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गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया

इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
jignesh
सज़ा के बाद जिग्नेश मेवानी

वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवानी के असम की जेल से रिहा होने के एक दिन बाद ही मेहसाणा की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने साल 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने के एक मामले में मेवानी के साथ 11 अन्य लोगों को दोषी ठहरा दिया।

ग़ौरतलब है कि पुलिस की इजाज़त के बिना जुलाई 2017 में मेहसाणा क़स्बे में रैली करने के आरोप में 12 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था। सभी दोषियों- सुबोध परमार, कौशिक परमार, रामोजी परमार, खोलीदास चौहान, गौतम श्रीमाली, कैल शाह, अरविंद परमार, ज्योतिराम परमार, लालजी महरिया, रेशमा पटेल और मेवानी को तीन-तीन महीने की क़ैद और एक-एक हज़ार रुपये के जुर्माने की सज़ा सुनायी गयी है।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जेए परमार की अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा, "रैली करना अपराध नहीं है, लेकिन बिना अनुमति के रैली करना अपराध है।" उन्होंने आगे कहा, "नाफ़रमानी को कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।"

मेहसाणा निवासी और 2016 में मेवानी की ओर से गठित दलित अधिकार संगठन राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच (RDAM) के सदस्य कौशिक परमार ने मेहसाणा के कार्यकारी मजिस्ट्रेट से इस संगठन के बैनर तले रैली करने की इजाज़त मांगी थी। शुरुआत में ऐसा करने की इजाज़त दी गयी थी, लेकिन बाद में अधिकारियों ने उसे रद्द कर दिया था, और आयोजकों ने रैली के साथ आगे बढ़ने का फ़ैसला किया था।

ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सार्वजनिक पिटाई की घटना के एक साल पूरे होने के मौक़े पर उस रैली का आयोजन किया गया था। 11 जुलाई, 2017 को मेवानी और उनके सहयोगियों ने उत्तरी गुजरात के बनासकांठा में मेहसाणा से धनेरा तक निकल रही आज़ादी कूच रैली की अगुवाई की थी।

दो अलग-अलग मामलों में ज़मानत मिलने के बाद 4 मई को असम से गुजरात पहुंचे मेवानी ने कहा, "मैं न्यायपालिका का सम्मान करता हूं और इसमें भरोसा करता हूं, इसलिए मैं सत्र अदालत में इस दोषसिद्धि के ख़िलाफ़ अपील करूंगा और इंसाफ़ पाने की उम्मीद करूंगा। मुझे ख़ुशी और संतोष है कि यह मामला हमारे ख़िलाफ़ उस रैली के लिए दायर किया गया था, जिसने एक ग़रीब दलित परिवार को 50 साल पहले आवंटित ज़मीन के एक टुकड़े को दिलवाने में मदद की थी। वह परिवार अब उसी ज़मीन पर खेती करता है और उससे उसकी रोज़ी-रोटी चलती है।”

4 मई को गुजरात लौटे मेवानी

मेवानी ने आगे कहा, “यह (गुजरात) सरकार बलात्कार, हत्या, ड्रग्स और बड़े-बड़े घोटालों के आरोपियों को सज़ा दिलाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इसके बजाय, इस सरकार ने रैली निकालने की अनुमति थी या नहीं,इस तरह के मामूली मामला को दायर करने और उसे आगे बढ़ाने में इतना प्रयास किया। यह और कुछ नहीं, बल्कि राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार का मुझे परेशान करने का एक तरीक़ा है। सरकार मुझे परेशान करने को लेकर इतनी बेचैन है कि उन्होंने मुझे मेरे गृह राज्य से 2,500 किलोमीटर दूर असम की जेल में डाल दिया। इससे पता चलता है कि सरकार पहली बार निर्दलीय विधायक बने उस विधायक से कितनी डरी हुई है, जो अभी-अभी विपक्षी दल में शामिल हुई है।”

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आज़ादी कूच रैली 11 जुलाई को मेहसाणा से शुरू हुई थी। इसका एक मक़सद बनासकांठा ज़िले के धनेरा तालुक़ा के एक गांव लावारा में चार दलित परिवारों की 12 एकड़ ज़मीन को उन्हें दिलवाना था।

हालांकि, जब 17 जुलाई को वह रैली जब सोनेठ गांव में रुकी थी,तो रैली में भाग लेने वाले आरडीएएम और बनासकांठा दलित संगठन की कोर टीमों को सूचित किया गया था कि बनासकांठा के ज़िला कलेक्टर-दिलीप राणा ने उस मामले को अपने हाथ में ले लिया है, और भरोसा दिलाया गया था कि सम्बन्धित ज़मीन का वह टुकड़ा उन परिवारों को शांतिपूर्वक सौंप दिया जायेगा।

हालांकि, लावारा के दलित ग्रामीण 18 जुलाई को उस रैली को सूचित करने के लिए धनेरा पहुंचे थे कि ग़ैर-क़ानूनी रूप से उस ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाले दरबार समुदाय के लोग उस समय दलितों को धमका रहे थे, जब कलेक्टर ने उनकी ज़मीन सौंप देने का ऐलान किया था।

लावारा निवासी बीजाभाई ने मेवानी को बताया था कि धमकी देने वाले हरचनभाई कसाभाई सोलंकी गांव के तत्कालीन सरपंच हैं और लावारा के दलित डरे हुए हैं।

मेवानी ने तब ऐलान किया था कि वह रैली धनेरा पुलिस स्टेशन तक मार्च करेगी और दरबार समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज होने तक धरने पर बैठेगी। इसके बाद धनेरा पुलिस हरक़त में आ गयी थी और मौक़े पर प्राथमिकी दर्ज करने को तैयार हो गयी थी।

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हालांकि, धनेरा में आज़ादी कूच रैली के मंच से अपने भाषण में मेवानी ने ऐलान किया था, “रैली लावारा तक चलेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि 50 सालों से अपनी ज़मीन का इंतज़ार कर रहे चारों दलित परिवारों को वह ज़मीन मिले, जिन पर उनका हक़ है। यह एक प्रतीकात्मक कार्य है, जो भूमिहीनों को ज़मीन दिये जाने को लेकर उस लंबे संघर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, जो इस आंदोलन के मूल में रहा है। भूमि सीमा अधिनियम,1961 के तहत भूमिहीन परिवारों को एक लाख एकड़ से ज़्यादा ज़मीन आवंटित की गयी थी, लेकिन ऐसा सिर्फ़ काग़ज़ों पर हो पाया था। ज़्यादतर लाभार्थी दलित हैं। इनमें से क़रीब 6,000 एकड़ ज़मीन बनासकांठा ज़िले में पड़ती है।

18 जुलाई को जैसे ही वह रैली लावारा गांव में ख़त्म हुई, वैसे ही मेवानी की अगुवाई में तक़रीबन 20 लोगों के एक जत्थे ने उस विवादित ज़मीन पर प्रतीकात्मक नीला अम्बेडकरवादी झंडा गाड़ दिया था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ज़मीन को उसके असली मालिकों,यानी हरचनभाई, पंजाबभाई सोलंकी, त्रिजाबेन सोलंकी और कांतिभाई हरचनभाई सोलंकी को सौंप दिया गया है।

हर एक दलित परिवार के पास अब तीन एकड़ ज़मीन है। इस ज़मीन पर वे खेती करते हैं और रोज़ी-रोटी के लिए उस पर निर्भर हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Gujarat: Mehsana Court Convicts MLA Jignesh Mevani, 11 Others for Unlawful Assembly in 2017

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