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कर्नाटक: ऑटो फर्म याजाकी ने 150 कर्मचारियों को सूचना दिए बिना बर्ख़ास्त किया

ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनी के कर्मचारी फ़ैक्ट्री में अपनी शिफ़्ट ख़त्म होने के बाद बाहर निकलने के दौरान बायोमेट्रिक मशीन में पंच नहीं कर पा रहे थे जिसके बाद उन्हें बताया गया कि उन्हें बर्ख़ास्त कर दिया गया है।
कर्नाटक: ऑटो फर्म याजाकी ने 150 कर्मचारियों को सूचना दिए बिना बर्ख़ास्त किया

बेंगलुरु ग्रामीण ज़िले में स्थित याज़ाकी प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि कंपनी ने दिसंबर में कम से कम 150 कर्मचारियों को ज़बानी तौर पर बर्खास्त कर दिया। लक्केनहल्ली में याज़ाकी प्लांट टोयोटा और मारुति कारों के लिए वायर हार्नेस असेंबल करता है। कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें बर्ख़ास्त करने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया था और उनका बायोमेट्रिक में होने वाली हाज़री को रद्द कर दिया गया था। 13 दिसंबर को लगभग 50 कर्मचारियों को कथित तौर पर निकाल दिया गया था। इसके बाद अगले दिन 100 अन्य श्रमिकों को बर्ख़ास्त कर दिया गया था। लक्केनहल्ली संयंत्र में 2,000 कर्मचारी हैं। इन कर्मचारियों को ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (AICCTU) की तरफ़ से मदद की जा रही है। इसने उप श्रम आयुक्त (डीएलसी) को ज्ञापन सौंपा है और कर्मचारियों को उनके अधिकारों के बारे में बताया है। उन्होंने सोमवार को पुनःबहाली के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया। उनका कहना है कि जब तक उनकी पुनःबहाली नहीं हो जाती वे इसे जारी रखेंगे।

बर्ख़ास्त किए गए एक कर्मचारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उसने कंपनी में पांच साल तक काम किया था। उन्होंने जिगनी संयंत्र में काम करना शुरू किया, जिसके बाद उन्हें बेंगलुरु शहर की सीमा के बाहर लक्केनहल्ली संयंत्र में स्थानांतरित करने के लिए कहा गया।

मैं 2018 से जिगनी प्लांट में काम करता रहा हूं। कुछ महीने पहले प्रबंधन में बदलाव हुआ था और हमें लक्केनहल्ली में स्थानांतरित करने के लिए कहा गया था। यह काफ़ी दूर है, इसलिए हमने शुरू में मना कर दिया। अगर हम शिफ्ट होने के लिए राज़ी हो जाते हैं तो उन्होंने एक कमरा और दो वक़्त का खाना देने का वादा किया था। उन्होंने वेतन बढ़ाने का भी वादा किया था। हालांकि, उन्होंने अपना कोई भी वादा पूरा नहीं किया। मेरा पिछला वेतन लगभग 11,000/माह था। पिछले पांच साल से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। 13 दिसंबर को अपनी शिफ़्ट ख़त्म होने के बाद क़रीब 50 कर्मचारी बायोमेट्रिक में पंच नहीं कर सके। उन्हें बताया गया कि उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है। अगले दिन, हममें से कुछ लोगों ने उस समय अपने नौकरी को लेकर असुरक्षित महसूस किया जब हमने देखा कि किस तरह हमारे अन्य सहयोगियों को बर्ख़ास्त कर दिया गया। हमने अपनी शिफ्ट ख़त्म होने के बाद, हम परिसर के अंदर ही बैठ गए और तब तक जाने से इनकार किया जब तक कि हमें प्रबंधन से कुछ आश्वासन नहीं मिला।”

हालांकि, प्रबंधन ने उनसे मुलाक़ात नहीं की। इसके बजाय, पुलिस को बुलाया गया। कर्मचारियों का आरोप है कि पुलिस ने मौक़े पर बैठे कर्मचारियों के फोटो खींच लिए। नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य कर्मचारी ने कहा कि पुलिस द्वारा कर्मचारियों की तस्वीरें लेने के तुरंत बाद, उन सभी को बर्ख़ास्त कर दिया गया। बर्ख़ास्त कर्मचारियों में क़रीब 60 महिलाएं हैं।

बर्ख़ास्त किए गए अधिकांश कर्मचारियों ने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) में प्रशिक्षण की डिग्री प्राप्त कर रखी थी। उनके पास अलग-अलग ट्रेड के सर्टिफिकेट थे जैसे फिटर, इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक आदि। उनमें से कुछ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी हैं। उनके हटाए जाने से पहले, वे किसी यूनियन से जुड़े नहीं थे। हालांकि, उन्होंने कर्नाटक जनरल लेबर यूनियन के अधीन याज़ाकी श्रमिक इकाई शुरू की है। क़रीब 100 बर्ख़ास्त कर्मचारी इस यूनियन में शामिल हो गए।

याज़़ाकी प्लांट में एचआर के प्रमुख चंद्रशेखर ने न्यूज़क्लिक को कर्मचारियों की बर्ख़ास्तगी के बारे फोन पर बात करते हुए कहा, 'हमने कर्मचारियों के साथ हुए एक समझौते के तहत उनको हटाया है। हमने अप्रेंटिसशिप एक्ट के तहत इनकी भर्ती की है। हम उन्हें तीन साल तक ट्रेनिंग दे सकते हैं। उस अवधि के दौरान, हम उन्हें कभी भी हटा सकते हैं। कुछ राजनीतिक लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं और अब वे स्थायी नौकरी का दावा कर रहे हैं। (बर्ख़ास्त किए गए) संचालकों ने हमें बताया कि उन्हें विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है।”

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें टर्मिनेशन नोटिस क्यों नहीं दिया गया तो उन्होंने कहा कि इसकी ज़रूरत नहीं है।

हमने बर्ख़ास्तगी से तीन दिन पहले उनके एचओडी को मेल भेजा था। हमें इन कर्मचारियों को कोई नोटिस देने की ज़रूरत नहीं है। हमें कुछ लोगों को नौकरी से निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि इस वक़्त कारोबार मंदा है।”

जबकि कर्मचारियों का मानना है कि प्रबंधन में बदलाव हुआ है, चंद्रशेखर ने कहा कि ऐसा नहीं था। प्लांट को जिगनी से लक्केनहल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन प्रबंधन वही है।

ऐक्टू की मैत्रेयी कृष्णन मुख्य उत्पादन के लिए प्रशिक्षुओं के इस्तेमाल की निंदा करती हैं। वह कहती हैं, “कर्मचारियों को अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षु अधिनियम लाया गया था। मुख्य उत्पादन में शामिल लोगों को नौकरी की सुरक्षा और अच्छे वेतन से वंचित करने के लिए नियोक्ताओं द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। इस चलन की अदालतों ने भी आलोचना की है। इसके अलावा, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 (एन) के तहत, आपको छंटनी के लिए एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करना होगा। आपको श्रम विभाग से अनुमति लेनी होगी और श्रमिकों को कम से कम तीन महीने का नोटिस देना होगा। ऐसा नहीं किया गया है।”

मूल रूप से अंग्रेज़ी प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Karnataka: 150 Factory Workers Verbally Sacked by Auto Firm Yazaki

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