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चुनाव 2019; महाराष्ट्र : क्या नतीजों को प्रभावित कर पाएगा नाराज़ दलितों का वोट

पिछले पांच वर्षों में दलित समुदाय ने महाराष्ट्र में कई विरोध प्रदर्शन किया है लेकिन ऐसी संभावना है कि उनका वोट विभाजित हो जाएगा।
Maharashtra Dalits

बेरोज़गारी और कृषि संकट के अलावा दलित समस्या एक अन्य कारक है जो 2019 के आम चुनावों के परिणाम को मुख्य रूप से प्रभावित कर सकता है।

पिछले पांच वर्षों में दलितों के ख़िलाफ़ बड़ी संख्या में हुई क्रूरता की सभी ने निंदा की है। रोहित वेमुला, गुजरात के ऊना में दलित युवकों की नृशंसता से पिटाई, महाराष्ट्र में बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा नष्ट करने जैसी घटनाएं और भीमा कोरेगांव में हुए दंगे ऐसे ही कुछ मामले हैं। दलितों ने न केवल इन्हीं मामलों के ख़िलाफ़ बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जातिवादी राजनीति के ख़िलाफ़ भी विरोध प्रदर्शन किया।

ये मामला पूरे भारत में हुआ है। 48 लोकसभा सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में बाबासाहेब अम्बेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व में पहला विशाल मार्च लगभग दो साल पहले आयोजित हुआ। अंबेडकर की प्रतिमा गिराने की घटना के बाद पूरे महाराष्ट्र में दलितों ने एकजुट होकर मौजूदा शासन के ख़िलाफ़ आवाज उठाई। भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ इस समुदाय के लिए इकट्ठा होने का एक अन्य मौक़ा था। ज्ञात हो कि इस लड़ाई में दलितों ने पेशवा सेना को हराया था। जब भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी, अचानक यहां 1 जनवरी 2018 को दंगा भड़क गया जिससे देश भर में दलित नाराज़ हो गए। यह भी एक घटना थी जहां दलित राजनीति ने एक निर्णायक क़दम बढ़ाया।

नेता के तौर पर प्रकाश अंबेडकर को महाराष्ट्र ने उभरते हुए देखा है। आज उन्होंने वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) राजनीतिक पार्टी बनाई है। दलित समुदाय के युवा उन्हें बड़ी संख्या में समर्थन कर रहे हैं।

युवा भाग्यश्री कुराने राज्य स्तर पर वीबीए की सोशल मीडिया का संचालन करती हैं। वह पार्टी की पुणे शहर के पदाधिकारी भी हैं। उन्हें लगता है कि दलित युवा इसे न केवल एक राजनीतिक पार्टी के रूप में बल्कि एक आंदोलन के रूप में देखते हैं। वे कहती हैं, “अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए दीर्घकालिक लड़ाई शुरू करने के लिए इस तरह की राजनीतिक जागरूकता और तत्परता पूरी तरह से नई है जो आम जनता के साथ हो रहा है। उन्हें प्रकाश अंबेडकर के तौर पर एक गंभीर नेता मिला है। इसलिए 2019 के आम चुनावों के परिणामों के साथ ये आंदोलन बढ़ेगा।”

भाग्यश्री का यह भी मानना है कि प्रगति के लिए इस लड़ाई को लड़ने के लिए मराठा युवाओं सहित सभी वंचित वर्गों को एक साथ लाने का प्रयास दलित आंदोलन की एक नई रिवायत है। कुराने कहती हैं, “अब हमारे पास मराठा जाति से पुणे शहर के उप प्रमुख हैं। जहां तक मुझे पता है पश्चिमी महाराष्ट्र में कई ओबीसी और मुस्लिम युवा शामिल हो रहे हैं। इस तरह आख़िरकार इससे वंचित वर्गों के राजनीति की संभावना बढ़ जाएगी। यही कारण है कि वंचित बहुजन अब एक उपयुक्त नाम है।"

विदर्भ के चंद्रपुर के श्रीकांत साओ ने कहा कि दलित युवा अंबेडकर को अपनी पहली पसंद के रूप में देख रहे थे। “हालांकि उनका सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी है और वे इसे हराना चाहते हैं। दलित समुदाय में बड़ी संख्या में युवा हैं जो गंभीरता से सोचते हैं कि अंबेडकर एक मौका पाने के हक़दार हैं।”

इसी तरह की चर्चाएं यवतमाल और नांदेड़ निर्वाचन क्षेत्रों में सुनी जा सकती हैं। नांदेड़ के ‘जय भीम नगर’ में बबीता भदड़गे ने कहा कि उनकी बस्ती ने पहले ही इस बार वीबीए को मतदान करने का फैसला कर लिया था। भदड़गे कहती हैं, "हमने कांग्रेस को देख ही लिया है। बीजेपी सत्ता में रहने लायक नहीं है। तो हम प्रकाश अंबेडकर के लिए कोशिश करें।"

हालांकि इस समय कई कई दलित संगठन और युवा हैं जो सक्रिय रूप से दलितों से वीबीए को वोट न देने की अपील कर रहे हैं। ऐसे ही युवाओं में एक मुंबई के विशाल हिवले हैं। वह 'संविधान समाज समिति' के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं जो लोगों से 'निर्णायक रूप से' मतदान करने की अपील कर रहे हैं।

विशाल ने कहा, “प्रकाश अंबेडकर जी दलित वोटों को विभाजित करेंगे। न तो वे और न ही कांग्रेस जीतेगी। जो भी कारण हो, दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हुआ। इसलिए ये समय एकजुट होकर बड़े दुश्मन को हराने का है। बीजेपी सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है और देश भर में अंबेडकरवादी विचार पर हमला कर रही है। ऐसी हालत में हमें यह देखना चाहिए कि बीजेपी सत्ता में वापस न आए।"

सचिन खरात और सुषमा अंधारे सहित युवा दलित नेताओं के अन्य संगठन ने भी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ हाथ मिलाया है।

सचिन ने कहा, “हमारी स्थिति स्पष्ट है। कांग्रेस और एनसीपी धर्मनिरपेक्ष पार्टी हैं। वे संविधान में विश्वास करते हैं। बीजेपी इसे बदलना चाहती है। इसलिए हम हर जगह जा रहे हैं और लोगों से वीबीए को वोट न देने की अपील कर रहे हैं।"

इसलिए दलित आंदोलन अन्य कारकों में बेहद महत्वपूर्ण है जो इन लोकसभा चुनावों को दिशा दे रहा है। अब यह देखना ज़रूरी होगा कि क्या यह सरकार को बदलने में कामयाब होता है या वोटों को विभाजित करता है।

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