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चारधाम यात्रा: यात्रियों के साथ ‘मौतों’ की भी रिकॉर्ड संख्या नियंत्रित करने की ज़रूरत

....एक यात्रा सीजन में इतने यात्रियों की मौतें क्या कम की जा सकती थीं? क्या यह प्रशासनिक असफलता है? क्या यह सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते है? स्वास्थ्य जांच न होने के चलते ये मौतें हुईं हैं? या चारधाम यात्रा की अतार्किक योजना इसके लिए ज़िम्मेदार है?
kedarnath

उत्तराखंड के चार धाम आने वाले यात्रियों की संख्या ने इस बार रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और इसके साथ ही रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं चार धाम यात्रा के दौरान होने वाली मौतों ने भी। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार इस साल, 24 अक्टूबर की सुबह तक, उत्तराखंड के चारधाम 43,09,634 तीर्थयात्री चार धाम पहुंचे थे। इसके अलावा सिखों के तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब 2,47,000 श्रद्धालु पहुंचे थे। यानी कुल मिलाकर 45,56,634 तीर्थ यात्री।

इसके साथ ही 277 लोग (22 अक्टूबर तक) हार्ट अटैक समेत अन्य स्वास्थ्य दिक्कतों से यात्रा के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा 146 मौतें केदारनाथ में, 66 मौतें बद्रीनाथ में, 48 मौतें यमुनोत्री में और 17 मौतें गंगोत्री में हुई हैं। दुर्घटनाओं में मारे गए लोग इसमें शामिल नहीं हैं।
 
3 मई को गंगोत्री-यमनोत्री के कपाट खुलने के साथ शुरू हुई यात्रा अब समापन की ओर है। गंगोत्री धाम के कपाट 26 अक्टूबर को, यमनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट 27 अक्टूबर को जबकि बद्रीनाथ धाम के कपाट 19 नवंबर को बंद हो रहे हैं।

मानसून में यात्रियों की संख्या कम हो जाती है। बरसात बंद होने के बाद अक्टूबर में यात्रियों की भीड़ फिर बढ़ जाती है। मई, जून और अक्टूबर में सबसे ज्यादा लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इन तीन महीनों के तकरीबन 90 दिनों में तकरीबन 277 जानें गई हैं। यानी औसतन हर रोज 3 लोग मारे गए।

उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों का मानना है कि यात्रा के बेहतर प्रबंधन से मौतों का आंकड़ा काफी कम किया जा सकता है लेकिन इसके लिए बड़े स्तर पर और गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है।

हेल्थ चेकअप ज़रूरी हो और सावधानी भी

2013 की केदारनाथ आपदा के बाद चारधाम में यात्रियों की संख्या नियंत्रित किए जाने की बातें की जाती रही हैं। उत्तराखंड के चारों धाम तीर्थाटन के साथ-साथ पर्वतीय जिलों की आजीविका से भी जुड़े हैं। सीमांत जिलों में यह रोजगार का अहम ज़रिया है। इसलिए राज्य सरकार भी चारधाम यात्रा का भरपूर प्रचार-प्रसार करती है ताकि तीर्थाटन से जुड़ी आर्थिकी बढ़ायी जा सके।

देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और चारधाम यात्रा के लिए अपनी सेवाएं देने वाले डॉक्टर मनोज उप्रेती का कहना है कि चारधाम आने वाले यात्रियों को तो रोका नहीं जा सकता है लेकिन कुछ सावधानियां ज़रूरी हैं ताकि यात्रा में होने वाली मौतों की संख्या को घटाया जा सके। रजिस्ट्रेशन के साथ ही हेल्थ चेकअप अनिवार्य होना चाहिए।

डॉक्टर उप्रेती कहते हैं “बेहद कम लोग यात्रा से पहले हेल्थ चेकअप करवाकर आते हैं। देश के ग्रामीण हिस्सों से आने वाले ज्यादातर लोग चेकअप नहीं कराते हैं। इसके अलावा लोगों की जानकारी और तैयारी भी अपर्याप्त है जिनकी वजह से वह बीमार पड़ जाते हैं। अगर कोई ट्रेन में बैठकर गुजरात या राजस्थान से आता है तो जिन कपड़ों में वे घर से चलते हैं उन्हीं कपडों में पहाड़ों पर पहुंच जाते हैं। वहां की ठंड का उन्हें अनुमान नहीं होता और तैयारी भी नहीं। ऋषिकेश से चला यात्री केदारनाथ बेस तक पहुंचकर सीधे केदारनाथ के लिए पैदल चलना शुरू कर देता है। बदली हुई जलवायु के लिहाज से उनके शरीर का अनुकूलन नहीं हो पाता।"

वह आगे कहते हैं, '50 या 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग जिन्हें ब्लड प्रेशर या डायबिटीज है, वह हमेशा ज़्यादा खतरे में होते हैं। कोविड के बाद ह्रद्य संबंधी मुश्किलें बढ़ी हैं और हार्ट अटैक के मामले भी ज़्यादा सामने आए हैं। इन वजहों से इस बार ज्यादा मौतें दिखाई पड़ रही हैं।"

केदारनाथ और यमुनोत्री ट्रैक पर पैदल चढाई करनी होती है। स्वास्थ्य के लिहाज से इन्हीं दो ट्रैक पर सबसे अधिक चुनौती है। डॉ उप्रेती कहते हैं “ऋषिकेश बस स्टेशन पर हेल्थ चेकअप सेंटर बना है लेकिन अपने वाहनों से आने वाले ज्यादातर लोग ऋषिकेश आए बिना आगे बढ़ जाते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आने वाले लोग भी बमुश्किल चेकअप के लिए तैयार होते हैं। यात्रा के लिए अनफिट लिखने पर भी वे अपने रिस्क पर यात्रा के लिए आगे बढ़ जाते हैं”।

डॉक्टर उप्रेती कहते हैं कि अमरनाथ यात्रा के लिए बनाए गए नियम बेहतर हैं। इसमें हेल्थ चेकअप के बाद ही व्यक्ति अपनी यात्रा शुरू करता है।  दूसरा हेल्थ चेकअप पहलगांव में होता है। स्वस्थ होने पर ही उसे पैदल लंबी यात्रा की अनुमति मिलती है।

चारधाम में बीमार पड़ने या दिल का दौरा पड़ने जैसी नाजुक स्थिति में एयरलिफ्ट कर ऋषिकेश एम्स लाना होता है।

स्वास्थ्य सुविधाओं पर नए सिरे से सोचने की ज़रूरत

6 महीने चलने वाली चारधाम यात्रा में पर्यटन विभाग के साथ आपदा प्रबंधन विभाग, यातायात प्रबंधन के लिए पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग समेत चारधाम जिलों का पूरा प्रशासनिक अमला शामिल रहता है। पर्यटन विभाग शीतकाल के 6 महीनों में भी तीर्थयात्रियों को चारों धाम के देवी-देवताओं के शीतकालीन प्रवास स्थल पर दर्शन की योजना बना रहा है।

राज्य में डॉक्टर और पैरा-मेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य सुविधाएं पहले ही कम हैं। पर्वतीय जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। यात्रा के समय चारधाम में डॉक्टर और पैरा-मेडिकल स्टाफ की ड्यूटी आम लोगों के लिए भी मुश्किल पैदा करती है।

डॉ उप्रेती कहते हैं कि हमने स्वास्थ्य मंत्री से चारधाम यात्रा के लिए डॉक्टर समेत स्वास्थ्य कर्मचारियों की अलग से नियुक्ति की मांग रखी है। यात्रा मार्ग पर और चारधाम से जुड़े ज़िलों उत्तरकाशी (गंगोत्री और यमुनोत्री), रुद्रप्रयाग (केदारनाथ) और चमोली (बदरीनाथ, हेमकुंड) में चोट लगने या बीमार पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा तो हो जाती है। लेकिन दिल का दौरा पड़ने जैसी स्थिति में व्यक्ति को हेलिकॉप्टर से ऋषिकेश एम्स (सड़क मार्ग से 216 किलोमीटर) लाना पड़ता है। इसमें इतना समय लगता है कि व्यक्ति को बचाना मुश्किल हो जाता है।

रुद्रप्रयाग में कार्डियोलॉजिस्ट नहीं

चारों धाम में सबसे ज्यादा 146 मौतें रुद्रप्रयाग में केदारनाथ यात्रा के दौरान हुई हैं। ज्यादातर मौतों की वजह कठिन चढ़ाई की वजह से सांस फूलना और हार्ट अटैक है। रुद्रप्रयाग के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर एचसीएस मर्तोलिया बताते हैं “जिले में कोई कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है। यात्रा के लिए हेल्थ स्क्रीनिंग की व्यवस्था है। लेकिन   संसाधनों की कमी और यात्रियों के व्यवहार के कारण स्क्रीनिंग का कड़ाई से पालन नहीं हो पाता।"

यात्रियों के दबाव में चरमरा रही व्यवस्था

चारधाम परियोजना के तहत बनाई गई डबल लेन सड़कों पर यात्रा के लिए आने वाले वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली सूचना के मुताबिक इस वर्ष यात्रा काल में 4,16,673 वाहन राज्य में आ चुके हैं।

यात्रियों और उनके वाहनों की बढ़ती संख्या पर्वतीय जिलों के बुनियादी ढांचे और प्राकृतिक संसाधन पर भी दबाव बढ़ा रही है। पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि केदारनाथ धाम में कम से कम 15 से 20 हजार लोगों के रहने की व्यवस्था की जाए।
 
केदारनाथ के पूर्व विधायक कांग्रेस नेता मनोज रावत कहते हैं कि केदारनाथ बेहद संवेदनशील और बहुत छोटी सी जगह है। जहां एक दिन में केवल 500 से अधिकतम एक हज़ार लोग ही ठहारए जा सकते हैं। ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में एक दिन में 15-16 हजार यात्री पहुंच रहे हैं। सुविधाएं कम पड़ जा रही हैं। बढ़ती हुई संख्या के कारण बदइंतजामी हो रही है। केदारपुरी के आसपास के क्षेत्रों को मिला लें तो भी 15-16 हजार यात्रियों को ठहराना संभव नहीं है। पारिस्थतकीय के लिहाज से सुरक्षित भी नहीं है।

इस वर्ष सितंबर के आखिरी हफ्ते में केदारनाथ में 9 दिनों में 3 हिमस्खलन की घटनाएं हुईं
 
मनोज रावत कहते हैं कि यहां यात्रा के समय वाहनों की लंबी कतारें लग जाती हैं, लोगों को कई-कई घंटे इंतज़ार करना पड़ता है।  स्थानीय लोगों को एक घंटे की दूरी 4 घंटे में तय करनी पड़ती है। स्वास्थ्य सुविधाएं ऐसी नहीं हैं कि दिल का दौरा पड़ने वाले व्यक्ति को बचाया जा सके।
 
चारधाम में यात्रा के दौरान बीमार पड़ने पर या आपात स्थिति में आपदा प्रबंधन विभाग यात्रियों को सुरक्षित लाने में मदद करता है। विभाग के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला चारधाम यात्रा में होने वाली मौतों के लिए यात्रियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हैं। वह कहते हैं, “आजकल वीकेंड टूरिज्म का ज़माना है। लोग दिल्ली से चलकर दो दिन में दो धाम देख लेना चाहते हैं। 200 मीटर से सीधे 2000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं।"

18 अक्टूबर को केदारनाथ में हेलिकॉप्टर क्रैश होने से 7 मौतें हुईं।

स्वास्थ्य दिक्कतों के अलावा दुर्घटनाओं में भी इस वर्ष कई तीर्थयात्रियों की मौतें हुई हैं। उत्तरकाशी में 6 जून को यात्रियों से भरी बस खाई में गिरने से 26 यात्रियों की मौत हुई थी। 18 अक्टूबर को केदारनाथ में हेलिकॉप्टर क्रैश होने से 7 मौतें हुईं।

वहीं, स्वास्थ्य विभाग के एक उच्च अधिकारी (नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर) कहते हैं कि एक यात्रा सीजन में इतने यात्रियों की मौतें क्या कम की जा सकती थीं? क्या यह प्रशासनिक असफलता है? क्या यह सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते है? स्वास्थ्य जांच न होने के चलते ये मौतें हुईं हैं? या चारधाम यात्रा की अतार्किक योजना इसके लिए ज़िम्मेदार है?

सुरक्षित उत्तराखंड का संदेश देने में नाकाम न हो जाएं

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी कहती हैं कि अगर इसी तरह मौतें जारी रहीं तो सुरक्षित उत्तराखंड का संदेश देने में हम नाकाम हो जाएंगे। कोशिश होनी चाहिए कि सुरक्षित सुविधाजनक यात्रा दे सकें। हर पर्यटक की स्वास्थ्य जांच की जा सके। चारधाम यात्रा हमारे लिए गौरव का विषय है। यात्रियों की संख्या नियंत्रित की जानी चाहिए।

देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह

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