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क्या बच्चों के रहने लायक नहीं रहा यह देश?

देश भर में पिछले छह महीने में 24 हजार बच्चों से बलात्कार हुआ है। इसके बावजूद भले ही हम 'न्यू इंडिया' का गुणगान करने में व्यस्त रहें लेकिन सुप्रीम कोर्ट बच्चों से बढ़ते यौन उत्पीड़न पर स्वत: संज्ञान लिया है। 
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट इस कदर चिंतित है कि उसने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दायर की है। अदालत ने कहा कि पिछले छह माह में बच्चों से रेप के 24 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं जो झकझोर देने वाले हैं।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उसने समाचार पत्रों और पोर्टल्स में बच्चों से रेप की बढ़ती घटनाओं की खबरों पर स्वत: संज्ञान लेने का फैसला लिया है। पीठ में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे।

50 प्रतिशत मामलों में जांच पूरी नहीं 

ख़बरों के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने बताया कि इस साल जून तक पूरे देश में बच्चों से रेप की 24,212 एफआईआर दर्ज हुई है। इनमें से 11,981 मामलों में जांच चल रही है। यानी लगभग 50 प्रतिशत मामलों की जांच पूरी ही नहीं हो पाई है। वहीं, 12,231 केस में चार्जशीट दायर हो चुकी है। हालांकि, ट्रायल केवल 6,449 मामलों में ही शुरू हुई है। बताया जाता है कि इनमें भी केवल 911 केसों का निपटारा हुआ है।

शीर्ष अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ वकील वी गिरी को न्यायमित्र नियुक्त किया है। साथ ही, उनसे कहा गया है कि वे आंकड़ों का अध्ययन कर सुझाव दें कि अदालत इस बारे में क्या निर्देश जारी कर सकती है। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि सरकार बाल यौन शोषण के मामलों को लेकर गंभीर है।

पीठ ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से कहा कि वह इस मामले को रिट याचिका के तौर पर दर्ज करे और मामले को निर्देश जारी करने के लिये सोमवार तक स्थगित कर दिया। 

पीठ ने कहा कि उसने रजिस्ट्री को दो पहलुओं पर रिपोर्ट दायर करने को कहा है। पहला, देश भर में एक जनवरी से बच्चों से संबंधित दुष्कर्म के कुल मामलों की संख्या और दूसरा, जांच की स्थिति, चार्जशीट दायर करने में लगा वक्त और मुकदमों की स्थिति। न्यायालय ने रजिस्ट्री से कहा है कि वह राज्यों और उच्च न्यायालयों से आंकड़े जुटाए।

यूपी में सबसे ज्यादा अपराध

आपको बता दें कि 24,212 मामलों में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 3,457 घटनाएं रिपोर्ट हुईं जिसमें से 1,779 मे अभी जांच चल रही है।
इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर है। जहां बच्चों के यौन शोषण के 2,389 मामले दर्ज हुए जिसमें से 1,841 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई है। 

अगर हम देश के स्तर पर उपलब्ध आंकड़ों को देखें तो तस्वीर और भी भयावह नजर आती है।
भारत में वर्ष 2001 से 2016 के बीच बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों में 889 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन सोलह सालों में बच्चों के प्रति अपराध 10,814 से बढ़कर 1,06,958 हो गए। इनमें भी बलात्कार और यौन हिंसा के आंकड़े बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। 

2001 से लेकर 2016 यानी इस सदी के पहले सोलह सालों में बच्चों से बलात्कार और गंभीर यौन अपराधों की संख्या 2,113 से बढ़कर 36,022 हो गई। यह वृद्धि 1705 प्रतिशत रही।

आपको बता दें कि भारत में अपराध पर जारी होने वाली वार्षिक रिपोर्ट आखिरी बार 2017 में जारी की गई थी जो 2016 की घटनाओं पर आधारित थी। लेकिन इसके बाद 2017 और 2018 की रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है। 
इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज इन इंडिया’ के मुताबिक भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है। यानी लगभग हर दूसरे बच्चे के साथ ऐसी घटनाएं घटी हैं।

क्या कर रही है सरकार?

बाल यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने इसी हफ्ते बुधवार को पॉक्सो कानून को कड़ा करने के लिए इसमें संशोधनों को मंजूरी दे दी है। प्रस्तावित संशोधनों में बच्चों का गंभीर यौन उत्पीड़न करने वालों को मृत्युदंड तथा नाबालिगों के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। 

अधिकारियों ने बताया कि बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून में प्रस्तावित संशोधनों में बाल पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने के लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान शामिल है। सरकार ने कहा कि कानून में बदलाव से देश में बढते बाल यौन शोषण के मामलों के खिलाफ कठोर उपाय और नई तरह के अपराधों से भी निपटने की जरूरत पूरी होगी। 

सरकार ने कहा कि कानून में शामिल किए गए मजबूत दंडात्मक प्रावधान निवारक का काम करेंगे। सरकार ने कहा, ‘इसकी मंशा परेशानी में फंसे असुरक्षित बच्चों के हितों का संरक्षण करना तथा उनकी सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना है। संशोधन का उद्देश्य बाल उत्पीड़न के पहलुओं तथा इसकी सजा के संबंध में स्पष्टता प्रावधान लेकर आने का है।’

सरकार ने एक बयान में कहा कि बाल यौन शोषण के पहलुओं पर उचित ढंग से निपटने के लिए पॉक्सो कानून, 2012 की धाराओं 2, 4, 5, 6, 9, 14, 15, 34, 42 और 45 में संशोधन किये जा रहे हैं।

सिर्फ कानून बनाने से रुकेगा अपराध?

आंकड़ों, अपराध की प्रवृत्ति, पुलिसिया रवैया और समाज की भूमिका को देखने के बाद यह बात साफ तौर से कही जा सकती है कि बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं में सिर्फ इजाफा ही नहीं हो रहा है बल्कि ऐसी घटनाएं इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि उन्हें सिर्फ कानून बनाकर रोक पाना असंभव है। इसके लिए हमें एक बड़े सामाजिक आंदोलन की जरूरत है जिससे सभी पक्षों को जागरूक किया जा सके। 

ये कितनी बुरी बात है कि हम अपने बच्चों को न्याय भी नहीं दिला पा रहे हैं। हालिया आंकड़ों से भी साफ है कि अदालतों में बच्चों के प्रति हुए अपराधों में से ज़्यादातर का निराकरण नहीं हो रहा है। लापरवाही, कमज़ोर जांच, असंवेदनशीलता और भ्रष्टाचार के कारण समय से चार्जशीट ही नहीं दायर की जा रही है। 

निसंदेह अगर पीड़ित बच्चे गरीब या वंचित समुदाय के होंगे तो हालात और भी बुरे होंगे। उनकी सुनवाई पुलिस, सरकार और अदालतों में भी नहीं हो पाएगी। यानी 21वीं सदी में वे बिना इंसाफ मिले बड़े हो जाएंगे।

दरसअल विकास और न्यू इंडिया के तमाम दावे करते वक्त हमारी सरकारें ऐसे आंकड़ों को नज़रअंदाज़ कर देती हैं और आने वाले कल की एक बेहतर तस्वीर पेश करती हैं लेकिन वास्तविकता बदतर स्थिति की तरफ इशारा कर रही है। 

सरकारों के अलावा एक समाज के रूप में भी हम तेजी से पतन की तरफ बढ़ रहे हैं। लोग भले ही हमारी समृद्ध परंपरा की दुहाई देते हुए तमाम बातें करें लेकिन सच्चाई यही है कि हमारा देश बच्चों के के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है।

 

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