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नवीनतम कोरोना वायरस के साथ नए शीत-युद्ध का दौर

पश्चिमी मीडिया और सरकारों की ओर से चीन पर कुछ ईंट-पत्थर ऐसे भी उछाले जा रहे हैं जिनकी प्रकृति नस्लवादी हैं। इसमें से अधिकांशतया एक नए शीत युद्ध की निरंतरता को बरकारार रखने की ट्रम्प एंड कंपनी की कोशिशें हैं, जिसे उन्होंने चीन के खिलाफ खोल दिया है।
कोरोना वायरस
वुहान में महज 10 दिनों में चीनी केंद्रीय और स्थानीय अधिकारियों ने मिलकर 1000 बेड का अस्पताल बना डाला है, और इसके साथ ही एक और का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

लगातार तीन दिनों में यह पहली बार हुआ है कि नवीनतम कोरोना वायरस (2019nCov) के नए मामलों की संख्या 4,000 से नीचे चली गई है, जबकि पहले के दैनिक आँकड़े इसके मुकाबले कहीं अधिक संख्या वाले थे। चीनी अधिकारियों ने इस बारे में जो व्यापक उपाय अपनाए हैं, उसका असर अब जाकर देखने को मिल रहा है, अब पहले से कहीं बड़ी संख्या में जाँच किट की उपलब्धता के साथ-साथ इस विषाणु के किसी अन्य को फैलने की मात्रा को कमजोर करने में सफलता हासिल हो रही है। लेकिन हुबेई प्रांत का वुहान अभी भी नए कोरोना वायरस महामारी का मुख्य केंद्र बना हुआ है: चीन में इससे संक्रमित लोगों की कुल संख्या का लगभग दो-तिहाई हिस्सा हुबेई से ही है। 6 फरवरी तक कुल 564 लोगों की इस वायरस के चलते मौत हो चुकी है, जिनमें से अधिकतर लोग वृद्ध थे, या जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर था, या जो लोग पहले से ही अन्य तेजी से बढने वाली बीमारियों जैसे कि मधुमेह या अस्थमा से पीड़ित थे। (अपडेट : 14 फरवरी तक मृत्यु का यह आंकड़ा बढ़कर 1383 हो गया है।)

अधिकांश लोगों में फ्लू जैसे लक्षणों के हल्के मामले पाए गए, और वुहान को छोड़कर, जहां पर स्वास्थ्य प्रणाली शुरू-शुरू में पूरी तरह से बेबस नजर आ रही थी, बाकी जगह मृत्यु दर 1-2% ही रही है। यह तथ्य इस बात की पुष्टि करता है कि हालांकि यह वायरस 2002-03 के एसएआरएस-SARS वायरस की तुलना में तेजी से फैल रहा है, किन्तु मृत्यु दर के मामले में यह उससे काफी कम है।

चीनी शोधकर्ताओं ने अब जाकर पहचान कर ली है कि मूल रूप से चमगादड़ से निकले वायरस और अंतिम रूप से इंसान तक पहुँचने के बीच में मेज़बान के रूप में यह पैंगोलिंस (एक प्रकार का पपड़ीदार स्केली चींटी खाने वाला प्राणी) है, जहाँ से यह बीमारी आगे फैली है चींटी खाने वाले इस स्तनपायी प्राणी की बाहरी त्वचा जो पपड़ीनुमा होती है, का इस्तेमाल चीनी दवा निर्माण में आम है।

जहाँ एक ओर ऐसा लगता है कि चीन में इस वायरस का खतरा कम होता जा रहा है वहीं ज़रूरत इस बात पर ध्यान रखने की है कि बाकी के देशों में यह कितनी तेजी से फ़ैल रहा है और इसके वैश्विक महामारी के रूप में तब्दील होने का कितना ख़तरा बढ़ा है। अंतिम वैश्विक महामारी H1N1 स्वाइन फ्लू से हुई थी, जो अमेरिका-मैक्सिको से जन्मी थी। रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, अप्रैल 2009-10 के कुल 12 महीनों के दौरान अमेरिका में इसके लगभग 6 करोड़ 10 लाख मामले प्रकाश में आये थे, कुल 2 लाख 74 हजार लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा था और लगभग 12,500 मौतें हुईं थीं। विश्वव्यापी आँकड़ों के बारे में अंदाजा लगाना काफी मुश्किल काम है, क्योंकि कई देशों में संक्रमण की पुष्टि के लिए आवश्यक उपकरण मौजूद नहीं थे।

डब्ल्यूएचओ ने 2009-10 में एच1एन1 को महामारी घोषित किया था और आज की तुलना में उस समय कहीं भारी स्तर पर निगरानी और यात्रा पर प्रतिबन्ध जारी करने के निर्देश दिए थे। हालांकि ऐसी आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि कई और देशों में संक्रमण फैलने के चलते 2019nCoV महामारी के रूप में फ़ैल सकती है, क्योंकि अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे काबू में पा रहा है।

चीन में आये इस नए वायरस के प्रकोप को लेकर हमें दो तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। इसमें से एक तो उन साज़िश के सिद्धांतकारों और बेवकूफों की है जो किसी भी समय इस प्रकार की घटनाओं पर निकलकर सामने आ जाते हैं। इस इंटरनेट युग में, इसके अपने फेक न्यूज़ के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ कई अफवाहें तैर रही हैं, जिसमें जैव-हथियार गड़बड़ा गए, ये मेलिंडा और बिल गेट्स की साजिश है ताकि टीके और नई दवाइयां बेचीं जाएँ, इत्यादि।

और इससे भी भयावह यह है कि अमेरिका में प्रमुख समाचार माध्यमों ने इस नवीनतम वायरस के प्रकोप के चलते चीन और उसकी सामाजिक व्यवस्था पर हमले करने शुरू कर दिए हैं। चीन के खिलाफ यह मीडिया अभियान अपने साथ अमेरिकी-चीनी व्यापार युद्ध का ब्योरा लिए हुए है और इसका रणनीतिक दृष्टिकोण इस रूप में नज़र आता है कि चीन एक "संशोधनवादी" शक्ति है, जिसे सैन्य तौर-तरीकों से सीमित रखे जाने की ज़रूरत है।

लेकिन इस अभियान की सबसे घटिया बात यह है कि इन हमलों की प्रकृति नस्लवादी किस्म की है – किस प्रकार से चीनी लोग चमगादड़ और सांप खा जाते हैं, और यही वजह है कि चीन में इस प्रकार के वायरस का प्रकोप फैला है। "प्रमाण" के रूप में, एक चीनी महिला एक वीडियो में दिखाई देती है (हाँ, यह वायरल हो गया क्योंकि ऐसी चीजें इंटरनेट पर होती हैं), जो बड़े चाव से चमगादड़ का सूप का आनंद ले रही है। लेकिन जो निकल कर आया वह यह है कि जो चीनी महिला वायरल वीडियो में दिख रही है, उसका नाम वेंग मेंग्युन है, जो एक मशहूर ट्रेवल होस्ट हैं और पश्चिमी प्रशांत द्वीप समूह के पलाऊ में अनोखे भोजन के बारे में बता रही हैं। पहली बात तो ये है कि चीनी चमगादड़ नहीं खाते हैं, और वैसे भी यदि भोजन को अच्छे से पकाया जाये तो किसी भी हालत में उसमें कोई वायरस ज़िन्दा नहीं रहता!

चीनी भोजन की आदतों के बारे में इस प्रकार के बेहूदा दुष्प्रचार की कोशिशों में लगे ये लोग ये भी भूल जाते हैं, या कहें कि जानबूझकर अनदेखा करते हैं कि एवियन फ्लू या स्वाइन फ्लू जो हुआ ही इसलिये था क्योंकि हम पालतू सुअर और मुर्गियाँ पालते हैं। ऐसे फ्लू का संक्रमण जंगली जानवरों और पक्षियों को पालतू बनाए जाने की वजह से होता है, न कि जंगली जानवरों को खाने से! चीनियों पर हमले, नस्लीय टिप्पणियाँ करना और यात्रा को लेकर प्रतिबंधों को थोपना, जो यात्रा प्रतिबन्ध डब्ल्यूएचओ की ओर से सिफारिश की गई हैं, उससे भी परे जाकर थोपना भी हमलों के नस्लीय और राजनीतिक स्वरूप के संकेत देते हैं।

शुरू-शुरू में तो प्रकोप की भयावहता को देखते हुए वुहान में स्थानीय अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ की हालत में हो गए थे। इस भयावहता की पहचान करने में चीनी सरकार ने देर नहीं की और चिकित्सा सहायता के मामले में वो चाहे स्वास्थ्य कर्मियों के सम्बन्ध में हो या दवाओं और मास्क जैसे अन्य चिकित्सा आपूर्ति का मसला हो, दोनों मामले में तेजी से चिकित्सा सहायता में तेजी से कदम बढ़ाए। सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह थी कि इससे पहले वुहान को कभी इस पैमाने पर क्रिटिकल केयर की जरूरत नहीं पड़ी थी, जिसकी वहाँ पर काफी कमी थी। बिना कोई देरी किये हुए चीनी केंद्रीय और स्थानीय अधिकारियों ने मात्र 10 दिनों में 1000 बिस्तर वाला अस्पताल बनाकर तैयार कर दिया है, और दूसरा बनकर तैयार हो रहा है। बाकी के 12,500 बिस्तर भी उपलब्ध करा दिए गए हैं, जिनमें उन मरीजों को भर्ती किया जा रहा है जिनमें इस नए वायरस के होने की पुष्टि हुई है, और इसके लिए उन्होंने दूसरे अस्पतालों की सहायता लेने के साथ-साथ व्यायामशालाओं और वेयरहाउस को चिकित्सा केन्द्रों के रूप में तब्दील कर डाला है।

अब जिस मुख्य समस्या से वे जूझ रहे हैं वो यह है कि किस प्रकार से कुशल चिकित्सा कर्मियों की नियुक्ति हो जो उन लोगों की ख़ास देखभाल कर सकें, जो इस बीमारी से गंभीर तौर पर जूझ रहे हैं। यह एक विशिष्ट ज्ञान है, जिसे अब चीन के अन्य हिस्सों से आये हजारों डॉक्टरों और नर्सों द्वारा मुहैय कराया जा रहा है। और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कुछ गंभीर रूप से बीमार लोगों के इलाज के दौरान कुछ चिकित्सा कर्मियों को भी गंभीर संक्रामक रोगों ने अपनी चपेट में ले लिया है, यहाँ तक कि उनमें से कुछ की मौतें भी हुई हैं।

इस संदर्भ में पश्चिमी मीडिया वुहान के केंद्रीय अस्पताल के एक 34 वर्षीय नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. ली वेनलियांग के मामले को प्रमुखता से उजागर कर रहा है, जिनकी मौत इस वायरस के चपेट में आने से हो चुकी है। मूल रूप इनके द्वारा ही चीनी सोशल मीडिया में नए SARS- जैसे प्रकोप की संभावना के बारे में जानकारी दी गई थी और पश्चिमी मीडिया के अनुसार अफवाह फैलाने के आरोप में इन्हें दण्डित किया गया था। चीन में सर्वोच्च भ्रष्टाचार निरोधी संस्था के रूप में स्थापित नेशनल सुपरवाइजरी कमीशन ने डॉक्टर ली वेनलियांग से जुड़े मुद्दों की गहन पड़ताल के लिए एक निरीक्षण समूह को वुहान रवाना कर दिया है।

जो बीमार हैं उनका इलाज करने के अलावा, चीनियों ने इस बीमारी को अलग-थलग करने में भी काफी फुर्ती दिखाई है। जिस पैमाने पर लोगों को अलग-थलग रखने की व्यवस्था की गया है, उसे संख्या के लिहाज से या भौगोलिक पैमाने पर अगर देखें तो इसे सिर्फ अभूतपूर्व ही कह सकते हैं। जीनोम अनुक्रम की पहचान करके, इसे सभी के लिए सर्वसुलभ कराने का काम, इसे एक सार्वजनिक डेटाबेस पर डालकर किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए स्वास्थ्य आपात स्थिति मामलों के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर माइकल रयान अपने 29 जनवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसके बारे में कहते हैं "शायद इतिहास में किसी नवीनतम रोगजनक को इस बार सबसे तीव्र गति से विशेषीकरण किया गया और जिसे तत्काल साझा किया गया था।" इसके कई अनुक्रमों को एक के बाद एक तत्काल वैश्विक पटल पर साझा किया गया था, और यही कारण है कि इसके कई निदानों को विकसित करने में मदद मिल सकी है।

आज तक चीन द्वारा 50 से अधिक रोगियों के जीनोम अनुक्रमों को सामने रखा गया है, जो इसके निदान के लिए तैयार किटों की शीघ्रतम तैनाती को सुनिश्चित करने के साथ-साथ तेजी से आनुवंशिक तकनीक से तैयार टीके विकसित करने में मदद कर रहा है। अपने वर्तमान स्वरुप में देखें तो वैक्सीन निर्मित करने में 4 से 6 महीने लग जाते हैं और लगभग एक वर्ष में इसे बाजार में उतारा जा सकता है। इनसे महामारी की रोकथाम में तो कोई मदद नहीं मिलती, लेकिन यदि एक बार फिर से महामारी फ़ैल जाये तो उसे दुबारा फैलने में रोकथाम में मदद करते हैं। लेकिन इस बार जिस प्रकार के तत्काल उपाय चीन ने लिए हैं, उसने इस संक्रमण के ट्रांसमिशन को धीमा करने की क्षमता को निर्मित करने में सफलता प्राप्त कर ली है, और जिस प्रकार से चीनी समाज ने अपनी सरकार पर भरोसा बनाए रखा है उसने सारी दुनिया को राहत पहुँचाने का काम किया है, जो कि इससे पहले हमारे पास नहीं था। इसके अलावा अब हमारे पास काफी तेजी से टीके विकसित करने के लिए नए जेनेटिक इंजीनियरिंग उपकरण भी उपलब्ध हैं।

चीन के इन प्रयासों की सराहना करने के बजाय, प्रमुख समाचार माध्यमों ने अपना पूरा ध्यान चीन के भीतर बेकार की आलोचना पर केंद्रित कर रखा है। उन्होंने अपना सारा ज़ोर इस तर्क पर लगा रखा है कि किस प्रकार से चीन की भयानक समाजवादी व्यवस्था या जैसा कि वे इसे अधिनायकवाद की संज्ञा देते हैं, इस सबके लिए दोषी है। ये जो भी अनाप शनाप कह रहे हैं वह वैश्विक स्वास्थ्य अधिकारियों की बातों से किसी भी तरह से मेल नहीं खाती हैं। और इसको लेकर कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए। याद करिए न्यूयॉर्क टाइम्स या वाशिंगटन पोस्ट को, जिन्हें सर्वाधिक आधिकारिक समाचार स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त है, का इराक मामले में क्या रिकॉर्ड रहा है? जब संयुक्त राष्ट्र के हथियार निरीक्षकों के बार-बार कहने पर भी कि इराक में सामूहिक विनाश के किसी भी प्रकार के हथियार का कोई सबूत नहीं था, परमाणु हथियार तो रहने दें, इसके बावजूद सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के हथियार होने के “पुख्ता” प्रमाण इनके पास थे। इसके बजाय, नाइजर से पीले टुकड़े, यूनाइटेड किंगडम की गन्दी फाइलें, अमेरिकी खुफिया व्यवस्था के भीतर चेनी और रम्सफेल्ड द्वारा निर्मित निजी खुफिया तंत्र को सच्चाई के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा था; या इसे हम सफेद झूठ कहें? याद करिए उन एल्यूमीनियम ट्यूबों और मोबाइल परीक्षण प्रयोगशालाओं को- वही जिनसे हम लोगों की निगरानी करने और यहां तक कि महामारी को रोकथाम करने पर लगाते हैं, इन्हें इराकी सामूहिक विनाश के हथियारों के रूप में दर्शाया गया था?

इसके पीछे एक सबसे बड़ी वजह, जिसके चलते इन मामलों में गिरावट देखने को मिल रही है,तो वह ये है कि चीनी लोगों का अपनी सरकार और उसके अनुशासन पर गहरा विश्वास बना हुआ है। वे दिए गए निर्देशों का पालन कर रहे हैं, मास्क पहने हुए हैं, अपने घरों में ही बने हुए हैं, और यदि उन्हें इस बात का संदेह है कि वे किसी ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आ गए थे जो इस वायरस से पीड़ित था, तो खुद को सबसे अलग-थलग रख रहे हैं, और इस बात की जानकारी आगे दे रहे हैं, और स्वास्थ्य केंद्रों में खुद को भर्ती करा रहे हैं। शंघाई और बीजिंग में जो हलचल भरे दृश्यों का नजारा देखने को मिला करता था, उसकी जगह अब सड़कों पर बेहद कम लोग दिखाई देते हैं, ॉल निर्जन पड़े हैं और खाने-पीने की जगहें सुनसान पड़ी हैं। चीनी सरकार के पास उसके नागरिकों का भरोसा प्राप्त है, और यही भरोसा उन्हें इस महामारी की रोकथाम की ज़रूरत के रूप में सामाजिक लाभांश का भुगतान करा रहा है।

मैं अपनी बात को विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर रयान ऊपर प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धृत के वक्तव्य के साथ समाप्त करना चाहूँगा, “व्यक्तिगत रूप से मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने खुद ने और डायरेक्टर जनरल ने भी कभी इस स्तर पर किसी महामारी पर अपनी प्रतिक्रिया को इस पैमाने पर और इस स्तर की प्रतिबद्धता को नहीं देखा है… चुनौती काफी गंभीर है, लेकिन उसको लेकर जो प्रतिक्रिया देखने को मिली वह अद्भुत है, और जिस तत्परता के साथ पारदर्शी तरीके से वे इस सबसे निपट रहे हैं उसका बहुत बड़ा श्रेय चीनी सरकार को जाता है। "

कुछ ईंट-पत्थर जो पश्चिमी मीडिया और उसकी सरकारें चीन पर उछालने में लगी हैं, उसमें नस्लवादी छाप है। इसमें से अधिकांश ट्रम्प एंड कंपनी का यह नए शीत युद्ध की निरंतरता को बनाये रखने का एक सिलसिला कह सकते हैं, जिसे इन्होंने चीन के खिलाफ खोल रखा है। रणभूमि में यदि सबसे पहली कोई चीज दुर्घटनाग्रस्त होती है तो वह है निष्पक्षता की उम्मीद, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उग्र है या शीत।

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यह आलेख मूल रूप से अंग्रेजी में 8 फरवरी को प्रकाशित हुआ। मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-

https://www.newsclick.in/novel-coronavirus-and-virus-new-cold-war

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