मिर्ज़ापुर डीएम के खिलाफ लामबंद हुए पत्रकार, वाराणसी में निकाला मौन जुलूस
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मिर्ज़ापुर के एक प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे-मील के तहत नमक रोटी परोसे जाने का मामला उजागर करने वाले पत्रकार पर एफआईआर दर्ज होने के विरोध में आज, सोमवार, 16 सितंबर को 'पत्रकार प्रेस क्लब उत्तर प्रदेश' के बैनर तले सैकड़ों पत्रकारों ने वाराणसी के सारनाथ में विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान पत्रकारों ने काली पट्टी बांधकर मौन जुलूस भी निकाला।
प्रदर्शन में शामिल पत्रकारों ने मांग की कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तत्काल प्रभाव से मिर्ज़ापुर के जिलाधिकारी अनुराग पटेल को निलंबित कर, पत्रकार पवन जयसवाल के खिलाफ दर्ज हुए झूठे मुकदमे को वापस लें।
पत्रकारों का कहना है कि ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल ने स्वयं योजनाओं को कलंकित करने का कार्य किया है। जिससे पत्रकारों के साथ समाज भी सदमे में है।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए 'पत्रकार प्रेस क्लब' के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम पाठक ने कहा कि उनका प्रदर्शन पत्रकार पवन जयसवाल के ख़िलाफ़ दर्ज की गई फर्जी एफआईआर के खिलाफ है। ये प्रेस की आवाज़ दबाने की कोशिश है।
घनश्याम पाठक ने आगे कहा, मिर्ज़ापुर के जिलाधिकारी अनुराग पटेल ने पत्रकार पवन जायसवाल के साथ जो कृत्य किया है उससे सभी पत्रकारों को इमरजेंसी की याद आने लगी। प्रदेश के साथ-साथ देश भर में मिर्ज़ापुर के डीएम की थू-थू हुई, उसके बावजूद भी प्रदेश सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा।
प्रदर्शन कर रहे पत्रकारों ने कहा कि मिर्ज़ापुर के डीएम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सच लिखने वाले पत्रकारों की जगह समाज में नहीं बल्कि जेल में होगी। ऐसे डीएम को एक दिन भी अपने पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।
बता दें कि विरोध प्रदर्शन के बाद पत्रकारों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व डीजीपी को ट्वीट कर ज़िलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की।
गौरतलब है कि 22 अगस्त को मिर्ज़ापुर स्थित एक प्राइमरी स्कूल के बच्चों को नमक के साथ रोटी खिलाने का मामला सामने आया था। जिसके तहत पुलिस ने आईपीसी की धारा186, 193, 120B, 420 के तहत स्थानीय पत्रकार पवन जायसवाल और गांव के राजकुमार पाल पर साज़िश करने, गलत साक्ष्य बनाकर वीडियो वायरल करने और छवि खराब करने को लेकर मामला दर्ज किया है।
ज़ाहिर है पत्रकार पर मुकदमे का ये मामला गंभीर है। भले ही प्रशासन के अपने तर्क हो लेकिन आज पत्रकारों पर बढ़ते हमले और दबाव की खबरें भी किसी से छिपी नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन की खामिया उजागर करना अपराध है?
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