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सप्ताह में 5 दिन काम और पुरानी पेंशन बहाली को लेकर बैंक यूनियनों की 27 को देशव्यापी हड़ताल

यूएफबीयू ने गुरुवार को मुंबई में अपनी बैठक के बाद हड़ताल का आह्वान किया। 27 जून को बैंक हड़ताल के कारण 3 दिन बैंक बंद रहेंगे। 25 जून को महीने का चौथे शनिवार और 26 को रविवार होने के कारण बैंकों में अवकाश रहेगा।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

देशभर के बैंक कर्मचारी 27 जून को एक दिन की हड़ताल पर जा रहे हैं। सप्ताह में पांच दिन का काम और पुरानी पेंशन की बहाली उनकी प्रमुख माँगो में से एक है।

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी), अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) और नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) सहित नौ बैंक यूनियनों के संयुक्त मंच संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया।

यूएफबीयू ने गुरुवार को मुंबई में अपनी बैठक के बाद हड़ताल का आह्वान किया। 27 जून को बैंक हड़ताल के कारण 3 दिन बैंक बंद रहेंगे। 25 जून को महीने का चौथे शनिवार और 26 को रविवार होने के कारण बैंकों में अवकाश रहेगा।

यूनियन नेताओं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हड़ताल मुख्य रूप से इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के खिलाफ है, जो राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रबंधन का एक प्रतिनिधि निकाय है, जो बैंकिंग कर्मचारियों की कई गैर-वित्तीय मांगों को सालों से अनसुना कर रहे है। यदि मुद्दों का तत्काल समाधान नहीं किया गया तो लगभग 10 लाख कर्मचारियों के हड़ताल में शामिल होने की उम्मीद है।

यूएफबीयू ने 9 जून को एक बयान में कहा, "जरूरी और लंबित मुद्दों को हल करने में आईबीए द्वारा अनुचित देरी" पर विचार-विमर्श करने के बाद यूएफबीयू ने हड़ताल करने का फैसला किया।"यूनियन की मांगों में सभी पेंशनभोगियों के लिए पेंशन योजना में संधोशन और राष्ट्रीय पेंशन योजना को खत्म करना तथा सभी बैंक कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना शामिल है।

यूएफबीयू के संयोजक संजीव के बंदलिश ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया था कि पारंपरिक वेतन समझौते के दौरान यूनियनों द्वारा इन मुद्दों को कई बार उठाया गया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा, "हमें आईबीए द्वारा कई बार समाधान का आश्वासन दिया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।"

वर्तमान में, प्रत्येक महीने का दूसरा और चौथा शनिवार सभी बैंक कर्मचारियों के लिए एक छुट्टी का दिन है, जबकि ओपीएस के तहत प्रत्यक्ष लाभ अप्रैल 2010 के बाद शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए बंद कर दिया गया है।

अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विपरीत, बैंकिंग उद्योग में वेतन वार्ता बैंक यूनियनों और आईबीए के बीच एक समझौते का परिणाम हैं। वेतन संशोधन हर पांच साल के बाद होता है। नवीनतम 11 वें द्विपक्षीय वेतन समझौते पर जुलाई 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे। जिसमें यूनियनों द्वारा पहली बार पांच दिन के सप्ताह की मांग उठाई गई थी।

बंदलिश ने समझाया“ आईबीए ने हमें बताया था कि वह एक प्रयोग के तहत हर महीने दो शनिवार को छुट्टी की अनुमति दी है। जिसके बाद सप्ताह की पांच दिनों की मांग पर विचार किया जाएगा। इसके बाद, आरबीआई और केंद्र सरकार से अनुमति ली ,निजी और विदेशी बैंक आम सहमति पर पहुंचे और अंततः सेवा शर्तों में सुधार कर दिया गया।" 43 बैंकों को कवर करने वाले 10 वें द्विपक्षीय समझौते पर मई 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे।

पांच दिवसीय सप्ताह का मुद्दा 11 वें वेतन समझौते के दौरान फिर से सामने आया, जिस पर बाद में दोनों पक्षों की सहमति के अनुसार चर्चा की जाएगी। हालाँकि, समझौते के अनुसार, यूनियनों द्वारा चर्चा करने के लिए कई अनुरोधों के बावजूद आईबीए द्वारा तब से एक भी बैठक नहीं बुलाई गई थी।

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओसी) की महासचिव सौम्या दत्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यूनियनें आईबीए से सेवा शर्तों पर चर्चा करने के लिए तुरंत एक बैठक बुलाने की मांग कर रही हैं।

दत्ता ने कहा “ 65% से अधिक बैंकिंग कर्मचारी 40 वर्ष से कम आयु के हैं, उन पर बहुत अधिक कार्यभार है और वे लक्ष्य प्राप्त करने के भारीदबाव में हैं। पांच दिन का कार्य सप्ताह उनके काम के दबाव को कम करेगा और यह उनके साप्ताहिक काम के लिए भी महत्वपूर्ण है।”

हालांकि, कार्य सप्ताह में कोई भी बदलाव, आरबीआई, केंद्र और निजी बैंकों की मंजूरी के बिना संभव नहीं होगा।

इस बीच, बाजार से जुड़ी नई पेंशन योजना से जुड़े जोखिमों को देखते हुए, यूनियनें ओपीएस की बहाली के लिए भी दबाव बना रही हैं। दत्ता के अनुसार, 1 अप्रैल, 2010 के बाद भर्ती किए गए कर्मचारियों के लिए ओपीएस को अप्रैल 2010 में एनपीएस से बदल दिया गया था ।

ओपीएस को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) अधिनियम, 1972 के तहत लागू किया गया था, जिसके तहत कोई कर्मचारी योगदान नहीं था और पेंशनभोगी को अंतिम वेतन का 50% प्राप्त होता था। इसके विपरीत , दिसंबर 2003 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई एनपीएस एक योगदान-आधारित पेंशन योजना है।

पेंशन राशि बाजार से जुड़ी हुई है और कर्मचारियों के लिए सुरक्षा कवर करने में विफल है। इस योजना ने देश भर के सरकारी कर्मचारियों के कई वर्गों ने आलोचना की है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में आधे से अधिक कर्मचारी एनपीएस के अंतर्गत आते हैं, दत्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "ये कर्मचारी अपनी सेवानिवृत्ति की अवधि को सुरक्षित रखने के लिए एक बेहतर योजना के योग्य हैं। हम ओपीएस के तहत आने वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन दरों में संशोधन की भी मांग कर रहे हैं।" दत्ता के अनुसार, केंद्र सरकार के कर्मचारियों के विपरीत, 1995 से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते को छोड़कर मूल पेंशन को संशोधित नहीं किया है।

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