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रेटिंग एजेंसियों से नाराज़ होने की बजाए डिजिटल ढांचे में सुधार की ज़रूरत

वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत में यूनीक डिजिटल पहचान सत्यापन को लेकर कुछ समस्याओं का ज़िक्र किया था जिसके बाद से सरकार इसे ‘निराधार’ बता रही है।
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प्रयागराज अर्बन क्षेत्र की 62 वर्षीय वरिष्ठ सुशीला देवी, कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र पार करने के बावजूद, दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए शहर के तीन घरों में काम करती है। पिछले हफ्ते, उन्होंने अपने मालिक से एक घंटे पहले घर जाने की अनुमति मांगी ताकि वह राशन की दुकान पर अपने आधार कार्ड पर मुफ्त राशन प्राप्त कर सके। वह एक घंटे तक कतार में खड़ी रही और उस दिन राशन दुकान वाले ने सबको को यह कहकर लौटा दिया कि सर्वर डाउन होने के कारण आधार वेरिफिकेशन के लिए डिवाइस काम नहीं कर रहा है। एक घंटे तक कतार में खड़े रहने के बाद उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा।

यह आधार को लेकर उनके सामने आने वाली एकमात्र समस्या नहीं है। उनके 65 वर्षीय पति रामायण राम बहुत बीमार हैं और बिस्तर पर पड़े हैं। वह जाकर आधार कार्ड नहीं बनवा सके इसलिए वृद्धावस्था पेंशन के लिए आवेदन भी नहीं कर पाए। उनके इलाज के लिए अस्पताल ने आधार कार्ड की मांग की और चेतावनी दी कि भविष्य में आधार कार्ड के बिना इलाज नहीं होगा।

उनके दामाद की, जो एक सड़क निर्माण मज़दूर था, दो साल पहले एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सुशीला अपनी विधवा बेटी और उसके दो बच्चों की देखभाल भी कर रही है। बेटी रोज़ गंगा पार कर दूसरी तरफ खेतों में मज़दूरी करने जाती है। अगस्त में कम बारिश हुई तो जो सब्जी की फसलें लगाई थीं, वे मर गईं और इसलिए सितंबर में ज़्यादा काम नहीं हुआ। बाक़ी लोग मनरेगा का काम कर रहे हैं लेकिन वह इसकी भी उम्मीद नहीं कर पाती।

जब सुशीला देवी ने उस क्षेत्र के स्थानीय ग्राम पंचायत कार्यालय से संपर्क किया, जहां उनकी बेटी काम देखने जाती है, तो उसके राशन कार्ड से उन्होंने देखा कि उनका निवास प्रयागराज में नगर निगम की सीमा के अंदर था और उन्होंने उन्हें शहर में नगर पालिका कार्यालय में भेज दिया। नगर निगम अधिकारियों ने उन्हें डायरेक्ट ट्रांसफर हेतु बैंक खाता खुलवाकर आने को कहा, फिर उन्हें बैंक अधिकारियों ने आधार कार्ड के साथ आने के लिए कहा।

सुशीला अपने, अपनी बेटी और दो बच्चों के लिए आधार कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटक रही हैं। उन्होंने अपने लिए वृद्धावस्था पेंशन, अपनी बेटी के लिए विधवा पेंशन और दोनों के लिए आधार कार्ड के लिए आवेदन किया है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं मिला। यह देरी उनके ई-केवाईसी को सत्यापित करने में बैंक की कुछ गड़बड़ी के कारण हुई है। जब उनसे मोबाइल नंबर मांगा गया तो न तो उनके पास कोई मोबाइल नंबर था और न ही उनकी बेटी के पास। उन्हें पैसे बचाकर मोबाइल फोन खरीदने के लिए 2000 रुपये खर्च करने पड़े, और यह उसके लिए बहुत बड़ी रकम है। फिर भी जब वह मोबाइल फोन लेकर बैंक गईं तो बैक ने सर्वर डाउन होने की बात कहकर किसी और दिन आने को कह दिया। वह कुछ समझ नहीं पा रही थीं कि यह सब क्या हो रहा है?

इसके अलावा, वह अपना काम छोड़कर दूर स्थित बैंक शाखा में भी नहीं जा सकती हैं। अंततः बड़ी मशक्कत के बाद वह एक मोबाइल फोन और अपने बैंक खाते के साथ आधार लिंक कराने में सफल हुईं। फिर भी, उन्हें चिंता है कि क्या वह इस महीने अपना मुफ्त राशन उठा पाएंगी या नहीं। उन्हें यह भी नहीं पता कि उनकी वृद्धावस्था पेंशन और बेटी की विधवा पेंशन उनके बैंक खातों में कब तक पहुंचेगी।

सुशीला देवी अकेली ऐसी महिला नहीं हैं। उनके जैसे हज़ारों-हज़ार लोग हैं। कई लोग, जिनके आधार कार्ड खो गए हैं, उन्हें नहीं पता कि नया आधार कार्ड कैसे प्राप्त करेंगे। राशन की दुकान में वे जिस छोटी मशीन का उपयोग करते हैं वह फिंगरप्रिंट पहचान के लिए है। लेकिन मिट्टी का काम करने वाले मज़दूरों के मामले में कई बार बायोमेट्रिक सत्यापन अक्सर काम नहीं करता क्योंकि उनकी उंगलियों के निशान साफ नहीं आते। मशीन सिर्फ आवाज़ करती है और 'त्रुटि' दिखाती है, ऐसे में गरीब मज़दूरों को उनके मुफ्त राशन से वंचित होना पड़ जाता है। यह उनकी गलती नहीं है। यह सरकार की डिजिटल मशीनरी की त्रुटि है। यदि बैंक अधिकारियों का सर्वर काम नहीं करता तो वे इसकी ज़िम्मेदारी सरकारी विभागों पर मढ़ देते हैं क्योंकि उनका कहना है कि वे असहाय हैं क्योंकि सैटेलाइट अपलिंकिंग के लिए उनके पास अपना सर्वर और सॉफ्टवेयर होने के बावजूद उन्हें सरकार पर निर्भर रहना होता है।

सरकार सुप्रीम कोर्ट की नहीं मानती?

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा है कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार अनिवार्य नहीं बनाया जाए। इसके बावजूद, सरकार अयोग्य लाभार्थियों को बाहर करने के बहाने आधार को जोड़ती आ रही है। लेकिन यह स्वीकार नहीं करती कि इससे वह अयोग्य लाभार्थियों को हटाने में विफल है; बल्कि आधार कार्ड की अनुपस्थिति के कारण या केवल सत्यापन गड़बड़ियों के कारण वास्तविक लाभार्थियों को भी बाहर कर रही है। यहां तक कि प्री-स्कूल नर्सरी पाठ्यक्रमों में 3 साल के बच्चों को प्रवेश देने के लिए भी स्कूल आधार कार्ड की मांग की जाती है। सौभाग्य से, वे सत्यापन प्रणाली का पालन नहीं करते, क्योंकि उनकी कोमल उंगलियों और अविकसित आईरिस के साथ इस प्रकार के बायोमेट्रिक विवरण का फुलप्रूफ सत्यापन आसान नहीं होता।

मूडीज़ (Moody’s) की रिपोर्ट

हम आधार सत्यापन संबंधी इन गड़बड़ियों के बारे में कई बातें कर सकते हैं, लेकिन हम अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए केवल इन उदाहरणों पर नज़र डालेंगे। भारत में आधार की ऐसी कई आम गड़बड़ियों की पृष्ठभूमि में, वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ (Moody’s) ने 21 सितंबर 2023 को प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि भारत में यूनीक डिजिटल पहचान सत्यापन (Unique Digital Identity Verification) के लिए आधार सत्यापन, गर्म और आर्द्र (Hot & Humid) परिस्थितियों में समस्याग्रस्त है। इसके बाद तुरंत सरकारी अधिकारियों ने मूडीज़ पर हमला बोलते हुए कहा कि वह "निराधार आरोप" लगा रहा है।

मूडीज़ पर क्यों बिफर पड़ी सरकार?

वास्तव में, "विकेंद्रीकृत डिजिटल पहचान में प्रचुर संभावनाएं हैं, लेकिन व्यापक रूप से अपनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है" शीर्षक वाली रिपोर्ट भारत के लिए विशिष्ट रिपोर्ट नहीं है। यह सभी देशों को कवर करने वाली एक वैश्विक रिपोर्ट है और इसका मुख्य विषय डिजिटल वित्त और डिजिटल भुगतान व डिजिटल लेनदेन है। भारत सरकार, अमेरिका और ब्रिटेन के बाद डिजिटल लेनदेन की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर होने पर अपनी पीठ थपथपा रही है। सरकार दावा करती है कि अगर जापान और यूरोपीय देशों को उनकी छोटी आबादी के कारण छोड़ दिया जाए तो भी वह चीन से ऊपर है। लेकिन भारत में कॉल ड्रॉप और इंटरनेट आउटेज (ठप्प) की दर भी दुनिया में सबसे ज़्यादा है। जबकि ट्राई का लक्ष्य 2% है और अंतरराष्ट्रीय मानदंड 3% है। भारत में कॉल ड्रॉप दर 4.37% है। बिना रुकावट के एक घंटे से अधिक इंटरनेट ब्राउज़ करना असंभव है। अनिवार्य प्रति घंटे पर कॉल ड्रॉप भारत की समस्या है। अंतहीन इंटरनेट आउटेज के लिए बीएसएनएल की ओर से ग्राहकों के प्रति कोई जवाबदेही या हर्जाना नहीं है। क्या सिंगापुर या श्रीलंका में इसकी कल्पना की जा सकती है? विडंबना यह है कि श्रीलंका में एयरटेल की इंटरनेट सेवाएं कथित तौर पर भारत की तुलना में बेहतर हैं!

ऐसी पृष्ठभूमि में, मूडीज़, एक प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी के रूप में, वैश्विक स्तर पर डिजिटल लेनदेन पर एक रिपोर्ट लेकर आई है और इस रिपोर्ट में भारत समेत कई देशों को शामिल करते हुए उन्होंने उल्लेख किया है कि-

“आधार, दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल आईडी कार्यक्रम, बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा का उपयोग करके 1.2 बिलियन से अधिक भारतीय निवासियों को यूनीक नंबर प्रदान करता है। यह प्रणाली फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन के माध्यम से सत्यापन और वन-टाइम पासकोड जैसे विकल्पों के साथ सार्वजनिक और निजी सेवाओं तक पहुंच को सक्षम बनाती है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) आधार का प्रबंधन करता है, जिसका लक्ष्य हाशिए पर रहने वाले समूहों को एकीकृत करना और कल्याणकारी लाभों की पहुंच का विस्तार करना है।”

“हालांकि, सिस्टम को बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें प्राधिकार (Authorization) स्थापित करने का बोझ और बायोमेट्रिक विश्वसनीयता के बारे में चिंता शामिल हैं। इस प्रणाली के परिणामस्वरूप अक्सर सेवा से इनकार कर दिया जाता है और बायोमेट्रिक प्रौद्योगिकियों की विश्वसनीयता, विशेष रूप से गर्म, आर्द्र जलवायु में शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूरों के लिए, संदिग्ध है।”

सबसे पहले, यदि सरकार निष्कर्षों से असहमत थी तो उसे इन्हें नकारने या गलत साबित करने के लिए तथ्य सामने लाने चाहिए थे लकिन ऐसा नहीं किया गया है।

दूसरा, वह आधार और इंटरनेट संबंधी गड़बड़ियों को भी स्वीकार नहीं करती है, जिनका सामना लाखों भारतीय रोज़ ही कर रहे हैं।

वही सरकार, जो मूडीज़ रेटिंग एजेंसी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में सकारात्मक रेटिंग देने पर अपनी पीठ थपथपा लेती है, रेटिंग खराब होने या आलोचना होने पर उस पर टूट पड़ती है।

सच है, सभी रेटिंग एजेंसियां समग्र नव-उदारवादी ढांचे के तहत काम करती हैं। कभी-कभी, उनके काम में बांड और शेयर बाज़ारों में निहित स्वार्थों द्वारा भी हेरफेर किया जाता है। लेकिन जहां तक इस इस मामले की बात है, कोई निहित स्वार्थ नहीं दिखता क्योंकि यह डिजिटल वित्त पर एक बहुत व्यापक वैश्विक अध्ययन है। वह वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर और भारत से मिले फीडबैक के आधार पर रेटिंग और अवलोकन कर रही है। कोई भी इसका प्रतिवाद, तथ्यों के साथ करने के लिए हमेशा स्वतंत्र है, लेकिन वैध तर्कों के बिना, क्रोधपूर्ण प्रतिक्रियाओं के साथ कतई नहीं।

इसलिए मूडीज़ पर भड़कने के बजाय, सरकार को डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार करने की ज़रूरत है।

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