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कुपोषित बच्चों के समक्ष स्वास्थ्य और शिक्षा की चुनौतियां

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक नवम्बर 2020 तक देश में 9.28 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित थे। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार में हैं।
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कोरोना महामारी ने गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण की समस्याओं में और भी इजाफा कर दिया है। इससे  सिर्फ बड़े ही प्रभावित हुए हों ऐसा नहीं है, बल्कि बड़ी  संख्या में बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। अधिकांश बच्चों को पौष्टिक भोजन प्राप्त न हो सका और न उन्हें उचित शिक्षा हासिल हो सकी। भविष्य के नागरिक कहे जाने वाले  बच्चों की बुनियाद ही कमजोर हो गई। जाहिर है कमजोर नींव पर मजबूत इमारत खड़ी नहीं हो सकती। भुखमरी के शिकार, कुपोषित, कमजोर  और बीमार बच्चे स्वस्थ और मजबूत भारत का भविष्य नहीं लिख सकते। हम स्वच्छ और स्वस्थ भारत की कामना तो करते हैं पर उसके लिए जरूरी उपाय नहीं करते। जब तक बच्चे स्वस्थ और शिक्षित नहीं होंगे तब तक उज्जवल भारत के भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। बच्चों के समुचित विकास के लिए बहुत जरूरी है पोषणयुक्त भोजन और भेदभाव रहित शिक्षा। पर क्या ये दोनों बुनियादी सुविधाएं हमारे देश में सभी बच्चों को मिल पा रही हैं?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक नवम्बर 2020 तक देश में 9.28 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित थे। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार में हैं। ये आंकड़े उन चिंताओं पर खास तौर पर जोर डालते हैं कि कोविड वैश्विक महामारी गरीब से गरीब तबके के बीच स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को बढ़ा सकती है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुपोषित बच्चों की पहचान करने को कहा था। आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि पिछले साल नवम्बर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 9, 27, 606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई। मंत्रालय की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक इनमे से सबसे ज्यादा 3, 98, 359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 2,79, 427 की बिहार में पहचान की गई।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के हाल ही में प्रकाशित आंकड़े और भी भयावह हैं। नवम्बर 2020 से 14 अक्टूबर 2021 के बीच यानी एक साल के अन्दर कुपोषित बच्चों की संख्या  9.28 लाख से बढ़कर 33 लाख हो गई। देश में  कोरोना काल में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 91 फीसदी बढ़ गई। इस दौरान अति कुपोषित बच्चों की संख्या 9.27 लाख से बढ़कर 17.7 लाख हो गई। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार 34 राज्य और केंद्रशासित  प्रदेशों से कुल 33, 23, 322  बच्चों के आंकड़े आए। 14 अक्टूबर 2021 की स्थिति के अनुसार देश में 17,76, 902 बच्चे अति कुपोषित तथा 15, 46, 420  बच्चे अल्प कुपोषित हैं। मंत्रालय ने ये संख्या और बढ़ने की आशंका जताई है।

इस बारे में चिंता व्यक्त करते हुए अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रूप मेडिकल डायरेक्टर अनुपम सिब्बल के अनुसार कुपोषण को जल्द पहचानना और स्थिति बिगड़ने से रोकने के लिए उचित उपचार शुरू करना बेहद जरूरी है।  

मंत्रालय के नए आंकड़ों (14 अक्टूबर 2021) के अनुसार कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं। महाराष्ट्र में जहां 6.16 लाख बच्चे कुपोषित हैं वहीं बिहार और गुजरात में क्रमशः 4.75 लाख और 3.20 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। वहीं  उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख और दिल्ली में 1.17 लाख बच्चे कुपोषित हैं।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने मई 2020 में अनुमान जताया था कि कोरोना के चलते दुनिया भर में एक करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व खाद्य कार्यक्रम में बताया था कि महामारी के परिणामस्वरुप कुपोषण के इस खतरनाक रूप से पीड़ित बच्चों की संख्या में 20 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।

यूनिसेफ की नई रिपोर्ट के अनुसार 2 साल से कम उम्र के बच्चों को वह भोजन या पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं जिनकी उन्हें जरूरत है। दुनियाभर में तीन में से महज एक बच्चे को उचित पोषण वाला भोजन मिल पा रहा है। इसके चलते बच्चों के विकास को काफी नुक्सान हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढती गरीबी, असमानता, युद्ध, जलवायु सम्बन्धी आपदा, महामारी के चलते यह संकट खड़ा हुआ है। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा, निष्कर्ष से स्पष्ट है कि पहले दो वर्षों में ख़राब पोषण का सेवन बच्चों के तेजी से बढ़ते शरीर, दिमाग को अपरिवर्तनीय रूप से नुक्सान पहुंचा सकता है, जिससे उनकी स्कूली शिक्षा, नौकरी की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

भारत में हर चौथा बच्चा कुपोषण का शिकार

हमारे देश भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कोरोना महामारी ने भी देश में कुपोषण की स्थिति को और चिंताजनक बना दिया है। ऑक्सफेम इंडिया ने कहा है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक  2021 में भारत का 101 वां स्थान दुर्भाग्य से भारत के यथार्थ को दर्शाता है। गौर तलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 27.2 के स्कोर के साथ 107 देशों की लिस्ट में 94 वें नम्बर पर था। रिपोर्ट के मुताबिक भारत का हर चौथा बच्चा कुपोषण का शिकार है। देश में कोविड-19 के बाद भुखमरी और बढ़ी है। भारत 101 वें स्थान पर फिसल कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे चला गया है। ऑक्सफेम इंडिया ने कहा, भारत में कुपोषण की यह स्थिति कोई नई बात नहीं है। वास्तव में यह सरकार एक खुद के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित है। ऑक्सफेम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा, पोषण का यह नुक्सान चिंता का विषय होना चाहिए। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के कई हिस्सों में, 2015 और 2019 के बीच पैदा हुए बच्चे पिछली पीढ़ी की तुलना में अधिक कुपोषित हैं।  

हाल ही में ‘सेव द  चिल्ड्रेन’ द्वारा जारी एक नई विश्लेषण रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि पोषण की कमी से जूझ रहे आधे से ज्यादा बच्चे जलवायु परिवर्तन के खतरों से सर्वाधिक प्रभावित देशों में पल-बढ़ रहे हैं। ऐसे में शारीरिक और मानसिक विकास के मोर्चे पर उन्हें दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

जाहिर है कि बच्चों का स्वास्थ्य और विकास बहुत अधिक प्रभावित हुआ है। 2020 में पांच वर्ष से कम उम्र के 14 करोड़ 90 लाख बच्चे नाटेपन के, 4.5 करोड़ अधिक दुर्बलता और 3.9 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार थे। करीब 37 करोड़ बच्चों को वर्ष 2020 के दौरान स्कूली शिक्षा के दौरान मिलने वाले भोजन से वंचित रहना पड़ा। क्योंकि लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद रहे। लॉकडाउन के दौरान काफी लोगों की नौकरियां चली गईं। इसकी मार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर काफी ज्यादा पड़ी है। मां-बाप की माली हालत बिगड़ने से अनेक बच्चों को पढ़ाई की बजाय मेहनत-मजदूरी कर घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में हाथ बंटाना पड़ा। ये बातें कुछ एनजीओ के अध्ययनों में सामने आई हैं।

पढ़ने की उम्र में सड़क पर भीख मांगते बच्चे

हाल ही में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग(डीसीपीसीआर) ने दिल्ली में ऐसे 37 हॉटस्पॉट की पहचान की है, जहां सड़कों पर बच्चे भीख मांगते, कूड़ा बीनते दिखते हैं। आयोग के सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में 70 हजार से अधिक बच्चे सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। एक और सर्वेक्षण में यह सामने आया कि इनमे से लगभग 50 फीसदी बच्चे मादक पदार्थों के सेवन के आदी हैं। ये बच्चे कोविड-19 से बचाव के लिए मास्क भी नहीं लगाते हैं जिससे इन्हें कोविड का भी खतरा है। आयोग के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने कहा कि बच्चों को भीख मांगने से रोकने के लिए, बच्चों के बचाव, राहत और पुनर्वास पर केन्द्रित अभियान जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि आयोग दिल्ली से संबंधित सरकारी अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों के साथ समर्पित रूप से काम कर रहा है। उन्होंने दिल्लीवासियों से अपील करते हुए कहा कि हमारे हेल्पलाइन नम्बर 9311551393 पर भीख मांगने वाले बच्चों की रिपोर्ट करके इन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए हमारे साथ हाथ मिलाएं।

ग्रामीण, गरीब  और हाशिये के समुदाय के बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा बुरा असर

बच्चों के अधिकारों और ऑनलाइन क्लास के दौरान उनकी उपस्थति पर नजर रखने वाले एक एनजीओ के मुताबिक़, ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान इस वर्ग के लोगों के बीच पढ़ाई प्राथमिकता में पीछे खिसक गई है। क्योंकि इन में से अधिकतर बच्चों के पास ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने के लिए आवश्यक उपकरण नहीं थे। उदाहरण के लिए गैर सरकारी संगठन चेतना के निदेशक संजय गुप्ता ने कहा कि दिल्ली के पूर्वी और उत्तर पूर्वी जिले के 586 बच्चों में से 325 हमारे संपर्क में हैं। स्कूल बंदी के दौरान ये बच्चे काम में लगे हुए हैं। ये कचरा उठाने, घरेलू कामों, सब्जी या फल बेचने, रेडीमेड कपड़ों के धागे काटने और तारों को छीलने जैसे काम कर रहे हैं।

भारत के सन्दर्भ में मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा  और शोधार्थी विपुल पैकरा का एक ताजा सर्वेक्षण बताता है कि लम्बे अरसे तक स्कूलों दे बंद रहने की सबसे बड़ी कीमत ग्रामीण इलाकों के गरीब बच्चों ने चुकाई  है। कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों के बीच किए गए इस सर्वे के मुताबिक, गांवों में रहने वाले 37 फीसदी बच्चों ने इस अवधि में बिलकुल पढ़ाई  नहीं की जबकि सिर्फ आठ फीसदी बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर सके। शहरी क्षेत्र के आंकड़े भी कोई बहुत राहत नहीं देते। यहां भी सिर्फ 24 फीसदी नियमित रूप से ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर सके। (शिक्षा पर कोविड की मार, संपादकीय, हिंदुस्तान, 08 सितम्बर 2021)

स्पष्ट है कि बच्चों के समक्ष स्वास्थ्य और शिक्षा की गंभीर चुनौतियां हैं। इसे दूर करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को गंभीर एवं सटीक कदम उठाने की जरूरत है। सवाल है कि क्या सरकार बाल दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम करके सिर्फ औपचारिकता निभाएगी या सचमुच कोई सुधारात्मक उपाय करेगी जिससे हमारे देश के भविष्य के नागरिक स्वस्थ और शिक्षित होकर देश को विकासशील से विकसित देश बनाने में अपना योगदान दे सकें।

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