हैं, जो समूचे भारत में लगभग 30 से 40 लाख कोविड मौतों की ओर इशारा करते हैं। मेरा अनुमान लगभग 22 लाख मौतों के बारे में इंगित करता है। ये अतिरिक्त मृत्यु दर की प्रणाली का कोई उपयोग नहीं करते हैं, और इसलिए मौतों की कुल संख्या की सीमा एक स्वतंत्र पुष्टि की मांग करता है। यह इस भावना को पुष्ट करता है कि भारत में छह से आठ मौतों में से सिर्फ एक को ही सही तरीके से पंजीकृत किया गया, अलबत्ता यह अनुपात राज्यों में अलग-अलग होता है।

मिडलसेक्स विश्वविद्यालय, लंदन के गणितज्ञ और रोग मॉडलर डॉक्टर मुराद बानाजी कहते हैं, “भारत में महामारी से मृत्यु दर के बारे में डब्ल्यूएचओ के अनुमान जैसा कि द न्यूयॉर्क टाइम्स में रिपोर्ट किया गया है- वह भारत के पिछले अध्ययनों से मेल खाता है।

बानाजी कहते हैं, “भारत सरकार की ओर से की जाने वाली आपत्तियां अक्सर सच के एक दाने के साथ शुरू होती हैं- कि अनिश्चितताएं और कार्यपद्धति संबंधी कठिनाइयां हो सकती हैं - और बिना किसी औचित्य के इसका उपयोग, यह बताने के लिए किया जाए कि अनुमान काफी अधिक होना चाहिए।

महामारी के दौरान भी अतिरिक्त मौतें अपेक्षित और वास्तविक मौतों के बीच का अंतर है। भारत में आंकड़ों में अंतराल है, जिससे दोनों मात्राओं में अनिश्चितताएं होती हैं। अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए आंकड़े का विश्लेषण करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। डब्ल्यूएचओ टीम ने जोर दिया है कि उनके अनुमान इस प्रकार के संवेदनशील विश्लेषण को ध्यान में रखकर किए गए हैं।

इस प्रकार उनके अनुसार मृत्यु दर के डब्ल्यूएचओ के अनुमानों के प्रति संदेह करने का कोई अच्छा कारण नजर नहीं आता है। “इसके विपरीत, जैसा कि हर नए अध्ययन से प्रकट होता है, सरकार के लिए यह बनाये रखना अधिकाधिक बेतुका लगता है कि आधिकारिक कोविड-19 मौतें पूरी कहानी को बयां करती हैं।”

ओसीआईएस एवं ग्रीन टेम्पलटन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी फेलो, डॉ शाहिद जमाल तर्क पेश करते हैं, “सरकार ने महामारी विज्ञान (एनआईआई, चेन्नई: एक आईसीएमआर संस्थान) के लिए समर्पित एक पूर्ण संस्थान होने के बावजूद, अपनी स्वंय की कार्यप्रणाली और अनुमानों का विश्लेषण किये बगैर, सिर्फ डब्ल्यूएचओ की कार्यप्रणाली की आलोचना की है। सरकार को वास्तव में जो करना चाहिए था कि वह है  आधिकारिक अनुमान से परे जाकर अपने स्वंय के आंकड़ों को दुरुस्त करना चाहिए था, जो कि हमें पता है कि वे तथ्यात्मक नहीं है। इसके अलावा, यह स्वास्थ्य मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों को लगातार स्वतंत्र शोधकर्ताओं को उपलब्ध नहीं करा रही है। पारदर्शिता का अभाव हमेशा अविश्वास को जन्म देता है।”   

एक बेहद बुनियादी गणना को देते हुए, जमील ने इशारा किया कि आधिकारिक तौर रिपोर्ट की गई संख्या बड़े पैमाने पर कर करके आँका गया है।

“2018-19 के लिए भारत के द्वारा (कोविड पूर्व) जो अनगढ़ मृत्यु दर रिपोर्ट की गई थी, वह एक वर्ष में 7.2/1000 लोगों की रिपोर्ट की गई थी। 1.38 अरब आबादी के लिए इसका अर्थ करीब 27,200 मौतें/ प्रति दिन होता है। सरकार का अनुमान है कि कोविड-19 की जब दूसरी लहर अपने शीर्ष पर थी, तो मृत्यु दर 4000/प्रति दिन था, जो सामान्य दैनिंक मौतों की तुलना में मात्र 15% अधिक था। इतनी संख्या से श्मशानों और कब्रिस्तानों में हमने जिस प्रकार के दृश्य देखे हैं, वैसे नहीं होते।"

इसके अलावा जमील इंगित बताते हैं कि” कई मौतें जो आईसीयू में हुई हैं, कहते हैं कि सांस लेने में विफलता के कारण हुई हैं, जिसे कोविड मौतों के रूप में नहीं गिना गया था, क्योंकि मौजूदा आईसीएमआर के दिशानिर्देशों में उन लोगों को नहीं गिना गया, यदि उनमें कोविड परीक्षण में परिणाम नहीं नहीं देखने को मिला था। इनमें से कई लोगों की परीक्षण रिपोर्ट कभी आई ही नहीं। ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है। यह कम गिनती करने का एक तरीका है, जो किसी शैतानी सोच के कारण नहीं बल्कि प्रचलित अराजकता की वजह से है।

गुइल्मोटो तर्क पेश करते हैं कि “आधिकारिक आंकड़े अक्सर अप्रत्यक्ष अनुमानों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त आंकड़ों से भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में जो आंकड़े सीआरएस से लिए गए हैं, वे अक्सर नमूना सर्वेक्षण या अन्य अप्रत्यक्ष तरीकों से अनुमंती सही आंकड़ों से कम होते हैं। इसकी वजह से किसी प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम इससे पीड़ित सभी लोगों के लिए कोविड महामारी की वास्तविक मौत के आंकड़ों से लिए गए हैं। आंकड़ों के बीच के अंतर को नीति-निर्माताओं और सांख्यिकीविदों को डेटा संग्रह को मजबूत करने और अनुमान पद्धतियों में सुधार लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”

गुइल्मोटो के विचारों को प्रतिध्वनित करते हुए बानाजी कहते हैं, “सरकार को इस त्रासदी की भयावहता को स्वीकार करने की जरूरत है। महामारियों के प्रबंधन और आंकड़ों और पारदर्शिता के बारे में सीख लेने की जरूरत है।”

उम्मीद है कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट जल्द ही प्रकाशित हो जाये। इसके जारी हो जाने के बाद, कम से कम अब एक बार के लिए सरकार को चाहिए कि वह कोविड-19 मौतों की अनुमानित संख्या पर विवाद बंद कर देना चाहिए। इसके बजाय, उसे नुकसान का आकलन करने के लिए रचनात्मक रूप से विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी गलतियों या इनकार की वजह से और जानें न गंवाएं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

India’s Objections to WHO Study on COVID-19 Mortality Assessment Appear Untenable

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