बिलक़ीस बानो के हक़ में खड़े हुए महिला संगठन और नागरिक समाज, प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल

बिलक़ीस बानो बलात्कार और जनसंहार मामले में बलात्कारियों और अपराधियों की रिहाई के आदेश को तत्काल रद्द कर उन्हें पुनः जेल भेजने की मांग पर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी कड़ी मे शनिवार, 27 अगस्त को देश की राजधानी दिल्ली में भी महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में महिला संगठनों के अलावा छात्र, मज़दूर, सामाजिक कार्यकर्ता, रंगकर्मी और नागरिक समाज के अन्य लोग भी शामिल हुए।
प्रदर्शनकारियों ने पूछा न्याय कहां है?
हिन्दी फ़िल्मों की मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी भी इस प्रदर्शन में शामिल हुईं। उन्होंने पूछा न्याय कहां है?
शबाना आज़मी ने बीजेपी नेता द्वारा अपराधियों को संस्कारी और ब्राह्मण बताकर बचाए जाने के प्रयास को भी घृणित बताया। इसके साथ ही लालकिले से महिला सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री के दावों को लेकर कहा कि हम उनकी बातों का विश्वास तब करेंगे जब वो नतीजा देंगे। एक सप्ताह में इन अपराधियों को जेल में डालें तब उनकी बातों पर विश्वास किया जा सकता है।
उन्होंने कहा ये मुल्क निर्भया के मामलें में एकजुट हुआ था और संघर्ष किया था। जन संघर्ष ही एक रास्ता है।
आपको बता दें कि माकपा पोलित ब्यूरों सदस्य और एडवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने दो अन्य लोगों के साथ इस पूरे फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे भी चुनौती दी है।
सुभाषिनी अली ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि ये सिर्फ़ महिलाओं के न्याय का सवाल नहीं है बल्कि देश में कानून का राज रहेगा या नही उसका सवाल है।
आगे वो कहती हैं लोगों में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर बीजेपी से घृणा तो हो ही रही है क्योंकि ये मानवता के खिलाफ़ है। ये लड़ाई लंबी है जिसे मिलकर लड़ा जाएगा ।
महिला संगठन ऐपवा की महासचिव कविता कृष्णन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि जेल से अपराधियों को उनकी सजा से पहले छोड़ना एक कानूनी प्रक्रिया है। हम मानते भी है ऐसा होना चाहिए। लेकिन ये एक जघन्य अपराध है क्या इसमें भी छोड़ा जा सकता है?
आज सरकार के इस फैसले से देशभर में गुस्सा है और बीजेपी अपने हिंदू वोटो के ध्रुवीकरण के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। वो 20 साल पहले की घटना पर 2022 में वोट पाना चाहती है। लेकिन हमें प्रधानमंत्री मोदी से पूछना होगा वो बिलक़ीस के मामले में चुप क्यों हैं? हम मोदी के मुंह से बिलक़ीस नाम सुनना चाहते हैं।
महिला संगठन एडवा की दिल्ली राज्य अध्यक्ष मैमूना अब्बास मौल्ला ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बिलक़ीस को उनके जुझारू संघर्ष के लिए शाबासी दी और कहा कि खुद बिलक़ीस और उनका परिवार पूछ रहा है ये कैसा न्याय है।
उन्होंने इस फैसले को महिला विरोध तो बताया ही साथ ही उन्होंने कहा कि ये मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश है।
जेएनयू की छात्रा अपेक्षा प्रियदर्शी ने कहा कि ये फैसला किन हालात में लिया गया वो ख़ुद ही संदेहास्पद है। क्योंकि अब जब देशभर में विरोध हो रहा है तो सब लोग एक दूसरे पर इसका ठीकरा फोड़ रहे है। बीजेपी सरकार कह रही है कोर्ट ने छोड़ा और सुप्रीम कोर्ट कह रहा हमने सिर्फ़ कमेटी गठन करने को कहा था। लेकिन किसी ने बिलक़ीस और उनके परिवार के बारे में नहीं सोचा।
आगे वो दावा करती हैं कि इस फैसले के बाद बिलक़ीस के गांव के आसपास मुस्लिम आबादी में भय है और कई परिवार इन जघन्य अपराधियों के छूटने से भयभीत हैं।
क्या है मामला?
बिलक़ीस बानो मामला एक ऐसा मामला था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच चली थी। गुजरात में उन्हें जान से मारने की धमकी के कारण उच्चतम न्यायालय ने उनका मामला महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया था। बिलक़ीस बानो गैंगरेप व उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या के इस जघन्य मामले में 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
इस साल दोषियों में से एक ने 1992 की नीति को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में रिहाई की गुहार लगाई, जबकि 1992 की छूट नीति को 2012 में ही उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया है और इसी के मुताबिक गुजरात सरकार ने भी 8 मई 2013 को उसे रद्द कर दिया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश के आलोक में गुजरात सरकार द्वारा अपराधियों की रिहाई कहीं से भी वैध नहीं कही जा सकती है। चूंकि यह मामला गुजरात की बजाए महाराष्ट्र में चला था, इसलिए इस मामले में महाराष्ट्र की सरकार का विचार लेना आवश्यक था।
बिहार वामपंथी विधायकों सहित नागरिक समाज का प्रतिरोध
शुक्रवार को बिहार विधानसभा में विधायकों ने तो पटना में नागरिकों का प्रतिवाद हुआ। स्टेशन स्थित बुद्ध स्मृति पार्क के पास दर्जनों की संख्या में पटना के नागरिक इकट्ठे हुए और एक स्वर में बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों की रिहाई के आदेश की निंदा की.
नागरिक समाज ने इस घटना को काफी गंभीर बताया और कहा कि देश यह जानना चाहता है कि जिस दिन दिल्ली के लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी नारी सम्मान की बात कर रहे थे, ठीक उसी समय बिलक़ीस के बर्बर सामूहिक बलात्कार व उनके 7 परिजनों की हत्या के मामले में दोषियों की रिहाई कैसे हुई? अभी तक प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं? नागरिक समाज जानना चाहता है कि क्या यह रिहाई केंद्र सरकार की सहमति से हुआ? यदि ऐसा है तो यह भाजपा द्वारा बलात्कार की संस्कृति को स्थापित करने की बेहद घटिया कोशिश है।
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दिल्ली: कैमरे की नज़र से
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