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इतवार की कविता : "मुझमें गीता का सार भी है, इक उर्दू का अख़बार भी है..."

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद जो सवाल भारत के प्रधानमंत्री से पूछे जाने चाहिए, वह भारत के मुसलमानों से पूछे जा रहे हैं। क्या है हिन्दुस्तानी मुसलमान होने का मतलब, जानिए हुसैन हैदरी की इस नज़्म से...
इतवार की कविता

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद जो सवाल भारत के प्रधानमंत्री से पूछे जाने चाहिए, वह भारत के मुसलमानों से पूछे जा रहे हैं। विविधता से भरे हमारे देश में समय समय पर देशभक्ति, वफ़ादारी को लेकर मुसलमानों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।

मगर क्या है हिन्दुस्तानी मुसलमान होने का मतलब, जानिए बॉलीवुड फ़िल्मों में गीतकार और शायर हुसैन हैदरी की इस नज़्म से...

हिंदुस्तानी मुसलमां

सड़क पे सिगरेट पीते वक़्त
जो अज़ा' सुनाई दी मुझको
तो याद आया के वक़्त है क्या
और बात ज़हन में ये आई
मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

मैं शिया हूं या सुन्नी हूं
मैं खोजा हूं या बोहरी हूं
मैं गांव से हूं या शहरी हूं
मैं बाग़ी हूं या सूफ़ी हूं
मैं क़ौमी हूं या ढोंगी हूं
मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

मैं सजदा करने वाला हूं
या झटका खाने वाला हूं
मैं टोपी पहनके फिरता हूं
या दाढ़ी उड़ा के रहता हूं
मैं आयत क़ौल से पढ़ता हूं
या फ़िल्मी गाने रमता हूं
मैं अल्लाह-अल्लाह करता हूं
या शेखों से लड़ पड़ता हूं
मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

मैं हिंदुस्तानी मुसलमां हूँ

दक्कन से हूँ, यू. पी. से हूँ
भोपाल से हूँ, दिल्ली से हूँ
बंगाल से हूँ, गुजरात से हूँ
हर ऊँची-नीची जात से हूँ
मैं ही हूँ जुलाहा, मोची भी
मैं डाक्टर भी हूँ, दर्जी भी
मुझमें गीता का सार भी है
इक उर्दू का अख़बार भी है
मिरा इक महीना रमज़ान भी है
मैंने किया तो गंगा-स्नान भी है
अपने ही तौर से जीता हूँ
इक-दो सिगरेट भी पीता हूँ
कोई नेता मेरी नस-नस में नहीं
मैं किसी पार्टी के बस में नहीं
मैं हिंदुस्तानी मुसलमां हूँ

ख़ूनी दरवाज़ा मुझमें है
इक भूल-भुलैय्या मुझमें है
मैं बाबरी का इक गुम्बद हूँ
मैं शहर् के बीच में सरहद हूँ
झुग्गियों में पलती ग़ुरबत मैं
मदरसों की टूटी-सी छत मैं
दंगो में भड़कता शोला मैं
कुर्ते पर ख़ून का धब्बा मैं
मैं हिंदुस्तानी मुसलमां हूँ

मंदिर की चौखट मेरी है
मस्जिद के किबले मेरे है
गुरुद्वारे का दरबार मेरा
येशू के गिरजे मेरे है
सौ में से चौदह हूँ लेकिन
चौदह ये कम नहीं पड़ते है
मैं पूरे सौ में बसता हूँ
पूरे सौ मुझमें बसते है
मुझे एक नज़र से देख न तू
मेरे एक नहीं सौ चेहरे है
सौ रंग के है क़िरदार मेरे
सौ क़लम से लिखी कहानी हूँ
मैं जितना मुसलमां हूँ भाई
मैं उतना हिंदुस्तानी हूँ

मैं हिंदुस्तानी मुसलमां हूँ

- हुसैन हैदरी

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