प्रेस की आज़ादी के लिए पत्रकारों का धरना, राष्ट्रपति से दख़ल की अपील
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता आज संकट के दौर से गुजर रही है। उसकी स्वतंत्रता पर हमले तेज हो रहे हैं। यही चिंता जताते हुए पत्रकारों ने आज सोमवार को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक बैठक कर धरना दिया। इस मौके पर पत्रकार संगठनों-- प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वूमेन प्रेस कोर्पस, प्रेस एसोशिएशन, देल्ही यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, केरला यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, डिजिपब, फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट क्लब, वेटेरन जर्नलिस्ट्स ग्रूप और ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने एक ज्ञापन के माध्यम से प्रेस की आज़ादी को बचाने के लिए राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू से हस्तक्षेप का अनुरोध किया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि हजारों पत्रकारों की ओर से, आज भारत में स्वतंत्र मीडिया के समक्ष उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। पत्रकार के रूप में हम पिछले 75 वर्षों में हमारे देश ने जो प्रगति की है उस पर सामूहिक रूप से गर्व करते हैं। एक अंधकारमय दौर भी था जब चौथे स्तंभ को बेड़ियों से जकड़ दिया गया था निश्चय ही ऐसा दौर हमारा लोकतंत्र दोहराते हुए नहीं देखना चाहेगा। आज हमारे समुदाय को एक समान लेकिन अधिक घातक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर, हमारे पेशे में अधिकांश लोग अनिश्चित कामकाजी परिस्थितियों का सामना करते हैं दूसरी ओर पत्रकारों के खिलाफ कठोर कानूनों का उपयोग तेजी से बढ़ गया है। इनमें से कई कानून उस विशेष भूमिका को भी स्वीकार नहीं करते हैं जो हमारी स्वतंत्र प्रेस निभाती है - जो कि इस देश के इतने सारे विविध नागरिकों की आवाज़ है।
Journalists in Delhi held a day-long protest at the Press Club of India against attack on media freedom. #defendmediafreedom pic.twitter.com/N36PjX2fOm
— Press Club of India (@PCITweets) October 16, 2023
और इनमें से कुछ कठोर कानूनों के तहत, अधिकारियों ने फोन, लैपटॉप और हार्ड डिस्क जैसे उपकरणों और सॉफ्टवेयर को जब्त करने के अपने निरंकुश अधिकार का इस्तेमाल किया है जो हमारे समुदाय के लिए आजीविका का स्रोत हैं। ये कानून जमानत का प्रावधान नहीं करते हैं जहां कारावास आदर्श है न कि अपवाद।
किसी लोकतंत्र के फलने-फूलने और प्रगति के लिए उसका मीडिया स्वतंत्र होना चाहिए। अपनी सारी विविधता के साथ स्वतंत्र मीडिया आम लोगों के सामने आने वाले कई गंभीर मुद्दों को सामने लाने में सक्षम है उससे ऐसी ही भूमिका अपेक्षित है। हम सर्वोच्च संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में आपके हस्तक्षेप का अनुरोध करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे संविधान में स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है जिसमें बोलने की स्वतंत्रता, व्यवसाय आजीविका अपनाने की स्वतंत्रता शामिल है।
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