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उत्तराखंड में स्वच्छता के सिपाही सड़कों पर, सफाई व्यवस्था चौपट; भाजपा मांगों से छुड़ा रही पीछा

उत्तराखंड राज्य के नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में स्वच्छता और सफ़ाई व्यवस्था में लगे हजारों की तादाद में सफ़ाईकर्मी अपना काम छोड़ कर हड़ताल पर हैं।
सफाइकर्मचारियों की हड़ताल

पौड़ी गढ़वाल : प्रयागराज कुंभ 2019 में देश के सामने एक तस्वीर आई थी जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सफाई कर्मियों के पैर धो रहे थे और उन्हें स्वच्छता के सिपाही बता कर उनकी तारीफों के क़सीदे भी पढ़ रहे थे। वहीं वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के दौरान इन्हीं सफाईकर्मियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपना काम बख़ूबी चालू रखा और सफ़ाई व्यवस्था के कार्य में लगे रहे। तब इन्हीं सफ़ाई कर्मचारियों को कोरोना वारियर्स, कोरोना सिपाही और न जाने किन-किन नामों से नवाजा गया। यह सब भी देश ने देखा।

लेकिन डबल इंजिन की उत्तराखंड सरकार को शायद प्रधानमंत्री मोदी की बातों और उनकी संवेदनाओं से कुछ भी लेना देना नही लगता। उत्तराखंड राज्य के नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में स्वच्छता और सफ़ाई व्यवस्था में लगे हजारों की तादाद में सफ़ाई कर्मी अपना काम छोड़, कार्य बहिष्कार कर हड़ताल पर हैं। वहीं उत्तराखंड की भाजपा सरकार उनकी इन मानवीय और तर्क पूर्ण मांगों से पल्ला झाड़ रही है। सरकार कह रही है कि वो उनकी कोई भी मदद नही कर सकती, वहीं उत्तराखंड सरकार का कहना है कि उनकी मांगे सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। और उनकी जिम्मेदारी नगर निगमों और नगर निकायों की है। वही उनकी मांगों पर विचार करे।

उत्तराखंड राज्य में 8 नगर निगम, 43 नगर पालिका परिषद और 43 नगर पंचायतें हैं। जहां 6 से 7 हज़ार स्थायी सफ़ाई कर्मचारी और करीब 10 हज़ार अस्थायी सफाईकर्मी कार्यरत हैं जो देवभूमि उत्तराखंड के शहरों और नगरों की साफ़-सफ़ाई करने में लगे हैं।

उत्तराखंड के सफाईकर्मी संगठन संयुक्त मोर्चा "देवभूमि उत्तराखंड सफाईकर्मी संघ" के सफाईकर्मचारी अपनी वाज़िब मांगों को लेकर सड़कों पर आन्दोलनरत हैं। उनकी मांग है कि सम्पूर्ण उत्तराखंड से स्थानीय निकाय, नगर निगम और नगर पंचायतों सहित अन्य विभागों (चिकित्सालय, शैक्षणिक संस्थानों आदि) में सफ़ाई कार्य से ठेका प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त किया जाये, सफाईकर्मियों के स्थायी पदों पर भर्ती शुरू करते हुए मौहल्ला स्वच्छता समिति, संविदा और आउट सोर्सिंग सफ़ाई कर्मचारियों को नियमित किया जाए, शासनादेश संख्या 757 दिनांक - 12 जून 2015 के ढांचे को संशोधित किया जाए जिससे कि सफ़ाई कर्मचारी आउट सोर्सिंग पद के स्थान पर स्थायी पद मानकर भर्ती की जाए, पुरानी पेंशन बहाल की जाए, सफ़ाई कर्मियों का जीवनबीमा और स्वास्थ्य बीमा किया जाए, जैसी मांगों सहित अपनी 11 सूत्रीय मांगों के समर्थन में सड़कों पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

आपको बता दें कि पिछले कई दिनों से उत्तराखंड राज्य के नगर निगमों, नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों के सफ़ाई कर्मचारी कार्य बहिष्कार कर हड़ताल पर हैं, जिसके चलते पौडी जनपद के साथ-साथ उत्तराखंड के अन्य शहरों और नगरों की सफ़ाई व्यवस्था एकदम चरमरा कर ठप्प पड़ गई है। जिधर देखो गंदगी के अम्बार लगे हैं, सड़क किनारे कूड़ों के ढेरों से बदबू फैल रही है जिस कारण आम लोगों का उधर से निकलना मुहाल हो गया है। और यहां तक कि बदबू की वजह से उनका घरों में रहना भी दुर्भर होता जा रहा है। एक तरफ़ जहां उत्तराखंड के लोग अभी कोरोना महामारी से उभरे भी नही हैं तो वहीं सफ़ाई व्यवस्था ठप्प होने की वजह से उन पर एक और महामारी का ख़तरा मंडराने लगा है।

स्थानीय निवासी जहां इस गंदगी से परेशान हैं तो वहीं कोटद्वार के डॉ एसके खट्टर का कहना है कि सरकार को सफाईकर्मियों की मांगों पर जल्द ही ध्यान देना चाहिए और जल्दी से जल्दी उनकी समस्या को सुलझाना चाहिए। क्योंकि अभी तो हम कोरोना की मार से भी नही उभरें हैं और अब ऐसे में जगह जगह फ़ैली गंदगी से मलेरिया और डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी फैलने का खतरा बढ़ता जा रहा है। वहीं आवारा पशुओं ने भी इन कूड़े के ढेरों पर डेरा जमाना शुरू कर दिया है। सरकार को इस समस्या का कोई ना कोई समाधान निकलना चाहिए, जिससे चारों ओर फैली गंदगी से शहरों में रहने वाली जनता को निजात मिल सके और वो खुलकर सांस ले सकें। 

उधर उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत (ऊर्जा एवं वन मंत्री) ने सफाईकर्मियों की मांगों से पल्ला झाड़ते हुए ठीकरा नगर निगमों और नगर निकायों के मत्थे मढ़ दिया है। साथ ही मंत्री का कहना है कि उनकी मांगे सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। क्योंकि सफाईकर्मियों की मांगे नगर निगम के अंतर्गत आती हैं और उनकी मांगों पर कार्यवाही करने का अधिकार नगर निगमों और नगर निकायों को है उन्हें ही कार्यवाही करनी चाहिए। प्रदेश सरकार इस मामले में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकती क्योंकि यह मामला प्रदेश सरकार से हटकर है। इसलिए सरकार आपकी कोई मदद नही कर सकती क्योंकि यह हो ही नहीं सकता।

मंत्री की इस बात को सुनकर सफाई कर्मचारी आक्रोश में है और उन्होंने सरकार के खिलाफ़ जबरदस्त नारेबाजी करते हुए कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का घेराव भी किया। देवभूमि उत्तराखंड सफाईकर्मी संघ के कोटद्वार अध्यक्ष शशि का कहना है कि सरकार सफाईकर्मियों की लगातार उपेक्षा कर रही है जिससे उनका उत्पीड़न हो रहा है। उन्हें मात्र 8 हज़ार प्रतिमाह मानदेय मिलता है और वो भी अनियमित है इतना आसमान छूती मंहगाई और इतने कम पैसों में वो अपने कर्तव्यों का निर्वाह तो क्या वो अपने परिवार का पेट भी नही भर सकते हैं। सरकार कहती है कि बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ, पर क्या कोई इतने पैसों में अपने बच्चों को पढ़ा लिखा सकता है और क्या अपने परिवार का लालन पालन भी कर सकता है। सफाईकर्मियों का कहना है कि अगर सरकार उनकी मांगों को नही मानती है और अपना उपेक्षा भरा रवैया छोड़ कर उनकी समस्यों पर ध्यान नहीं देती तो वो अपने इस आंदोलन को और तीव्र करेंगे जिसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मंगलवार को अपने कैंप कार्यालय में सफाई कर्मचारी संगठन और संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों से मुलाक़ात की और सफाई कर्मचारियों की समस्याओं पर चर्चा की। सफाई कर्मचारी संगठन संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री के सामने राज्य बनने के समय से सफाई कर्मचारियों के नियमित पदों को पुनर्जीवित करने और सफाई कर्मचारियों के मानदेय में वृद्धि करने की मांग सहित अपनी 11 सूत्रीय मांगों को मुख्यमंत्री के सामने रखा।

नगर निगम कोटद्वार के सफाईकर्मी संगठन सचिव महेन्द्र ने बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य स्थापना के समय सफाई कर्मचारियों के जितने पद राज्य में थे, उनको पुनर्जीवित करने के लिए पत्रावली का पूर्ण परीक्षण किया जायेगा और उचित समाधान निकाला जायेगा। मुख्यमंत्री धामी ने सफाई कर्मियों के संगठन और संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों को भरोसा दिलाया है कि जो मौहल्ला स्वच्छता समिति संविदा वाले सफाई कर्मी है उनका मानदेय ₹8000/- से बढ़ाकर ₹10000/- कर दिया जाएगा, वहीं अन्य मांगों के संदर्भ में कहा गया है कि सरकार कई अलग-अलग राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, दिल्ली आदि के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर वहां से रिपोर्ट मंगवायेगी कि वहां की सरकारों द्वारा सफाईकर्मियों को क्या सुविधा प्रदान की जा रही हैं। वहां से जो भी रिपोर्ट आएगी उसी रिपोर्ट के आधार पर सफाईकर्मियों की मांगों पर विचार किया जाएगा। साथ ही सरकार ने ठेका प्रथा या आउट सोर्सिंग वाले अस्थाई सफाईकर्मीयों की मांगों के बारे में हाथ खड़े कर दिये हैं। मुख्यमंत्री ने भी कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की तरह गेंद नगर निगम और नगर निकायों के पाले में डाल दी है कि उनकी मांगों को वो ही देखेंगे, क्योंकि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है इसलिए सरकार इस बारे में कुछ नहीं कर सकती। 

उधर सफाई कर्मी संगठनों का कहना है कि अभी उन्हें मानदेय बढ़ाये जाने का कोई लिखित में दस्तावेज़ नहीं मिला है। और हड़ताल खत्म करने के बारे में पहले वो अपने संगठनों और हड़ताल पर गये सफाईकर्मियों से बात करेंगे फ़िर उसके बाद ही अपनी हड़ताल को ख़त्म या स्थगित करेंगे

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