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मजदूरों के मानव तस्करी का कड़वा सच!

बिहार के अलग-अलग जिलों में असंगठित क्षेत्र के ये मज़दूर खेती में साल में केवल तीन महीने काम पाते हैं और बाक़ी समय इन्हें जीवन-यापन के लिए कोई साधन नही मिलता।
Labours
प्फोरतीकात्टोमक तस्वीर | साभार: Rajmayukhdam.com

जब मानव तस्कर जुगल एवं अखिलेश ने बिहार के बांका, नालंदा सहित कई जिलों में अपने दो नंबर के काम का जादू चलाया तो मानो कई मजदूर उसकी झूठी बातो में तब फंस गए जब दोनो ने मिलकर मज़दूर को एडवांस राशि दी। यह राशि किसी परिवार को 10,000/- तो किसी परिवार को 15,000/-रुपये तक दी गई। किसी मज़दूर ने अपने परिवार के लिए राशन तो किसी ने पुराना कर्ज उतारने या अपनी बीमारी के कारण एडवांस ले ही लिया। 

इस एडवांस के कर्ज को उतारने में मज़दूरों ने अकेले नहीं बल्कि पूरा का पूरा परिवार पथेरे में ईंट पाथने के लिए लगा डाला, पर आज पूरे 10 माह बीत जाने के बाद  भी मालिक का कहना है कि इन पर अभी भी कर्ज है। एक परिवार के पांच से ज्यादा सदस्य प्रतिदिन चौदह घंटे से ज्यादा काम करते थे।मालिकों ने मज़दूरों के अशिक्षित होने का फायदा उठाया। क्योंकि उन्हें सिर्फ पेपर पर केवल अंगूठा देना आता है पढना नहीं।

जब कार्यरत सभी 21 परिवारों के  लगभग  80 मज़दूर जिनमे महिलाए एवं बच्चे भी शामिल है, को कमला BKO (ईंट भट्टा) गांव दीवाना, पहवा, कुरुक्षेत्र, हरियाणा में अखिलेश एवं जुगल ने झिंकू नाम के ईंट भट्टा मालिक के हाथो सारे मज़दूरों को बेच दिया तो भट्टा मालिक ने दोनो मानव तस्करों को उनका कमीशन सहित दाम देकर रवाना कर दिया। ईधर मज़दूरों को मात्र पेट भरने के लिए दो रोटी के जुगाड के लिए 1000/- से 1500/- प्रत्येक पखवाड़े में दिए जाते थे।

बिहार के अलग-अलग जिलों में असंगठित क्षेत्र के ये मज़दूर साल भर खेती में तीन महीने काम पाते हैं किन्तु बाक़ी समय इन्हें जीवन यापन के लिए कोई साधन नही मिलता। 

बिहार के जगता गांव की पूनम देवी ने बताया कि कृषि के जीरी के काम से पुरुषों को तकरीबन 200 रूपए प्रतिदन तथा महिलओं को तकरीबन 100 रुपए प्रतिदिन का रोजगार मिल पाता है। मुक्त बंधवा मजदूर लक्ष्मी ने बताया कि मनरेगा में भी केवल एक या दो महीने तक ही 100 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से काम मिल पाता है। जिसमें 14 वर्ष तक के बच्चो को भी स्कूल की सुविधा नहीं मिलती और काम पर साथ लाना पड़ता है। संजय ने बताया कि कंस्ट्रक्शन के काम में रोज 10 घंटे काम कर के पुरुष  केवल 250 रूपए तक प्राप्त कर पाते हैं। ऐसे में इन्हे मानव तस्करी करने वाले केवल 6 महीने अन्य राज्य जाकर काम के लिए ये कह कर बहला देते हैं कि 1000 ईंट बनाने का 660 रूपए मिलेगा।

किन्तु तस्कर अपना कमीशन ले कर भाग जाते हैं जबकि मजदूर 15 दिन काम के केवल 1000-1500 रूपए प्रति परिवार निम्न राशि में काम करने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं। बच्चो की पढ़ाई छूट जाती है। सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक काम करना पड़ता है जिसमें बच्चे भी काम करते हैं।

पढ़े लिखे ना होने कि वजह से मालिक व ठेकेदारों इनसे किसी काग़ज़ पर अंगूठे का निशान लेकर अपना काम पक्का कर डालते हैं। इतना ही नहीं जब जब मज़दूर को लगता है कि मुझे इस भट्टे से कोई मज़दूरी, इस जनम में तो नहीं मिलेगी तब तब ईंट भट्टा मालिक, ठेकेदार, मुंशी सहित उनके गुंडे मज़दूरों को पीटते हैं।

मज़दूर अपने परिवार सहित होने से अकेले भाग कर भी नहीं जा सकते क्योंकि उनका परिवार तो भट्टे में फंसा होता है। मार खा खा कर काम करने को मजबूर मज़दूर  क्या करे कुछ नहीं सूझता। इस मामले की जानकारी मदन कुमार नाम के सज्जन को मिली। मदन कुमार ने तत्काल दिल्ली स्थित संगठन नेशनल कैंपेन कमेटी फोर ईरेडिकेशन ऑफ बांडेड लेबर के कन्वीनर निर्मल गोराना को दी। उक्ते मामले के संबंध में मानव तस्करी से पीड़ित बंधुआ मज़दूरों को मुक्त कराने हेतु निर्मल गोराना ने डीएम कुरुक्षेत्र, एसडीएम पेहवा को शिकायत भेजी तथा प्रशासन से समन्वय करके ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क, बंधुआ मुक्ति मोर्चा, नेशनल कैंपेन कमेटी फोर ईरेडिकेशन ऑफ बांडेड लेबर की टीम लेकर 28 जून को पैहवा एसडीएम कार्यालय पहुंच गए।

एसडीएम ने तहसीलदार, फूड एंड सप्लाई ऑफिसर, श्रम अधिकारी एवं संबंधित थाने की टीम बनाकर निर्मल गोराना कि टीम के साथ कमला BKO भट्टे पर भेजा। भट्टे पर मज़दूर डरे हुए तथा भट्टे के पास में छुपी हुई अवस्था में मिले। 

टीम द्वारा मज़दूरों के 21 परिवारों के बयान लिए गए जिसमें लगभग 20-25 पुरुष, 18-20 महिलाए एवं बच्चे  मिलाकर 80 सदस्य थे। भट्टे से मज़दूरों को निकालकर रेलवे स्टेशन कुरुक्षेत्र पर छोड़कर प्रशासन ने अपना पल्ला झाड़ा की हमने आज तक इतने केस में रेस्क्यू किया पर ये बयान लिखने के काम को कभी नहीं किया। अतः स्पष्ट था कि मामला बिना बयान के रफा दफा कर दिया जाता था और कोई लीगल कारवाही होना तो संभव भी नहीं। 

किन्तु इस बार प्रशासन को मज़दूरों ने लीगल एक्शन लेने के लिए संघर्ष का बिगुल बजा डाला। विगत दस माह के अत्याचार से पीड़ित मज़दूर अपना हक लेके ही बिहार लौटेंगे। 

आज दिनांक 1 July, 2019 को जंतर मंतर की रोड पर धरना लगा कर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहे है। ना घर है, ना सामाजिक सुरक्षा, ना रोटी, ना कपड़ा, ना शिक्षा, ना सम्मान, ना काम का पूरा दाम इस जनम में इन महादलितों को हमारी समाज  व सरकार ने केवल गुलामी, भेदभाव, अपमान, अत्याचार के अलावा कुछ नहीं दिया। इनकी गरीबी व जाति की  वजह से इनको नरकिय जीवन जीना पड़ता है। फिर समाज में समानता का व शोषण के विरुद्ध अधिकार  समाज के किन महलो में छिपा है? 

उक्त मामले में मजदूरों को बेचा गया, गुलामी करवाकर बंधुआ बनाया, बेगार लिया गया, मारा पीटा गया, अपमानित किया गया। ये मानवाधिकारों का, देश के संविधान का और भारत में बने कई कानून - बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम, अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम, अंतर्राजीय प्रवासी मजदूर अधिनियम,  न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, बाल श्रमिक उन्मूलन अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम, फैक्ट्री वर्कर अधिनियम एवं आईपीसी की धारा 370, 374 सहित कई कानूनों का उल्लंघन हुआ है। 

इस धरने के माध्यम से केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री, मुख्य सचिव बिहार एवं हरियाणा सरकार, कुरुक्षेत्र कलेक्टर से मुक्ति प्रमाण पत्र एवं तत्काल सहायता राशि(बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास की योजना 2016) एवं पुलिस सुरक्षा के साथ उनके अपने राज्य बिहार में उनकी सम्मान के साथ वापसी की मांग को लेकर मज़दूर न्याय मांग रहे है। 

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष स्वामि अग्निवेश ने राज्य के मुख्य सचिव एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से अपील की है कि मुक्त किए गए बंधुआ मजदूरों को तुरंत राहत दी जाए।

उम्मीद है कि आज अगर कुरुक्षेत्र प्रशासन मज़दूरों को संतोषप्रद जवाब देता है तो मजदूर मानेंगे अन्यथा कल मानवाधिकार आयोग की तरफ कूच करेंगे।

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