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मौसम के बिगड़े तेवर: वैज्ञानिकों ने पहले ही चेताया था, लेकिन हम नहीं चेते

दुनिया भर की: वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक गर्मी और भीषण बारिश, दोनों एक दूसरे से नज़दीकी रूप से जुड़े हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण इन्हें बेहद संगीन स्वरूप मिल रहा है।
Climate change

पिछले दिनों पाकिस्तान जहां अपने इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ से हुए विनाश से जूझ रहा था, तो दक्षिण-पश्चिमी चीन में भी भयानक बारिश चल रही थी। उधर, पृथ्वी के दूसरे सिरे पर अमेरिका के डलास के टेक्सास शहर में लोग पिछले महीने एक ही दिन में हुई 10 इंच की भयावह बारिश से उबरने की कोशिश कर रहे थे।

इन तमाम जगहों पर ताबड़तोड़ बारिश से आई आपदा में एक बात मिलती थी- सभी जगह बारिश से ठीक पहले जानलेवा गर्मी व सूखा चल रहा था। यानी ये सारे इलाके मौसम के दो चरम के बीच झूल रहे थे। वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक गर्मी और भीषण बारिश, दोनों एक दूसरे से नजदीकी रूप से जुड़े हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण इन्हें बेहद संगीन स्वरूप मिल रहा है।

यूरोप के शहरी इलाकों में रिकॉर्ड उच्च तापमान तो कहीं विनाशकारी बाढ़—कुछ तो उन इलाकों में जिनके पास इसकी बिल्कुल तैयारी नहीं थी—चक्रवातों के कारण होने वाले नुकसान में बेतहाशा बढ़ोतरी, दुनियाभर में सूखे के बढ़ते शिकंजे के बीच अफ्रीका के गरीब इलाकों में जानलेवा सूखा व अकाल। पृथ्वी पर मौसम का यह बीहड़ स्वरूप लगातार खतरनाक शक्ल अख्तियार कर रहा है, जिसमें हर मौसम अति तक पहुंच रहा है।

पिछली कुछ गर्मियों से लगातार इसी तरह का नजारा देखने को मिल रहा है न!

लेकिन ऐसा नहीं है कि आपको चेताया नहीं गया था। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष वैज्ञानिकों ने दस साल पहले मौसम के साथ कुछ इसी तरह का घटने की भविष्यवाणी व चेतावनी जाहिर कर दी थी।

इस रिपोर्ट ने ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान के बारे में सोचने के दुनिया के नजरिये को बदला था। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने 2012 में अपनी विशेष रिपोर्ट में कहा था, “बदलते मौसम के कारण अतिरेक वाली मौसमी घटनाओं की संख्या, तेजी, विस्तार, अवधि और समय में भी बदलाव आएगा। इसके कारण अभूतपूर्व रूप से भयावह मौसमी घटनाएं बढ़ेंगी।” रिपोर्ट में कहा गया था कि ग्रीष्म लहर बढ़ेगी, सूखा पड़ने के वाकये तेज होंगे, मूसलाधार बारिश व बादल फटने से बाढ़ आने के हादसे तेज होंगे, चक्रवातों की जद में इजाफा होगा और लोगों को बेजा तंग करने वाली मौसमी आपदाएं बढ़ेंगी।

दस साल पहले की ये चेतावनियां सामने हकीकत बनती दिख रही हैं। अक्सर इस तरह की चेतावनियों को दूर की कौड़ी मान लिया जाता है, कुछ इस तरह से कि ‘कौन सा अभी होने जा रहा है, हमारे जीवन पर कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला, या, जब होगा देखा जाएगा।’ लेकिन चेतावनी देने वाले वैज्ञानिकों ने भी यह नहीं सोचा था कि वे इतनी जल्दी हकीकत का स्वरूप अख्तियार कर लेंगी।

पाकिस्तान में आई बाढ़ इतनी भयावह थी कि उसने देश के करीब एक-तिहाई हिस्से को जलमग्न कर दिया। करोड़ों लोग बेघर हो गए और 1300 से ज्यादा जानें तो आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार गईं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पाकिस्तान में विभीषिका की शुरुआत तो दरअसल असामान्य गर्मी से हुई थी। अप्रैल व मई में वहां कई जगहों पर लंबे समय तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से तापमान बना रहा। जैकबाबाद में तो एक दिन तापमान 51 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। उन दिनों दुनिया में सबसे गर्म इलाका पाकिस्तान बन गया था।

लेकिन गर्म हवा में ही ज्यादा नमी भी भरी रहती है। इसलिए मौसम विज्ञानियों ने चेतावनी दे दी थी कि इतनी भीषण गर्मी पड़ने के बाद मानसून के दिनों में बारिश भी भयंकर होगी। वही हुआ भी। एक तो मानसून वहां जल्दी आ गया और फिर औसत सालाना बारिश की तीन गुना बारिश वहां हो गई। सिंध व बलूचिस्तान में तो औसत से पांच गुना ज्यादा बारिश हुई। उसी दौरान कम दबाव वाला क्षेत्र वहां अरब सागर में कायम हो गया। इस तरह का कम दबाव भी वहां बहुत ही असामान्य है। इसकी वजह से तटीय इलाकों में खासी बारिश हुई। फिर गर्मी की वजह से उत्तरी बर्फीले इलाकों में ग्लेशियर पिघले। वह पानी भी बहकर नीचे तक पहुंचा। एक असर ला-नीना का भी था जिसकी वजह से भारत-पाकिस्तान में मानसून का असर ज्यादा रहता है। तेज गर्मी से हिंद महासागर का पानी भी गर्म था। इस स्थिति में आए मानसून का हाल वही था जिसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरेस ने ‘स्टेरॉयड्स लेकर आए मानसून’ का नाम दिया था।

ढांचागत कमजोरी, बाढ़ की चेतावनी की व्यवस्था न होना और ऐसी आपदा के लिए कोई तैयारी न होना—विनाश के लिए इस तरह के कारण भी जिम्मेदार रहे, वो दीगर बात है।

वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि ग्रीष्मलहर दुनियाभर में तेज रही है और लगातार हो रही है। इसके चलते समुद्र व धरती, दोनों से वाष्प बनने की प्रक्रिया तेज हो गई है। गर्म जलवायु ज्यादा नमी भी सहेजकर रखती है, इसलिए उसमें वाष्प तब तक बनकर जमा होता रहता है, जब तक कि बादल उससे ज्यादा वजन न उठा सकें और फिर फट पड़ें। लिहाजा एक गर्म मौसम में एक ही जगह पर सूखा और फिर बाढ़, दोनों हो सकते हैं।

ऐसा ही हाल अमेरिका में डलास में भी हुआ जहां तीन महीने तक भीषण सूखा पड़ा, फसलें नष्ट हो गईं और लोगों को मवेशियों तक को मारना पड़ा क्योंकि उनको खिलाने को कुछ न था। धरती में सख्त होकर पपड़ी बन गई और जगह-जगह से फटने लगी। फिर अचानक अगस्त के तीसरे हफ्ते में एक ही दिन में 10 इंच बारिश हो गई। जमीन जरूरत से ज्यादा सूख जाती है तो सख्त हो जाती है और फिर पानी सोख नहीं पाती, बिल्कुल कंक्रीट जैसी हो जाती है। लिहाजा जो पानी गिरता है वह फैलता रहता है, भरता रहता है और आबादी वाले इलाकों में तेजी से फैल जाता है। जुलाई के बाद से अमेरिका में चार और जगहों पर इसी तरह की अचानक बाढ़ आई है।

इधर चीन में छह दशकों की सबसे भीषण गर्मी पड़ी। यांगत्जे नदी के बेसिन का समूचा इलाका इस कदर पानी व बिजली की कमी झेल रहा था कि बादलों की ‘सीडिंग’ की जाने लगी थी। लेकिन अब अचानक दक्षिण-पश्चिमी चीन में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट ने दस साल पहले ठीक इसी तरह की मौसमी घटनाओं की चेतावनी दी थी। रिपोर्ट को लिखने वाले वैज्ञानिकों में से एक प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के माइकल ओपनहैमर का कहना था कि रिपोर्ट ने वही काम किया था जो ऐसी किसी रिपोर्ट को करना चाहिए था, आगाह करने का। लेकिन कुछ सरकारों ने उसे तरजीह दी, कुछ ने नहीं। शायद जब तक अपने एकदम नजदीक कुछ न घटे, लोग इसकी परवाह नहीं करते।

अंदाजा लगाइए, केवल अमेरिका में ही कम से  कम 1 अरब डॉलर तक का नुकसान करने वाली मौसमी आपदाओं का सालाना औसत इस रिपोर्ट के लिखे जाने से पहले वाले दशक में 8.4 था यानी हर साल औसतन ऐसी 8.4 आपदाएं होती थीं, लेकिन रिपोर्ट लिखते-लिखते यह औसत 14.3 हो चुका था। हिसाब लग सकता है कि जलवायु परिवर्तन हमारी अर्थव्यवस्थाओं को कितना कमजोर कर रहा है।

दरअसल, अब यह भी नहीं कहा जा सकता कि विज्ञान हमें यह सारी बातें बता रहा है। अब तो सारी चेतावनियां सही साबित हो रही हैं और सब कुछ हमारे आसपास हम महसूस कर रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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