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नफ़रत-दमन छोड़िये, कोरोना के तांडव से हिंदी सूबों के शहर-गांव बचाइये

सरकार गांवों में कोरोना के संक्रमण और होने वाली मौतों की कोई आधिकारिक ब्रीफिंग नहीं कर रही है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो मुख्यधारा मीडिया भी गांवों की खौफ़नाक सच्चाइयों को सामने नहीं ला रहा है

सरकार गांवों में कोरोना के संक्रमण और होने वाली मौतों की कोई आधिकारिक ब्रीफिंग नहीं कर रही है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो मुख्यधारा मीडिया भी गांवों की खौफ़नाक सच्चाइयों को सामने नहीं ला रहा है. कोरोना के तांडव के बावजूद हिंदी भाषी क्षेत्रों के गांवों में अस्पताल और टेस्टिंग आदि की सुविधा अब भी नगण्य है. इससे गांवों में जन-क्षति का कोई प्रमाणिक आंकड़ा भी नही आ पा रहा है. दूसरी तरफ हिंदी-भाषी क्षेत्रों की राजनीति और शासन में दमन, नफ़रत और क्रूरता सर्वाधिक है. इसके चलते इन प्रदेशों का कोरोना से निपटना मुश्किल होता गया है. ठोस तथ्यों की रोशनी में वरिष्ठ पत्रकार Urmilesh का विचारोत्तेजक विश्लेषण:

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