छत्तीसगढ़: बजट से पहले कर्मचारियों-अधिकारियों का प्रदर्शन, सरकार को घोषणा-पत्र याद दिलाने की कोशिश
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छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार आगामी 1 मार्च को अपना आखिरी बजट पेश करने जा रही है। ऐसे में राज्य के कर्मचारी-अधिकारी मुख्यमंत्री और उनकी कांग्रेस सरकार को उनके चुनावी वादे याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उन्होंने प्रदेश के हज़ारों कर्मचारियों से किए थे और सत्ता में आने के बाद भूल गए। छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ और छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी महासंघ के नेतृत्व में आज बुधवार, 15 फरवरी को राज्य के हर जिला में स्वास्थ्य कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया, वहीं राजधानी रायपुर में महासंघ ने धरना प्रदर्शन और ध्यानाकर्षण रैली निकाली।
बता दें कि बीते लंबे समय से छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य कर्मी अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन और हड़ताल कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनके हाथ आश्वासन के आलावा और कुछ नहीं लगा। महासंघ का कहना है कि कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारियों से कई वादे किए थे, लेकिन अब सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है लेकिन अभी तक न वेतन विसंगतियां दूर हुईं और न ही संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वादा ही सरकार पूरा कर पाई।
लंबा संघर्ष, फिर भी हाथ खाली
महासंघ के प्रदेश संयोजक अनिल शुक्ला ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब से राज्य बना है यहां स्वास्थ्यकर्मी अपनी हक़ों की लड़ाई लड़ रहे हैं, फिर वो कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की। बीते चुनाव में हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन जब बघेल सरकार सत्ता में आई तो वो सब वित्तिय संकट के नाम पर ठंडे बस्ते में चले गए। कई प्रदर्शन, ज्ञापन के जवाब में अब तक कर्मचारियों और अधिकारियों को केवल आश्वासन ही मिला है।
अनिल शुक्ला आगे कहते हैं, "और तो और इस सरकार ने धरना स्थल बूढ़ातालाब जो राजधानी के बीच सभी की पहुंच में था, उसे भी हमारी आवाज़ दबाने के लिए हमसे छीनने की तैयारी कर ली है। वहां धरना प्रदर्शन के लिए अनुमति न देकर शहर से 25 किलोमीटर दूर जाने को कहा जा रहा है, ताकी हमारी मांगों से मीडिया और आम लोग अंजान रहें। ये लोकतंत्र नहीं है, हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते रहे हैं और इस बार भी हम सरकार का बस ध्यान आकर्षण करवाना चाहते हैं, ताकि इस आखिरी बजट में हमारी समस्याओं का निराकरण हो सके।"
ध्यान रहे कि हाल ही में बीते 12 जनवरी को छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी महासंघ द्वारा राज्य के कर्मचारियों, अधिकारियों और पेंशनधारियों की प्रमुख मांगों को लेकर एक 12 सूत्रीय मांग पत्र भी मुख्यमंत्री को चर्चा के लिए सौंपा गया था लेकिन इस पर कोई उचित कार्यवाही न होने और कर्मचारी हितों की लगातार उपेक्षा के कारण महासंघ बजट से पहले एक बार फिर धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हुआ। प्रदर्शनधारकों का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती, तो आगे और बड़ा आंदोलन होगा।
क्या हैं प्रमुख मांगें?
- राज्य के कर्मचारियों को केंद्रीय एवं राजस्थान, झारखंड के कर्मचारियों के समान गृह भाड़ा भत्ता (एचआरए) सातवें वेतनमान के आधार पर प्रदान किया जाए।
- राज्य के कर्मचारियों एवं पेंशनधारकों को एक समान रूप से केंद्रीय कर्मचारियों के बराबर देय तिथि 1 जनवरी एवं 1 जुलाई से महंगाई भत्ता प्रदान किया जाए।
- जन घोषणा पत्र क्रियान्वयन हेतु राज्य के समस्त कर्मचारियों को क्रमश: 8, 16, 24 एवं 30 वर्ष के सेवावधि उपरांत चार स्तरीय क्रमोन्नत/समयमान वेतनमान प्रदान किया जाए।
- स्वास्थ्य कर्मचारियों की वेतन विसंगति के निराकरण हेतु सचिव स्वास्थ्य विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की जाए, एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों को पुलिस एवं मंत्रालय वित्त विभाग के कर्मचारियों के समान प्रतिवर्ष एक माह का अतिरिक्त वेतन प्रदान किया जाए।
- लिपिकों की वेतन विसंगति के निराकरण हेतु माननीय मुख्यमंत्री द्वारा दिनांक 17 फरवरी 2019 को बिलासपुर में की गई घोषणा का क्रियान्वयन किया जाए।
- शिक्षाकर्मियों के संविलियन के पूर्व की सेवा अवधि की गणना कर क्रमोन्नति/समयमान वेतनमान एवं पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिया जाए।
- समस्त विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी, कार्यभारित एवं संविदा कर्मचारियों को जन घोषणा पत्र में किए वादे के अनुरूप नियमित किया जाए।
- 240 दिन की जगह 300 दिन अर्जित अवकाश नगदीकरण लागू हो।
-चतुर्थ श्रेणी के कार्यभारित एवं दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित पदस्थापना में नियुक्त कर नियमित कर्मचारियों के समान समस्त लाभ दिया जाए तथा वाहन चालकों को भी तकनीकी कर्मचारी घोषित किया जाए।
- अनुकंपा नियुक्ति में 10 प्रतिशत के बंधन को स्थाई रूप से हटाया जाए एवं शिक्षाकर्मियों के आश्रितों को स्कूल शिक्षा विभाग में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाए।
पांचवें एवं छठे वेतनमान के आधार पर देय चिकित्सा भत्ता, वाहन भत्ता, अनुसूचित क्षेत्र भत्ता सहित समस्त भत्तों को सातवें वेतनमान के आधार पर पुनरीक्षित किया जाए।
सैकड़ों स्वास्थ्य कर्मचारी अवकाश पर
छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ भी आज राज्य के अलग-अलग जिलों में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहा है। प्रदेश के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी आज अवकाश लेकर इस धरने में शामिल हो रहे हैं। कोरोना काल के पहले से ये कर्मचारी नियमितीकरण की मांग के साथ ही वेतन विसंगति, इलाज की सुविधा, भत्ता समेत कई अन्य समस्याएं को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इसका निराकरण अभी तक नहीं हो सका है। कोरोना काल में इन कर्मचारियों की हड़ताल राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में कई दिन रही थी, बावजूद इसके सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।
संघ के प्रांतीय महामंत्री आलोक शर्मा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि सरकार हर बार वित्तीय समस्याओं का हवाला देकर बात को टाल देती है, लेकिन अब पानी सर से ऊपर उठ चुका है और इसकी वजह है कि सरकार का आश्वासन देते-देते पूरा कार्यकाल बीतने को है। ऐसे में अगर इस बजट में कोई समाधान नहीं हुआ, तो ये मामला अधर में लटका ही रह जाएगा और हज़ारों कर्मचारी तमाम समस्याओं से ग्रस्त ही रह जाएंगे। इसलिए आज ये प्रदर्शन बुलाया गया है, ताकि सरकार को हमारी मांगे और अपना घोषणा पत्र याद रहे।
आलोक शर्मा के मुताबिक वर्तमान कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने से पहले अनियमित कर्मचारियों के मंच पर आकर सरकार बनने पर 10 दिन में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वादा किया था, अब चार साल बाद भी ये मांगे पूरी नहीं हुई हैं। इसी वजह से कर्मचारियों को मजबूरन सड़कों पर उतरना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि चुनावी वादे और घोषणा पत्र के आश्वासन पर राजनीतिक पार्टियां लोगों का वोट तो ले लेती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके पास उन वादों को पूरा करने के लिए न कोई रोडमैप होता है और न ही बजट। ऐसे में आम जनता और कर्मचारियों के हाथ धोखे के अलावा कुछ खास नहीं लगता। मांगे लेकर जब लोग सड़कों पर उतरते हैं, जो नेता आश्वासन का नया पिटारा खोलते हैं और देखते ही देखते उनका कार्यकाल खत्म हो जाता है और जनता हाथ मलती रह जाती है।
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