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शिक्षा पर RSS के दोहरे हमले का करें विरोध

यह ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है कि शिक्षा को पहले दिन से ही केंद्र सरकार और आरएसएस द्वारा निशान बनाया जा रहा है।
saffronisation of education

छात्रों में स्वतंत्र सोच विकसित करने के लिए शिक्षा को एक ज़रिया माना जाता है। शिक्षा का आधार छात्रों को उनके पाठ्यक्रम के माध्यम से वास्तविक तथ्यों तथा स्थापित सिद्धाँतों का सँदेश देना है, जिससे उन्हें इन तथ्यों का विश्लेषण करने और उनकी स्वतंत्र सोच विकसित करने के लिए तैयार किया जा सकता है । यह एक तर्कसंगत समाज की ओर ले जाएगा, लेकिन आरएसएस-बीजेपी द्वारा शिक्षा का इस्तेमाल अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए किया जा रहा है ,ताकि एक हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की अपनी रणनीति लागू करने के लिए पूरे समाज को साम्प्रदायिक किया जा सके।

वर्तमान बीजेपी सरकार सिर्फ ग़लत तथ्यों, गढ़े हुए इतिहास और ग़लत व्याख्याओं के प्रस्तुतिकरण के माध्यम से शिक्षा को साम्प्रदायिक बनाने के लिए शैक्षणिक सँस्थानों का उपयोग ही नहीं कर रही है बल्कि इन संस्थानों  को विाचरों के निर्माण और अपनी आर्थिक नीतियों का बचाव करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रही है। यह एक बहुत ही ख़तरनाक प्रवृत्ति है जिसमें एक साम्प्रदायिक सरकार अपनी असफल तथा लोक-विरोधी नीतियों को उचित सिद्ध करने के लिए शिक्षा संस्थानों का इस्तेमाल तथा धर्म का इस्तेमाल सरकार के अनुचित कार्यों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।

ऐसा ही एक मामला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के भगवाकरण के प्रयास का है। विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के एमए की परीक्षा में एक प्रश्न 'मनू वैश्वीकरण के पहले भारतीय विचारक हैं; चर्चा करें’ पूछा गया।यह आरएसएस-बीजेपी के एजेंडे का एक प्रतिबिंब है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जो हाल ही में यूनिवर्सिटी प्रशासन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ सुरक्षा के सवाल पर छात्राओं के संघर्ष का साक्षी रहा। एमए पहले सेमेस्टर के छात्रों ने जब 'प्राचीन भारत के सामाजिक और राजनीतिक विचारक' विषय में उक्त सवाल देखा तो वे चकित रह गए। छात्रों को कौटिल्य के अर्थशास्त्र या मनू में जीएसटी की प्रकृति पर एक निबँध लिखने के लिए कहा गया था जो वैश्वीकरण के पहले भारतीय विचारक हैं।

यह पाठ्यक्रम के बाहर प्रश्नों का एक सरल मामला नहीं है बल्कि उच्च शिक्षा को बर्बाद करने के लिए काम करने वाली साजिश को दर्शाता है। उपरोक्त उदाहरण में छात्रों को एक निश्चित तरीक़े से सोचने और लिखने के लिए मजबूर किया जाता है नहीं तो उन्हें अंकों से हाथ धोना पड़ेगा। छात्रों को एक ख़ास तरीके से सोचने के लिए मजबूर करने का यह एक तरीका है। अज्ञात छात्र के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ "प्रश्नपत्र में ये हास्यास्पद और अजीब प्रश्न वाक़ई निराशाजनक हैं। वर्तमान सरकार की नीतियों को पुष्ट करने के लिए छात्रों को इन फ़़र्जी अवधारणाओं को पढ़ाया जा रहा है। यहाँ तक कि पिछले साल भी छात्रों को नोटबँदी के फायदों को पढ़ाया गया था और ये कि रामायण के पात्रों ने दुश्मनों को हराने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किए थे। हालांकि, विरोध के बाद इन्हें हम पर परीक्षित नहीं किया गया।"

यह एक स्थापित तथ्य है कि नोटबंदी  जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का  मास्टर स्ट्रोक माना गया था , ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है  ग़रीबों को बैंकों और एटीएम के बाहर कतार में खड़े रहना पड़ा और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था  , इनमें से कई की मौत भी हो गई थी । लाखों लोगों ने अपना रोज़गार खो दिया है जिससे उनका परिवार प्रभावित हुआ। व्यक्तियों को उनकी नौकरी और ज़़िंदगियाँ खोने को लेकर विभिन्न आकलन हैं, लेकिन नोटबंदी के चलते प्रभावित लोगों की संख्या में कई गुना हुई बढ़ोतरी ने उनके परिवार को भी बर्बाद कर दिया। लोग जब नोटबँदी के इस संकट से बाहर आ रहे थें तभी जीएसटी ने व्यवसायों पर सख़्त हमला कर दिया। बीजेपी और आरएसएस ने महसूस किया है कि इतिहास इन लोक-विरोधी नीतियों के लिए उन्हें माफ नहीं करेगा, इसलिए वे अपने पुराने स्थापित सिद्धांत की ओर वापस जा रहे हैं । वे नहीं चाहते कि लोग इन नीतियों का आकलन करें बल्कि लोगों को केवल फायदे के बारे में सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। वे कक्षाओं में वास्तविक विश्लेषण के लिए इन नीतियों पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन वे अपने प्राचीन गढ़े हुए इतिहास से अपने असत्य मूलों को जोड़कर उन्हें महान और उपयोगी नीतियों के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, अर्थात् कौटिल्य से जीएसटी और रामायण से नोटबंदी ।

आरएसएस अपने लोगों या प्रचारकों की तैनाती करके शिक्षा की पूरी संरचना को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है जो अपने खुल्लम खुल्ला झूठ से इन प्रयासों को न्यायसंगत  बना रहे हैं। इस मामले में भी प्रश्न पत्र तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने खुलेआम मीडिया में स्वीकार किया कि वह आरएसएस के सदस्य हैं। प्रोफेसर मिश्र कक्षा में इन पक्षपाती अवधारणाओं को पढ़ाने और इन सवालों के समर्थन में हास्यास्पद तर्कों की  सूची देते है, जिसमें प्रत्येक के 15 अंक निर्धारित हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शिक्षा को पहले दिन से ही केंद्र सरकार और आरएसएस द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। भारतीयकरण के नाम पर वे इसे सांप्रदायिक करने की कोशिश कर रहे हैं और अपने विचारों का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं। छद्म तथा झूठे इतिहास बीजेपी शासित राज्यों में पढ़ाया जा रहा है, जो युवाओं को सांप्रदायिकता के विष के साथ प्रदूषित कर रहे हैं। पहले उच्च शिक्षा संस्थानों पर हमले हुए। लेकिन अब वे उच्च शिक्षा की सामग्री में सीधे तौर पर हस्तक्षेप कर रहे हैं। भारतीय शिक्षा प्रणाली इन मूल्यों पर खड़ा नहीं उतरता है। विश्वविद्यालय विशेष रूप से तर्कसंगत और तार्किक सोच को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की धीमी लेकिन जानबूझकर देश की शिक्षा प्रणाली का "भगवाकरण" करने का स्पष्ट संकेत है और इस प्रक्रिया में हिंदुत्व की उनकी मूल विचारधारा से बड़ी सँख्या में युवा के मस्तिष्क को भरा जा रहा है।

ये लेखक के विचार हैंन्यूज़क्लिक की सहमति आवश्यक नहीं है।

मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित लेख का हिंदी अनुवाद

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