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बीच-बहस : भारत में सब अच्छा नहीं है, मोदी जी!

ख़ैर, तब भी हम मोदी समर्थकों का कहा मान लेते हैं कि बाहर जाकर अपने देश की बुराई नहीं करनी चाहिए, लेकिन अपने देश लौटकर तो अपनी सच्चाई स्वीकार कर लेनी चाहिए। या ढिठाई दिखाकर कहना चाहिए कि सब ठीक है- कि नोटबंदी एक सफल योजना रही, कि पकौड़ा बेचना भी एक रोज़गार है! कि ऑटो सेक्टर में मंदी ओला-उबर की वजह से है!
howdy modi
फोटो साभार : एनडीटीवी

क्या अलग-अलग भाषाओं में बोलने से बुरा अच्छा हो जाएगा?

क्या अर्थव्यवस्था की मंदी हिंदी की जगह पंजाबी या बंगाली में बोलने पर तेज़ी में बदल जाएगी?

क्या तमिल-तेलुगु में बेरोज़गारी को रोज़गार कहा जा सकता है?

क्या गुजराती में बोलने पर मॉब लिंचिंग का अर्थ बदल जाएगा?

क्या झारखंड के विकलांग व्यक्ति की जान वापस आ जाएगी?

क्या अख़लाक़, पहलू और तबरेज़ के घर वालों को न्याय मिल जाएगा?

नहीं...

लेकिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ऐसा ही सोचते हैं, तभी तो वे ह्यूस्टन के मंच पर बेधड़क कहते हैं कि भारत में सब अच्छा है। और इसी बात को वे कई भाषाओं में दोहराते हैं।

ये कुछ वैसा ही है जैसा हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स का ये सिद्धांत, "अगर एक झूठ बार-बार बोला जाए, तो वह सच हो जाता है।"

जी हां, अमेरिका के ह्यूस्टन में रविवार को 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में बताया कि "भारत में सब अच्छा है, भारत में सब चंगा है।"

उन्होंने वहां मौजूद लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, "हाउडी, माय फ्रेंड्स… अगर आप मुझसे पूछोगे, 'हाउडी, मोदी' तो मेरा जवाब है- भारत में सबकुछ अच्छा है।"

आपको बता दें कि 'हाउडी','हाउ डू यू डू?’ यानी आप कैसे हैं? का ही संक्षिप्त रूप है। बताया जाता है कि दक्षिण पश्चिमी अमेरिका में आमतौर पर अभिवादन के तौर पर इसे बोला जाता है।

हो सकता है कि आप कहें कि मेहमानों के सामने अपने घर की बुराई नहीं करते। चलिए ठीक है, हम मान लेते हैं, हालांकि आज की दुनिया जिसे 'ग्लोबल विलेज़' कहा जाता है, में किसकी सच्चाई किससे छिपी है! क्या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान, भारत आकर या अमेरिका जाकर इसी तरह कहें, तो क्या आप मान लेंगे? या सिर्फ़ हंसेंगे…!

ख़ैर, तब भी हम मोदी समर्थकों का कहा मान लेते हैं कि बाहर जाकर अपने देश की बुराई नहीं करनी चाहिए, लेकिन अपने देश लौटकर तो अपनी सच्चाई स्वीकार कर लेनी चाहिए। या ढिठाई दिखाकर कहना चाहिए कि सब ठीक है- कि नोटबंदी एक सफल योजना रही, कि पकौड़ा बेचना भी एक रोज़गार है! कि ऑटो सेक्टर में मंदी ओला-उबर की वजह से है!

क्या भारत लौटकर मोदी जी इन समस्याओं का ज़िक्र करेंगे। क्या अब तक कभी किया है, उन्होंने या उनके मंत्रियों ने?

दरअसल ऐसे 'रंगारंग' मेगा आयोजन किए ही इसलिए जाते हैं कि इन सब पर पर्दा पड़ा रहे।

भारत में माननीय प्रधानमंत्री जी क्या बातें करते हैं- "ओम और गाय शब्द सुनकर कुछ लोगों को करंट लग जाता है, उनके बाल खड़े हो जाते हैं।" उनके मंत्री क्या कहते हैं कि गणित में क्या रखा है। कहते हैं कि गुरुत्वाकर्षण की खोज आइंस्टीन ने की।

जैसे ही भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी, किसान आत्महत्या, शिक्षा-स्वास्थ्य इस देश में चुनावी मुद्दा बनने की ओर बढ़ता है, जैसे ही कामगारों के संघर्ष से उनके मुद्दे फोकस में आते हैं, अचानक हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान केंद्र में आ जाते हैं। कल भी यही हुआ, आज भी यही हो रहा है। 2018 में हुए किसान आंदोलन, मज़दूरों-कर्मचारी आंदोलन, छात्र आंदोलन जैसे ही आगे बढ़े पुलवामा और बालाकोट हो गया। अब दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र में अगले महीने अक्टूबर में चुनाव हैं तो बालाकोट फिर सक्रिय हो गया।

हमारे सेना प्रमुख ने सोमवार को बताया कि पाकिस्तान के बालाकोट में फिर आतंकी सक्रिय हो गए हैं और उसके ख़िलाफ़ फिर बड़ी एयरस्ट्राइक हो सकती है। मंदिर-मस्जिद मुद्दा तो अब रोज़ाना सुनवाई के चलते नये सिरे से सतत सुर्खियों में बना हुआ है। टीवी वाले कह रहे हैं कि 'अबकी दीवाली, राम मंदिर वाली दिवाली'। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मध्य अक्टूबर तक सुनवाई पूरी हो जाएगी और समझा जा रहा है कि नवंबर तक फैसला आ जाएगा।

यह भी माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री का 'सब अच्छा है' बयान का मतलब भारतीय अर्थव्यवस्था के अलावा कश्मीर के ताज़ा हालात की तरफ़ भी था, लेकिन कश्मीर की हक़ीक़त जानने वाले क्या कह सकते हैं कि कश्मीर में आज सबकुछ अच्छा है? ठीक है? और अब तो कश्मीर भी चुनावी मुद्दा है। हरियाणा, महाराष्ट्र में उसे खुलकर भुनाया जा रहा है और आने वाले झारखंड व अन्य चुनावों में भी भुनाया जाएगा।

कई भाषाओं में 'अच्छा' वाला बयान देकर शायद गृहमंत्री अमित शाह के हिंदी दिवस पर हिंदी को लेकर दिए गए बयान की भरपाई करना भी प्रधानमंत्री मोदी का मकसद रहा होगा। वरना हिंदी, अंग्रेजी में ही अच्छा कहकर बात बन सकती थी। लेकिन उन्होंने कई भाषाओं के वाक्यों का प्रयोग किया। आपको मालूम है कि हिंदी दिवस पर गृहमंत्री अमित शाह ने देश की एक भाषा के तौर पर हिंदी की वकालत की थी, जिससे अन्य भारतीय भाषा के लोगों में भारी नाराज़गी है।

"अबकी बार ट्रंप सरकार"

दूसरी आपत्ति "अबकी बार ट्रंप सरकार" नारे को लेकर है। ह्यूस्टन के मंच से मोदी ने बहाने से ही सही डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव प्रचार कर दिया। मोदी ने एनआरजी स्टेडियम में मौजूद भारतीय मूल के करीब 50 हज़ार लोगों को याद दिलाया कि ट्रंप ने कहा था, ‘‘अबकी बार ट्रंप सरकार’’। उन्होंने कहा कि ट्रंप के शासनकाल में व्हाइट हाउस में दीवाली मनाया जाना भी अनोखा रहा। उन्होंने ट्रंप को व्हाइट हाउस में भारत का सबसे अच्छा दोस्त बताया।

एक देश के प्रधानमंत्री का इस तरह दूसरे देश के प्रमुख के लिए प्रचार करना किसी भी स्तर पर सही नहीं है। न नैतिक स्तर पर, न कूटनीति के स्तर पर।

आपको मालूम हो कि अमेरिका में 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहा है। जिसके लिए प्रचार अभियान लगभग शुरू हो गया है।

अमेरिका में करीब 27 लाख प्रवासी भारतीय रहते हैं जो आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी मज़बूत माने जाते हैं।

अंत में यही कहा जा सकता है कि जिस तरह "अच्छे दिन आने वाले हैं"महज़ एक चुनावी जुमला साबित हुआ और पूरे देश में मज़ाक का विषय बना। उसी तरह "भारत में सब अच्छा है" भी हमारे देश को दूसरों की नज़रों में उठाने की बजाय हंसी का पात्र न बना दे।

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