पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में 'अंकरी' खाने को मजबूर हुए कोइरीपुर बस्ती के मुसहर!
वाराणसी: कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए देशभर में लॉक डाउन और धारा 144 के तहत कर्फ्यू की स्थिति है। ऐसे माहौल में सभी को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग तो किसी तरह से जीवन-यापन कर भी ले रहे हैं लेकिन उन लोगों की हालत बद से बदतर हो गई है जो समाज में हाशिए पर हैं। इसमें हमारे देश का मुसहर समाज भी शामिल है।
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के कोइरीपुर गाँव में कुछ मुसहर लोग गेहूं के खेत में पैदा होने वाली अंकरी नाम के फसल को निकालकर खुद ही खा रहे हैं और अपनी भेड़ बकरियों को भी खिला रहे है। यहाँ की चंद्रावती बताती हैं कि, 'जनता कर्फ्यू वाले दिन बच्चे दिनभर भूखे थे, उस दिन उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला था, दिन भर भूख से इधर-उधर तड़प रहे थे, फिर उसके अगले दिन भी खाने को नहीं मिला, जब उनसे भूख बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो लोग खेत में जाकर अंकरी ही खाने लगे।
सूखी पूड़ी खाकर बिताए तीन दिन
यहाँ के दशरथी बताते हैं कि, 'पास के ही एक दूसरे गाँव में एक व्यक्ति के यहां तेरही हुई थी। कुछ सूखी पूड़ियां बची थीं। वही पूड़ियां लेकर आए, उसी पूड़ी को खाकर कुछ घंटों के लिए पेट की आग शांत हुई। इन्हीं पूड़ियों ने जान बचाई।' दशरथी कहते हैं कि, 'तीन दिन पहले वही आखिरी निवाला भी पेट में गया था।'
खेत से आलू बीनकर लाये थे बच्चे
इसी जगह के सोमारू बताते हैं कि, 'बच्चे कई दिन से भूखे थे, पहले बच्चे उस खेत में आलू बीनने भी गए थे, जिसमें से आलू निकाली जा चुकी है, लेकिन कुछ आलू मिल गया, उसे उबालकर खाये। फिर तीन दिन तक कुछ खाने को नहीं मिला और इन बच्चों से भूख बर्दाश्त नहीं हुआ तो ये लोग गेहूं के खेत में चले गए और अंकरी निकालकर खाने लगे।
पूर्व विधायक और प्रशासन ने भिजवाया राशन
मुसहर समाज अंकरी खा रहे हैं, ये बात वहाँ के कुछ युवकों को मालूम चली तो उन्होने तुरंत इसकी सूचना पिंडरा एसडीएम मणिकंडन को दी। जिनके निर्देश पर शाम के वक्त बड़ागांव थानाध्यक्ष संजय सिंह व ग्राम प्रधान प्रतिनिधि शिवराज यादव ने वनवासी बस्ती में खाद्यान पहुंचाया। इस बात की जानकारी जब पिंडरा के पूर्व विधायक अजय राय को हुई तो उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को तत्काल मौके पर खाद्यान्न सामग्री लेकर भेजा।
बड़ागांव ब्लाक से सटी हुई है मुसहर बस्ती
कोइरीपुर गाँव का मुसहर बस्ती बड़ागांव ब्लाक से सटा हुआ है। यह बस्ती कुड़ी मोड़ (जगह का नाम) पर बसी है। यहां मुसहरों के लगभग 17 परिवार हैं। इनमें पांच परिवार ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए गांव से पलायन कर गए हैं। बाकी चंद्रावती, पूजा, सोनू, चंपा, अनीता, भोनू, चमेला, मंगरु, कल्लू, दशरथी, राहुल यहाँ पर रहते हैं। इनके बच्चे रानी, सीमा, सुरेंद्र, पूजा, विशाल, आरती, निरहु, अर्जुन, चांदनी, सोनी, निशा, गोलू को देखकर लगता है कि ये कब से भूखे हैं।
सरकार बदली लेकिन नहीं बदली मुसहर समाज की स्थिति
मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले समाजसेवी डा.लेनिन रघुवंशी ने बुधवार को मुसहर बस्तियों में राशन पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें रास्ते में सुरक्षा बलों ने रोक दिया। डा.लेनिन ने कहा कि बनारस जिले में दर्जन भर मुसहर बस्तियां हैं जहां रहने वाले लोग ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं अथवा दोना-पत्तल बनाते हैं। सरकार किसी की रही हो, इस समुदाय को आज तक कुछ भी नसीब नहीं हुआ। चुनाव के दौरान हर दल के नेता आते हैं और कहते हैं कि स्थितियां बदलेंगी। मगर आज तक इनके हालात नहीं बदले। लॉकडाउन होने के कारण इनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही है।
जिस झोपड़ी में रहता है पूरा परिवार, उसी में पलती हैं भेड़-बकरियां
इन परिवारों की दयनीय स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि, 'जिस प्लास्टिक की झोपड़ी में करीब दस लोगों का पूरा परिवार रहता है, उसी झोपड़ी में इनकी भेड़-बकरियां भी पलती हैं, ना तो इनके पास रहने के लिए घर है और ना ही जानवरों को देने के लिए चारा।
खबर छापने वाले पत्रकार को मिला नोटिस
इस खबर को सबसे पहले दैनिक अखबार जनसंदेश टाइम्स में लिखा गया, जिसपर वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा ने वहाँ के स्थानीय संपादक को जवाब दिया है कि, 'मैंने भी इस खबर पर वर्क किया है ये बच्चे घास नही बल्कि गांव में होरहा खा रहे थे।' जनसंदेश टाइम्स के संपादक विजय विनीत को व्हाट्सप्प पर भेजे गए मेसेज में डीएम वाराणसी लिखते हैं कि, 'इस गांव में बच्चे फसल के साथ उगने वाली अखरी दाल और चने की बालियां तोड़ कर खाते हैं। ये बच्चे भी अखरी दाल की बालियां खा रहे है।'
गुरुवार को प्रशासन ने जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय और संवाददाताओं को कानूनी कार्यवाही का नोटिस थमा दिया। नोटिस में कहा गया है कि वे खबर का खंडन छापें अन्यथा उन पर कार्यवाही की जाएगी। वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा ने कहा है कि शुक्रवार तक यदि अखबार ने खंडन नहीं जारी किया ये कहते हुए कि, 'जो बच्चे खा रहे थे वो घास नहीं थी और ये जो लोग है वो घास पर जिंदा नहीं हैं, उनको अनाज अवेलेबल है। अगर स्पष्ट खंडन नहीं जारी करते हैं तो उस पर कार्रवाई होगी और उसमें प्रेस ट्रस्ट के माध्यम से हो या क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी और महामारी कानून के तहत मुकदमा किया जाएगा।'
अंकरी प्रोटीन का सोर्स: जिलाधिकारी वाराणसी
गुरुवार को ही वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, 'अंकरी नाम एक दाल होती है जो सामान्यता खेतों में पाई जाती है और गेहूं के बीच में लग जाती है, उसमें मटर के दाने जैसे बहुत-बहुत छोटी-छोटी फली होती है, उसी को बच्चे खा रहे थे। जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा कहते हैं कि, 'वो जो अंकरी के बाली होते हैं, उसकी फली होती है, उसको तोड़कर मेरे द्वारा भी खाया गया, मेरे बच्चे के द्वारा भी खाया गया और हम लोगों ने देखा कि ये प्रोटीन का सोर्स है जो चने की तरह और मटर की तरह गाँव के बच्चे सामन्यतया खाते हैं और बचपन में हम सब लोग खाते रहे हैं।'
अंकरी- घास या दाल?
अंकरी का बोटैनिकल नाम विसिया हृष्टा है। इसकी दो प्रजातियां हैं। एक है लाल और दूसरी सफेद। मूलतः यह घास है। यह घास बीज के साथ मिलकर खेतों में पहुंच जाती है। इसे खाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने संस्तुति नहीं दी है। आमतौर पर यह घास गेहूं, चना, मसूर, खेसारी, मटर के साथ उगती है। जिस फसल में उगती उसका उत्पादन चालीस फीसदी कम कर देती है।
बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर रमेश कुमार सिंह कहते हैं कि, 'अंकरी घास है। कृषि वैज्ञानिक इसे खर-पतवार की श्रेणी में रखते हैं। इसे खाने के लिए रिकमेंड नहीं किया गया है। यह इंसान के खाने योग्य नहीं है। मवेशियों को अधिक खिलाने पर डायरिया की समस्या हो जाती है। उन्होंने बताया कि अंकरी में कैनामिनीन पाया जाता है, जो अमीनो एसिड बनाने वाले प्रोटीन को प्रभावित कर देता है। इसे खाने से लीवर और फेफड़ों में सूजन की समस्या आ जाती है। पाचन क्रिया में दिक्कत होती है।
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