क्वांटम कम्प्यूटिंग की तरफ बढ़ा पहला कदम
गूगल के सायकामोर यानी गूगल 53 क्यूबिट कम्प्यूटर ने महज 200 सेकंड में एक ऐसी समस्या को हल कर दिया, जिसे करने में एक सुपर कम्प्यूटर को 10,000 साल लगते। इसका मतलब यह नहीं कि क्वांटम कंप्यूटर के युग की शुरआत हो गयी। यह केवल क्वांटम कम्प्यूटिंग के क्षेत्र की तरफ बढ़ा हुआ पहला कदम है। इससे पता चलता है कि क्वांटम कम्प्यूटर, फंक्शनल कम्प्यूटेशन कर सकता है। क्वांटम कम्प्यूटिंग से खास तरह की सवालों का जवाब, परंपरागत कम्प्यूटर के मुकाबले काफी जल्दी मिल सकता है।
ऐसा नहीं हैं कि अब क्वांटम कम्प्यूटर ने परंपरागत कम्प्यूटर को पीछे छोड़ दिया है। अभी तो क्वांटम प्रभुत्व की बहुत छोटी व्याख्या का उदाहरण है, जिसमें सायकामोर फिट हुआ है। यहां क्वांटम कम्प्यूटर ने परंपरागत कम्प्यूटरों को एक विशेष काम में पीछे छोड़ा है।
लेकिन विज्ञान फंतासी को पसंद करने वाले लोगों के लिए एक निराश करने वाली बात है। क्वांटम कम्प्यूटर हमारे परंपरागत कम्प्यूटर की जगह नहीं ले पाएंगे। यह केवल एक विशेष समस्या या खास सवाल के लिए ही उपयोगी हो सकते हैं। क्वांटम कम्प्यूटर के लिए बेहद कम तापमान की जरूरत होती है, जिसे केवल एक खास तरह के माहौल में ही बनाया जा सकता है।
हम इसे हाथ में लेकर नहीं चल सकते, न ही अपने मोबाइल में इस्तेमाल कर सकते हैं। आज जितना फिजिक्स का ज्ञान उपलब्ध है, कम से कम उसके हिसाब से तो कतई नहीं। इसलिए एनक्रिप्शन एलगोरिदम पर चलने वाला दुनिया भर का इंटरनेट प्रोटोकॉल और वित्तीय लेनदेन फिलहाल सुरक्षित है।
इसके बावजूद यह एक बहुत बड़ा कदम है। कई देश और कंपनियां अरबों रुपये इस क्षेत्र में खर्च कर रहे हैं। उन्हें आशा है कि इससे एक ऐसा कम्प्यूटेशन क्षेत्र खुलेगा जो अबतक बंद है। यह पहली बार है, जब क्वांटम कम्प्यूटर से एक विशेष समस्या को हल किया गया। हालांकि यह समस्या क्वांटम कम्प्यूटिंग के लिए ही खास तौर पर बनाई गई थी।
इसे मौजूदा दुनिया की असल समस्याओं और सवालों तक भी बढ़ाया जा सकता है। मसलन क्वांटम कम्प्यूटिंग से नए तत्वों के गुणों के सवालों का जवाब मिल सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, प्रोटीन केमिस्ट्री और कई समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
यह सारी समस्याएं क्वांटम प्रभाव से संबंधित सिस्टम, जो खुद क्वांटम प्रभाव दर्शाते हैं, उनसे जुड़ी होंगी। या फिर यह प्रायिकता (प्रोबेब्लिटी) से जुड़े सिस्टम से संबंधित होंगी क्योंकि क्वांटम कम्प्यूटर खुद प्रायिकता पर काम करता है।
क्वांटम प्रभुत्व को क्रिप्टोग्राफर डर के साथ देखते हैं। सभी इंटरनेट प्रोटोकॉल, वित्तीय लेनदेन और ब्लॉकचेन आधारित सिस्टम (जैसे बिटकॉइन) क्रिप्टोग्राफी पर काम करते हैं। अगर क्वांटम कम्प्यूटर उपलब्ध हो जाते हैं तो क्रिप्टोग्राफी पर आधारित सभी सिस्टम जिनमें RSA आधारित प्राइवेट-पब्लिक मह्त्व के सिस्टम भी शामिल हैं, उन्हें आसानी से तोड़ा जा सकेगा। यह एनक्रिप्शन पर निर्भर राष्ट्र-राज्यों और वित्तीय लेनदेन करने वालों के लिए बुरा सपना है।
यह भी सच्चाई है कि क्वांटम टूल्स के खिलाफ मजबूती से खड़े होने वाले सिस्टम को भी बना लिया जाएगा। लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। फिलहाल जो एनक्रिप्टेड जानकारी उपलब्ध है, वो तो खुल ही जाएगी, साथ ही उसे पढ़ा जा सकेगा।
दुनियाभर में खलबली मचा देने वाले क्वांटम प्रभुत्व पर आधारित विशेष पेपर का केवल एक ड्रॉफ्ट वर्जन ही मौजूद है। गूगल रिसर्च से संबंधित, नासा के एक रिसर्चर ने अनजाने में नासा सर्वर पर टेक्नीकल पेपर्स में इसे अपलोड कर दिया। गूगल के स्कॉलर लगातार इस तरह के सर्वर पर खोजबीन करते रहते हैं। उन्होंने नासा के इस पेपर की जानकारी दुनियाभर के क्वांटम शोधार्थियों को दे दी। फिलहाल इस पेपर को नासा के सर्वर से हटा दिया गया है। लेकिन यह बड़े पैमाने पर आज भी उपलब्ध है।
तो क्वांटम कम्प्यूटर क्या है? क्वांटम फिजिक्स की सबएटॉमिक दुनिया के नियम हमारे आम फिजिक्स के नियमों से काफी अलग हैं। क्वांटम कम्प्यूटर बनाए जाने की पहली संभावना प्रोफेसर रिचर्ड फेंमेन ने जताई थी। उन्होंने बताया कि एक ऐसा कम्प्यूटर जो क्वांटम नियमों पर चलता हो, वो फिजिक्स और केमेस्ट्री की क्वांटम समस्याओं का समाधान कर सकेगा।
इसका मतलब है कि तय समय में क्वांटम दुनिया की चीजों से मेल बैठाने के लिए हमें क्वांटम प्रभाव पर आधारित कम्प्यूटर बनाने होंगे। यह उस वक्त केवल सोचा गया प्रयोग था। इसके जरिए बताने की कोशिश की गई थी कि परंपरागत फिजिक्स पर आधारित आम कम्प्यूटरों के जरिए क्वांटम फिजिक्स पर काम नहीं किया जा सकता। इसमें काफी लंबा वक्त लगेगा।
तो आखिर ऐसा क्यों है कि परंपरागत फिजिक्स पर काम करने वाली मशीनें क्वांटम क्षेत्र में काम नहीं कर पाएंगी? सीधी बात है कि या तो क्वांटम में गणना का आकार काफी बड़ा हो जाएगा या फिर भविष्य में कब तक यह सिस्टम स्टेट यानी अवस्था की गणना कर पाएगा। किसी भी केस में क्वांटम दुनिया का भविष्य प्रायिकता-वितरण (प्रोबेब्लिटी-डिस्ट्रीब्यूशन) पर आधारित है। इनका क्वांटम कम्प्यूटर के जरिए ही बेहतर समाधान हो सकता है क्योंकि क्वांटम कम्प्यूटर अपना परिणाम प्रायिकता-वितरण में देते हैं।
तो क्वांटम सिद्धांतों पर बने कम्प्यूटर और परंपरागत कम्प्यूटर में क्या अंतर है? हमारे रोजाना के काम करने वाले कम्प्यूटर में जानकारी केवल बाइनरी फॉर्म में उपलब्ध होती है। सबसे छोटी बिट 0 या 1 (गलत-0, सही-1) होती है। जानकारी भी केवल एक ही स्टेट में होती है। या तो यह एक होगी या फिर शून्य।
क्वांटम कम्प्यूटर में क्वांटम बिट्स होती हैं। इन्हें क्यूबिट्स (qubits) कहा जाता है। सुपरपोजिशन के क्वांटम नियमों पर आधारित यह कई स्टेट में उपलब्ध होते हैं। सुपरपोजिशन की अंतिम राशि तब ही पता चलती है, जब यह गिरकर शून्य या एक पर आ जाए। जब ऐसा होता है तो क्यूबिट की उम्र खत्म हो जाती है। इसे आगे की गणनाओं में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
क्यूबिट और परंपरागत बिट में एक और अंतर है। क्यूबिट एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इससे एक की बजाए कई स्टेट पैदा हो सकती हैं। आसान शब्दों में एक निश्चित संख्या के क्यूबिट, उसी संख्या के परंपरागत बाइनरी बिट्स से ज्यादा संभावनाएं पैदा करते हैं। इसलिए वो कुछ विशेष समस्याओं को ज्यादा तेजी से हल कर सकते हैं।
इस तरह के कम्प्यूटेशन की खूबसूरती है कि इसमें सवाल का आकार मायने नहीं रखता। बड़े-बड़े सवालों को क्यूबिट छोटे सवालों की तरह ही तेजी से हल कर सकते हैं। लेकिन क्यों परंपरागत कम्प्यूटरों को क्वांटम कम्प्यूटर से बदला नहीं जा सकता? टेक्नोलॉजी (कम ताप, टेक्नोलॉजी के दोहन की समस्या) और कीमत के पहलू पर न जाकर हम सीधे बुनियादी मुद्दों पर आते हैं।
पहला, एक क्वांटम कम्प्यूटर केवल क्वांटम राशियों में काम करता है। दूसरी तरह से कहें तो यह केवल प्रायिकता के आधार पर काम करता है। इसलिए यह दिए गए सवालों का सीधे जवाब नहीं देगा। इस तरह यह उन्हें हल नहीं कर पाएगा। यह बस सवाल के संभावित जवाबो का वितरण बताएगा।
दूसरा, सवाल और समस्याओं को क्वांटम नियमों के हिसाब से ढालना होगा। लेकिन कुछ ही सवालों को क्वांटम नियमों के हिसाब से ढाला जा सकता है।सबको नहीं। तीसरी बात, हमें गलतियां सुधारने के लिए अलग से क्यूबिट की जरूरत होगी। नहीं तो यह कम्प्यूटेशन को खराब कर देंगी।
गूगल के हाल के प्रयोग से पता चला है कि इन तीनों को हासिल किया जा सकता है। मतलब एक ऐसी समस्या को चुना गया जो प्रायिकता-वितरण के नियमों में ढाली जा सके। इसमें गलतियां सुधारने वाला कोड भी होगा और अब यह जवाब की जांच कर रहा है। इसमें प्रायिकता-वितरण जरूरी समाधान होगा। ऐसी जांच परंपरागत कम्प्यूटर या इस केस में सुपर कम्प्यूटर के जरिए हो सकती है।
ऐसा कहा गया कि एक क्वांटम कम्प्यूटर के सही इस्तेमाल के लिए 40-50 क्यूबिट की जरूरत होगी। यह तय वक्त के लिए चलेगा और उसके बाद इसमें गलतियां सुधारनी होंगी।
गूगल का सायकामोर क्वांटम कम्प्यूटर 54 बिट इस्तेमाल कर रहा था। इसमें एक खराब निकली, तो कुलमिलाकर 53 बिट इस्तेमाल की गईं। इसके पास गलतियां सुधारने वाला कोड भी था। यह 200 सेकंड के लिए चला और इसने एक ऐसे सवाल को हल किया जिसे करने में परंपरागत कम्प्यूटर को दस हजार साल लग जाते।
यह सही है कि दोनों कम्प्यूटर की यह तुलना गलत है। यह बिलकुल वैसा ही है कि ब्रिज खेलने वाले एक खिलाड़ी को मैराथन में लंबी दौड़ के एथलीट से सामना करना पड़ जाए। लेकिन सायकामोर ने अपना पहला टेस्ट पास कर लिया और एक ऐसे सवाल को हल किया जिसे करने में परंपरागत कम्प्यूटर को लंबा समय लग जाता।
इस मशीन का उपयोग क्या है? हम इसके दूसरी तरफ देखते हैं। वैक्यूम ट्यूब और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में पारंगत होने के बाद हम चार्ल्स बैबेज की मैकनिकल मशीन को आज के कम्प्यूटर में बदलने में कामयाब रहे। इसमें करीब सौ साल लग गए। आज की क्यूबिट टेक्नोलॉजी बैबेज की मशीन की तरह ही हैं। पारंपरिक कम्प्यूटर से हल होने वाले सवालों को क्वांटम कम्प्यूटर हल नहीं कर पाएगा।
भविष्य में पारंपरिक और क्वांटम कम्प्यूटर चिप का मेल होगा। इस तरह समस्याएं पारंपरिक और क्वांटम दो हिस्सों में बंट जाएंगी। आज डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को हैकिंग से बचाने में राष्ट्र-राज्यों का बहुत कुछ दांव पर लगा है। वे भविष्य की तरफ देख रहे हैं। भले ही यह कुछ वक्त दूर हो। जो भी देश ताकतवर बनने की मंशा रखता है वो पीछे नहीं रह सकता।
गूगल के साथ फिलहाल अमेरिका सबसे आगे है। IBM भी 50 क्यूबिट आर्किटेक्चर बना रही है। बाकी लोग भी पीछे ही हैं। डी-वेव सिस्टम नाम की एक कनाडाई कंपनी 2048 क्यूबिट का सिस्टम तैयार कर चुकी है। यह एक 5000 क्यूबिट मशीन भी बना रही है। लेकिन इससे केवल एक खास तरह की समस्या का ही समाधान किया जा सकता है। दूसरे लोग जिस तरह का क्वांटम कम्प्यूटर बना रहे हैं, यह वैसा नहीं है।
चीन,अमेरिका से पीछे है। लेकिन उन्होंने एक ऐसे 18 और 24 क्यूबिट कंप्यूटर को बनाने में कामयाबी पाई है, जिसमें क्यूबिट आपस में जुड़ जाते हैं। यह क्वांटम कम्प्यूटिंग के लिए अलग तरह की पहुंच है।
चीन में कई शोधार्थी इस क्षेत्र में आएंगे और उनके पास बड़ी संख्या में पेटेंट और रिसर्च पेपर होंगे। इसकी तुलना में भारत बहुत पीछे है। यहां टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में 3 क्यूबिट सिस्टम है। हमारा बजट भी अमेरिका और चीन का एक फीसदी भी नहीं है। गूगल के प्रयोग के बाद क्वांटम कम्प्यूटिंग आज हमारे दरवाजे पर खड़ी है। वक्त बताएगा कि यह कैसे अंदर आती है।
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