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आर्टिकल 370: नज़रबंद कश्मीरी नेताओं को भाषण देने वाले भाजपा नेता हुए बेनक़ाब

भाजपा कश्मीर के राजनीतिक नेताओं या जनता पर अपना बोझ नहीं लाद सकती है।

KASHMIR

कश्मीर घाटी में केंद्र सरकार द्वारा धारा 370 को निरस्त कर देने और संपूर्ण तालाबंदी के ढाई महीने बाद, जो निज़ाम मार्शल शासन की बानगी को दर्शाता है, दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी संकटग्रस्त कश्मीर के लोगों को शांत और आराम से रहने की ही सलाह दे सकती है।

श्रीनगर में पार्टी सम्मेलन को संबोधित करते हुए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महासचिव राम माधव ने घाटी के राजनीतिक नेताओं को कुछ ऋषि मुनियों जैसी सलाह दी कि किस तरह से राज्य में फैली अव्यवस्था की स्थिति में राजनीति का संचालन करना चाहिए। "पूर्ण राज्य के दर्जे की जल्द बहाली की मांग को लेकर राजनीति करनी चाहिए। लेकिन एसकेआईसीसी (SKICC) को यह कहते हुए गुप्त संदेश नहीं भेजे जाने चाहिए कि बंदूकें उठानी होंगी। यह राजनीति नहीं है।” उन्होंने ये बातें तब कही जब वे 300 से भी कम दर्शकों के एक सम्मेलन को घाटी में संबोधित कर रहे थे।

रिकॉर्ड के लिए बता दें कि 5 अगस्त के बाद किसी प्रमुख भाजपा नेता द्वारा संबोधित की जाने वाली यह पहली सार्वजनिक सभा थी। एसकेआईसीसी(SKICC) यानी ‘शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेन्शनल सेंटर’ में लगभग एक दर्जन राजनेताओं को नज़रबंद किया हुआ है। सच्चे हिंदुत्व वाले अंदाज़ में माधव ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि एसकेआईसीसी से बंदूक उठाने के गुप्त संदेश वास्तव में भेजे जा रहे हैं। हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जम्मू और कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को अन्य स्थानों पर नज़रबंद/जेल में रखा गया है और उन पर इस तरह का आरोप लगाया जा रहा है जैसे कि वे भी इस तरह की भड़काऊ या आग लगाऊ गतिविधियों में लिप्त हैं।

माधव ने अपने भाषण के दौरान भाजपा और केंद्र सरकार की मंशा को स्पष्ट किया। उन्होंने वादा किया कि कश्मीर में नया प्रशासन ‘सबका साथ, सबका विकास’ जोकि पार्टी का विशुद्ध नारा है और जो सिर्फ़ नारा ही है, उसका कश्मीर में भी अनुसरण करेगा, जो घाटी में समावेशी विकास को सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि यह रास्ता बल के माध्यम से विकास के इस मार्ग को लागू करने में बाधक नहीं होगा। माधव ने कहा, “जम्मू-कश्मीर के लिए अब केवल दो ही रास्ते होंगे- शांति और विकास और जो भी इनके बीच में आएगा उससे सख़्ती से निपटा जाएगा। यदि 200-300 लोगों को हिरासत में रखने से शांति बनाए रखने में मदद मिलती है, तो उन्हें वहां थोड़ी देर रहने देना चाहिए। हम इस नई प्रणाली को लागू करने के लिए 300-400 और लोगों को बंदी बना सकते हैं और भारत में ऐसे लोगों के लिए कई जेल मौजूद हैं।"

माधव ने सार्वजनिक रूप से सीधे तौर पर कहा कि केंद्र सरकार पिछले कुछ महीनों से अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न प्रवक्ताओं के माध्यम से अपनी बात कर रही है। उस विशेष गीत का सार यह है कि मुख्यधारा के राजनेताओं का कर्तव्य है और निश्चित रूप से आम जनता का भी कि वे भाजपा को अपने उद्देश्य में सफल होने में मदद करें।

इसलिए, वे सरकार को सहायता करें और घाटी के लोगों को समझाएँ और उनसे आग्रह करें कि वे नए निज़ाम को अपना लें, और उनके झूठ के पुलिंदे जिसमें वे हर दिन विकास के बारे में झूठ बोलते हैं पर भी विश्वास करना चाहिए। इसलिए, आम जनता को यह भी विश्वास दिलाना चाहिए कि घाटी का विकास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि कश्मीरी स्वायत्तता इसके लिए ज़िम्मेदार है और इसका उन्मूलन कश्मीर में सुनहरे युग का आगाज़ करेगा, और यह कश्मीर को जो अब नया केंद्र शासित प्रदेश है को देश के बाक़ी हिस्सों के साथ बराबर लाकर खड़ा कर देगा। वह कौन सा हिस्सा है जो इतना विकसित है उसके बारे में माधव तनिक भी ज़िक्र नहीं करते हैं। झारखंड या तमिलनाडु? छत्तीसगढ़ या महाराष्ट्र? बिहार या केरल?  

जब तक जेल में बंद और आरोपित नेता लोग भाजपा और वर्तमान निज़ाम जो भूमिका उनसे निभवाना चाहता है और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें उनकी परिभाषा के अनुसार विध्वंसक माना जाएगा, बिना सबूत की पुष्टि किए उन्हें विभिन्न प्रकार की जेलों में रखा जाएगा, जो हम बताया गया है कि जो भारत में लाज़मी है। "राजनीति करें" इस वाक्यांश का स्पष्ट अर्थ यही है।

और बीजेपी का क्या? किस तरह की राजनीति करने के लिए कह रही है? माधव ने अपने दर्शकों को इसके बारे में बताया, लेकिन यह देखते हुए कि पार्टी को घाटी में अपनी पहली सार्वजनिक सभा को आयोजित करने में ढाई महीने लग गए, जबकि सेना घाटी को अपने जूते तले रौंद रही हैं, इससे ज़्यादा कल्पना करने के लिए कुछ नहीं बचा है।

बेशक, हम सभी जानते हैं कि भाजपा किस तरह की "राजनीति" करना चाहती है और कर रही है। लोकसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने के कुछ ही महीनों के भीतर, पार्टी ने अनुच्छेद 370 को सदन या उसके बाहर बिना किसी बहस या बहस का ढोंग किए एकदम निरस्त कर दिया, घाटी को बंद कर दिया, ओर सेना के दस्तों को भेजकर बिना इसके परिणाम को सोचे, अधिकांश राजनेताओं को जेल में डाल दिया और साथ ही कई अन्य नागरिकों को भी नज़रबंद कर दिया।

घाटी को बंद करने के कुछ हफ़्तों के भीतर ही इसने अपने विभिन्न माध्यमों के ज़रीये झूठ बोलना शुरू कर दिया था कि घाटी में जीवन सामान्य हो रहा है, इस उम्मीद में कि उसके झूठ पर विश्वास कर लिया जाएगा क्योंकि उसने प्रेस को पूरी तरह से जकड़ा हुआ था। दुर्भाग्य से, यह उन सभी के लिए काफ़ी स्पष्ट था जिन्होंने देखा कि घाटी में कुछ भी सामान्य नहीं है और अब घाटी संदिग्ध रूप से क़ब्ज़े वाले क्षेत्र की तरह दिखती है।

इस बीच, छोटे और बड़े झूठ कपटपूर्ण तरीक़े से जनता के सामने आते रहे। इसमें सबसे बड़ी बात यह कि यह सब इसलिए आवश्यक था क्योंकि स्वायत्तता ने कश्मीर को विकास के मामले में देश के मुक़ाबले पछाड़ा हुआ था और जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता के इस ढकोसले से मुक्त करने का काम इसे विकसित करने में मदद करने के लिए किया गया है। अब देखिए, विकास के काम को आगे बढ़ाने के लिए दसियों हज़ार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई, प्रेस पर नकेल डाली गई, सभी प्रकार के संचार नेटवर्क पर रोक और सामूहिक गिरफ़्तारी की गई। संक्षेप में, लोकतंत्र को स्थगित कर दिया गया और कश्मीरी जनता पर एक निरंकुश शासन थोप दिया गया।

हमें इस पर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए? क्योंकि इतिहास में हर टिनपोट तानाशाह (और औपनिवेशिक शासन) ने एक ही बात कही है: आपको रोटी चाहिए, स्वतंत्रता एक अनावश्यक विलासिता है।

विकास के बारे में झूठ के पीछे के सच को समझना बहुत मुश्किल नहीं है। कश्मीर में जो किया गया है वह अनिवार्य रूप से एक अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र बनाने और चुनाव जीतने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। भाजपा को यह पता है कि कट्टर हिंदुत्व मतदाता पहले से ही इसके पीछे लामबंद है और उस विशेष राजनीतिक लाइन को आगे बढ़ाकर उसे अब ज्यादा दुहाई नहीं जा सकता है। कश्मीर इसके पीछे एक ऐसा भाषाई क्षेत्र होगा जो जरूरी नहीं कि सांप्रदायिक रूप से इसके पीछे झुका हो। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के लिए चलाए गए अभियानों में उन्होंने इसका अच्छा- ख़ासा प्रदर्शन किया है।

 

सुहित के सेन कोलकाता से एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

 

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